आदर्श रूप में, भारत और चीन दोनों चाहते हैं कि पूर्वी लद्दाख़ में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य स्थिति को बढ़ाए बिना, उनके राजनीतिक उद्देश्य पूरे हो जाएं. लेकिन, पब्लिक डोमेन में जो दिख रहा है. उसके हिसाब से इस मौक़े पर, कूटनीतिक से कुछ हासिल नहीं हो रहा है.
कूटनीतिक गतिरोध
22 जून को 14 कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह और साउथ शिंजियांग मिलिटरी डिस्ट्रिक्ट कमांडर मेजर जनरल लियु लिन के बीच हुई बातचीत के बाद से ताज़ा टकराव से बचने के लिए अलग होने की प्रक्रिया में कुछ ख़ास प्रगति नहीं हुई है. 30 जून को कमांडर्स के बीच फिर मीटिंग हुई, जिसमें 12 घंटे तक बातचीत चली. लेकिन कोई ख़ास नतीजा नहीं निकला.
भारतीय सैनिक सूत्रों ने, जो स्थिति की औपचारिक ब्रीफिंग्स का मौजूदा विकल्प हैं. इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘सेना लंबे समय के लिए तैयारी कर रही है और इस गतिरोध के सर्दियों तक चलते रहने की संभावना है.’ इंडिया टुडे ने ख़बर दी कि तनाव कम होने की बजाय वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पिछले 72 घंटे में दोनों पक्षों की ओर से और अधिक सैनिक टुकड़ियां जमा कर ली गई हैं और इस लामबंदी में कोई कमी होती नहीं दिख रही है.
कूटनीतिक मोर्चे पर, भारत-चीन सीमा के मामलों के लिए वर्किंग मिकेनिज़्म फॉर कंसल्टेशन एंड को-ऑर्डिनेशन (डब्लूएमसीसी) की 15वीं बैठक 24 जून को वीडियो कॉनफ्रेंसिग के ज़रिए की गई. दोनों पक्षों ने 17 जून को विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीनी विदेश मंत्री एचई वांग यी के बीच हुई बातचीत का ज़िक्र किया और इस बात को फिर से दोहराया कि तनाव कम करने और अलग होने पर 6 और 22 जून को सीनियर कमांडरों के बीच बनी सहमिति को अमल में लाया जाए. न्यूज़ एजेंसी एएनआई ने अज्ञात सरकारी सूत्रों के हवाले से ख़बर दी कि विवाद को सुलझाने के लिए भारत और चीन ने हर हफ्ते डब्लूएमसीसी की बैठक करने का फैसला किया है.
प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) ने दोनों देशों के राजदूतों का इंटरव्यू किया था. कूटनीतिक भाषा में दोनों ने अपने अपने देश की पूरी स्थिति को दोहराया और दूसरे पक्ष पर विभिन्न समझौतों के उल्लंघन का आरोप लगाया. लेकिन समस्या को सुलझाने के लिए उन्होंने कूटनीति में अपनी अस्था को दोहराया.
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संकेत ये हैं कि अगर वूहान जैसा कोई ब्रेकथ्रू नहीं होता, तो कूटनीति से गतिरोध ख़त्म नहीं होगा.
सबसे बुरी स्थिति
भारत की सम्प्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता दांव पर है. क्षेत्रीय अखंडता और खोए हुए क्षेत्रों को फिर से जोड़ना ही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की विचारधारा का उद्देश्य है. इस मुद्दे पर पूरा देश नरेंद्र मोदी सरकार के साथ है. प्रधानमंत्री की एक मज़बूत नेता की छवि, इस लोकप्रियता के केंद्र में है. इसलिए तर्कसम्मत है कि अप्रैल 2020 से पहले की यथास्थिति बहाल करने के लिए भारत को सैन्य विकल्प इस्तेमाल करना पड़ सकता है. लेकिन ख़ासकर सैन्य क्षेत्र में व्यापक राष्ट्रीय शक्तियों के बीच अंतर, युद्ध की आर्थिक लागत और नाकामी की सूरत में सियासी नतीजे- सब मिलकर एहतियात की ओर ही ले जाते हैं.
चीन की सैन्य कार्रवाई से इसकी राजनीतिक मंशा झलकती है- भारत पर अपनी इच्छा को थोपना. इसकी बलपूर्वक कूटनीति के वांछित परिणाम नहीं मिले हैं. बड़ी शक्ति के लिए नाक कटना हार के समान है. अगर भारत नरम नहीं पड़ता तो चीन के लिए सीमित युद्ध एक मजबूरी बन जाएगा.
