लंदन: कैंब्रिज विश्वविद्यालय ने कोविड-19 के साथ ही भविष्य में जानवरों से इंसानों में फैलने की आशंका वाले सभी तरह के कोरोनावायरस के लिए एक टीके पर परीक्षण शुरू करने की योजना की बुधवार को पुष्टि की.
यह टीका डायोस-सीओवेक्स 2 सभी ज्ञात कोरोनावायरस के आनुवांशिक अनुक्रम के बैंक का इस्तेमाल करेगा. इसमें चमगादड़ से फैलने वाला कोरोनावायरस भी शामिल है जिसे इंसानों में फैलने वाले कई तरह के कोरोनावायरस का प्राकतिक स्रोत माना जाता है.
सभी परीक्षण के बाद इसके तैयार होने पर इसे जेट इंजेक्टर की मदद से हवा के दबाव का इस्तेमाल करते हुए मरीज को दिया जा सकेगा और यह चुभेगा भी नहीं. इसमें सुई का इस्तेमाल नहीं होगा.
कैंब्रिज विश्वविद्यालय में वायरल जूनोटिक्स की प्रयोगशाला के प्रमुख और डायोसिनवैक्स कंपनी के संस्थापक प्रोफेसर जोनाथन हीने ने इस बारे में जानकारी दी.
उन्होंने कहा, ‘हमने कोविड-19 वायरस के स्वरूप के थ्रीडी कंप्यूटर मॉडलिंग को शामिल किया है. इसमें वायरस पर सूचना के साथ ही इस परिवार के सार्स, मर्स तथा जानवरों से फैलने वाले अन्य कोरोनावायरस को भी शामिल किया है. जानवरों से इंसानों में फैलने वाले कोरोनावायरस को इसलिए शामिल किया गया है क्योंकि भविष्य में इस तरह की महामारी के फैलने का खतरा बना रहेगा.’
उन्होंने कहा, ‘हम ऐसा टीका बनाना चाहते हैं जो ना केवल सार्स-कोव-2 से सुरक्षा दे बल्कि जानवरों से इंसानों में फैलने वाले संबंधित कोरोनावायरस से भी यह रक्षा करे.’
उनकी टीम ने कंप्यूटर पर कृत्रिम जीन से तैयार एंटीजन स्वरूपों की लाइब्रेरी तैयार की है. यह मानव के प्रतिरक्षा तंत्र को, वायरस के लक्षित ठिकानों को निशाना बनाने में मदद कर सकता है और साथ ही प्रतिरोधी क्षमता पैदा करेगा.
डायोसिनवैक्स की मुख्य परिचालन अधिकारी (सीओओ) और कैंब्रिज विश्वविद्यालय में शोधार्थी डॉ. रेबेका किन्सले ने भी इस परीक्षण पर जानकारी दी.
उन्होंने कहा, ‘महामारी के खिलाफ वक्त की जरूरत को देखते हुए टीके के विकास में ज्यादातर शोधकर्ताओं ने अब तक स्थापित तरीके का इस्तेमाल किया है. हमें उम्मीद है वर्तमान परीक्षण के बेहतरीन नतीजे आएंगे. हालांकि टीके की भी अपनी सीमाएं होंगी. हो सकता है उनका इस्तेमाल संवेदनशील समूहों पर उपयुक्त न हो. हमें नहीं मालूम कि आखिर टीके का असर कब तक रहेगा.’
किन्सले ने कहा, ‘हमारी पद्धति परिवर्तनकारी है. ये कोरोनावायरस जैसे जटिल वायरस के लिए ठीक है. अगर सफल हुए तो ऐसा टीका तैयार होगा जिसका व्यापक स्तर पर इस्तेमाल हो सकेगा और किफायती दर पर इसका उत्पादन हो सकेगा.’
इस साल के अंत तक इंसानों पर इसका परीक्षण होने की संभावना है. ब्रिटेन सरकार भी टीके के विकास के लिए मदद मुहैया करा रही है.