नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने मकान खरीदारों का पैसा कथित रूप से डकारने वाले यूनिटेक लिमिटेड के प्रवर्तक संजय चन्द्रा को मंगलवार को अग्रिम जमानत प्रदान कर दी क्योंकि उनके माता पिता में से एक कोविड-19 के संक्रमण से ग्रस्त होने की वजह से अस्पताल में भर्ती हैं. संजय चन्द्रा करीब तीन साल से तिहाड़ जेल में बंद हैं.
न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने वीडियो कांफ्रेन्सिग के माध्यम से सुनवाई करते हुये संजय चन्द्रा को एक महीने के लिये अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया.
शीर्ष अदालत को सूचित किया गया था कि आरोपी संजय चन्द्रा के माता पिता में से एक कोविड-19 से संक्रमित है और अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है.
शीर्ष अदालत ने इस साल 20 जनवरी को यूनिटेक लिमिटेड के 12 हजार से ज्यादा मकान खरीदने वालों को राहत प्रदान करते हुये केन्द्र सरकार को इस कंपनी का सारा प्रबंध अपने हाथ में लेने और बोर्ड के नये निदेशक नियुक्त करने की अनुमति दे दी थी.
शीर्ष अदालत ने नये बोर्ड के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक के रूप में हरियाणा काडर के पूर्व आईएएस अधिकारी युदवीर सिंह मलिक के नाम को मंजूरी दी थी और निर्देश दिया था कि कंपनी के बोर्ड के मौजूदा निदेशकों को अधिक्रमित माना जाएगा.
न्यायालय ने पिछले साल जनवरी में संजय और उनके भाई अजय चन्द्रा को इस मामले में जमानत देने से इंकार कर दिया था. न्यायालय ने कहा था कि इन्होंने अभी तक उसके 30 अक्टूबर, 2017 के आदेश का पालन नहीं किया था. इस आदेश के तहत न्यायालय ने यूनिटेक लिमिटेड के इन प्रवर्तकों को 31 दिसंबर, 2017 तक शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री में 750 करोड़ रूपए जमा कराने का निर्देश दिया था.
यह मामला 2015 में दर्ज करायी गयी एक शिकायत से संबंधित था लेकिन बाद में यूनिटेक लिमिटेड की गुरूग्राम में स्थित ‘वाइल्ड फ्लावर कंट्री’ और ‘अंथिया’ परियोजना के 173 अन्य मकान खरीदार शामिल हो गये थे.
न्यायालय ने 2018 मे यूनिटेक लिमिटेड और उसकी सहायक कंपनियों के फारेन्सिक ऑडिट का आदेश दिया था. इस ऑडिट से पता चला कि यूनिटेक लिमिटेड ने 2006-2014 के दौरान 74 परियोजनाओं के लिये 29,800 मकान खरीदारों से करीब 14,270 करोड़ रूपए प्राप्त किये थे और उसने करीब 1,805 करोड़ रूपए छह वित्तीय संस्थाओं से लिये थे.
ऑडिट से यह भी पता चला कि मकान खरीदारों के करीब 5,063 करोड़ रूपए और वित्तीय संस्थाओं के 763 करोड़ रूपए का कंपनी ने इस्तेमाल नहीं किया और 2007-2010 के दौरान करों का स्वर्ग माने जाने वाले दूसरे देशों में इसका निवेश किया.