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Sunday, 24 November, 2024
होममत-विमतचीन का ‘नदी बम’ तैयार है और बचने की हमारी तैयारी शून्य है

चीन का ‘नदी बम’ तैयार है और बचने की हमारी तैयारी शून्य है

गलवान घाटी की कुछ सैटेलाइट तस्वीरें सामने आई हैं, जो यह बता रही है कि गलवान नदी पर चीन एक बांध बनाने की कोशिश कर रहा है.

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गलवान घाटी वही जगह है जहां चीन ने हमारे बीस सैनिकों को मार डाला. उसी गलवान घाटी की कुछ सैटेलाइट तस्वीरें सामने आई हैं, जो यह बता रही है कि गलवान नदी पर चीन एक बांध बनाने की कोशिश कर रहा है. नदी के पानी को रोकने के पीछे चीन के उद्देश्य और भारतीय जवाब पर बात करें, इससे पहले एक नदी बम पर नजर डाल लीजिये.

तकरीबन 2900 किलोमीटर लंबी ब्रह्मपुत्र नदी दक्षिणी तिब्बत से निकलती है. तिब्बत में इसका नाम यारलुंग जागपो है और यह वहां 1625 किलोमीटर बहती है. उसके बाद यह अलग-अलग धाराओं में भारत में प्रवेश करती है हमारे यहां इन धाराओं को सियांग, दिहांग और ब्रह्मपुत्र के नाम से जाना जाता है. इसके बाद यह बांग्लादेश में जमुना के नाम से बहती है और पद्मा में मिलकर दुनिया का सबसे बड़ा डेल्टा गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा का निर्माण करती है.

अब इसके शुरुआती हिस्से यानी यारलुंग जागपो पर चीन ने एक विशाल बांध का निर्माण किया है. यह तिब्बत का सबसे बड़ा बांध है और ऑपरेशनल है. इसी धारा पर तीन और बांधों का निर्माण चीन कर रहा है.

एक तरह से उसने ब्रह्मपुत्र की ऊपरी धारा को बांध लिया है, और जब चाहे तब भारतीय क्षेत्र में जल सैलाब ला सकता है. साल में दो बार बाढ़ झेलता असम का क्षेत्र इसकी बानगी मात्र है. सोचिए इन बांधों में भरा लाखों-करोड़ों गैलन पानी यदि एक साथ छोड़ दिया जाए तो अरूणाचल सहित उत्तर-पूर्वी भारत के एक बड़े हिस्से का क्या हाल होगा.

तो इससे बचने की हमारी तैयारी क्या है? इसका जवाब है- कुछ नहीं, क्योंकि हम तो खुद ही अपना नदी बम बनाने में व्यस्त हैं. याद करिए पिछले साल कैसे हम लगातार सिंधु नदी के पानी को रोक कर पाकिस्तान को उसकी औकात याद दिलाने की धमकी दे रहे थे. उस दिशा में तैयारियां भी शुरु हो गई थी. जल-संसाधन राज्यमंत्री अर्जुन मेघवाल ने दावा कर दिया था कि हमने तीन नदियों रावी, व्यास और सतलुज का पानी रोक दिया है. पाकिस्तान भी इंटरनेशनल कोर्ट फॉर आर्बिट्रेशन में चला गया था. ऐसा लगा कि बस हमने सिंधु नदी जल समझौता तोड़ ही दिया है.

नदी को अपनी बपौती समझने वाली सरकारें यहीं पर सबसे बड़ी गलती करती हैं. नीचे बसे देश को सबक सिखाने के चक्कर में हम भूल जाते हैं कि नदी ऊपर से आती है और वहां भी कोई देश है.


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यहां पिछले साल का सिंधु नदी प्रकरण इसलिए याद किया गया क्योंकि गलवान नदी से इसका सीधा संबंध है.

शोधार्थी एक शब्द अक्सर उपयोग करते हैं- ‘जियोलॉजिकल सरप्राइजेस.’ लद्दाख और पश्चिमी तिब्बत का एक बड़ा इलाका जियोलॉजिकल सरप्राइजेस वाला है. यानी यहां हवा की गति और दिशा तय नहीं होती, आज जो धारा बिल्कुल सूखी नजर आ रही है हो सकता है कल उसमें तेज बहाव दिखे. यहीं वह इलाका है जहां चीन और भारत जैसे देश अपने प्राचीन इतिहास के आधार पर दावा करते रहे हैं.

