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Wednesday, 20 November, 2024
होममत-विमतवंदे भारत मिशन के तहत ‘बचाए’ जाने के लिए मुझे मोदी सरकार और एयर इंडिया के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करनी पड़ी

वंदे भारत मिशन के तहत ‘बचाए’ जाने के लिए मुझे मोदी सरकार और एयर इंडिया के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करनी पड़ी

कोरोनावायरस संकट के दौरान जर्मनी में फंसी भारतीय की आपबीती जो कह रही है कि मैं जिस उत्पीड़न से गुज़री, मैं नहीं चाहती कि कोई उस संकट से गुजरे. वंदे मातरम मिशन कोई जबरदस्त बचाव नहीं है.

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मैं उन प्रवासी भारतीयों में से एक हूं जिन्हें नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने बहुप्रचारित वंदे भारत मिशन के जरिए विदेशों से ‘बचा कर लाने’ का दावा किया है. लेकिन इस ‘बचाव’ मिशन का मेरा अनुभव मेरे जीवन के सबसे तनावपूर्ण समय में से एक रहा है. यह भावनात्मक और आर्थिक रूप से एक पीड़ादायक अनुभव था. अंत में, मुझे केरल में अपने घर तक वापसी के लिए वंदे भारत की उड़ान पर एक सीट पाने के लिए मोदी सरकार और एयर इंडिया के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करनी पड़ी. ये है मेरी कहानी.

मैं 2015 से ही यूरोप में रह कर काम कर रही थी, और 2018 से म्यूनिख में थी. इस साल के आरंभ में मुझे बेंगलुरु की एक आईटी कंपनी से नौकरी का प्रस्ताव मिला और मैं भारत में स्थानांतरित होने के लिए पूरी तरह तैयार थी. मैंने अपने जर्मन नियोक्ता को अपना इस्तीफा सौंप दिया और 5 जून को जर्मनी से रवानगी के लिए मार्च में ही अपना टिकट बुक करा लिए. लेकिन इसके बाद, जर्मन और भारतीय दोनों ही सरकारों ने कोरोनावायरस संकट के कारण लॉकडाउन की घोषणा कर दी.

मेरा जर्मन वीज़ा, जिसे ईयू ब्लू कार्ड कहा जाता है, मेरे नियोक्ता से जुड़ा हुआ है. इसमें रोजगार अनुबंध समाप्त होने पर वीज़ा भी समाप्त हो जाता है. हालांकि, भारत की यात्रा पर पाबंदी को देखते हुए, जर्मनी की सरकार ने फंसे हुए विदेशियों के लिए जर्मनी में कानूनी तौर पर बिना किसी परेशानी के रहने का प्रावधान कर दिया था. लेकिन उसके बाद मुसीबत शुरू हो गई.


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सोशल मीडिया सरकार

तिरुवनंतपुरम के लिए निर्धारित उड़ान से एक सप्ताह पहले, क़तर एयरवेज ने मुझे सूचित किया कि मेरी उड़ान रद्द कर दी गई है और मैं आगे की किसी उड़ान के लिए बुकिंग (वाउचर के ज़रिए) कर सकती हूं या अपने पूरे पैसे वापस पाने के लिए आवेदन कर सकती हूं. मैंने दूसरे विकल्प को चुना और इंतजार करती रही. उसी हफ्ते, मोदी सरकार ने फंसे हुए भारतीयों को वापस लाने के लिए वंदे भारत मिशन के तहत फ्रैंकफर्ट से दिल्ली के लिए तीन उड़ानों की घोषणा की. डिजिटल इंडिया की हामी हमारी सरकार केवल ट्विटर और फेसबुक पर घोषणाएं करती है. सरकार दूतावासों की वेबसाइटों या नागरिक उड्डयन मंत्रालय या विदेश मंत्रालय की वेबसाइटों को अपडेट नहीं करती है. सभी आधिकारिक घोषणाएं ट्विटर के माध्यम से की जाती हैं. इसलिए यदि आपके पास ट्विटर या फेसबुक अकाउंट नहीं है, मेरे समान ही, तो आप सरकार की इन घोषणाओं से वंचित हो जाएंगे. मुझे संबंधित गूगल फॉर्म का लिंक तभी मिला जब उसे एक व्हाट्सएप ग्रुप पर सर्कुलेट किया गया.

