कोलकाता : उत्तरी कोलकाता के एक 46 वर्षीय मधुमेह रोगी को गंभीर लक्षण नजर आने के बाद 17 जुलाई को कोविड-19 टेस्ट कराने की चिकित्सकीय सलाह दी गई. अगले कुछ दिनों तक वह आईसीएमआर से मान्यताप्राप्त एक लैब से दूसरी लैब के चक्कर काटते रहे. उन्होंने सरकारी और निजी मिलाकर कुल आठ फैसिलिटी का दरवाजा खटखटाया लेकिन कहीं भी टेस्ट नहीं हो पाया.
उक्त मरीज ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैंने सुपरस्पेशलिटी अस्पतालों में कम से कम चार आईसीएमआर अनुमोदित लैब और दो सरकारी अस्पतालों में कोशिश की. जब मुझे कहीं सफलता नहीं मिली तो आखिरकार ईएम बाईपास (ईस्टर्न मेट्रोपॉलिटन बाईपास, कोलकाता का प्रमुख राजमार्ग) का रुख किया और वहां फोन करने पर 29 जुलाई का स्लॉट दिया गया.’
उन्होंने बताया, ‘मैं सरकार नियंत्रित आर.जी. कार हॉस्पिटल पहुंचा तो पाया कि कम से कम 60 लोग टेस्ट के लिए कतार में हैं.’ साथ ही जोड़ा कि उन्होंने अपनी बारी के लिए इंतजार करना उचित नहीं समझा.
आखिरकार मंगलवार को वह एक सर्टिफाइड फैसिलिटी के साथ समन्वय बनाकर काम कर रही एक गैर-मान्यताप्राप्त लैब पहुंचे. वहां उनके टेस्ट का नतीजा गुरुवार को आया. वह कोविड पॉजिटिव पाए गए हैं.
कुछ इसी तरह की कहानी बताते हुए बैरकपुर के एक निवासी ने कहा कि उन्हें अपने पिता को कोविड-19 टेस्ट की सलाह वाला पर्चा मिलने के बाद इसके लिए पांच दिन तक इंतजार करना पड़ा. वो तो आखिर में जब उन्होंने कुछ राजनीतिक संपर्कों का इस्तेमाल किया तब जाकर उनके पिता का टेस्ट हो पाया. नतीजा? वह पॉजिटिव पाए गए.
पश्चिम बंगाल में जांच स्लॉट पाने में मरीजों को करनी पड़ रही खासी मशक्कत से कोविड-19 टेस्ट की व्यवस्था एकदम अनिश्चितता की स्थिति में पहुंच गई है, जिससे उन लोगों के इलाज में देरी होती है जो बाद में टेस्ट में पॉजिटिव निकलते हैं, और इनसे संक्रमण फैलने का बड़ा खतरा भी रहता है.
जैसा दिप्रिंट की एक पड़ताल में भी खुलासा हुआ कि कोलकाता के कुछ नामी अस्पताल कई मामलों में लक्षण दिखने के बावजूद उदासीनता दिखाते हुए तीन हफ्ते तक की तारीख देते रहे हैं. आम लोगों को सही जानकारी देने के लिए शुरू की गई सरकारी हेल्पलाइन से भी कोई मदद नहीं मिल रही—कोलकाता नगर निगम (केएमसी) की हेल्पलाइन बुधवार को पूरे दिन अनरीचेबल रही.
जहां विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य के हालात पर ध्यान देने की जरूरत है, राज्य के स्वास्थ्य सचिव एन.एस. निगम ने कहा कि वह आरोपों पर गौर करेंगे, साथ ही दावा किया कि सरकार ने टेस्ट की क्षमता बढ़ाई है.
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एक लंबा इंतजार
21 जुलाई तक पश्चिम बंगाल में 7,29,429 सैंपल का टेस्ट किया गया था. दैनिक स्वास्थ्य बुलेटिन के अनुसार, 21 जुलाई को 13,064 नमूनों का परीक्षण किया गया. मंगलवार तक बंगाल में प्रति दस लाख आबादी पर टेस्ट का आंकड़ा 8,105 था. 21 जुलाई तक पॉजिटिविटी रेट 6.45 प्रतिशत था, जिसका मतलब है कि प्रत्येक 100 टेस्ट में से 6.45 मरीजों का पॉजिटिव पाया जाना.
