मुंबई: अप्रैल में कोविड के लक्षणों का सर्वे करने के लिए, प्रदेश स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी जब महाराष्ट्र के मालेगांव में घर-घर पहुंचे तो ज़्यादातर निवासियों ने सहयोग करने से मना कर दिया. उन्हें डर था कि कोविड से लड़ने के बहाने, सरकार विवादास्पद राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के लिए, उनके बारे में जानकारी जुटा रही है.
साथ ही वहां व्हाट्सएप पर सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील संदेश भी चल रहे थे. लक्षण वाले लोगों ने इस डर से डॉक्टरों के पास जाना बंद कर दिया कि उनके पूरे परिवार को क्वारेंटाइन कर दिया जाएगा. इसके अलावा ईद भी करीब थी, इसलिए पुलिस बंदोबस्त के साथ पूरा शहर, समारोह मना रही मुस्लिम बस्ती से ज़्यादा किसी किले की तरह दिख रहा था जिससे तनाव थोड़ा और बढ़ गया था.
मालेगांव में प्रशासन के सामने ऐसी बहुत सी अजीब चुनौतियां थीं. महाराष्ट्र के नासिक ज़िले का एक कस्बा- जिसका सांप्रदायिक अशांति का एक लंबा इतिहास रहा है और जहां कोविड पॉज़िटिव मामलों की संख्या तेज़ी से बढ़कर 900 से अधिक हो गई थी. मालेगांव देश का एक सबसे घनी आबादी वाला क्षेत्र भी है, जहां हर एक वर्ग किलोमीटर में 19,000 लोग रहते हैं.
लेकिन 15 अप्रैल के डबलिंग रेट 2.33 से, पॉजिटिव मामले घटने के कारण 25 मई तक आते-आते कोविड डबलिंग रेट 46 पर और 22 जून तक मामले और कम होने से, 126 पर आ गया. मालेगांव नगर निगम के आंकड़ों के अनुसार, 22 जून तक शहर में, कोविड के कुल 943 मामले दर्ज हुए हैं लेकिन इनमें से केवल 8 प्रतिशत यानि 75 मामले ही अब एक्टिव हैं.
संख्या में तेज़ी से गिरावट के पीछे एक कहानी है कि नागरिक प्रशासन और पुलिस ने किस तरह, एक ऐसे शहर में कोविड संकट को काबू करने के अनोखे उपाय किए, जो गरीबी और ऐसी घनी आबादी का मिश्रण है जिसकी सतह के नीचे सांप्रदायिक कलह की लहर बनी रहती है.
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सोशल मीडिया पर नज़र, हिंदू-मुस्लिम बस्तियों को अलग रखना
पहला काम जो ज़िला प्रशासन ने किया, वो था समाज को बांटने वाली सोशल मीडिया सामग्री पर कड़ी कार्रवाई.
जैसे: ‘कोई मौलाना के खिलाफ बोले तो विवादित हो जाता है और यहां साधू मार दिए जाएं तब भी भारत ख़ामोश रहता है. जागो हिंदू, जागो.’ ये उन बहुत से व्हाट्सएप फॉरवर्ड्स में से था, जो वहां चल रहे थे.
एक और टिकटॉक वीडियो जो चल रहा था, उसमें एक आदमी अपनी नाक पोंछकर, नोट चाटते हुए कह रहा था, ‘भारत में स्वागत है, कोरोनावायरस’. वो आगे कहता है कि वायरस एक ‘दिव्य सज़ा है जिसका कोई इलाज नहीं है’.
मालेगांव नगर निगम के आंकड़ों के मुताबिक, कोविड के करीब 70 प्रतिशत पॉज़िटिव केस, शहर के मुस्लिम हिस्से से हैं. इस पृष्ठभूमि में, एक और वीडियो वायरल हो गया, जिसमें इस शंका को बढ़ावा दिया गया कि मुसलमानों की तरफ हो रही गतिविधियां और घर-घर के सर्वे का संबंध एनआरसी से है.
मालेगांव में सांप्रदायिक दंगों और बम धमाकों के इतिहास को देखते हुए, सोशल मीडिया संदेश संभावित रूप से विस्फोटक हो सकते थे. इस साल के शुरू में मालेगांव में, नागरिकता संशोधन कानून और प्रस्तावित एनआरसी के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन हुए थे.
नासिक की पुलिस अधीक्षक आरती सिंह, जिनके अधिकार क्षेत्र में मालेगांव आता है, ने कहा, ‘इस तरह के संदेशों के लिए हमने बहुत बारीकी से सोशल मीडिया पर नज़र रखी, अपराधों को दर्ज किया और उन्हें रोकने के लिए गिरफ्तारियां भी कीं. शहर में सांप्रदायिक तनाव का इतिहास रहा है लेकिन लॉकडाउन का पूरा समय बहुत शांतिपूर्ण रहा. एक भी अप्रिय घटना सामने नहीं आई’.
मालेगांव में हिंदू और मुस्लिम बस्तियों के बीच मौसम नदी बहती है. दोनों बस्तियों के बीच नदी पर आठ पुल बने हैं.
सिंह ने कहा, ‘एक पुल को छोड़कर, जिसे आवश्यक वस्तुओं के मूवमेंट के लिए खुला छोड़ दिया गया था, पुलिस और निगम स्टाफ ने, बाकी सभी पुलों को बंद कर दिया और दोनों पक्षों को अलग कर दिया’.