फ्रैंकफर्ट से तीन उड़ानों के इस पहले बैच के लिए, बर्लिन में भारतीय दूतावास (वंदे भारत मिशन के लिए नोडल प्राधिकरण) ने सोशल मीडिया पर घोषणा की कि स्वदेश वापसी के इच्छुक भारतीयों को गूगल फॉर्म के माध्यम से खुद को पंजीकृत कराना होगा. इस फॉर्म में व्यक्तिगत पहचान संबंधी विवरण भरने थे और भारत यात्रा का कारण बताना था. प्रक्रिया यह थी कि दूतावास सारे आवेदनों पर विचार करने के बाद उन यात्रियों की सूची बनाएगा, जिन्हें कि उड़ान में प्राथमिकता दी जानी है. स्वाभाविक था कि गर्भवती महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों, छात्रों, या वीज़ा अवधि समाप्त होने के कारण फंसे लोगों को पहली वरीयता दी जाती.

पंजीकरण कराने के बाद मैं इंतजार करती रही और मेरा नाम पहली तीन उड़ानों की सूची में नहीं आया. बर्लिन दूतावास ने घोषणा की, एक बार फिर से सोशल मीडिया के माध्यम से, कि फंसे हुए भारतीयों को घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि आने वाले दिनों में कई भारतीय शहरों के लिए उड़ानें संचालित की जाएंगी. अगले कुछ दिनों में, एयर इंडिया ने अपने सोशल मीडिया हैंडलों पर वंदे भारत फेज़-3 की उड़ानों की सूची जारी की, जिसमें फ्रैंकफर्ट से तिरुवनंतपुरम की 19 जून की उड़ान भी शामिल थी.

दूतावास ने टेक्स्ट मैसेज और वीडियो पोस्ट के ज़रिए फंसे हुए भारतीयों को निर्देश दिया कि 10 जून को बुकिंग खोले जाने पर, सीधे एयर इंडिया की वेबसाइट के माध्यम से इन उड़ानों के लिए टिकटें बुक कराई जा सकेंगी.

इसलिए 10 जून को, मैंने इस उड़ान पर टिकट बुक करने की कोशिश की. दुर्भाग्य से, एयरलाइन की वेबसाइट से पता चला कि उस तारीख में कोई उड़ान नहीं थी – हालांकि भारत सरकार और एयर इंडिया की आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडलों पर दी गई सभी सूचियों में उक्त उड़ान दिखाई जा रही थी. फिर, विदेशों में फंसे मलयालियों के एक व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से, मुझे पता चला कि फ्रैंकफर्ट से कोच्चि के लिए तीन अन्य उड़ानें हैं- 16, 23 और 28 जून को. जब तक मुझे यह जानकारी मिली, तब तक 16 जून की कोच्चि की उड़ान पूरी तरह बुक हो चुकी थी. लेकिन 23 जून की उड़ान के लिए मैं 650 यूरो का एक टिकट बुक करने में कामयाब रही.


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अंतहीन प्रतीक्षा

तमाम अधूरी और गलत सूचनाओं के बावजूद, आखिरकार अपने इनबॉक्स में एक कन्फर्म टिकट पाकर मुझे राहत मिली. मैंने अगले कुछ दिन जर्मनी में अपने विभिन्न अनुबंधों (अपार्टमेंट, फोन, इंटरनेट, बीमा इत्यादि) को कैंसल करने में बिताए. मुझे वर्चुअल तरीके से 29 जून को अपनी नई नौकरी शुरू करनी थी. मुझे सब कुछ सही ट्रैक पर दिख रहा था.

इस बीच 14 जून को इन व्हाट्सएप ग्रुपों में एक नई सूची शेयर की जाने लगी जिसमें केरल के लिए केवल 16 और 19 जून को केरल की उड़ानें दिखाई गई थीं. तभी से असली दुःस्वप्न शुरू हुआ. 15 जून को एयर इंडिया के आधिकारिक हैंडलों और विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर भी उड़ानों की सूची प्रकाशित हुई. उसमें 19 जून या उसके बाद की अधिकांश निर्धारित उड़ानें गायब थीं.

जब मैंने एयर इंडिया की वेबसाइट के माध्यम से अपनी बुकिंग को वापस निकालने का प्रयास किया, तो हमें सर्वर एरर देखने को मिला. बर्लिन दूतावास और एयर इंडिया के तय नियमों और निर्देशों के अनुसार मैंने एयरलाइन के ग्राहक सेवा पोर्टल से कॉल और ईमेल के ज़रिए संपर्क का प्रयास किया.

