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Friday, 26 April, 2024
होममत-विमतमोदी का जापान दौरा एक ऐसा मौक़ा है जिसका इस्तेमाल भारत को चीन के ख़िलाफ खेल में करना चाहिए

मोदी का जापान दौरा एक ऐसा मौक़ा है जिसका इस्तेमाल भारत को चीन के ख़िलाफ खेल में करना चाहिए

‘विस्तृत एशिया’ जिसकी जापान के पीएम शिंज़ो एबे ने एक बार बात की थी, महामारी के बाद उभरती सुरक्षा और विश्व व्यवस्था में, एक वास्तविकता बनने जा रहा है.

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इधर प्राइम टाइम टीवी दर्जनों ‘एक्सपर्ट्स’ के साथ, या तो बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की दुर्भाग्यपूर्ण मौत, या फिर आगामी बिहार चुनाव पर गर्मा-गरम बहसों में व्यस्त था- उधर भारत ने 26 अगस्त 2020 को, रीजनल ट्रेड ब्लॉक- आरसीईपी की एक और अहम बैठक छोड़ दी. ये मीटिंग इसलिए अहम थी कि इसमें साल के अंत तक, समझौते को अंतिम रूप देना था. क्वॉड, इंडो-पैसिफिक सिक्योरिटी आर्किटेक्चर और चीन के खिलाफ उभरते वैश्विक गठबंधन से जुड़े घटनाक्रमों का, ख़ासकर ऐसे समय जब पीपुल्स लिबरेशन आर्मी, गलवान घाटी में एक इंच भी पीछे हटने को तैयार नहीं है, किसी भी बहस में ज़िक्र नहीं है. विपक्ष भी इन विषयों पर ख़ामोश है. शायद ये मुद्दे वोट हासिल करने के चुनावी समीकरण में फिट नहीं बैठते लेकिन अगले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जापान की निर्धारित यात्रा, भारत के लिए एक अवसर है, एक ऐसी चीज़ को शुरू करने का, जो बहुत समय से लंबित भी है, और अब अपरिहार्य भी है- क्वॉड समूह में सक्रिय होना, और चीन-विरोधी मोर्चे की अगुवाई करना.


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भारत को जापानी संकेत समझना होगा

22 अगस्त को भारतीय संसद में, जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे के मशहूर भाषण- ‘दो समुद्रों के संगम‘ के लगभग 13 साल बाद, भारत और जापान अभी भी क्वॉड या क्वॉडिलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग को मज़बूत करने के तरीक़े खोज रहे हैं, जिसमें भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं. हालांकि क्वॉड में शऱीक इन चारों में किसी भी देश ने, खुलकर इक़रार नहीं किया है कि क्वॉड गठबंधन का एजेंडा चीन-विरोधी है, लेकिन उनके रुख़ से ये बिल्कुल साफ ज़ाहिर है. जहां तक कम्युनिस्ट चीन के ख़िलाफ गठबंधन का सवाल है, 2012 के अपने क्वॉड औपचारीकरण भाषण में, आबे द्वारा क्वॉड को ‘डेमोक्रेटिक सिक्योरिटी डायमंड’ क़रार देने के बाद, अब इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती.

‘विस्तृत एशिया’ जिसकी जापान के पीएम शिंजो आबे ने बात की थी, महामारी के बाद उभरती सुरक्षा और विश्व व्यवस्था में, एक वास्तविकता बनने जा रहा है. इन 13 सालों में इस क्षेत्र में, ख़ासकर लड़ाकू बीजिंग का मुक़ाबला करने के लिए, एक मज़बूत सुरक्षा और आर्थिक गठबंधन बनाने की दिशा में, लगता है कुछ नहीं किया गया है. कोरोनावायरस वैश्विक महामारी ने, जो चीन के लूहान से शुरू हुई, दुनिया को एक बिल्कुल नई स्थिति में ला खड़ा किया है. ‘व्यापार में भरोसेमंद भागीदार’ होने के बाद से, इंडो-पैसिफिक में सक्रिय रूप से, अपना प्रभाव बढ़ाने की चीन की कोशिश को, ऑस्ट्रेलिया के रणनीतिक हितों के लिए, एक ख़तरे के रूप में देखा गया. ऑस्ट्रेलिया के डिफेंस स्ट्रैटेजिक अपडेट एंड फोर्स स्ट्रक्चर प्लान में, इस बात पर विचार किया गया कि अमेरिका-चीन सत्ता संघर्ष का, ऑस्ट्रेलिया की राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है.

हालांकि टोक्यो के बीजिंग के साथ, कुछ गंभीर अनसुलझे सीमावर्ती मुद्दे थे, लेकिन वैश्विक महामारी ने टोक्यो को, चीन से अपने व्यापारी रिश्तों पर, फिर से ग़ौर करने पर मजबूर कर दिया है. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का जापान दौरा, जो दोनों देशों के आपसी रिश्तों को बदल सकता था, रद्द कर दिया गया. विडंबना ये है कि जिस दिन जापानी विदेश मंत्रालय ने दौरे के रद्द होने का ऐलान किया, उसी दिन पीएम आबे ने चीन की ओर से पैदा की जा रही, सप्लाई चेन बाधाओं पर गहरी चिंता जताई थी. इसके बाद उन जापानी कंपनियों की सहायता के लिए, 2.3 बिलियन डॉलर की राशि का ऐलान किया गया, जो चीन को छोड़कर किसी दूसरे एशियाई देश में जाएंगी.

