मुंबई: महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे, जो सिर्फ 30 साल के हैं. राज्य में अपने पिता की परछाईं बन कर उभरे हैं. वो राज्य में पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन, पर्यटन एवं प्रोटोकोल के कैबिनेट मंत्री हैं. लेकिन उन सरकारी बैठकों का भी स्थाई हिस्सा बन गए हैं, जिनका उनके विभागों से कोई लेना देना नहीं है.
सूत्रों ने बताया कि चाहे वो कोविड-19 का जायज़ा लेना हो या निसर्ग तूफान का जो पिछले महीने महाराष्ट्र के कोंकण तट से टकराया था या फिर शिक्षा या खेल जुड़े मामले हों. तीसरी पीढ़ी के शिवसेना वंशज हर जगह मौजूद रहे हैं. राज्य के टॉप सिविल सर्वेंट्स उनके स्पीड डायल पर हैं और वो नियमित रूप से ज़िलों में कोविड-19 की स्थिति का ‘जायज़ा’ लेते हैं, जिनकी निगरानी उनके वरिष्ठ कैबिनेट सहयोगी करते हैं.
संक्षेप में कहें तो सूत्रों ने आगे कहा कि वो राज्य में सबसे ताक़तवर कैबिनेट मंत्री हैं.
अपनी निर्धारित भूमिका से बाहर की बैठकों में उनकी मौजूदगी का बचाव करते हुए उनके समर्थक कहते हैं कि वो एक युवा राजनेता हैं जो अभी सीख रहे हैं- लेकिन महाविकास अघाड़ी (एमवीए) में- जो शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन है- हर कोई इस उत्साह में साझी नहीं है.
दिप्रिंट से बात करते हुए एनसीपी और कांग्रेस के सूत्रों ने सरकार में उनके रोल को लेकर नाख़ुशी का इज़हार किया और संकेत दिया कि ये एक दख़लअंदाज़ी है. जिस शिवसेना पार्टी को आदित्य के दादा बाल ठाकरे ने स्थापित किया था. उसके अंदर भी उनकी बढ़ती भूमिका को निकट भविष्य में सत्ता संघर्ष की रेसिपी के रूप में देखा जा रहा है.
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छात्र जीवन से ही ख़बरों में
आदित्य ठाकरे का जन्म 13 जून 1990 को मुम्बई में हुआ था. वो पिछले महीने ही तीस के हुए हैं और महाराष्ट्र कैबिनेट के सबसे युवा सदस्य हैं.
सरकार में उनकी भूमिका भले ही नई हो लेकिन वो सुर्ख़ियां बटोरने में अनुभवी रहे हैं, जिनमें वो पहली बार मुम्बई यूनिवर्सिटी में इतिहास के छात्र के रूप में आए. 2010 में उन्होंने रोहिंतन मिस्त्री के एक उपन्यास सच अ लॉन्ग जर्नी के खिलाफ मुहिम छेड़ी, जिसमें उनके दादा पर कुछ प्रतिकूल टिप्पणियां की गईं थीं. किताबें जलाने के उनके विरोध प्रदर्शन का नतीजा ये हुआ कि यूनिवर्सिटी ने वो किताब अपने पाठ्यक्रम से हटा दी.
उसके बाद के सालों में उन्होंने अपनी एक अलग तरह की छवि बनाई और मुम्बई में चौबीस घंटे सातों दिन नाइटलाइफ, और कोंकण के शानदार तट पर गोवा की जैसी झोपड़ियां बनाने की मुहिम चलाई. मुम्बई की आरे कॉलोनी में प्रस्तावित मेट्रो शेड परियोजना, जिसकी पर्यावरण के लिए नुक़सानदेह होने की वजह से आलोचना हो रही थी के ख़िलाफ अभियान चलाकर उन्होंने बहुत से प्रशंसक भी जुटा लिए.
ट्विटर पर उनके 23 लाख अनुयायी हैं, जो उनके पिता के अकाउंट के 7.4 लाख अनुयाइयों से कहीं ज़्यादा है.
सूत्रों का कहना है कि आदित्य का अपने पिता पर काफी प्रभाव है और मुख्यमंत्री के बहुत से फैसलों के पीछे उन्हीं की छाप है.
सूत्रों का कहना था कि हालांकि वो कैबिनेट में सबसे कम उम्र के सदस्य हैं, लेकिन विभाग चाहे कुछ भी हो, वो अपने पिता की बुलाई हुई तमाम बैठकों में शरीक होते हैं. राज्य के पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन, पर्यटन और प्रोटोकोल मंत्री के नाते उनका नेटवर्क सभी राजनीतिक वर्गों में फैला है, जिसे उनके पिता के फायदे के रूप में देखा जा रहा है.
सरकार के एक सूत्र ने बताया कि बैठकों के बारे में मुख्यमंत्री, नौकरशाहों के मुकाबले अपने बेटे से मिलने वाले फीडबैक पर ज़्यादा भरोसा करने लगे हैं.
