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Friday, 1 November, 2024
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बिहार में डिजिटल चुनावों का हश्र वैसा ही होगा जैसा लॉकडाउन और नोटबंदी का हुआ: कन्हैया कुमार

कन्हैया कुमार ने यह भी कहा कि गरीबों के मुद्दों के बारे में बढ़ी चेतना के बीच, विपक्षी दलों को उनके समर्थन में एकजुट होना चाहिए.

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नई दिल्ली: कोरोना महमारी के चलते देश में कोई बड़ी राजनीतिक रैली या विपक्षी पार्टियों के धरने नहीं हो सके हैं. लेकिन बिहार के विधानसभा चुनावों की आहट से डिजिटल चुनाव और वर्चुअल रैलियों की बात होने लगी है.

इसी क्रम में भारतीय जनता पार्टी 7 जून को अमित शाह की पहली वर्चुअल रैली आयोजित करवाने जा रही है. इससे पहले बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने डिजिटल चुनाव की बात कही थी.

लेकिन इसीबीच पर विपक्ष हमलावर रहा. राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने भी लॉकडाउन-4 (17-31 मई) में सोशल मीडिया पर अपनी प्रजेंस बढ़ाई और लगातार फेसबुक लाइव के जरिए जनता से जुड़ने का प्रयास किया.

लेकिन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार का मानना है कि बिहार में डिजिटल चुनाव कराने के साथ एक बुनियादी समस्या है.

उन्होंने पिछले हफ्ते दिल्ली में दिए अपने इंटरव्यू में दिप्रिंट से कहा, ‘बिहार में कितने गांव इंटरनेट से जुड़े हैं? इसका लाभ उठाने के लिए आपको 20 किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ सकता है, ‘

कन्हैया ने कहा, ‘दुनिया अंततः डिजिटल लोकतंत्र की ओर बढ़ेगी, लेकिन सभी को एक समान मदद कैसे पहुंच पाएगी? सत्ताधारी दल और उनके कार्यकर्ता सर्च इंजन को नियंत्रित करते हैं. डिजिटल चुनाव अगर होता है तो उसका हाल भी वैसा ही होगा जैसा नोटबंदी का हुआ है.’

पिछले हफ्ते दिल्ली में दिप्रिंट के साथ हुए इंटरव्यू में कन्हैया कुमार ने बिहार चुनाव में अपनी पार्टी की तैयारियों, विपक्ष के साथ गठबंधन और डिजिटल चुनाव पर बातचीत की.


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मैं स्वास्थ्य मंत्री के साथ ‘लूडो खेल’ रहा हूं

कन्हैया कुमार बिहार में वाम पंथ (लेफ्टिस्ट फेस) का जाना चेहरा हैं, तब भी जब वह पिछले साल बेगुसराय क्षेत्र से लोकसभा चुनाव में हार गए. इस बीच सवाल उठ रहे थे कि लॉकडाउन के दौरान लेफ्ट के चेहरे कन्हैया कुमार कहां हैं? इस सवाल का जवाब देते हुए कन्हैया कहते हैं, ‘मेरा मन करता है कि कहूं कि मैं स्वास्थ्य मंत्री के साथ लूडो खेल रहा हूं.’

लॉकडाउन के दौरान जनता के बीच गायब रहने के सवाल पर कन्हैया कहते हैं, ‘लॉकडाउन में किसी तरह की रैली या धरना तो संभव नहीं है. कोरोना काल में परंपरागत राजनीति की कोई जगह तो रही नहीं. ऐसे में हम बेगूसराय के लोगों की मदद कर रहे हैं. फॉर्म भरवाने हों या उनके खाने-पीने के इंतजाम करने हों. अगर रेलें भटक रही हैं तो सवाल रेल मंत्री से होगा ना. ना कि विपक्ष से.’

हाल में ही गोपालगंज हत्याकांड को बड़ा मुद्दा बनाते हुए तेजस्वी यादव ने नीतीश सरकार पर हमला बोला था और राज्य की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े किए थे.

लेकिन कन्हैया की तरफ से इस तरह की तैयारी नजर नहीं आती है. इस पर वो कहते हैं, ‘पिछले दिनों मजदूरों का पलायन तो हुआ ही है लेकिन बिहार में गोलीबारी की घटनाएं, महिलाओं के साथ अत्यााचार भी हुए हैं.’ विपक्ष के इस वक्त दो ही काम हैं. एक लोगों की मदद करना और दूसरा सरकार से सवाल पूछना.’

‘हालांकि, जैसे ही सवाल पूछे जाते हैं, हमें कहा जाता है राजनीति मत करो. जो काम सरकार के दायरे में आते हैं वो काम हम तो नहीं कर सकते. रेल तो रेलमंत्री ही चलवाएगा.’ उन्होंने आगे कहा.

