नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक राज्यों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (आईडीएसपी) का एक आंतरिक विश्लेषण बताता है कि भारत में लगभग 80 प्रतिशत कोविड-19 मरीज एसिम्पटोमेटिक हैं.
इस पर अंतिम प्रामाणिक अनुमान 28 फीसदी था जिसे मई में प्रकाशित इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईजेएमआर) के एक अध्ययन में शामिल किया था, जो कि 30 अप्रैल तक के मामलों पर आधारित था.
सूत्रों ने कहा कि 23 अगस्त तक कुल मामलों के विश्लेषण के आधार पर सिम्पटोमेटिक मरीजों में 25.93 प्रतिशत को बुखार, 17.18 प्रतिशत को खांसी, 7.83 प्रतिशत को गले में खराश और 5.54 प्रतिशत को सांस की तकलीफ हुई.
सूत्रों ने आगे कहा कि हालांकि, सबसे बड़ा अनुपात उन लोगों का है जिन्होंने गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल संबंधी समस्याओं, स्वाद और गंध का पता न लगने और शरीर में दर्द जैसे अन्य लक्षणों की जानकारी दी.
आईडीएसपी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न देने की शर्त पर बताया, ‘यह एक विश्लेषण है जो हमने उन सभी लक्षणों के आधार पर तैयार किया है जो मरीजों ने बताए हैं. हालांकि, राज्यों के साथ कई बैठकों के बाद यह पता चलना ज्यादा अहम है कि अब स्पष्ट रूप तौर पर भारत में लगभग 80% मरीज एसिम्पटोमेटिक हैं. यह एक बड़ी संख्या है.’
अधिकारी ने आगे कहा, ‘पहले हमें लगता था कि ये लोग प्रिसिम्पटोमटिक हैं जिनकी बीमारी कांटेक्ट ट्रैसिंग एक्सरसाइज के तहत टेस्टिंग और ट्रैसिंग के दौरान पता लग गई और निश्चित तौर पर ये ऐसे प्रिसिम्पटोमेटिक हैं जिनमें बीमारी के लक्षण बाद में नजर आते. हालांकि, राज्यों ने अब हमें पुख्ता तौर पर बताया है कि ये एसिम्पटोमेटिक मरीज हैं, प्रिसिम्पटोमेटिक नहीं हैं. मरीजों का एक सबसे बड़ा वर्ग ऐसा है.’
रविवार तक भारत में 30.44 लाख कोविड मामले और इसके कारण 56,706 मौतें दर्ज की गई हैं.
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एसिम्पटोमेटिक मरीज महामारी को बढ़ा रहे
बड़ी संख्या में एसिम्पटोमेटिक मरीजों की पहचान बीमारी को व्यापक स्तर पर फैलाने वाले पूल के तौर पर की गई है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसी हफ्ते कहा था कि अपने 20वें, 30वें और 40वें दशक में होने वाले युवा अक्सर एसिम्पटोमेटिक होते हैं और इसलिए बीमारी के वाहक बन रहे हैं. भारत में सबसे ज्यादा प्रभावित पांच प्रमुख राज्यों के आंकड़ों का विश्लेषण भी इसी ट्रेंड को दिखाता है.
शुरुआत में, भारत में एसिम्पटोमेटिक मरीजों का अनुमान 69-80 प्रतिशत के बीच था. भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महामारी विभाग के पूर्व प्रमुख डॉ. रमन गंगाखेड़कर ने अप्रैल में कोविड से जुड़ी एक प्रेस ब्रीफिंग में 80 फीसदी का आंकड़ा दिया था, जिसे कुछ दिनों बाद ही संशोधित करके 69 फीसदी कर दिया गया. बड़े पैमाने पर कमी वाला यह संशोधन मई में 40,000 से अधिक मरीजों पर आईजेएमआर के अध्ययन के बाद किया गया था.
हालांकि, भारत में टेस्ट की रणनीति बहुत हद तक इस पर निर्भर करती है कि किसी व्यक्ति में लक्षण दिख रहे हैं या नहीं. विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसा इसलिए क्योंकि किसी ऐसे व्यक्ति के पॉजिटिव पाए जाने की संभावना बेहद कम है जिसमें लक्षण दिखाई न दे रहे हों. ऐसा माना जाता है कि किसी व्यक्ति का प्रिसिम्पटोमेटिक, जो अस्थायी स्थिति है, एसिम्पटोमेटिक नहीं, होना एक ऐसी स्थिति है जो संक्रमण अवधि तक बनी रह सकती है.
एसिम्पटोमेटिक मामलों की इतनी बड़ी संख्या को देखते हुए इसे कुछ बिंदुओं पर संशोधित करने की आवश्यकता हो सकती है.
संकेतों का विश्लेषण
आईडीएसपी ने डॉक्टरों द्वारा अपने फॉर्म में शामिल किए गए संकेतों का भी विश्लेषण किया.
इसे स्पष्ट करते हुए ऊपर उद्धृत आईडीएसपी अधिकारी ने बताया, ‘लक्षण वे हैं जिनकी शिकायत हमारे पास आए मरीज करते हैं और संकेत वो हैं जो डॉक्टर मरीजों की जांच के दौरान पता लगाते हैं.’
यह दर्शाता है कि 8.46 प्रतिशत डॉक्टरों ने फेफड़े के एक्स-रे या सीटी स्कैन को असामान्य पाया, 2.78 प्रतिशत ने टकीपनिया या सांस तेज होने की जानकारी दी, 1.89 प्रतिशत ने फेफड़ों में असामान्य आवाज बताई, 0.75 प्रतिशत ने आंखों में लालिमा, 0.66 प्रतिशत ने कोमा, 0.51 ने घबराहट और 0.60 प्रतिशत ने आवाज असामान्य होने जैसे संकेतों की जानकारी दी.
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आईडीएसपी अधिकारी ने बताया कि रिपोर्टिंग फॉर्म को समय-समय पर अपडेट किया जाता है, बहुत सारे नए संकेत और लक्षण इसमें शामिल नहीं हैं और इन्हें शामिल करने की प्रक्रिया चल रही है. इनमें डिहाइड्रेशन, शरीर के एसिड बेस बैलेंस बिगड़ना, असामान्य हृदयगति आदि शामिल हैं. इन सबको ‘अन्य संकेतों’ के तौर पर वर्गीकृत किया गया है जो रिपोर्ट में शामिल संकेतों का 83.54 प्रतिशत हैं.
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