सूत्रों ने ये भी कहा कि अप्रैल के बाद, जैसे-जैसे महाराष्ट्र में कोविड-19 मामलों में तेज़ी आई मुख्यमंत्री की अपेक्षा आदित्य ही पूरे राज्य में अधिकारियों के साथ बातचीत करने में ज़्यादा सक्रिय रहे हैं.
सिविल सर्वेंट्स जैसे पूर्व मुख्य सचिव और अब मुख्यमंत्री के सलाहकार अजॉय मेहता बृहन्मुम्बई नगर निगम (बीएमसी) के मौजूदा कमिश्नर इकबाल सिंह चहल और महाराष्ट्र के मुख्य सचिव संजय कुमार सब उनके लगातार संपर्क में रहते हैं.
एक सीनियर सिविल सर्वेंट ने बताया, ‘लॉकडाउन के शुरू से ही वो लगातार राज्य के नौकरशाहों के संपर्क में रहे हैं. वो मुख्यमंत्री के बेटे हैं इसलिए ये माना जाता है कि जब वो कॉल करते हैं, तो वो मुख्यमंत्री की ओर से होती है.’
दूसरों के मैदान पर?
जब से कोविड संकट शुरू हुआ तब से ठाकरे विभिन्न मुद्दों पर सिविल सर्वेंट्स और वरिष्ठ मंत्रियों के साथ ‘समीक्षा’ बैठकें करते आ रहे हैं.
बृहस्पतिवार को ऐसी ही एक मीटिंग उन्होंने स्कूली शिक्षा मंत्री वर्षा गायकवाड़ के साथ ऑनलाइन क्लासेज़, स्कूल फीस, और दूसरे मामलों पर की.
दो जून को उन्होंने चहल के साथ निसर्ग पर एक विस्तृत बैठक की. जून में केंद्रीय मंत्री एस जयशंकर और हरदीप सिंह पुरी के साथ पत्रों और कॉल्स के ज़रिए वो वंदे भारत मिशन के तहत विदेशों में फंसे महाराष्ट्र के निवासियों को लाने की, लगातार मुहिम चलाते रहे.
3 जून को रायगढ़ में निसारगा से व्यापक नुक़सान होने के बाद आदित्य ने ज़िला कलेक्टर निधि चौधरी से बात करके उन्हें आश्वस्त किया कि नेशनल डिज़ास्टर रिलीफ फोर्स (एनडीआरएफ) की 5 टीमें मदद के लिए रवाना हो चुकी हैं. 5 जून को उन्होंने अपने पिता के साथ अलीबाग़ का दौरा किया और चक्रवात से हुए नुकसान का जायज़ा लिया.
17 जून को उन्होंने रिटेल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के साथ एक वर्चुअल कॉनफ्रेंस में हिस्सा लिया, जिसमें राज्य सरकार के मिशन बिगिन अगेन में उनकी भूमिका पर चर्चा की गई, जो लॉकडाउन से बाहर आने की दिशा में पहला क़दम था. 18 जून को उन्होंने बीएमसी पार्षदों के साथ एक मीटिंग की जिसमें कोविड-19 संकट और मॉनसून की तैयारियों का जायज़ा लिया गया.
22 जून को, उन्होंने नेशनल स्पोर्ट्स क्लब ऑफ इंडिया में भारत की अपनी तरह की पहली मॉड्युलर इंटेंसिव केयर यूनिट को जनता के इस्तेमाल के लिए समर्पित किया. वो उपनगरीय मुम्बई के प्रभारी मंत्री हैं, लेकिन नियमित ‘समीक्षा बैठकों’ के ज़रिए वो उन ज़िलों पर भी नज़र रखते हैं, जिन्हें दूसरे सीनियर मंत्री हैण्डल करते हैं.
26 जून को वो ठाणे, नवी मुम्बई, मीरा-भायंदर, भिवंडी और उल्हासनगर के निगम आयुक्तों के साथ एक समीक्षा बैठक में शामिल थे. मुम्बई के इन सेटेलाइट टाउंस में, पिछले महीने कोविड मामलों में उछाल आया था.
अगले दिन, वो उस मीटिंग में शरीक हुए जो ऊधव ने केंद्रीय संयुक्त सचिव (स्वास्थ्य) लव अग्रवाल और उनकी टीम के साथ की, जो महाराष्ट्र के दौरे पर आए थे.
30 जून को, पारंपरिक एकादशी पूजा के लिए अपने पेरेंट्स के साथ पंधरपुर दौरे पर आदित्य ने ज़िले में कोविड-19 संकट का ज़ायज़ा लेने के लिए एक बैठक में हिस्सा लिया. वो मीटिंग मुख्यमंत्री की ओर से बुलाई गई थी. एनसीपी लीडर दत्ता भर्ने शोलापुर के प्रभारी मंत्री हैं.
इस महीने के शुरु में 4 जुलाई को कोविड से जुड़े कामों का जायज़ा लेने के लिए आदित्य ने ठाणे नगर निगम का फिर से दौरा किया. उनके साथ वरिष्ठ मंत्री और ठाणे ज़िले के प्रभारी एकनाथ शिंदे भी थे, जो सूत्रों के मुताबिक़ समीक्षा बैठकों को लेकर ‘असहज’ हैं.
