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Saturday, 11 May, 2024
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ममता बनर्जी का बंगाल प्रति 10 लाख लोगों में कोरोना टेस्ट करने के मामले में देश के राज्यों में नीचे से तीसरे पायदान पर

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में कम परीक्षण संख्या के लिए 'दोषपूर्ण परीक्षण' किट को भी जिम्मेदार ठहराया है. राज्य का अभी भी टेस्टिंग के लिहाज से प्रदर्शन काफी खराब है.

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कोलकाता: कोरोनावायरस की टेस्टिंग करने का आंकड़ा पश्चिम बंगाल में पिछले हफ्ते भर में बढ़ा है जब से अंतर-मंत्रालयी सेंट्रल टीम ने 20 अप्रैल को राज्य का दौरा किया है. लेकिन राज्य का अभी भी टेस्टिंग के लिहाज से प्रदर्शन काफी खराब है.

सेंट्रल टीम के राज्य में जाने से पहले बंगाल में प्रत्येक 10 लाख लोगों में से केवल 51 लोगों का टेस्ट होता था लेकिन उसके बाद 28 अप्रैल को ये आंकड़ा बढ़कर 135 हो गया है. ये जानकारी आधिकारिक आंकड़ों का विश्लेषण करके मिली है.

वरिष्ठ वायरोलॉजिस्ट ने दिप्रिंट को बताया कि बंगाल में शायद पूरे देश में सबसे कम टेस्टिंग हो रही है और उन्होंने चेताया कि किसी सरकार या एजेंसी के लिए इतने कम आंकड़ों से वायरस के ट्रेंड का पता लगाना बेहद मुश्किल है. उन्होंने ये भी कहा कि बंगाल को प्रत्येक 10 लाख लोगों में से 350-400 टेस्ट करना चाहिए लेकिन वो अभी तक इससे आधे पर भी नहीं पहुंचा है.

दहिंदू द्वारा विश्लेषित आंकड़े बताते हैं कि देश का चौथा सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य तीन सबसे निचले श्रेणी के राज्यों में से है. बंगाल, मिजोरम और मणिपुर से थोड़ा ही बेहतर है टेस्टिंग के लिहाज से अगर देखे तो. रिपोर्ट के अनुसार जिसमें 29 अप्रैल तक के आंकड़ों को लिया गया है, वो बताता है कि राज्य में प्रत्येक 10 लाख लोगों में से 148.2 लोगों का टेस्ट हो रहा है. टेस्टिंग के मामले में बंगाल से नीचे मिजोरम और मणिपुर ही है जहां ये आंकड़ा क्रमश: 146.5 और 146 है.

पश्चिम बंगाल की जनसंख्या लगभग 9.8 करोड़ है (2011 की जनगणना के अनुसार, जनसंख्या 9.12 करोड़ थी, जिसे 2019 में बढ़ाकर 9.8 करोड़ होने का अनुमानित किया गया) और यह भारत में सबसे घनी आबादी वाले राज्यों में से एक है जहां एक वर्ग किलोमीटर में अनुमानित 1,043 लोग रहते हैं. इसकी तुलना में मिजोरम की जनसंख्या 12.85 लाख है जबकि मणिपुर की अनुमानित जनसंख्या लगभग 13 लाख है. केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार, मिजोरम में 29 अप्रैल तक केवल एक मामले की पुष्टि हुई थी वहीं मणिपुर में दो लोग संक्रमित थे जो अब ठीक हो चुके हैं.

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28 अप्रैल तक, आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, पश्चिम बंगाल ने 13,223 नमूनों का परीक्षण किया, जिनमें पिछले 24 घंटों में 1,180 परीक्षण किए गए.


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इसके विपरीत, बंगाल के मुकाबले आधी आबादी वाले ओडिशा ने 27 अप्रैल तक 585 प्रति मिलियन की दर से 26,687 नमूनों का परीक्षण किया था. बंगाल की एक तिहाई आबादी वाले झारखंड ने 27 अप्रैल तक 261 प्रति मिलियन की दर से 9,922 नमूनों का परीक्षण किया.

यहां तक ​​कि बिहार, जिसकी बंगाल की तुलना में थोड़ी अधिक आबादी है, ने बेहतर प्रदर्शन किया है, जहां प्रति मिलियन 160 लोगों की दर से 19,790 नमूनों का परीक्षण किया गया है.

कम परीक्षण के आंकड़ों के साथ, ये राज्य इस क्षेत्र में सबसे बुरी तरह प्रभावित है. पश्चिम बंगाल में 29 अप्रैल तक 22 मौतों के साथ 725 मामले हैं, जो बिहार (366 मामलों, 2 मौतों), ओडिशा (118 मामलों, 1 मौत) और झारखंड (103 मामलों, 3 मौतों) की तुलना में कहीं अधिक है.

राज्य के चार जिले रेड जोन में है और कुल 348 कंटेनमेंट जोन हैं.

खराब किटों के लिए ममता बनर्जी केंद्र को दोषी ठहरा रही हैं

राज्य में केंद्रीय टीम के जाने से पहले बंगाल की संख्या और भी अधिक निराशाजनक थी. एक दिन में 200 से 240 परीक्षण किए जाते थे जहां राज्य में अब एक दिन में 1,100 नमूनों का परीक्षण हो रहा है.

27 अप्रैल तक दिल्ली में प्रत्येक 10 लाख लोगों में दो हजार लोगों की टेस्टिंग हो रही थी. तमिलनाडु में ये आंकड़ा 1230 और गुजरात में 825 है.

पश्चिम बंगाल के प्रधान सचिव स्वास्थ्य विवेक कुमार ने कहा था कि राज्य इस हफ्ते के अंत तक टेस्टिंग की रफ्तार बढ़ा लेगा.

