नई दिल्ली: जून में कई राज्यों में मॉनसून से पहले हुई अच्छी वर्षा के कारण देश भर में खरीफ फसलों की बुवाई पिछले साल के मुकाबले दोगुनी से अधिक हुई है.
कृषि मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक इस साल 315.63 लाख हेक्टेयर (एलएचए) क्षेत्र में बुवाई हुई है जो कि पिछले साल हुई 153.53 लाख हेक्टेयर की तुलना में 104.25 प्रतिशत बढ़ी है. इस समय ज्यादातर कपास और सोयाबीन बोई जाती है जिसके लिए अधिक पानी की जरूरत होती है.
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के मुताबिक देश में 1 से 26 जून के बीच सामान्य से 22 प्रतिशत अधिक वर्षा हुई है- पिछले वर्ष की इसी अवधि में 135.66 मिमी के मुकाबले 165.1 मिमी बारिश हुई है. मध्य प्रदेश, गुजरात, मराठवाड़ा और महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के विदर्भ क्षेत्र सहित मध्य भारत में बारिश पिछले साल की तुलना में 44 प्रतिशत अधिक हुई.
इसके परिणामस्वरूप देश भर में जलाशय का भंडारण 25 जून को 56.72 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) रहा, जो पिछले साल 29.16 बीसीएम था जबकि मध्य भारत में ये क्रमशः 17.21 बीसीएम और 9.10 बीसीएम रहा.
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अधिक पानी वाली फसलें
नाबार्ड द्वारा प्रमुख भारतीय फसलों की जल उत्पादकता के मानचित्रण के अनुसार, भारत में उगाई जाने वाली पांच फसलों में कपास, धान, सोयाबीन, गन्ना और गेहूं उगाने में सबसे अधिक पानी की आवश्यकता होती है. भारत में कपास उगाने में सबसे अधिक पानी की जरूरत होती है- 22,500 लीटर 1 किलो का उत्पादन करने के लिए. गुजरात और महाराष्ट्र के सूखे क्षेत्र इसके प्रमुख उत्पादक हैं. सोयाबीन को 1 किलो उत्पादन के लिए 900 लीटर पानी की आवश्यकता होती है और मुख्य रूप से मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में उगाया जाती है.
इस साल, एमपी में 1 और 24 जून के बीच 162.3 मिमी बारिश हुई, जो सामान्य 77.3 मिमी से दोगुना है जबकि महाराष्ट्र में इसी अवधि में सामान्य 147.3 मिमी की तुलना में 220.4 मिमी बारिश हुई. गुजरात में ये आंकड़े क्रमशः 106.6 मिमी और 71.7 मिमी रहे.
इसके परिणामस्वरूप पिछले साल की तुलना में एमपी में सोयाबीन का रकबा 40.28 एलएचए तक बढ़ गया जबकि महाराष्ट्र में यह पिछले वर्ष के 0.001 एलएचए से बढ़कर 18.7 एलएचए हो गया.
कपास की बुवाई महाराष्ट्र में भी पिछले साल के 0.194 एलएचए से इस साल 25 जून तक 23.772 एलएचए तक पहुंच गई है जबकि गुजरात में इस साल का आंकड़ा 11.67 एलएचए है जो पिछले साल 5 एलएचए था.
धान और गन्ने जैसी अन्य जल-आधारित फसलों में भी वृद्धि देखी गई है- धान पिछले साल 27.93 एलएचए से बढ़कर 37.71 एलएचए और गन्ने का रकबा 49.09 एलएचए से 49.69 एलएचए तक पहुंच गया है.
दालों की बुवाई भी 6.03 एलएचए से 19.40 तक पहुंच गई है. अरहर की दाल की बुवाई 9.87 एलएचए हो गई है जो 2019 में 1.83 एलएचए थी वहीं उड़द दाल 219 में 90 हज़ार एलएचए के मुकाबले 2.75 एलएचए हो गई है और मूंग दाल पिछले साल के 2.06 लाख एलएचए के मुकाबले 5.30 एलएचए पहुंच गई है.
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विशेषज्ञ सतर्क हैं
मध्य प्रदेश स्थित किसान स्वराज संगठन के संयोजक भगवान मीणा ने दिप्रिंट को बताया, ‘पिछले 10 सालों में सबसे ज्यादा बारिश देखने को मिली. सामान्य से 8 दिन पहले ही मानसून आ गया.’
मीणा ने कहा कि बारिश हालांकि काफी समस्याएं भी लेकर भी आई है.
उन्होंने कहा, ‘काफी दिनों तक खेतों में बारिश का पानी जमा रहने के कारण कई किसानों को नुकसान हुआ है. मैं अपने 20 एकड़ जमीन पर सोयाबीन इसिलए नहीं बो पा रहा हूं क्योंकि मेरे इलाके में पिछले चार दिनों से लगातार बारिश हो रही है.’
इस बीच, सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स के इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के, देश में निदेशक अरबिंदा के पाधे ने सावधानी बरतने की सलाह दी.
पाधे ने दिप्रिंट को बताया, ‘फसल विशेष रूप से अधिक पानी वाली फसलें , प्रारंभिक वर्षा के साथ इनकी बुवाई बढ़ सकती है लेकिन इन फसलों की उपज और उत्पादकता जुलाई में होने वाली बारिश पर निर्भर करती है. इन फसलों की बढ़ती बुवाई के साथ वास्तव में सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि कपास और सोयाबीन दोनों ही व्यावसायिक फसलें हैं और इनकी कीमतें बाजार की स्थिति पर निर्भर करती हैं, जो कि इन दिनों वास्तव में अप्रत्याशित है.’
उन्होंने कहा, ‘रागी और ज्वार जैसे मोटे अनाज और बाजरा की बुवाई को इसके पोषण मूल्य के कारण बढ़ावा दिया जाना चाहिए. अन्य फसलों की तुलना में इन फसलों का समर्थन मूल्य बढ़ाया जाना चाहिए.’
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