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Friday, 3 May, 2024
होममत-विमतमानसून की पहली बारिश में ही डूबेगा आधे से ज्यादा देश जिसमें बह जाएंगी पलायन करते मजदूरों की तस्वीरें

मानसून की पहली बारिश में ही डूबेगा आधे से ज्यादा देश जिसमें बह जाएंगी पलायन करते मजदूरों की तस्वीरें

मानसून का आगमन होने ही वाला है. बाढ़ की विभीषिका की नई तस्वीरें सामने आएगी. हम लोग उन तस्वीरों को देखकर च्च..च्च..च्च.. करेंगे और मजदूरों के पलायन की तस्वीरें धीरे-धीरे धुंधला जाएगी.

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यदि आपको इस लेख की हैडिंग हाइपोथिटिकल या कपोल कल्पित लग रही है तो इस डाटा पर नज़र डालिए जिसे केंद्रीय जल आयोग ने विश्व पर्यावरण दिवस के ठीक पहले जारी किया है. देश के 123 बांधों या जल संग्रहण क्षेत्रों में पिछले दस सालों के औसत का 165 फीसद पानी संग्रहित है और पिछले साल की तुलना में यह 170 फीसद है. इसका मतलब है कि इन बांधों में पर्याप्त से भी ज्यादा पानी का भंडारण है. ये 123 बांध वे हैं जिनका प्रबंधन और संरक्षण केंद्रीय जल आयोग करता है और इन बांधों में देश की कुल भंडारण क्षमता का 66 फीसद पानी जमा होता है.

सहज सवाल यह है कि जब बांधों में इतना पानी भरा हुआ है तो उन क्षेत्रों को पानी क्यों नहीं मिल रहा जहां इसकी जरूरत है. केंद्रीय जल आयोग के पास इस क्यों के कई सारे तकनीकी जवाब मौजूद हैं और परिणाम यह है कि इन बांधों से पानी की निकासी नहीं हो रही. यानी सिंचाई और दूसरी जरूरतों के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा.

हर साल की तरह गर्मी में देश के कई हिस्से साफ पानी के लिए त्राहिमाम कर रहे हैं. यह सब तब है जब मौसम विभाग ने काफी पहले भविष्यवाणी कर रखी है कि इस बार मानसून बेहतरीन होने जा रहा है. लॉकडाउन के चलते नदियों में औद्योगिक कचरा गिरना कम हो गया है लेकिन उनमें बहाव की कमी साफ नज़र आ रही है. जैसे ही पहली अच्छी बारिश होगी इन बांधों में पानी और भी लबालब हो जाएगा, साथ ही साथ नदियों में भी बहाव तेज हो जाएगा. तब बांध की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उसके गेट खोल दिए जाएंगे. नतीजतन नदियों में बहाव और भी ज्यादा बढ़ जाएगा और देखते ही देखते देश का बड़ा हिस्सा बाढ़ की चपेट में होगा. यह तकरीबन हर दूसरे–तीसरे साल दोहराई जाने वाली कहानी है.

डब्ल्यूआरआई यानि वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट द्वारा जारी किए गए एक्वाडक्ट वाटर रिस्क एटलस पर ध्यान देने की जरूरत ही नहीं है जिसमें दर्शाया गया है कि भारत 17 अत्यंत जल तनावग्रस्त देशों में 13वें स्थान पर है. यह स्थिति पैदा ही तब होती है जब पानी की उपलब्धता बेहद कम होती है. लेकिन हमारे यहां यह साफ तौर पर प्रबंधन और दूरदृष्टि की कमी का मामला है.


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यदि अत्यधिक भरे बांधों से पानी अभी छोड़ा जाएगा तो इसका पहला फायदा होगा कि नदियां खुद को साफ कर लेंगी. बारिश के पहले ही नदी में बहाव बढ़ने से मछलियों की उत्पादकता में खासी बढ़ोतरी होगी. खासतौर पर गंगा, लॉकडाउन से पहले मछलियों से खाली ही हो गई थी वहां भी मछलियां नज़र आने लगी हैं. यदि इस समय गंगा का बहाव कायम रहा और मछलियां पकड़ने के तर्कसंगत नियमों को लागू किया गया तो गंगा पहले की तरह मछलियों से भर जाएगी और लाखों लोगों के रोजी रोटी का इंतजाम हो सकेगा. अभी तो पानी कम है और लॉकडाउन खुलते ही लोग बारिक जाल लेकर नदियों में उतर जाएंगे और बेतरतीब तरीके से छोटी–बड़ी सभी मछलियां मार देंगे. यह सही मौका है जब संगाठनिक रूप से मछली पकड़ने वाले मछुआरा संघ नदी सामंजस्य के अपने अतीत को याद करें और नदी से जरूरत की मछलियां लें ना कि उन्हे खाली ही कर दें.

