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Friday, 22 November, 2024
होमदेश‘क्या मुझे कोविड हुआ है? वैक्सीन कितनी जल्दी मिलेगी?’- निमहंस में मार्च से अब तक ऐसी 3.5 लाख इमरजेंसी कॉल पहुंचीं

‘क्या मुझे कोविड हुआ है? वैक्सीन कितनी जल्दी मिलेगी?’- निमहंस में मार्च से अब तक ऐसी 3.5 लाख इमरजेंसी कॉल पहुंचीं

निमहंस के निदेशक बी.एन. गंगाधर बताते है कि अक्सर पूछे जाने वाले सवालों में ज्यादातर नौकरी खोने का डर, कामकाज से जुड़े तनाव से निपटने और बच्चों की पढ़ाई-लिखाई को लेकर चिंता से जुड़े होते हैं.

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नई दिल्ली: क्या मुझे कोविड-19 हो गया है? क्या मैं या मेरे परिवार के सदस्य संक्रमण की चपेट में आ जाएंगे? क्या इसका कोई इलाज उपलब्ध है या कोई टीका जल्द आ रहा है? ये कुछ ऐसी चिंताएं हैं जो बेंगलुरु में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान (निमहंस) की तरफ से शुरू की गई 24×7 हेल्पलाइन पर कॉल करने वालों ने जताईं.

संस्थान के पास मार्च में लॉकडाउन के बाद से 3.5 लाख से अधिक कॉल आई हैं जिसमें से ज्यादातर लोगों का मानसिक बीमारी का कोई इतिहास नहीं रहा है.

निमहंस के निदेशक और कुलपति बी.एन. गंगाधर ने दिप्रिंट को बताया, ‘ऐसे ज्यादा से ज्यादा लोग हमसे संपर्क कर रहे हैं जिनका क्लीनिकल मेंटल इलनेस का कोई इतिहास नहीं…महामारी के कारण मानसिक स्वास्थ्य पर असर एक बड़ी चिंता के तौर पर सामने आया है. हमने कोविड-19 या अन्य चिंताओं से संबंधित प्रश्नों के संदर्भ में 75,000 काउंसलिंग सेशन चलाए हैं.’

गंगाधर ने बताया, ‘कॉलर्स जानना चाहते थे कि कहीं उन्हें कोविड-19 तो नहीं हो गया और अपने परिवार के सदस्यों को लेकर भी उन्हें काफी चिंता थी.’

उन्होंने आगे कहा, ‘उपचार की उपलब्धता और टीके कब तक आने की संभावना है, जैसे सवाल भी आम थे. जो लोग अपने परिवार के सदस्यों से दूर रह रहे हैं, उन्होंने भी अपने प्रियजनों की सेहत को लेकर गंभीर चिंताएं जताईं.’


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निमहंस की हेल्पलाइन (080-4611 0007) 25 मार्च को ठीक उसी दिन शुरू हुई थी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नॉवेल कोरोनावायरस का संक्रमण रोकने के उद्देश्य से 21 दिनों के देशव्यापी लॉकडाउन का आदेश जारी किया था.

बाद में इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी जैसे विभिन्न मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों ने अपने हेल्पलाइन नंबरों को निमहंस वाले नंबर के साथ ही जोड़ दिया था.

गंगाधर ने कहा, ‘हेल्पलाइन शुरू करने के पीछे उद्देश्य घर के अंदर रहने वाले लोगों की मदद करना था, जो लॉकडाउन के कारण कहीं आने-जाने में असमर्थ थे या क्वारेंटाइन में रह रहे अपने परिजनों को लेकर चिंतित थे. ये ऐसा समय है जब लोग मनोचिकित्सक को दिखाने के लिए अस्पताल जाने का विकल्प नहीं चुन सकते. हेल्पलाइन पर कॉल करना एक आसान विकल्प होता है.’ साथ ही बताया कि संस्थान की हेल्पलाइन एक टोल-फ्री नंबर है और सभी राज्यों में विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध है.

नौकरी जाने, परीक्षाएं टलने को लेकर चिंता

गंगाधर ने बताया हालांकि अभी कॉल डाटा का पूर्ण विश्लेषण बाकी है लेकिन अक्सर पूछे जाने वाले गैर-कोविड सवालों में से कुछ नौकरी खोने के डर, काम-काज से जुड़े तनाव से निपटने के उपाय और परीक्षाएं टलने के अलावा बच्चों की पढ़ाई-लिखाई की चिंता और श्रमिकों के विस्थापन से भी जुड़े थे.

पूरे भारत में लगभग 400 मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल इन कॉल को अटेंड करते हैं.

गंगाधर ने कहा, ‘अपने मानसिक स्वास्थ्य को लेकर चिंतित एक-तिहाई कॉल करने वालों ने कोविड-19 के बारे में सवाल पूछे. हमारे पास मनोवैज्ञानिक समस्याओं को सुलझाने के लिए एक टीम है और वे कॉल करने वालों के भय, चिंता और अवसाद को दूर करने की कोशिश करते हैं.

उन्होंने यह भी बताया कि हेल्पलाइन ने कोविड-19 पर चिकित्सीय सवालों के संदर्भ में ‘सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध जानकारी’ साझा की. निमहंस महामारी के दौरान मनोवैज्ञानिक स्तर पर सहायता के लिए हजारों डॉक्टरों, नर्सों, काउंसलर व अन्य हेल्थकेयर प्रोफेशन को प्रशिक्षित कर रहा है.

मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं

स्वास्थ्य सचिव प्रीति सूदन ने 6 जुलाई को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पत्र लिखकर उन्हें ऐसी उपयुक्त व्यवस्था करने को कहा था, जहां मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों जैसे अवसाद और चिंता आदि पर खुलकर चर्चा की जा सके.

सूदन ने अपने पत्र में महामारी के दौरान मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए मंत्रालय की तरफ से उठाए गए कदमों का ब्यौरा भी दिया था.


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इसमें निमहंस की विभिन्न लक्षित समूहों (बच्चे, वयस्क, महिलाएं और बुजुर्ग) को मानसिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की मनोवैज्ञानिक सहायता मुहैया कराने के लिए 24×7 हेल्पलाइन, स्वास्थ्यकर्मियों के लिए एक अलग हेल्पलाइन, मानसिक स्वास्थ्य का मुद्दा उठाने की वकालत और मार्गदर्शन से जुड़े दस्तावेज शामिल हैं.

पत्र में लिखा गया है, ‘अवसाद और चिंता के सामान्य संकेतों और लक्षणों पर खुलकर चर्चा करने की जरूरत है ताकि जो कोई भी इस समस्या से जूझ रहा हो वह इसे पहचानने, स्वीकारने और मदद लेने में सक्षम हो सके. जानकारी के अभाव और अनदेखी से यह समस्या बढ़ती ही है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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