विपक्ष को एकजुट होना चाहिए

डिजिटल चुनाव को लेकर कन्हैया मानते हैं कि कोरोना के बाद राजनीति बदल जाएगी. लेकिन इसके लिए विपक्ष को एकसाथ आना होगा.

सीपीआई ने आगे कहते हैं, ‘दशकों बाद गरीब अमीर आदमी का मुद्दा बना है. दशकों बाद मजदूरों को प्राइम टाइम पर जगह मिली है. तो लोगों की इस बदली चेतन से राजनीतिक चेतना भी बदली जा सकती है.’

‘गठबंधन आज की जरूरत है लेकिन फैसला एक पार्टी के पार्टी से गठबंधन उस पार्टी के मुखिया तय करेंगे. लेकिन मुझे लगता है कि विपक्ष को एकसाथ आना चाहिए.’ उन्होंने आगे कहा.

बिहार पहुंचे प्रवासी मजदूरों के गुस्से को चुनावी मुद्दा बनाने को लेकर वो कहते हैं, ‘बिहार को आत्मनिर्भर बनाना है तो सभी पार्टियों को साथ आना पड़ेगा.’

‘बिहार के युवाओं के लिए एक कॉमन प्लान लेकर आना होगा. इससे पहले कब मजदूरों की आवाज प्राइम टाइम पर उठाई गई थी? इसलिए विपक्ष को उनके रोजगार का मुद्दा जोर शोर से उठाना होगा.’


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कोई चुनावी रणनीति नहीं

सांसदी के चुनाव में हार चुके कन्हैया इस बार विधानसभा चुनाव में जमीन पर उतरेंगे या नहीं? इस सवाल पर वो जवाब देते हैं, ‘मुझे चुनाव नहीं लड़ना है. पुरानी लड़ाई भी जारी है. मेरे केस की तारीख भी चल रही है.’

‘लॉकडाउन में दिल्ली में फंस गए हैं. इतनी जल्दी दिल्ली से चार्टर करके बेगुसराय तो नहीं जा सकते. ये अनैतिक भी होगा.’ उन्होंने दिप्रिंट से कहा.

बिहार के विपक्षी नेता तेजस्वी और कन्हैया की तुलना को लेकर कन्हैया कहते हैं, ‘मैं अपने आप को लेकर आश्वस्त हूं. राजनीति में इस तरह के कंपीटिशन की कोई आवश्यकता नहीं है.’

कन्हैया आगे कहते हैं, ‘अगर तेजस्वी चुनाव को लेकर सोशल मीडिया पर तैयारी कर रहे हैं तो मुझे उससे कोई दिक्कत नहीं है लेकिन मैं नहीं चाहता कि गरीबों की मदद की तस्वीरें शेयर करके मैं उनका मजाक बनाऊं. इसलिए मेरी चुनाव को लेकर कोई रणनीति है भी नहीं.’


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कम्युनिस्ट पार्टियों की प्रासंगिकता

राजनीति में कम्यूनिस्ट पार्टी के अप्रासंगिक होने के सवाल पर कन्हैया कहते हैं, ‘लोग कह रहे थे कि लेफ्ट खत्म हो गया. लेफ्ट की कोई जरूरत नहीं है लेकिन क्राइसिस के दौरान केरल का हमारा मॉडल सफल हुआ.’

कन्हैया कहते हैं ‘आज आप गुजरात का मॉडल अपनाएंगे या केरल का. केंद्र सरकार को अब केरल की स्वास्थ्य मंत्री शैलजा टीचर के साथ मिलकर पूरे देश के लिए प्लान बनाना चाहिए.’

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2 टिप्पणी

  1. Shekhar ji aap en bakwass logo ko munch kun dete hai jinki Bharat ki politics Mai koi yogdan nahi…..aapko in sache neta logo ko munch Dena chiye Jo jamin or lambe samay se mehnat Kar rahe hai…..unko samman denge to apko apne aap samman milega….kanhiya jaise bakwass logo ka bhartiya samaz Mai koi sakaratmak yogadan nahi….plz inko ignore Kare…..or hamare is bakwass content se bachae

  2. कौन बकवास है ये आपकी भाषा की सैली बता रही है संदीप जी। मूर्खो की राजनीतिज्ञो से उंबर ना होगा। और पढ़े लिखे युवाओं को राजनीति में आना होगा तभी इस भारत की सच्ची विकास गाथा लिखी जा सकती है।ऐसे युवा जो मॉडर्न भारत को तकनीकी के साथ साथ सच्ची मानसिक लोग को लाना होगा । इसकी भारतीय राजनीति में बहुत ही कमी है।कुछ दिनों से मै घर पर हूं पंचायत स्तर की राजनीति में तो पढ़े लिखे युवाओं की कमी है तथा अन्य स्तर कि राजनीति में भी कमी हैं जिसको योजनाओं के जानकारी नहीं वो क्या समाज देश की विकास करेंगे

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