कई कॉल के बाद (जिसमें 20-30 मिनट होल्ड कराने के बाद कॉल काटा जाना भी शामिल), आखिरकार मैं एक एजेंट से बात कर पायी. जून के अंतिम 15 दिनों में, मैंने टिकट और उड़ान की स्थिति के बारे में जानकारी पाने के लिए रोज़ एयर इंडिया को फोन किया. हालांकि, कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई थी, और हर बार उड़ानों के बारे में कोई जानकारी दिए बिना एक अलग कारण या समाधान बता दिया जाता. भारतीय दूतावास या एयर इंडिया की ओर से मुझसे कभी कोई ईमेल या आधिकारिक संपर्क नहीं किया गया कि क्या फ्लाइट वास्तव में कैंसल कर दी गईं, और यदि हां, तो क्यों.

एयर इंडिया के एजेंट से मुझे अंतिम सूचना ये मिली थी कि मुझे नई उड़ानों की घोषणा होने तक इंतजार करना होगा. अन्य एयरलाइन वेबसाइटों के विपरीत, एयर इंडिया पर हम अपनी बुकिंग ऑनलाइन नहीं देख सकते थे. इसलिए नई उड़ानें सूचीबद्ध होती तो भी आपको एयर इंडिया की वेबसाइट को चेक करते रहना पड़ता, सीटों की उपलब्धता वाली कोई उड़ान खोजना होता, फिर ग्राहक सेवा को कॉल करना पड़ता, करीब घंटे भर इंतजार के बाद किसी से बात होती और फिर बताया जाता कि सारी सीटें बुक हो चुकी हैं.

मेरे अलावा, अनेक बुजुर्ग और छात्र भी उन उड़ानों के जरिए यात्रा करने वाले थे जो जिन्हें बिना सूचना दिए कैंसल कर दिया गया था. मेरी ड्रेसडेन में रहने वाले एक छात्र से बात हुई थी जिसके पास प्रतिदिन के खाने-पीने के भी पैसे नहीं थे. उसने मुझे बताया कि मदद के लिए वह लगभग रोज़ ही एयर इंडिया को फोन कर रहा था और दूतावास को लिख रहा था. उसने कहा कि वह हर दिन देर से उठता था ताकि भूख को थोड़ा टाल सके, और वह कम खाना खा रहा था. एयर इंडिया के अधिकारी अलग-अलग बातें बताते रहे और काम की कोई भी जानकारी नहीं दी.

इस बीच, टैक्स और कानूनी उलझावों के कारण मेरी नौकरी ज्वाइन करने की तारीख स्थगित हो गई. 30 जून तक, मुझे अपना फ्लैट खाली करना था, मेरे पास कोई आमदनी नहीं थी, मेरा फोन और इंटरनेट अनुबंध रद्द कर दिया गया था और मुझे किसी दोस्त के यहां शरण लेनी पड़ती, जबकि भारत वापसी के बारे में कोई खबर नहीं थी. ना तो अगली उड़ान के बारे में कोई जानकारी, ना ही इस बारे में कि क्या भुगतान किए गए मेरे पैसे रिफंड कर दिए जाएंगे. मैंने जहां भी संभव था उन सबको लिखा: बर्लिन दूतावास, केरल के मुख्यमंत्री और एयर इंडिया. मैंने ट्वीट के माध्यम से अधिकारियों से संपर्क करने के लिए ट्विटर अकाउंट भी खोला, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

केस करने की नौबत

पहली जुलाई को, एयर इंडिया ने एक बार फिर फ्रैंकफर्ट से बेंगुलुरु के लिए दिल्ली होकर एक उड़ान की घोषणा की. लेकिन फिर मुझे पुराने अनुभव से गुजरना पड़ा. मैंने ऑनलाइन जाकर जानकारी की पुष्टि की और ग्राहक सेवा नंबर पर कॉल किया. करीब 20-25 मिनट के इंतजार के बाद, एक एजेंट से बात हुई, जिसने कोई सीट उपलब्ध नहीं होने की जानकारी दी. मैंने उस दिन 3-4 बार कोशिश की और हर बार ग्राहक सेवा के एजेंटों ने मुझे अलग-अलग जवाब दिए. कुछ ने सारी सीटें खत्म हो चुकने की बात की, तो कुछ का कहना था कि बुकिंग शुरू भी नहीं हुई थी.

