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Friday, 22 November, 2024
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गोमूत्र की गोलियां, हल्दी का अर्क, मसाला-मिश्रण- कोविड के इलाज के लिए ये आयुर्वेदिक नुस्खे आजमाए जा रहे

गोमूत्र की गोलियों और पंचगव्य, जो गाय के पांच उत्पादों दही, घी, दूध, गोबर और मूत्र का मिश्रण है- से लेकर हल्दी के अर्क तक कम से कम 19 आयुर्वेदिक यौगिकों को देश में क्लीनिकल परीक्षणों के लिए मंजूरी मिल चुकी है.

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नई दिल्ली : पतंजलि की कोरोनिल,जिसके बारे में कंपनी का दावा है कि कोविड-19 के इलाज में कारगर है, एकमात्र ऐसा आयुर्वेदिक नुस्खा नहीं है, जिसे नोवेल कोरोनावायरस के संभावित एंटीटोड के तौर पर आजमाया जा रहा हो.

गोमूत्र की गोलियों और पंचगव्य, जो गाय के पांच उत्पादों दही, घी, दूध, गोबर और मूत्र का मिश्रण है- से लेकर हल्दी के अर्क तक कम से कम 19 आयुर्वेदिक यौगिकों को देश में क्लीनिकल परीक्षणों के लिए मंजूरी मिल चुकी है.

ये सभी भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा संचालित एक रजिस्ट्री क्लीनिकल ट्रायल रजिस्ट्री-इंडिया (सीटीआरआई) में पंजीकृत हैं.

दिप्रिंट ने इन परीक्षणों से जुड़े कुछ प्रमुख शोधकर्ताओं से यह समझने के लिए संपर्क साधा कि चिकित्सकों को ऐसा क्यों लगता है कि प्राचीनकालीन आयुर्वेद हाल में विकसित एक वायरस का इलाज खोजने में मददगार हो सकता है.

गिलोय गोमूत्र कैप्सूल

गुजरात के गांधीनगर स्थित न्यूरोपंच आयुर्वेद अस्पताल के मुख्य चिकित्सक डॉ. दिनेशचंद्र पांड्या द्वारा ‘गिलोय गोमूत्र’ के कैप्सूल, आस्थि चूर्ण और कामधेनु आसव को लेकर परीक्षण किया जा रहा है.

इसे अहमदाबाद के सोला सिविल अस्पताल में 20 कोविड-19 मरीजों पर आजमाया जा रहा है. गोमूत्र को हमेशा से ही कई बीमारियों के इलाज के रूप में देखा जाता है. हालांकि किसी वैज्ञानिक अध्ययन ने इसके फायदों को निर्णायक तौर पर साबित नहीं किया है.

पांड्या के अनुसार, परीक्षण में शामिल लोगों को दो समूहों में बांटा गया है- एक जिस पर एलोपैथिक इलाज के साथ आयुर्वेदिक नुस्खे आजमाए जाएंगे, जबकि दूसरे समूह का सिर्फ एलोपैथिक उपचार होगा.

इलाज के पहले दिन, सातवें दिन और 15 वें दिन सभी लक्षणों को मापा जा रहा.

पांड्या ने दिप्रिंट को बताया, ‘कोरोनावायरस (संक्रमण) सिर्फ एक प्रकार का ज्वर (बुखार) है. मेरी राय में बुखार का इलाज करना बहुत आसान है- यह उतना मुश्किल नहीं है. मेरा अनुभव कहता है कि अगर हम समय पर इसका इलाज करते हैं, तो कोई कारण नहीं कि सकारात्मक नतीजे नजर न आएं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘कोरोनोवायरस फ्लू की तुलना में कम घातक है. इसलिए यह तब तक चिंताजनक नहीं है, जब तक कि रोगी को उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसी अन्य बीमारियां न हों. इसलिए मुझे लगता है कि ‘सिर्फ कोरोना’ मामलों का इलाज आसान है.’

यह अनुमान कि कोरोनोवायरस इन्फ्लूएंजा के समान है, काफी समय पहले ही दूर हो चुका है. वायरस, जिसका अब तक कोई इलाज नहीं मिला है, ने मरीजों पर कई तरह से असर दिखाए हैं- जिसमें अंगों को क्षति से लेकर स्ट्रोक और कार्डियक अरेस्ट तक शामिल हैं.