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बांधों के गेट अभी खोल देंगे तो मानसून में इनके खोलने की नौबत नहीं आएगी जिससे बाढ़ का खतरा भी कम होगा. लेकिन सबकुछ जानते हुए भी बांधों से पानी छोड़ने की कोई पहल नहीं की जा रही, उल्टा लोगों को चेताया जरूर जा रहा है कि सावधान रहिए तबाही हो सकती है. पंजाब में भाखड़ा नांगल ने चेतावनी जारी की जिसमें कहा गया है कि तेज बारिश, बर्फबारी के चलते बाढ़ की आशंका है. यह भी सच है कि इस बार हिमालय में बर्फबारी ज्यादा हुई है और उसी हिसाब से वो पिघलकर नदियों के बहाव को बढ़ा रही है.

जब इतना पता है तो बांध को थोड़ा खाली कर लीजिए ताकि पंद्रह-बीस दिन बाद आने वाली मुसीबत को थोड़ा नियंत्रित किया जा सके. सरदार सरोवर डैम का भी यही हाल है वहां पिछले साल की तुलना में 175 फीसद पानी जमा है लेकिन कच्छ में पानी की किल्लत बनी हुई है. केरल का इडुकि बांध जिसने पिछले साल केरल की तबाही में भारी योगदान दिया था इस बार फिर लबालब है. लेकिन अधिकारी इंतजार कर रहे हैं कि पहले मानसून शुरू हो जाए तब गेट खोले जाएंगे.


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डूबने तक इंतजार करो की नीति के पीछे सरकारी सोच यह है कि नदियों का पानी समुद्र में बेकार चला जाता है इसलिए पानी को रोककर उसका समुचित उपयोग किया जाना चाहिए. कोरोना संकट भी नीति नियंताओं को यह सामान्य सबक नहीं दे पाया कि समुद्र और नदी का मिलन प्राकृतिक है और रोकने की कोशिश पर्यावरणीय समास्याओं को जन्म देती है.

फरक्का बनने के बाद समुद्र सुंदरबन और हल्दिया तक कई क्षेत्रों में आगे बढ़ा और जमीनी उर्वरता को नष्ट कर दिया. जिस जमीन पर तीन फसली खेती होती थी वह नमक से भर गई और अब किसी काम की नहीं रही. गोदावरी, कृष्णा, नर्मदा किसी भी नदी के मुहाने पर देख लीजिए बांध बनाकर नदी को रोका तो समुद्र आगे आ गया. जमीने खराब हो गईं.

मानसून का आगमन होने ही वाला है. बाढ़ की विभीषिका की नई तस्वीरें सामने आएगी. हम लोग उन तस्वीरों को देखकर च्च..च्च..च्च.. करेंगे और मजदूरों के पलायन की तस्वीरें धीरे-धीरे धुंधला जाएंगी.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

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5 टिप्पणी

  1. सिंचाई विभाग में दायित्वहीन पदाधिकारी बैठे बैठे फ्री का वेतन ले रहे हैं बरसाती मौसम में जनता को परेशान करने के लिए पानी छोड़ देते हैं जब किसान को पानी जरूरत होती है तब पानी नही देते !
    निठल्ले अधिकारियों को हटा कर हाईस्कील्ड लोगों की नियुक्ति करें!!!

  2. बिलकुल सही बात है कोइ कर्मचारी इस समय नजर नहीं आ रहा जब किसानों को पानी की जरुरत है बरसात और सर्दियों में नहरे उफान कर बहती है जिससे फसलों का काफी नुकसान होता है

  3. राजस्थान में लाखों हैक्टर जमीन बिना पानी के सुखी पङी है अगर दुसरे राज्यों के बाँधो का पानी बरसात के मौसम में राजस्थान में छोड़ दिया जाए तो राजस्थान में पीने के पानी की कमी नहीं होगी और दुसरे राज्यों मे बाढ के पानी से बचाया जा सकता है और राजस्थान में लाखों हैक्टर में खेती हो सकती हैं और किसानों की आमदनी व आत्म निर्भरता व बेहतरीन होगी व रोजगार भी उपलब्ध होगा और दुसरे राज्यों के किसानों जो बाढ से नुकसान से बचाया जा सकता है

  4. सही बात है कि अभी बांध खोल दिए गए होते तो नदियां साफ हो चुकी होती, और अतरिक्त जल की निकासी से बाढ़ के खतरे को काफी हद तक रोका जा सकता है। दूरदृष्टी व प्रबंधन की बहुत बड़ी कमी है देश में।

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