दो जुलाई को, उन्होंने एलओसी फीफा अंडर-17 महिला विश्व कप 2021 की तैयारियों का जायज़ा लेने के लिए भारतीय फुटबाल संघ के साथ एक वीडियो कॉनफ्रेंस की, जो दूसरे शहरों के अलावा नवी मुम्बई में भी आयोजित होगी. इस कॉनफ्रेंस में महाराष्ट्र के खेल मंत्री कांग्रेस के सुनील केदार भी शरीक हुए.
एक सूत्र ने बताया, ‘आदित्य ठाकरे मुम्बई ज़िला फुटबॉल संघ के अध्यक्ष हैं, जो किसी भी दूसरी संस्था जैसी ही है. इस मीटिंग में खेल मंत्री पूरी तरह दबे दबे रहे.’ 30 दिसम्बर 2019 के बाद से, जब उन्होंने कैबिनेट मंत्री का कार्यभार संभाला, आदित्य ने या तो कई फैसलों में पहल की या फिर अहम भूमिका निभाई है. इनमें पूरे महाराष्ट्र में प्लास्टिक पर पाबंदी और मॉल्स को पूरी रात खुला रखना शामिल हैं.
उनके सपनों की एक योजना रही है मुम्बई में छतों पर रेस्ट्रॉन्ट्स खुलवाना. जिसके लिए लॉकडाउन के ख़त्म होने पर, परमीशन दिए जाने की उम्मीद है.
‘एक आसान रास्ता’
सरकार बनने के बाद कुछ महीनों तक बैठकों में आदित्य ठाकरे की मौजूदगी को एक नौसीखिए के उत्साह के तौर पर देखा जाता था. लेकिन उसके बाद से भाव बदल गया है.
कांग्रेस के एक सीनियर मंत्री ने कहा, ‘कोई अन्य मंत्री किसी दूसरे विभाग की बैठकों में शामिल नहीं होता, न ही किसी दूसरे विभाग की मीटिंग बुलाता है. वो सभी विभागों की बैठकें कर रहे हैं, क्यों? क्या हम बाक़ी लोग नाकारा हैं?’
एनसीपी के एक मंत्री ने कहा, ‘वो युवा हैं, उत्साहित हैं और अपने पिता की सहायता कर रहे हैं.’ लेकिन, उन्होंने आगे कहा, ‘हमारा वास्ता तब होगा अगर वो गद्दी पर होंगे. ठाकरे लोग तब तक लाइन पर रहेंगे जब तक पवार साहेब (एनसीपी चीफ शरद पवार) उन्हें सलाह देते रहेंगे.’
शिवसेना के भीतर उनके उत्थान को मुसीबतों के न्योते की तरह देखा जा रहा है. एक सीनियर शिवसेना लीडर ने कहा, ‘उनकी तरक्क़ी एकनाथ शिंदे (शहरी विकास मंत्री) के लिए एक संदेश है कि आदित्य ठाकरे शिवसेना में नम्बर दो की हैसियत रखते हैं. शिवसेना के भीतर सत्ता के लिए खींचतान होगी. एकनाथ शिंदे को किनारे नहीं किया जा सकता.’
कुछ सिविल सर्वेंट्स भी आदित्य से बातचीत में असहज महसूस करने की बात करते हैं. वो कहता हैं कि भले ही आदित्य एक मंत्री हैं, लेकिन एक ‘नौसीखिए’ को ब्रीफ करना मुश्किल होता है. एक सिविल सर्वेंट ने कहा, ‘हम इस सच्चाई को नहीं भूल सकते कि वो मुख्यमंत्री के बेटे हैं. इसके अलावा मैं नहीं चाहता कि मेरा तबादला कहीं दूर दराज़ कर दिया जाए.’
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लेकिन, कांग्रेस प्रवक्ता सचिन सावंत ने कहा कि बैठकों में आदित्य की मौजूदगी दख़लअंदाज़ी वाली नहीं होती. उन्होंने कहा, ‘ये सभी विभागों को समझने के लिए हो सकती है. वो फैसलों में हस्तक्षेप नहीं करते. उन्हें किसी बड़ी भूमिका के लिए तैयार किया जा रहा है या नहीं. इस बात पर कमेंट करना कांग्रेस के दायरे में नहीं आता.’ उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन अगर इससे शासन में दख़ल होता है तो फिर ये चिंता का विषय है जैसा कि यहां नहीं है.’
पुणे स्थित एमआईटी स्कूल ऑफ गवर्नेंस के राजनीतिक विश्लेषक परिमल माया सुधाकर ने कहा कि आदित्य की भूमिका एक संकेत है कि उसे अपने पिता के हाथ से बागडोर लेने के लिए तैयार किया जा रहा है.
उन्होंने कहा, ‘आदित्य शिवसेना और सरकार में दूसरे नम्बर पर हैं. उन्हें मुख्यमंत्री के रोल के लिए तैयार किया जा रहा है. उद्धव केवल एक कामचलाऊ बंदोबस्त हैं.’
उन्होंने ये भी कहा, ‘उनके लिए राजनीति का रास्ता मुश्किल नहीं रहा है. उन्हें किसी चीज़ के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ा.’
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