नई दिल्ली: भारत के सभी राज्य कोविड-19 महामारी और उसके बाद लगाए गए लॉकडाउन की वजह से जो पिछले दो महीने से भी ज्यादा से जारी है, बढ़ते खर्चों और राजस्व में होती कमी के कारण नकदी के संकट का सामना कर रहे हैं.
लेकिन आने वाले महीनों में राज्यों की वित्तीय स्थिति और भी खराब होने की संभावना है क्योंकि केंद्र सरकार टैक्स संग्रह को देखते हुए फंड ट्रांसफर को कम करने वाली है.
आर्थिक गतिविधियों के पूरी तरह रुक जाने के कारण केंद्र और राज्य दोनों के कर संग्रह में गिरावट देखी गई. 2020-21 के शुरुआती दो महीनों में प्रत्यक्ष कर और जीएसटी संग्रह में भारी गिरावट आई. हालांकि सरकार ने अभी तक कर संग्रह के कोई भी आंकड़े जारी नहीं किए हैं.
अप्रैल और मई में कर हस्तांतरण
अब तक, अप्रैल और मई में, केंद्र सरकार ने इस वर्ष के लिए अनुमानित कर संग्रह के आधार पर राज्यों को करों की हिस्सेदारी हस्तांतरित की थी. हालांकि, वास्तविक कर संग्रह बहुत कम है.
वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को बजट अनुमान के आधार पर धनराशि हस्तांतरित की गई थी क्योंकि केंद्र सरकार इस तथ्य से अवगत थी कि राज्यों को महामारी से लड़ने के लिए राजस्व की आवश्यकता है. लेकिन कुछ बिंदुओं पर, स्थानान्तरण वास्तविक कर संग्रह के अनुसार ही होता है.’
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केंद्र सरकार ने अप्रैल और मई की किश्तें जारी कर दी हैं जो कि प्रत्येक महीने के लिए 46,038 करोड़ रुपए की राशि है. ये इस आधार पर है कि पूरे वर्ष के लिए राज्यों की हिस्सेदारी 5.52 लाख करोड़ रुपए होगी.
वर्ष 2020-21 के लिए 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार, केंद्र द्वारा एकत्र किए गए कुल करों का 41 प्रतिशत राज्यों को मिलता है.
राज्यों की गंभीर वित्तीय स्थिति
राज्य सरकारें केंद्र से बड़े वित्तीय मदद की मांग कर रही हैं जिसमें जीएसटी का सही समय पर भुगतान और दूसरे अनुदान शामिल हैं.
उक्त अधिकारी ने कहा कि लॉकडाउन जैसे-जैसे खत्म हो रहा है, राज्यों में आर्थिक गतिविधियां फिर से शुरू हो रही हैं और परिणामस्वरुप राजस्व में भी वृद्धि हो रही है. उन्होंने कहा कि केंद्र ने इस वित्तीय वर्ष राज्यों को अधिक उधार लेने के लिए भी अनुमति दे दी है.
अधिकारी ने कहा कि केंद्र सरकार ने अपने फैसले में राज्यों को प्रदेश की जीडीपी के 5 प्रतिशत तक उधार लेने की अनुमति दी है, जो कि पहले 3 प्रतिशत थी. इससे राज्यों को 4 लाख करोड़ रुपए से अधिक का उधार मिल सकेगा लेकिन केंद्र ने इसे शर्तों के अधीन कर दिया है.
हालांकि, राज्यों की स्थिति इस हद तक खराब हो गई है कि उन्हें वेतन के भुगतान जैसी अपनी सबसे बुनियादी खर्च जरूरतों को पूरा करने के लिए बाजार से उधार लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है. तेलंगाना, केरल और ओडिशा जैसे कई राज्यों ने भी नकदी प्रवाह को देखते हुए कर्मचारियों और चुने हुए प्रतिनिधियों के वेतन और पेंशन भुगतान का एक हिस्सा टाल दिया है.
महाराष्ट्र भी कथित तौर पर एक गंभीर नकदी संकट का सामना कर रहा है और उसने बाजार से उधार लेने का सहारा लिया है.
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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी केंद्र सरकार से 5000 करोड़ रुपए की मांग की है ताकि वे सरकारी कर्मचारियों का वेतन दे सकें.
1 जून को एक नोट में एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज ने बताया कि 23 राज्यों ने 2019-20 में कर संग्रह में अपनी सबसे कम वृद्धि दर्ज की, और यह 2020-21 में और भी खराब होने की संभावना है, जिससे पूंजीगत खर्च पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. इसमें बताया गया है कि सेस के माध्यम से एकत्र किए गए केंद्रीय राजस्व के बढ़ते अनुपात के कारण राज्यों के कर संग्रह पर कैसे बुरा असर पड़ सकता है. केंद्र द्वारा लगाए गए उपकर विभाज्य पूल का हिस्सा नहीं हैं.
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