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Wednesday, 20 November, 2024
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‘वंशवाद विरोधी’ नीतीश की जदयू ने 3 राजद विधायकों को पार्टी में शामिल किया, सभी ताकतवर राजनीतिक परिवारों से हैं

राजद के 6 विधायक हाल में जदयू में शामिल हुए हैं और उनमें से तीन यादव हैं. जदयू नेताओं का कहना है कि उन्हें शामिल करना राजद के यादव वोटबैंक में सेंध लगाने वाला एक राजनीतिक कदम है.

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पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भले ही वंशवादी राजनीति के खिलाफ मुखर लड़ाई लड़ी हो, लेकिन वह अपनी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) में सदस्यों को शामिल करने में इसे नजरअंदाज करते नजर आ रहे हैं.

जदयू ने गुरुवार को राजद के तीन विधायकों को औपचारिक रूप से पार्टी में शामिल किया- ये सभी राजनीतिक परिवारों से आते हैं.

इनमें पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव के ससुर चंद्रिका राय भी शामिल हैं.

राय सारण जिले में अपने परिवार का गढ़ रही सीट पारसा से सात बार के विधायक हैं. वह बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय दरोगा प्रसाद राय के बेटे हैं. हालांकि, राय के जदयू में शामिल होने पर कोई अचरज नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने पूर्व में लालू की पत्नी राबड़ी देवी और बेटी मीसा भारती पर अपनी बेटी ऐश्वर्या को प्रताड़ित करने का आरोप लगाया था, जब तेज प्रताप ने तलाक का केस दायर किया था.

जदयू में शामिल होने वाले दूसरे राजद विधायक जय वर्धन यादव हैं. वह बिहार के सबसे बड़े यादव नेताओं में से एक स्वर्गीय राम लखन सिंह यादव के पोते हैं, जिन्हें उनके समर्थक ‘शेर-ए-बिहार‘ कहा करते थे.

1990 के दशक में जब लालू बिहार की राजनीति के केंद्र में आए, तब राम लखन सिंह यादव बिहार में यादवों के निर्विवाद नेता हुआ करते थे. 1989 में जब नीतीश कुमार पहली बार सांसद बने थे तब उन्होंने बरह से राम लखन सिंह यादव को हराया था.

पालीगंज विधानसभा सीट से पहली बार विधायक बने जयवर्धन ‘बेबी’ के नाम से ख्यात प्रकाश यादव के बेटे हैं, जो पूर्व सांसद और एमएलसी भी हैं.

इसमें शामिल होने वाले तीसरे विधायक पूर्व केंद्रीय मंत्री और दरभंगा से तीन बार के सांसद ए.ए.एम. फात्मी के पुत्र फराज फातिमी हैं.


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फराज 17 अगस्त को राजद से निष्कासित तीन विधायकों में से एक हैं, जिन्हें प्रेमा चौधरी और महेश्वर प्रसाद यादव के साथ पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था. चौधरी और यादव दोनों सासाराम से राजद के विधायक अशोक कुमार के साथ 18 अगस्त को जदयू में शामिल हो गए.

फराज भी 18 अगस्त को जदयू में शामिल होने वाले थे, लेकिन उस दिन ऐसा नहीं कर पाए.

कुल मिलाकर अब तक राजद के छह विधायक जदयू में शामिल हो चुके हैं.

वंशवाद के खिलाफ नीतीश की मुखर लड़ाई

नीतीश कुमार जब से सत्ता में आए हैं, उन्होंने वंशवादी राजनीति के खिलाफ एक मुखर लड़ाई लड़ी है.

2009 में जब 18 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हुए नीतीश ने तमाम दबावों के बावजूद जदयू नेताओं और सांसदों के रिश्तेदारों को टिकट देने से इनकार कर दिया.

इस कारण जदयू के कई नेताओं ने वंशवादी राजनीति के खिलाफ पार्टी के चुनाव अभियान को चोट पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और 18 में से 13 सीटों पर एनडीए की हार हुई.

जदयू के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘वंशवादी राजनीति के खिलाफ उनकी लड़ाई ने 2015 में अपनी विश्वसनीयता खो दी, जब लालू के दो बेटों तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव ने मंत्रियों के रूप में (नीतीश सरकार में) शपथ ली.’