भारत को आगे आना होगा

नई दिल्ली को क्वॉड का इस्तेमाल करके, दूसरे साझीदारों के साथ अपने रिश्ते बढ़ाने चाहिए और गठबंधन के बाहर भी, ख़ासकर वियतनाम, साउथ कोरिया व न्यूज़ीलैंड जैसे दूसरे क्वॉड प्लस देशों के साथ, और अवसर तलाशने चाहिए. इस स्थिति का इस्तेमाल करते हुए भारत को, उन देशों की ओर भी हाथ बढ़ाना चाहिए, जो इंडो-पैसिफिक, इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (आईओआरए) और साउथ ईस्ट एशिया के दायरे में आते हैं, और जो सब महामारी के सताए हैं, और चीन की आक्रामक चालों से सावधान रहते हैं. आबे का ‘विस्तृत एशिया’ का सपना, एक ऐसा प्लान है जिस पर दरअसल भारत को अमल करना चाहिए, और चीन-विरोधी गठबंधन के लिए, एक फोर्स मल्टीप्लायर की तरह इस्तेमाल करना चाहिए.

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लेकिन, ये इतना आसान नहीं है. इस समझ से बाहर आना होगा कि क्वॉड बुनियादी रूप से एक ऐसी संस्था है, जो चीन को क़ाबू रखने के लिए बनाई गई है. इसमें कोई शक नहीं है कि बीजिंग द्वारा प्रायोजित एक नया शक्ति समीकरण उभर रहा है, जो नियमों पर आधारित फ्रेमवर्क को नकारता है और एक ऐसे सिस्टम को आगे बढ़ाना चाहता है, जिसमें ताक़त -सैन्य व आर्थिक दोनों- ही सही होंगी. भारत नियमों पर आधारित एक अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसका उद्देश्य साझा विकास और शांति होगा और जिसमें किसी का आधिपत्य नहीं होगा. भारत के रुख़ को लेकर पर्याप्त समझ और सराहना है, लेकिन इस क्षेत्र में और इंडो-पैसिफिक तथा आईओआरए के भौगोलिक प्रभाव में आने वाले हर देश के, दो प्रतिस्पर्धी पावर ब्लॉक्स के साथ, अलग-अलग समीकरण और विदेश नीतियां हैं जो वर्चस्व की चाह में, एक दूसरे को धकेलने में लगे हैं.

भारत ये कैसे कर सकता है

इस अवधारणा को दूर करना होगा कि भारत कोई गठबंधन बनाने, या उसमें शामिल होने में झिझकता है और अपनी अकेली राह पर चलना पसंद करता है. हालांकि भारत ने ख़ुद को आरसीईपी वार्ता से अलग कर लिया है लेकिन हमारी आपत्तियों के बावजूद, बदली हुई भू-राजनीतिक स्थिति को देखते हुए हम अभी भी बातचीत में दाख़िल हो सकते हैं. चीन को छोड़कर जापान और एफटीए देशों के साथ मिलने से, इस क्षेत्र में हमें एक नया मंच मिलेगा.

भारत-जापान 2+2 मंत्रिस्तरीय डायलॉग और सैन्य अभ्यासों ने, अधिक से अधिक सहयोग का रास्ता साफ किया है. जापान के 2019 डिफेंस व्हाइट पेपर से पता चलता है कि स्पेस, साइबर स्पेस और इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक स्पेक्ट्रम क्षेत्र में चीन की क्षमताओं और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में उसकी बढ़ी हुई सैन्य गतिविधियों को लेकर जापान चिंतित है.

ऑस्ट्रेलिया ने भी क्वॉड के लेकर अपनी संपूर्ण प्रतिबद्धता को दोहराया है. अब ये नई दिल्ली पर है कि वो ज़्यादा सक्रिय भूमिका निभाए और इस मंच का इस्तेमाल अपने राष्ट्रीय फायदे के लिए करे. जापान समुद्री सुरक्षा के बहुत गंभीर मसलों से दोचार है, और उसे अपने साझा विकास के एजेण्डा के साथ, अफ्रीका तक पहुंचने के लिए सहायता की ज़रूरत है. भारत इन दोनों ही क्षेत्रों में उपयोगी साबित हो सकता है. क्वॉड, इंडो-पैसिफिक और व्यवसायों को चीन से बाहर लाना कुछ ऐसे मुद्दों हैं, जिन्हें जापान ने अपनी प्राथमिकता बनाया है.

वैश्विक महामारी विश्व व्यवस्था में एक ऐसा मिसाली विस्थापन लाएगी, जो अपने साथ नई चुनौतियां लाएगा. भारत को अपनी क्षमताओं का मुज़ाहिरा करने, और अगले मोर्चे से अगुवाई करने का ऐसा अवसर दोबारा नहीं मिलेगा. नई दिल्ली को चुनावी अंदाज़ से बाहर आकर, कार्य-उन्मुख योजना तथा समयबद्ध कार्यान्वयन की, अपनी प्राथमिकताएं सही से तय करनी होंगी.

‘ऐसी खबरें हैं कि जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे स्वास्थ्य कारणों से पद से इस्तीफा दे सकते हैं. नए प्रधानमंत्री के पदभार संभालते ही टोक्यो का दौरा करना, नई टीम से मिलना और यह भी कि बीमार शिंजो आबे से शिष्टाचार भेंट एक अच्छा विचार होगा. जापान को सुरक्षा और व्यापार सहित आपसी हित के कई मुद्दों पर भारत के निरंतर समर्थन और सहयोग का आश्वासन देने की आवश्यकता है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखक भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति के सदस्य हैं और पूर्व में आर्गनाइज़र का संपादक रहे हैं. व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)


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