इस मौक़े पर, दोनों पक्ष एक सीमित युद्ध की सबसे ख़राब स्थिति की तैयारियां कर रहे होंगे. पहले कार्रवाई करके चीन ने भारत के आगे चारा डाला है. इसका तुरंत और भावुक जवाब भारत की रणनीतिक मूर्खता होगी. अनिश्चितकाल तक यथास्थिति बनाए रखकर भारत चीन को जवाबी चारा डाल सकता है. सर्दियां, जो दोनों सेनाओं की रणनीतिक गणना पर असर डालेंगी, अभी पांच महीने दूर हैं.
पीएलए आक्रमण का संभावित स्वरूप
पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) का संभावित सैन्य उद्देश्य होगा. पूर्वी लद्दाख के कुछ चुनिंदा सेक्टर्स में, विरोधी बलों को निर्णायक रूप से परास्त करना. ऐसा करके को चीन के दावे/धमकी वाले इलाक़ों में स्ट्रैटेजिक डेप्थ मुहैया कराएगी, चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) की सुरक्षा बढ़ाएगी और सैन्य इनफ्रास्ट्रक्चर को तबाह करेगी.
यहां पर ये उल्लेख करना उचित रहेगा कि वर्तमान टकराव की जगहें- सब सेक्टर नॉर्थ (एसएसएन) या दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) सेक्टर, गलवान नदी, हॉट स्प्रिंग्स-गोगरा, पैंगोंग त्सो, चुशुल और डेमचोक-वही हैं जहां 1962 की जंगें लड़ी गईं थीं.
पीएलए जहां तक मुमकिन होगा, 15,000-16,000 फीट और उससे ऊंची जगहों पर भारतीय सेना के मुख्य मोर्चों पर सीधा हमला करने से बचेगी और ऐसी जगह पर नज़दीकी युद्ध से भी बचेगी, जहां वो कमज़ोर स्थिति में हो. इलाक़े की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए दोनों पक्षों के ठिकाने एलएसी से 10 से 80 किलोमीटर दूर स्थित हैं. संभावना ये है कि पीएलए मुख्य ठिकानों से आगे और एसएसएन जैसे अलग थलग और असुरक्षित सेक्टर्स पर फोकस करेगी. इन इलाक़ों में भारी संख्या में मिकेनाइज़्ड बल भेजे जा सकते हैं. ये हमला ऊंची टेक्नोलॉजी के ज़रिए होगा, जिसमें साइबर और इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक डोमेन्स और प्रिसीशन-गाइडेड म्यूनीशंस पर ज़ोर रहेगा.
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उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए चीनी पीएलए के परिचालन स्तर के उद्देश्य निम्नलिखित हो सकते हैं-
· एसएसएन सेक्टर पर क़ब्ज़ा करना, और सियाचिन ग्लेशियर में भारतीय मोर्चे के लिए ख़तरा पैदा करना.
· गलवान घाटी में डारबुक-श्योक-डीबीओ मार्ग को काटना.
· चांग चेनमो रिवर वैली और पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी किनारे तक के इलाक़े पर क़ब्ज़ा करना.
· चुशुल सेक्टर में कैलाश को सिक्योर करना/क़ब्ज़ाना
· कैलाश रेंज पर डेमचोक और चांगला पास होते हुए, लद्दाख़ रेंज तक इंडस वैली पर क़ब्ज़ा करना.
· पाकिस्तान भी तुर्तुक सेक्टर की श्योक रिवर वैली में, एक पूरक हमला कर सकता है.
पीएलए ने भारत को चौंकाकर इलाक़े को हथियाने की बढ़त गंवा दी है और जून अंत तक मिले समय को भी खो दिया है, जब भारतीय रक्षित सेना को लामबंद करके उन्हें जलवायु का अभ्यस्त बनाकर, वहां तैनात किया जा रहा था. भारतीय सेना बरसों से पीएलए की संभावित योजनाओं से निपटने की तैयारी करती रही है और मुझे इसमें कोई शक नहीं है कि पीएलए को मलाल करना पड़ेगा.
(ले. जनरल एच.एस. पनाग पीवीएसएम, एवीएसएम (रिट.) ने भारतीय सेना की 40 साल तक सेवा की. वे उत्तरी कमान और सेंट्रल कमान के जीओसी-इन-सी रहे. सेवानिवृत्ति के बाद वे आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल के सदस्य रहे. ये उनके निजी विचार हैं)
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