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यह पूछे जाने पर कि क्या उनके दावों का कोई वैज्ञानिक आधार है, पांड्या ने सिर्फ यही कहा कि वह अनुभव के आधार पर बोल रहे थे.

उन्होंने कहा, 40 वर्षों की प्रैक्टिस के दौरान मैंने विभिन्न प्रकार की बीमारियों में पंचगव्य का उपयोग किया है और मैं इसका इस्तेमाल जारी भी रखूंगा. मेरी राय में हर तरह की बीमारियों में यह बहुत फायदेमंद होता है.

तमिलनाडु में कबसुरा कुडिनीर

उधर दक्षिण में तमिलनाडु के थेनी स्थित सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक और परीक्षण चल रहा है जिसमें कोविड-19 मरीजों का सिद्धा योग- ‘कबसुरा कुडिनीर’ से उपचार हो रहा है.

ट्रायल की मुख्य जांचकर्ता डॉ. सी अनबरासी ने दिप्रिंट को बताया कि यह नुस्खा अदरक, पिपली और लौंग सहित 15 सूखे मसालों का एक पारंपरिक मिश्रण है.

सिद्धा भी आयुर्वेद के सिद्धांत के समान है, लेकिन इसके नुस्खे ऐसे संसाधनों पर आधारित है जो दक्षिणी भारत में बेहद आम हैं.

कोविड-19 के इलाज में इस नुस्खे को आजमाने की सिफारिश आयुष मंत्रालय ने की थी.

यह पूछे जाने पर कि प्राचीन पद्धति में एक ऐसी बीमारी का इलाज कैसे संभावित हो सकता है, जो कुछ महीने पहले ही विकसित हुई है. एक सिद्धा चिकित्सक अनबरासी ने कहा कि उपचार का उद्देश्य रोग को लक्षित करने के बजाये व्यक्ति को ठीक करना होता है.

उन्होंने आगे कहा, ‘मौजूदा साहित्य के अनुसार, हमारे पास संकेतों और लक्षणों के आधार पर 4,400 बीमारियां वर्गीकृत है. इन्हीं में वर्गीकृत एक रोग के लक्षण हमें कोविड-19 रोगियों के लक्षणों से मेल खाते दिखते हैं- जैसे कि बुखार, खांसी, स्वाद और गंध का अनुभव न होना आदि.’

उन्होंने कहा, ‘इसलिए हमने सोचा कि उस बीमारी के लिए सुझाई गई दवा की सिफारिश इन रोगियों के लिए की जा सकती है.

हालांकि, परीक्षण केवल एसिम्पटमैटिक मरीजों पर किया जा रहा है. यह पूछे जाने पर कि यह उपचार कोविड-19 के एसिम्पटमैटिक रोगियों के लिए कैसे लाभकारी होगा, जिनमें से अधिकांश के अपने आप ही ठीक होने की संभावना रहती है, अनबरासी ने कहा कि उद्देश्य यह देखना था कि क्या मरीजों में वायरल लोड कम हो सकता है.

हल्दी का परीक्षण

एलोपैथी में प्रशिक्षित कई मेडिकल प्रैक्टिशनर ऐसे हैं जो आयुर्वेद पर आधारित क्लीनिकल ट्रायल भी कर रहे हैं.

इन शोधकर्ताओं का कहना है कि कई आयुर्वेदिक पद्धतियों में समस्या यह आती है कि यौगिकों और प्रोटोकॉल का कोई मानकीकरण नहीं है और कई चिकित्सक दवाओं के लाभ के बारे में लंबे-चौड़े दावे करते हैं.

महाराष्ट्र में कोविड-19 रोगियों पर करक्यूमिन, हल्दी का एक यौगिक और विटामिन युक्त अपने एक नुस्खे का परीक्षण कर रहे मुंबई के एलोपैथिक डॉक्टर योगेश अरुण दाउंड का कहना है कि वैज्ञानिक रूप से यह प्रमाणित करने के लिए कि क्या आयुर्वेदिक फॉर्मूला कारगर होगा, चिकित्सकों को महत्वपूर्ण सक्रिय यौगिकों की पहचान करनी होगी, साथ ही स्पष्ट करना होगा कि किस स्तर पर कितनी खुराक उपयुक्त होगी, यौगिक के काम करने की पीछे की केमेस्ट्री क्या है और रोगाणु पर इसका परीक्षण करना होगा.