पुलिस ने पेट्रोल पंप्स पर बिकने वाले फ्यूल की मात्रा भी सीमित कर दी ताकि लोग सिर्फ ज़रूरी काम से ही बाहर निकल पाएं. शहर में पुलिस का भी भारी बंदोबस्त था. लॉकडाउन के चरम पर, यहां 18,00 पुलिसकर्मी तैनात थे.
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कोविड से लड़ाई में मौलवियों और मस्जिदों के लाउड-स्पीकर्स का इस्तेमाल
हर रोज़ दिन में दो बार, मालेगांव की मस्जिदों से लोगों से अपील की जाती थी कि वो घरों के अंदर रहें, कोविड के खतरे को गंभीरता से लें और कोई भी लक्षण दिखने पर डॉक्टर को बताएं.
मालेगांव सेंट्रल चुनाव क्षेत्र से एआईएमआईएम विधायक, मुफ्ती मोहम्मद इस्माईल ने कहा, ‘शुरू में लोग लक्षण बताना नहीं चाहते थे क्योंकि उन्हें डर था कि उनके पूरे परिवार को संस्थागत क्वारेंटाइन में रख दिया जाएगा’.
‘निगम अधिकारियों ने हमारे धर्म प्रमुखों को कंट्रोल रूम में बुलाया और उनसे अपील की कि लोगों से बात करके उन्हें स्थिति की गंभीरता से अवगत कराएं. उनका असर लोगों से लक्षणों के खबर देने और लॉकडाउन का पालन कराने में, मददगार साबित हुआ’.
एक डर ये भी था कि ईद के समारोह पर भी, मामलों की संख्या में उछाल आ सकता है.
नासिक की एसपी सिंह ने कहा, ‘लोग हमसे पूछते रहे कि अगर शादी के लिए 50 लोगों के जमा होने की इजाज़त है तो ईद के लिए क्यों नहीं. हमने उन्हें समझाने की कोशिश की कि शादी एक पारिवारिक मामला है, जबकि धार्मिक समारोह एक सामुदायिक मामला है’.
‘ईद से एक दिन पहले मालेगांव पुलिस, जिसमें मैं भी शामिल थी, ने केंद्र की रैपिड एक्शन फोर्स के साथ, शहर के कोने-कोने में फ्लैग मार्च किया और लोगों से अपील की कि वो घर के अंदर रहकर ही ईद मनाएं. त्यौहार के दिन एक आदमी भी सड़क पर नहीं था’.
उन्होंने आगे कहा कि शुरू में मौलवी लोग भी यही बहस करते थे लेकिन बाद में वो प्रशासन से सहयोग करने को राज़ी हो गए. सिंह ने कहा, ‘उनके कहने का बहुत असर हुआ’.
इसके बाद प्रशासन ने इनफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान दिया. कोविड संकट से पहले, मालेगांव नगर निगम के पास 100 बेड्स की क्षमता थी. अचानक मुसीबत आने पर, उसने जल्दी-जल्दी इस संख्या को बढ़ाकर लगभग 2,500 कर दिया, 25 फीवर क्लीनिक्स स्थापित किए और एक मोबाइल डिस्पेंसरी भी चालू कर दी.
इधर हार्ड इनफ्रास्ट्रक्चर पर काम चल रहा था, उधर नगर निकाय ने अपनी आदर्श कार्य प्रणाली के तहत, कुछ दूसरे कदम भी उठाए.
उप निगम आयुक्त नितिन कपाडनिस ने बताया, ‘लोगों के खान-पान की आदतों और समय के हिसाब से, हमने मुसलमान और हिंदू मरीज़ों के लिए खाने का बंदोबस्त किया. ईद के लिए हमने खजूरें बंटवाई’.
पुलिसकर्मी और निकाय अधिकारी भी पॉजिटिव निकले
हेल्थकेयर के कमज़ोर ढांचे के अलावा, शुरू में प्रशासन और पुलिस के सामने एक और चुनौती थी, अपने ही लोगों का पॉज़िटिव निकलना.
जैसे-जैसे कोविड को लेकर जागरूकता बढ़ी और पुलिस तथा नगर निकाय के अंदर ही मामले निकलने शुरू हुए, शहर के लोग उन्हें किसी भी तरह की सहायता देने से इनकार करने लगे.
सिंह ने बताया, ‘हमारे लिए अपनी फोर्स के आवास और भोजन का प्रबंध करना मुश्किल हो गया क्योंकि वेंडर्स संक्रमण से डरने लगे. सेवाएं देने के लिए हमें उन्हें मनाना पड़ा’.
कुल 192 पुलिसकर्मियों का कॉविड टेस्ट पॉज़िटिव निकला, जबकि तीन सिपाहियों की मौत हो गई. नगर निकाय में भी, 27 कर्मचारी और अधिकारी पॉजिटिव पाए गए, जिनमें निगम आयुक्त और अतिरिक्त निगम आयुक्त भी शामिल थे.
अधिकारियों का कहना है कि नदी किनारे बसे इस शहर में, चीज़ें धीरे-धीरे सामान्य हो रही हैं. हर रोज़ सामने आने वाले ताज़ा मामलों की संख्या लगभग नगण्य है.
पुलिस तैनाती भी एक तिहाई रह गई है और पूरे शहर में अब करीब 600 पुलिसकर्मी तैनात हैं.
मुस्लिम और हिंदू पक्षों को जोड़ने वाले आठ पुलों पर भी धीरे-धीरे आवाजाही होने लगी है. कपाडनिस ने बताया, ‘दो या तीन पुलों को छोड़कर, हमने अधिकतर को खोल दिया है’.
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