तो गलवान नदी जिसमें निर्माण गतिविधि की कुछ तस्वीरें सामने आई है. यह नदी यहां से लद्दाख की ओर बहती है और श्योक नदी में मिल जाती है. यही श्योक नदी आगे जाकर सिंधु में मिलती है. यूं कह लीजिये यह सिंधु की मुख्य फीडर नदी है. इसका मतलब यह हुआ कि जिस सिंधु को हम भारत में रोककर पाकिस्तान का पानी बंद करने की धमकी दे रहे है. उस नदी को अपने उद्गम पर ही चीन ने रोकने का काम शुरु भी कर दिया है. यह धारा चीन-पाकिस्तान सड़क को भी पार करती है और वहां भी एक बांध बनाए जाने की प्रक्रिया चल रही है. गिलगित का यह वहीं इलाका है, जिसे हम अपने नक्शे में दिखाते रहे हैं.

इस इलाके में जितने बांध चीन ने बनाए है या बना रहा है वह सब मिलकर भारत में अच्छी खासी तबाही लाने में सक्षम है. वैसे एक सच यह भी है कि ब्रह्मपुत्र जैसी नदी को पूरी तरह बांधा जाना संभव ही नहीं है, क्योंकि वह अपने उद्गम से ही डेल्टा जैसा व्यवहार करती है यानी टूट कर कई धाराओं में बहती है. दरअसल ब्रह्मपुत्र में मिलने वाली सभी छोटी-मोटी धाराओं को जोड़ा जाए, तो उनकी संख्या करीब तीन सौ बैठेगी. तेज ढलान, सहायक नदियों का बहाव, टेढ़ी-मेढ़ी घाटियां ये सब मिलकर ब्रह्मपुत्र को एक तेज बहाव वाला नद बना देते हैं. वह समुद्र में सर्वाधिक पानी लेकर मिलने वाली नदियों में शीर्ष पर है.

यदि आपको लगता है कि बांधों का युद्द में उपयोग एक अतिरंजित विचार है तो दूसरे विश्व युद्द पर एक नजर डालिए. मई 1943 में रॉयल एयर फोर्स ने जर्मनी में दो बांधों को बमबारी कर तोड़ दिया था जिसमें हजारों मौते हुई थी.

एक समस्या यह भी है कि भारत और चीन के बीच पानी डाटा शेयरिंग को लेकर कोई साफ समझौता नहीं है. पिछले साल ही मेकांग नदी का हाइड्रोलॉजिकल डाटा देने से चीन ने इंकार कर दिया था, ऊपर से कितना पानी आ रहा है या कितना आ सकता है हम सिर्फ इसका अनुमान लगा सकते हैं.

हकीकत यह है कि विश्व में कहीं भी ऊपरी हिस्सें में मौजूद राष्ट्र की नदी नीति निचले इलाके में कहर बरपाती आई है, भारत अक्सर मानसून के दौरान ज़रूरत से ज़्यादा पानी छोड़ता है, जो सिंधु और उसकी सहायक नदियों के नीचे बसे पाकिस्तान और गंगा के निचले हिस्सें में मौजूद बांग्लादेश में बाढ़ का सबब बनता है. यही काम चीन हमारे साथ करता है और बांग्लादेश अपने नीचे मौजूद म्यांमार को हैरान किए रहता है. इसी तरह पाकिस्तान के अनियंत्रित बहाव का शिकार कई बार अफगानिस्तान हो चुका है.

इसी तरह मेकांग नदी पर युन्नान बांध का निर्माण चीन कर रहा है. यह नदी म्यांमार, लाओस, थाइलैंड, कंबोडिया होते हुए वियतनाम तक जाती है. यदि मेकांग पर बने बांध पर कोई आफत आई तो इसका भयावह असर होगा. कुल मिलाकर चीन के नदी बम से बचने की कोशिशों के बजाए हम अपना ही नदी बम बनाने में व्यस्त है, जो बाद में हमारे लिए ही मुसीबत बन जाता है. पश्चिम बंगाल में बना फरक्का डैम भी पूर्वी पाकिस्तान से उसका संसाधन छीनने के उद्देश्य से बनाया गया था, जो अब हमारे लिए ही नासूर साबित हो रहा है.


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यह एक ऐसी चेन है जिस पर राष्ट्रों का नियंत्रण नहीं है, नदियों ने राष्ट्र की सीमाओं को देखकर जन्म नहीं लिया बल्कि नदियों के किनारे सभ्यताओं ने जन्म लिया है यह इंसान का घंमड है जो उससे कहलवाता है कि वह किसी नदी का मालिक है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

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1 टिप्पणी

  1. The author is fully on the side of Pakistan. If the Dam construction over Indus River is stopped, will the China stop the construction on its side.
    The author is creating a feat phycology by his article.
    China is upto some mischief and the author is protecting the China.

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