राज्य में कोविड-19 टेस्ट के लिए आईसीएमआर से मान्यता प्राप्त 54 लैब हैं. इनमें से करीब 18 कोलकाता में हैं, लेकिन फिर भी उन्हें दूसरे जिले जाना पड़ता है.
ममता बनर्जी सरकार की तरफ से जारी दिशा-निर्देशों के तहत कोविड-19 टेस्ट के लिए प्रिस्क्रिप्शन जरूरी है, जबकि केंद्र सरकार ने सलाह दी हो कि मामलों का जल्द पता लगाने के हित में प्रावधान हटा दिया जाना चाहिए.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनर्जी ने मंगलवार को कहा था कि उनकी सरकार मध्य अगस्त तक जांच की संख्या मौजूदा 13,000 से बढ़ाकर 25,000 कर देगी. हालांकि, जो मौजूदा स्थिति है उसे देखते हुए इसकी संभावना क्षीण ही नजर आ रही है.
दिप्रिंट ने बुधवार को चार निजी और सरकारी लैब से संपर्क साधा, लेकिन जल्द टेस्ट की कोई तारीख लेने में नाकाम रहा.
ईस्टर्न मेट्रोपॉलिटिन बायपास पर सुपर स्पेशिएलिटी निजी अस्पतालों में आईसीएमआर से मान्यता प्राप्त तीन लैब में से सबसे बड़ी अपोलो ग्लेनईगल हॉस्पिटल्स ने कहा कि उसके पास अगस्त के तीसरे हफ्ते तक कोई स्लॉट उपलब्ध नहीं है.
दूसरे, एएमआरआई हॉस्पिटल, जिसकी शहर में तीन ब्रांच है, ने कहा कि टेस्ट के लिए वह सबसे जल्दी जो समय दे सकते हैं वह अगला मंगलवार (28 जुलाई) है. और तीसरी सबसे बड़ी लैब वाले सरकार नियंत्रित प्रमुख संस्थान कलकत्ता मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल ने कहा कि उनके पास बेहद लंबी कतार है और वह अगले हफ्ते से पहले कोई तारीख नहीं दे पाएगा.
मेडिका सुपरस्पेशिएलटी हॉस्पिटल ने कहा 27 जुलाई या इसके बाद का अप्वाइंटमेंट मिल सकता है, लेकिन शनिवार को एक बार फिर तत्कालीन स्थिति देखने के बाद ही कुछ तय होगा.
सरकार की कोविड-19 हेल्पलाइन से टेस्टिंग लैब के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी, और इस रिपोर्टर को केएमसी कंट्रोल रूप में कॉल करना पड़ा. केएमसी का कंट्रोल रूम नंबर पूरे दिन अनरीचेबल रहा.
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अस्पतालों की प्रतिक्रिया
इस बारे में प्रतिक्रिया के लिए संपर्क करने पर सभी अस्पतालों ने असमर्थता जताते हुए कहा कि उनके पास या तो जरूरी इंफ्रास्ट्रचर नहीं है या फिर कुशल लोगों की कमी है.
एएमआरआई प्रवक्ता ने कहा, ‘मौजूदा समय में अपनी तीनों इकाइयों—धकुरिया, मुकुंदपुर और साल्टलेक—में हम हर रोज 350 सैंपल की जांच कर रहे हैं, जिसमें ओपीडी से सैंपल लिए जाने के साथ-साथ भर्ती मरीजों का दोबारा टेस्ट किया जाना शामिल है.
उन्होंने बताया, ‘इंतजार का समय लंबा है क्योंकि और बड़ी संख्या में लोगों का टेस्ट हो रहा है. हमारी ज्यादातर यूनिट में जांच का नतीजे उपलब्ध कराने के लिए 24 घंटे का समय निर्धारित है, यद्यपि कई बार ओपीडी में भीड़ के कारण यह 48 घंटे तक पहुंच जाता है, जहां ज्यादा से ज्यादा लोग टेस्ट कराना चाहते हैं.
अपोलो ग्लेनईगल हॉस्पिटल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि उनके यहां ‘आमतौर पर औसतन एक हफ्ते इंतजार करना पड़ता है.’
अधिकारी ने आगे कहा, ‘केस लोड बहुत ही ज्यादा है और हर दिन सैकड़ों लोग टेस्ट कराना चाहते हैं. हमारे पास सीमित क्षमता है, और एक दिन में 200 टेस्ट ही कर सकते हैं. आरटी-पीसीआर मशीन (कोविड-19 टेस्ट का अब तक सबसे भरोसेमंद तरीका) एक समय पर एक बार में निश्चित संख्या में ही सैंपल लेती है और नतीजे आने में भी एक निर्धारित समय लगता है. फिलहाल हमारे पास किट्स की कोई समस्या नहीं है. मशीन और मैनपॉवर की कमी जरूर है.
