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Wednesday, 20 November, 2024
होमदेशकोविड वैक्सीन के लिए भारत की उम्मीद भारत बायोटेक एक डॉलर की रोटावायरस वैक्सीन के लिए प्रसिद्ध हो चुका है

कोविड वैक्सीन के लिए भारत की उम्मीद भारत बायोटेक एक डॉलर की रोटावायरस वैक्सीन के लिए प्रसिद्ध हो चुका है

एक डॉलर की रोटावैक इसकी शानदार उपलब्धि हो सकती है लेकिन भारत बायोटेक विविध प्रदर्शन कर रहा है जिसमें बायोहिब, भारत का एकमात्र स्वदेशी रूप से विकसित इन्फ्लूएंजा टीका शामिल है.

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नई दिल्ली: इस महीने की शुरुआत में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के निदेशक डॉ. बलराम भार्गव द्वारा जारी एक पत्र में कोविड-19 के संभावित टीके को-वैक्सीन के लिए 15 अगस्त की समयसीमा तय की गई थी.

विशेषज्ञों और आईसीएमआर के बीच इस ‘असंभव’ समयसीमा में वैक्सीन तैयार करने पर छिड़े बहस के बीच मेडिकल रिसर्च की शीर्ष संस्था के साथ पार्टनर भारत बायोटेक ने भी इस पर चुप्पी साध ली है.

इस बहस पर कंपनी के प्रवक्ता ने ‘कोई भी टिप्पणी’ नहीं की.

विवाद में शामिल होने से इंकार करने वाली हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक की एक खासियत है, जिसने करीब ढाई दशक के अंतराल में कम लागत वाले टीकों के निर्माता और अंतरराष्ट्रीय आपूर्तिकर्ता के रूप में खुद का नाम बनाया है, खुद को लो प्रोफाइल रखते हुए.

टीके को सस्ता बनाना कंपनी का मुख्य ‘ध्येय’ है- डॉ कृष्णा एम. एला इसे एक डॉलर का वैक्सीन बताते हैं.


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एक डॉलर की वैक्सीन

भारत बायोटेक की स्थापना 1996 में आणविक जीव विज्ञान के शोध वैज्ञानिक डॉ एला ने अपनी पत्नी सुचित्रा के साथ की थी. वे तब अमेरिका से लौटे थे, जहां एला ने विस्कॉन्सिन-मैडिसन विश्वविद्यालय में पीएचडी पूरी की थी.

उनकी सोच एक ऐसी कंपनी बनाने की थी, जो टीके और जैव-चिकित्सा विज्ञान के लिए बेंचमार्क स्थापित करेगी और उन देशों को कम लागत में आपूर्ति करेगी जो उन्हें नहीं खरीद सकते थे.

को-वैक्सीन के लिए हाल के हफ्तों में समाचार में, भारत बायोटेक ने पहले अपने 1 डॉलर के रोटावायरस वैक्सीन रोटावैक से सुर्खियां बटोरी थीं, जो शायद अब तक की उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि रही है.

रोटावैक को 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लॉन्च किया गया था. रोटावायरस बच्चों में दस्त का प्रमुख कारण है और निमोनिया के साथ-साथ यह बीमारी भारत में बच्चों के शीर्ष हत्यारों में शामिल है. इसलिए इसका आना एक बड़ी उपलब्धि थी.

डब्ल्यूएचओ बुलेटिन में प्रकाशित 2012 के एक अनुमान के अनुसार, ‘भारत में बच्चों की 2.3 मिलियन (23 लाख) से अधिक वार्षिक मृत्यु में से लगभग 334,000 (3.4 लाख) डायरिया रोग से होती है.’

यह एक पथप्रदर्शक पहल भी थी क्योंकि उस समय, बाजार में दो अन्य टीके- एक जीएसके द्वारा और दूसरा मर्क द्वारा बनी थी जो कई गुना अधिक कीमत के थे.

1986-88 में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान- रोटावायरस 116ई में पृथक स्ट्रैन से वैक्सीन को दो दशकों के लिए विकसित किया गया था. जब 2011 में वैक्सीन की घोषणा की गई थी, तब बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. एमके भान, एम्स में जिनकी टीम ने उस स्ट्रैन को अलग किया था, वो केंद्र सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग में सचिव थे.

वैक्सीन जैव प्रौद्योगिकी विभाग और भारत बायोटेक के बीच टाई-अप का परिणाम था.


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विविध प्रदर्शनों की सूची

भारत बायोटेक वेबसाइट पर डॉ. एला का संदेश है, ‘भारत बायोटेक में, लीड इनोवेशन के लिए हमारे फार्मूला ने स्वास्थ्य संबंधी समाधानों को प्रेरित किया है जो उपेक्षित संक्रामक रोगों पर केंद्रित है. नवाचार हमारी संस्कृति के केंद्र में है… मुझे खुशी है कि हमारे टीके और जैव चिकित्सीय उत्पाद दुनिया भर में लाखों लोगों के जीवन को फायदा पहुंचा रहे हैं.’

वह कहते हैं, ‘हमारे वैज्ञानिक विकासशील देशों की बीमारियों के अत्यधिक प्रभावी टीके बनाने के लिए हर संभव रास्ते तलाश रहे हैं.’

वह कहते हैं, ‘हम व्यावहारिक और दृढ़ हैं, इस तथ्य को देखते हुए कि नए टीके विकसित करना और विनियामक अनुमोदन प्राप्त करना एक लंबी और कठिन प्रक्रिया है.’

रोटावैक भले ही इसकी बड़ी उपलब्धि रही हो लेकिन कंपनी का प्रदर्शन विविध है. इनमें बायोहिब, भारत का एकमात्र स्वदेशी रूप से विकसित इन्फ्लूएंजा वैक्सीन है, जो कि क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर से प्राप्त भारतीय स्ट्रैन (सीएस -68) पर आधारित है, जैनवेक एक जापानी इंसेफेलाइटिस वैक्सीन नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी और रेवैक-बी एमसीएफ के सहयोग से विकसित किया गया है, जो कि एक परिरक्षक मुक्त हेपेटाइटिस-बी वैक्सीन है.

यह सभी 160 पेटेंट रखता है. यह डब्ल्यूएचओ-पूर्व-प्रदत्त अंतरराष्ट्रीय आपूर्तिकर्ता है- जिन्होंने उन कंपनियों के बीच भारत को ‘दुनिया की फार्मेसी’ की संज्ञा दी है.


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दिप्रिंट इस प्रोफाइल पर एक टिप्पणी के लिए कंपनी के अधिकारी के माध्यम से डॉ. एला तक पहुंचा लेकिन वह उपलब्ध नहीं थे. अधिकारी ने कहा, ‘वह नैदानिक (क्लीनिकल) ​​परीक्षणों में फंसे हुए हैं. जब (को-वैक्सीन के बारे में) साझा करने के लिए कुछ होगा तो वह बात करेंगे.’

वर्तमान में यह टीका मानव परीक्षणों (ह्यूमन ट्रायल्स) से गुज़र रहा है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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