दाउंड न दिप्रिंट को बताया, ‘हमने पाया कि करक्यूमिन ‘इन सिलिको’ परीक्षण में वायरल को रोकने में सक्षम है. उनके निष्कर्षों पर मौजूदा समय में रिसर्च जर्नल नेचर द्वारा समीक्षा की जा रही है.

इन सिलिको वो अध्ययन है जिसमें वर्चुअली सिमुलेशन के जरिये पता लगाया जाता है कि रोगाणु के संपर्क में आने पर संबंधित दवा के अणुओं का व्यवहार कैसा होगा. हालांकि, ऐसे अध्ययनों के निष्कर्षों को लैब एक्सपेरीमेंट और क्लीनिकल परीक्षण के बाद ही मान्यता मिलती है.

दाउंड ने महाराष्ट्र के निफाड उप-जिला अस्पताल में 30 लोगों पर क्लीनिकल ट्रायल किया, जिनके कोविड-19 के हल्के लक्षण थे और पाया कि यह नुस्खा दो से तीन दिनों में इन लक्षणों को घटाने में सक्षम था.

उन्होंने कहा, ‘हम यह दावा नहीं कर रहे कि यह कोरोनावायरस संक्रमण को ठीक कर सकता है. हम सिर्फ प्रस्तावित कर रहे हैं कि यह एक रोग निरोधक के तौर पर कारगर हो सकता है और समीक्षा के लिए अपना डाटा साझा करने को तैयार हैं.

करक्यूमिन और काली मिर्च

इसी तरह, महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस की एक अन्य प्रशिक्षित डॉक्टर कीर्ति पवार एक माह से अधिक समय से कोविड-19 मरीजों के साथ-साथ नासिक के एक ग्रामीण अस्पताल में देखरेख में जुटे स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं पर भी करक्यूमिन और काली मिर्च की गोलियों का परीक्षण कर रही हैं.

पवार ने कहा कि जहां करक्यूमिन में एंटी-वायरल गुण होते हैं, वहीं काली मिर्च शरीर में करक्यूमिन को सोखने की क्षमता बढ़ाती है.

मौजूदा शोध से पता चलता है कि करक्यूमिन जीका जैसे वायरस के खिलाफ कारगर हो सकती है.

पवार ने कहा कि यह हेमाग्लूटिनेशन (रक्त गाढ़ा होना) को भी रोकता है, जो कोरोनोवायरस संक्रमण के असर में से एक है.

उन्होंने कहा, ‘हम मरीजों को आईसीएमआर की तरफ से संस्तुत थेरेपी के साथ यह उपचार दे रहे हैं, और स्वास्थ्य कर्मियों को भी दे रहे हैं, नतीजे उत्साहजनक हैं.’

पवार ने दिप्रिंट को बताया, ‘अभी तक कोई भी स्वास्थ्यकर्मी कोरोनावायरस की जांच में पॉजीटिव नहीं पाया गया है. उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य कार्यकर्ता हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन नहीं ले रहे थे, जिस दवा को आईसीएमआर ने एक रोगनिरोधक के तौर पर सुझाया है.

पवार ने कहा, ‘अगर हम साबित करना चाहते हैं कि आयुर्वेदिक दवाएं उपयोगी हैं, तो हमें वैज्ञानिक सबूत देने होंगे. भले ही आयुर्वेद हजारों वर्षों से अस्तित्व में है, हमें इस पर नए सिरे से शोध करने की जरूरत है.’

उन्होंने कहा कि आयुर्वेद को विज्ञान की मुख्यधारा में स्वीकार नहीं किया गया क्योंकि चिकित्सकों ने आयुर्वेदिक ज्ञान का आकलन अवैज्ञानिक तरीके से किया है. साथ ही जोड़ा कि इन पद्धतियों को कोई मानकीकरण नहीं है.

पवार ने कहा, बेहतर, साक्ष्य-आधारित विज्ञान के साथ इसका मानकीकरण होना चाहिए. हम आयुर्वेद को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं, लेकिन इसे आंख मूंदकर स्वीकार भी नहीं कर सकते.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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