निरंतर तनाव और उत्पीड़न के बाद, मैंने संबंधित अधिकारियों और एयर इंडिया के खिलाफ मामला दर्ज करने का फैसला किया. मेरे पिता, सीए मजीद ने मेरी ओर से भारत सरकार, एयर इंडिया, केरल राज्य, जर्मनी में भारतीय राजदूत और नोरका रूट्स के खिलाफ 3 जुलाई को केरल उच्च न्यायालय में रिट याचिका (डब्ल्यूपी (सी) 13506/2020) दायर की. इस मामले की सुनवाई 6 जुलाई को हुई, जिसमें मोदी सरकार के प्रतिनिधि ने कहा कि उन्हें इस मामले की जानकारी नहीं है और उनके पास इस बारे में कोई फाइल नहीं आई है. अगली सुनवाई 9 जुलाई को निर्धारित की गई. 8 जुलाई की शाम मेरे वकील से मेरा विवरण (नाम, पासपोर्ट नंबर, ई-टिकट नंबर) मांगा गया और अगले दिन, अदालत में सुनवाई से ठीक पहले, मुझे एक टिकट ईमेल किया गया जिसमें फ्रैंकफर्ट से बेंगलुरु के लिए 12 जुलाई की उड़ान संख्या एआई120 में मेरे लिए एक सीट बुकिंग की पुष्टि की गई थी.

मैं एक टिकट हासिल करने और स्वदेश वापसी में कामयाब रही, लेकिन विदेश में फंसे व्यक्ति के रूप मुझे जो उत्पीड़न और तनाव झेलना पड़ा, अपनी उड़ान के लिए पूरी राशि का भुगतान करने के बाद भी, वो अक्षम्य था. एयर इंडिया या भारतीय दूतावास ने उड़ान कैंसल होने की सूचना समय पर देने या परेशानी का कोई समाधान करने को लेकर कोई संवेदनशीलता नहीं दिखाई. हर तय नियम का पालन करने के बावजूद मेरी परेशानी के लिए दूतावास ने एयर इंडिया को दोषी ठहराया, जबकि एयर इंडिया का लगातार ये कहना था कि दूतावास के पास टिकटों का कोटा है और वह अपने हिसाब से यात्रा के पात्र व्यक्तियों को सीटें आवंटित करता है.

जब मैंने इंटरनेट पर वंदे भारत मिशन का प्रचार और उसकी प्रशंसा देखी, तो मुझे लगा कि सभी को पता चलना चाहिए कि वास्तव में प्रवासी भारतीयों के साथ किस तरह का रूखा व्यवहार किया जाता है.


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मैंने फ्रैंकफर्ट से कोच्चि के एक टिकट के लिए 650 यूरो का भुगतान किया था, और मुझे फ्रैंकफर्ट से बेंगलुरु तक का 470 यूरो के बराबर का टिकट दिया गया. मुझे बेंगलुरु से तिरुवनंतपुरम तक की आगे की यात्रा के लिए अपने दम पर बुकिंग करनी थी और टिकट एवं अतिरिक्त बैगेज के लिए लगभग 15,000 रुपये का भुगतान करना था. मेरी नौकरी की ज्वाइनिंग की तारीख को एक महीने के लिए टाल दिया गया, जिसका मतलब था कि मैं एक महीने के वेतन से वंचित रह गयी. और यह सिर्फ मेरी कहानी है. मुझे रहने के लिए एक जगह मिल गई थी और मेरे पास कुछ बचत भी थी. सिर्फ जर्मनी में ही नहीं, बल्कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में ऐसे कई अन्य भारतीय हैं, जो इस ‘बचाव’ यात्रा का भार वहन नहीं कर सकते. मैं नहीं चाहूंगी कि किसी और के साथ ऐसा हो.

समय आ गया है कि एयर इंडिया द्वारा यात्रियों के साथ इस तरह गैरजिम्मेदाराना और असंवेदनशील व्यवहार किए जाने और संकट की इस घड़ी में परेशान लोगों को लूटने की उसकी प्रवृति को उजागर किया जाए. और साथ ही ये उचित समय है कि मोदी सरकार इस संकट को गंभीरता से ले और खुशनुमा विज्ञापनों पर पैसा एवं समय खर्च करने के बजाय कठोर वास्तविकता से निपटने पर ध्यान दे.

(लेखक एक पूर्व पत्रकार और संपादक हैं, और वर्तमान में प्रौद्योगिकी सेक्टर में कंटेंट डिज़ाइनर के रूप में काम करती हैं. व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)

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