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Monday, 25 November, 2024
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उड़ीसा हाईकोर्ट ने समलिंगी जोड़े को लिव-इन में रहने की दी इजाजत, सुरक्षा देने को कहा

उड़ीसा हाईकोर्ट ने अलगाव की स्थिति में 'महिला पार्टनर' को भी घरेलू हिंसा कानून के तहत उसके अधिकारों की रक्षा की है.

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नई दिल्ली: पहली बार, उड़ीसा उच्च न्यायालय ने समलिंगी (same sex) जोड़े को लिव-इन रिलेशनशिप में रहने की इजाजत दी है, और अलग होने की स्थिति में महिला पार्टनर को घरेलू हिंसा कानून के तहत कानूनी अधिकारों के उपयोग का भी संरक्षण दिया है.

यह आदेश सोमवार को जस्टिस एसके मिश्रा और सावित्री राठो के बेंच ने जोड़े के एक साथी की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर दिया है, जो अदालत के समक्ष दूसरे साथी को पेश करने के लिए दायर की गई थी.

याचिकाकर्ता के अनुसार, अप्रैल में भुवनेश्वर में उसके साथी की मां द्वारा जबरन अलग कर दिया गया था.

याचिकाकर्ता ने नालसा मामले में 2014 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के तहत आत्म-लिंग निर्धारण (self-gender determination) के अपने अधिकारों का प्रयोग किया है और खुद को ‘वह’ (पुरुष) के रूप में संबोधित किया जाना पसंद किया.

उनका मामला यह था कि वह और उनका साथी वयस्क है, और एक ही लिंग से संबंधित हैं, वे विवाह करने में सक्षम नहीं हैं, पर एक साथ रहने का अधिकार रखते हैं.

याची ने यह भी प्रतिवाद किया कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के उपबंधों में, विधायिका ने ‘महिला पार्टनर’ को अधिकार और विशेषाधिकार देकर, जेंडर पर ध्यान दिए बिना, लिव-इन रिलेशनशिप को स्वीकारा है.


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न्यायाधीशों ने याची के पार्टनर से वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से यह जानने के बाद कि वह क्या या चाहती है, जिसके बाद अलग-अलग लेकिन निर्णायक फैसले दिए.

ओडिशा सरकार ने मामले में कोई स्टैंड नहीं लिया, पर अदालत के आदेशों को अंजाम देना शुरू कर दिया है.

पार्टनर की मां ने बंदी प्रत्यक्षीकरण इजाजत पर न्यायपीठ से अपनी बेटी की कुशलता और सुरक्षा सुनिश्चित करने का आग्रह किया.

अदालत ने कहा, ‘इस प्रकार, उच्चतम न्यायालय के पहले के दिए गए आधिकारिक निर्णयों को ध्यान में रखते हुए, यह मानने के अलावा कि याची को सेक्स या लिंग के आत्म-निर्धारण (तय करने) का अधिकार है और उसे अपनी पसंद के शख्स के साथ लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने का भी अधिकार है, भले ही वह याची के समान जेंडर का हो, पर विचार करने की शायद ही कोई गुंजाइश है.’

पीठ ने कहा, ‘हमें आशा और विश्वास है कि याचिकाकर्ता और उसके साथी एक खुशहाल और सामंजस्यपूर्ण जीवन व्यतीत करेंगे ताकि उनके परिवार के सदस्यों को चिंता करने की कोई वजह न मिले और समाज के पास उन पर उंगली उठाने का कोई बहाना.’

‘राज्य हर तरह से प्रदान करे सुरक्षा’

याची ने अपनी दलील में दावा किया कि युगल को 2011 में एक दूसरे से प्यार हो गया था और वह 2017 से  सहमति से रिश्ते में है. दोनों स्कूल में एक दूसरे से मिले और कॉलेज में भी अपना संबंध बनाए रहे.

इस जोड़े ने एक संयुक्त हलफनामा भी दायर किया जिसमें उन्होंने भुवनेश्वर में रहने का विवरण दिया और पुष्टि की कि दोनों लिव-इन रिलेशनशिप में थे. याचिकाकर्ता ने यह दिखाने के लिए एक प्रमाण पत्र पेश किया कि उसके पास लिंग डिस्फोरिया (लिंग संबंधी असंगति) है और उसे कोई मानसिक बीमारी के लक्षण या अन्य कोई बीमारी नहीं हैं.

याचिकाकर्ता ने अदालत का दरवाजा तब खटखटाया है जब उसके पार्टनर की मां और चाचा के खिलाफ 9 अप्रैल को दोनों को उनके इच्छा के खिलाफ जबरन अलग करने की शिकायत पर भुवनेश्वर पुलिस के कोई कार्रवाई नहीं की. उसने दावा किया कि पार्टनर की मां ने उस पर किसी और से शादी का दबाव डाला.

इन बातों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने ओडिशा सरकार को संविधान के भाग-3 के जोड़े के अधिकार को कानून के समक्ष जीवन का अधिकार, समानता का अधिकार और कानून के समान संरक्षण के तहत रक्षा का निर्देश दिया. राज्य प्रशासन और पुलिस दोनों को आदेश दिया है कि वह याचिकाकर्ता को पार्टनर से मिलाने में मदद करें.


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अदालत ने पार्टनर की मां का भय बने रहने पर याचिकाकर्ता को ‘महिला (साथी) की हर तरह से अच्छी देखभाल करने’ का आदेश दिया, जब तक कि वह साथ रहती है.

पार्टनर ने कहा, उसकी मां और बहन को फोन पर बात करने या उनसे मिलने से नहीं रोका जाएगा. इसके अलावा, उसके परिवार को भी याचिकाकर्ता के निवास पर जाने का अधिकार होगा.

सेम सेक्स के साथ लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने के लिए एक महिला के साथ उसके कानूनी अधिकार सुनिश्चित करने के साथ समझौता नहीं किया जाता है, न्यायालय ने उसे घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 से महिलाओं के संरक्षण के तहत अदालत में जाने का अधिकार दिया है.

एक अलग लेकिन न्यायिक निर्णय में, न्यायमूर्ति सावित्री राठो ने कहा कि कानून वर्तमान सामाजिक मूल्यों का प्रतिबिंब है और बदलते सामाजिक मानदंडों के साथ रहता है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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