उन्होंने कहा, ‘हमारी टेस्टिंग करने की संख्या लगातार बढ़ रही है. अब हम औसतन प्रतिदिन 1000 टेस्ट कर रहे हैं. इसके ओर बढ़ने की उम्मीद है. 10 सरकारी मेडिकल कॉलेज और 2 निजी कॉलेज को टेस्टिंग लैब्स के लिए आईसीएमआर की मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं. साथ ही आईसीएमआर से मान्यता प्राप्त दो निजी लैब्स इस हफ्ते के अंत तक टेस्ट करने लग जाएंगी.’

पश्चिम बंगाल में अब 14 परीक्षण प्रयोगशालाएं हैं, जिसमें आईसीएमआर की नोडल एजेंसी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कॉलरा और एंटरिक डिजीज शामिल हैं, जो कोलकाता में स्थित है.

कुमार ने कहा, ‘आंकड़े शुरू में कम थे क्योंकि मार्च के पहले सप्ताह तक केवल एक अनुमोदित प्रयोगशाला थी. इसके अलावा, अप्रैल के पहले सप्ताह से आने वाली दोषपूर्ण आरटी पीसीआर किटों ने असंगत रूप से उच्च संख्या में अस्पष्ट परिणाम दिए, जिससे हमें दो बार नमूने लेने की आवश्यकता हुई. इसने भी हमें पीछे धकेला है.’


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‘आईसीएमआर ने आखिरकार 22 अप्रैल को उन किट को वापस ले लिया. इसके अलावा, आईसीएमआर द्वारा हाल ही में स्वीकृत की गई पांच सरकारी प्रयोगशालाओं ने केवल अंतिम सप्ताह में परिचालन शुरू किया है.’

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में कम परीक्षण संख्या के लिए ‘दोषपूर्ण परीक्षण’ किट को भी जिम्मेदार ठहराया है.

22 अप्रैल को, नाबाना में मीडिया को संबोधित करते हुए, बनर्जी ने कहा, ‘तीन प्रकार की किट हैं- रैपिड टेस्टिंग किट, आरटी पीसीआर किट और एंटीजन किट. आरटी पीसीआर किट को कल प्राप्त एनआईसीईडी से ईमेल के अनुरूप वापस ले लिया गया है. बंगाल के अस्पतालों में एंटीजन किट उपलब्ध नहीं हैं.’

उन्होंने कहा, ‘हमारे राज्य में भेजे गए सभी रैपिड परीक्षण किट वापस ले लिए गए हैं. हमारे स्वास्थ्य विभाग ने पहले आदेश दिए थे, लेकिन हमें नहीं पता कि हम उन्हें कब प्राप्त करेंगे. समय पर परीक्षण किए जाने की आवश्यकता है नहीं तो लोग मर सकते हैं. परीक्षण के नमूनों को ले जाने के लिए एक माध्यम की आवश्यकता होती है. आपूर्तिकर्ता आईसीएमआर और एनआईसीईडी है, और हमारे पास पर्याप्त माध्यम नहीं हैं. मैं केंद्र सरकार की योजना को नहीं समझ रही हूं.’

दिप्रिंट ने कोविड परीक्षण के लिए बंगाल में नियुक्त किए गए नोडल अधिकारी डॉ असित विश्वास से संपर्क किया था, लेकिन उन्होंने कहा कि वह मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत नहीं थे.

बंगाल अधिक टेस्ट नहीं कर रहा है: विशेषज्ञ

विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य में पर्याप्त टेस्ट नहीं हो रहे हैं.

स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन में वायरोलॉजी विभाग के पूर्व प्रमुख प्रोफेसर नेमाई भट्टाचार्य ने दिप्रिंट को बताया, ‘बंगाल में परीक्षणों की संख्या अब तक 25,000 से 30,000 तक पहुंच जानी चाहिए थी. राज्य को एनआईसीईडी और स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन जैसी प्रयोगशालाएं मिली हैं. अकेले इन दो प्रयोगशालाओं में प्रति दिन 600 से अधिक नमूनों का परीक्षण किया जा सकता है.’

उन्होंने कहा, ‘हमने बहुत देर से परीक्षण शुरू किया. इन दो प्रयोगशालाओं ने आणविक परीक्षण की स्थापना की है. दोषपूर्ण किट के बारे में, हम कह सकते हैं कि आरटी पीसीआर इन संस्थानों में अच्छी तरह से काम करता है और अगर कुछ आरएनए निष्कर्षण किट गायब या दोषपूर्ण थे, तो राज्य उन्हें खरीद सकता था.’


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वरिष्ठ वायरोलॉजिस्ट डॉ अमिताभ नंदी ने कहा कि जब तक सरकार सामुदायिक स्तर पर नहीं पहुंचती और सक्रिय निगरानी शुरू नहीं करती, तब तक प्रति मिलियन डेटा से कोई मदद नहीं होगी.

उन्होंने कहा, अब तक, हम निष्क्रिय तौर पर परीक्षण देख रहे हैं. मरीज या संदिग्ध अस्पतालों में आ रहे हैं, उनका स्वाब लिया गया और परीक्षण किया गया. लेकिन इस स्थिति में, विभाग की टीमों को समुदायों तक पहुंचना चाहिए और यादृच्छिक परीक्षण शुरू करना चाहिए. इसके बाद ही वक्र, चाहे वह उठ या गिर रहा है, समझा जा सकता है. अगर रैपिड टेस्ट किट काम नहीं कर रही हैं, तो प्रयोगशालाओं में आरटी पीसीआर मशीनों पर स्वाब के नमूने लिए जा सकते हैं और उनका परीक्षण किया जा सकता है. लेकिन इसके लिए राज्य को प्रशिक्षित लोगों और संसाधनों की जरूरत है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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