मेडिका सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल के ज्वाइंट मैनेजिंग डायरेक्टर राणा उदयन लाहिरी ने कहा कि उनके यहां सुविधाएं बढ़ाई जा रही हैं. उन्होंने कहा, ‘अतिरिक्त इंफ्रास्ट्रचर तैयार करने…और जरूरी उपकरणों को खरीदने में समय लगता है. अभी हर दिन 700 से 1000 टेस्ट किए जा रहे हैं और हम 24 से 48 घंटे के भीतर नतीजा हासिल करने की कोशिश करते हैं. रिपोर्ट डिलीवर को 24 से 36 घंटे के बीच सुनिश्चित करने की कोशिशें जारी हैं.’
कलकत्ता मेडिकल कॉलेज के अधीक्षक इंद्रनील बिस्वास ने कहा कि वे ‘हर दिन विशाल केस लोड का सामना कर रहे हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हमारे पास अन्य भर्ती मरीज भी हैं. कैंसर पीड़ित व गंभीर रूप से बीमार अन्य लोगों को भर्ती करने से पहले प्राथमिकता के आधार पर परीक्षण जरूरी होता है. हमारा अस्पताल हुगली जिले से भी सैंपल ले रहा है. हमारे फीवर क्लीनिक और ओपीडी में हर रोज 120 से ज्यादा संदिग्ध केस आ रहे हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘आरटी-पीसीआर मशीनों और प्रशिक्षित लोगों की क्षमता सीमित है. हमें और ज्यादा आरटी-पीसीआर सेट अप और अतिरिक्त मानवबल की जरूरत है. सरकार इस पर काम कर रही है.’
हेल्थ बुलेटिन के मुताबिक एएमआरआई साल्ट लेक ने 1 मई से अब तक 2524 सैंपल और एएमआरआई धकुरिया ने 4156 सैंपल की जांच की है. इन लैब में टेस्ट के लिए ट्रूनाट और सीबीनाट तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है.
अपोलो ग्लेनईगल हॉस्पिटल में 6 अप्रैल से 21 जुलाई के बीच 7,801 सैंपल की जांच की गई. इसके पास एक आरटी-पीसीआर मशीन है. मेडिका ने 15 मई से अब तक 20,086 सैंपल का टेस्ट किया गया है.
कलकत्ता मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल ने 8 मई से अब तक 9,291 सैंपल टेस्ट किए हैं.
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राज्य सरकार का वादा
टिप्पणी के लिए संपर्क करने पर पश्चिम बंगाल के स्वास्थ्य सचिव एन.एस. निगम ने टेस्ट की क्षमता बढ़ाने के सरकार के वादे को दोहराया. उन्होंने कहा, ‘सरकारी स्तर पर हमने टेस्टिंग क्षमता बढ़ाई है और स्लॉट न मिलने संबंधी इन शिकायतों पर गौर किया जाएगा.’
एक वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी के मुताबिक, टेस्टिंग ढांचे को और मजबूत करने के लिए सरकार जल्द ही दर्जनों आरटी-पीसीआर मशीनें खरीदेगी.
हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि टेस्ट में देरी गंभीर चुनौती खड़ी कर सकती है. स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन में वायरोलॉजी विभाग के पूर्व प्रमुख निमाई भट्टाचार्य ने कहा, ‘यह राज्य में स्वास्थ्य ढांचे की एक बड़ी नाकामी है. टेस्ट में देरी का मतलब है इलाज का अभाव.’
साथ ही जोड़ा, ‘हमें नहीं पता है कि वायरस किसी व्यक्ति के प्रतिरोधक तंत्र को कैसे प्रभावित करेगा. कोई भी इसकी प्रभावशीलता का पता नहीं लगा सकता और यही वजह है कि जल्दी जांच होना जरूरी है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘तथ्यात्मक रूप से जब राज्य सरकार यह मान रही है कि सामुदायिक संक्रमण के संकेत मिल रहे हैं, तो उन्हें विभिन्न इलाकों में रैंडम टेस्टिंग शुरू करनी चाहिए. लॉकडाउन इसका समाधान नहीं हैं, केवल टेस्टिंग की सुविधा बढ़ाने से ही कुछ मदद मिलेगी.’