हालांकि, 2017 में नीतीश जब फिर भाजपा के साथ आ गए, उन्होंने एक बार नए सिरे से वंशवादी राजनीति पर हमला बोला.

19 सितंबर 2017 को उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के इस बयान को खारिज कर दिया कि भारत में वंशवाद जीवन का एक हिस्सा है. नीतीश ने कहा था कि वह ऐसी राजनीति के खिलाफ हैं जो कांग्रेस द्वारा ‘शुरू’ की गई थी.

उन्होंने वंशवाद को ही 2017 में राजद और कांग्रेस के साथ महागठबंधन को छोड़ने के कारणों में से एक बताया था. साथ ही कहा था कि वह लोगों के लिए काम करते हैं लालू के परिवार के लिए नहीं.

नीतीश ने 2017 में जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव, जिन्होंने राजद के साथ नाता तोड़ने का कड़ा विरोध किया था, पर भी तंज कसते हुए कहा था कि वह वंशवादी राजनीति को बढ़ावा देने वाले बन गए हैं.

इस साल जुलाई में नीतीश के विश्वासपात्र और जदयू के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) आर.सी.पी. सिंह ने पार्टी की युवा शाखा को संबोधित करते हुए दावा किया था कि नीतीश ने कभी वंशवादी राजनीति को बढ़ावा नहीं दिया, लेकिन विपक्षी दलों में से एक (राजद पढ़ें) में पहली पांच में से तीन सीटें हमेशा एक विशेष राजनीतिक परिवार (लालू प्रसाद परिवार पढ़ें) के सदस्यों के लिए आरक्षित रहती हैं.

जदयू ने तेजस्वी, तेजप्रताप और यहां तक कि लालू प्रसाद की बेटी मीसा पर लगातार निशाना साधा और उन्हें वंशवादी राजनीति का हिस्सा बताया.

जदयू के मंत्री नीरज कुमार का कहना है, ‘यहां दो चीजें हैं. एक विधायक या सांसद बनने के लिए परिवारिक वंशवाद है. दूसरी है एक पार्टी का नेतृत्व करने के लिए वंशवादी राजनीति. राजद में पार्टी का नेतृत्व संभालने के लिए तेजस्वी यादव का मार्ग प्रशस्त करने के लिए अब्दुल बारी सिद्दीकी और रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा की गई. हमारा नेतृत्व राजनीतिक वंश से नहीं है.’

यादव फैक्टर

जदयू नेताओं ने बताया कि पार्टी में शामिल होने वाले राजद के छह विधायकों में से तीन यादव जाति से आते हैं और वह भी राम लखन सिंह यादव और दरोगा प्रसाद राय जैसे प्रतिष्ठित यादव नेताओं के परिवारों के हैं.

2019 के लोकसभा चुनावों में यादव बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा सांसद नित्यानंद राय और राम कृपाल यादव की जीत को याद करते हुए जदयू के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘यह राजद के ठोस यादव वोटबैंक को साधने वाला एक स्वाभाविक राजनीतिक कदम है. एनडीए का कोई भी यादव उम्मीदवार हमेशा राजद के वोटबैंक में कुछ सेंध लगा देता है.’

उन्होंने याद दिलाया कि 2010 के विधानसभा चुनावों में राजद की तुलना में एनडीए में कहीं ज्यादा यादव विधायक थे.


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‘परिवार की राजनीति एक वास्तविकता’

हालांकि, राजद का कहना है कि नीतीश कभी परिवार की राजनीति के प्रति गंभीर नहीं रहे हैं.

राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने कहा, ‘नीतीश इसलिए वंशवादी राजनीति के खिलाफ बयान दे पाते हैं क्योंकि उनके अपने बेटे निशांत कुमार ने खुले तौर पर घोषणा कर दी थी कि वह राजनीति में कदम नहीं रखेंगे.’

उन्होंने आगे कहा, ‘नीतीश कुमार कभी परिवार की राजनीति के बारे में गंभीर नहीं रहे हैं. वह पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय जगन्नाथ मिश्रा के पुत्र नीतिश मिश्रा और पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर के पुत्र रामनाथ ठाकुर जैसे नेता पुत्रों और रिश्तेदारों को टिकट देते रहे हैं. परिवार की राजनीति एक वास्तविकता है. नीतीश ने इस मुद्दे पर शायद हार मान ली है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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