भारत की संविधान ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन डॉ. बी.आर. आंबेडकर अपनी रचना अछूत कौन थे और वे कैसे अछूत बने में लिखते हैं – ‘अब तक सारी विद्वता ब्राह्मणों के पास रही है. लेकिन दुर्भाग्य है कि आज तक एक भी ब्राह्मण वोल्टेयर जैसी भूमिका निभाने के लिए सामने नहीं आया, न भविष्य में ऐसा हो पाने की संभावना है. वोल्टेयर खुद कैथलिक चर्च की परंपरा में पले-बढ़े, लेकिन उनमें बौद्धिक ईमानदारी थी और वे चर्च के सिद्धातों के खिलाफ खड़े हो गए. ये ब्राह्मणों की विद्वता और मेधा पर बहुत बड़ा सवाल है कि उन्होंने एक भी वोल्टेयर क्यों पैदा नहीं किया.’
– देखिए भारत सरकार का प्रकाशन, बाबा साहेब आंबेडकर: रचनाएं और भाषण, खंड -7, पेज -240)
आखिर वोल्टेयर कौन थे और बाबा साहेब ये क्यों चाहते थे कि भारत का बुद्धिजीवी ब्राह्मण वर्ग अपने अंदर कोई वोल्टेयर जैसा व्यक्ति पैदा करे, जो वर्तमान व्यवस्था को चुनौती दे? प्रस्तुत लेख इसी सवाल का जवाब देने की कोशिश है और इस क्रम में हम ये भी जानेंगे कि वोल्टेयर को बौद्धिक जगत में इतनी बड़ी प्रतिष्ठा क्यों हासिल है.
वोल्टेयर (21 नवंबर 1694- 30 मई 1778) की गिनती यूरोप ही नहीं, बल्कि दुनिया के प्रसिद्ध विचारकों और सामाजिक क्रांतिकारियों में की जाती है. वे अद्भुत प्रतिभा के धनी लेखक थे. उन्होंने रुढ़ीवाद, कट्टरपंथ, धार्मिक कर्मकांड तथा पाखंड पर जबरदस्त प्रहार किये. उनकी शैली व्यंग्य और कटाक्ष की थी, जो सीधे चुभते थे. उनके कटाक्ष फ्रांसीसी समाज के पाखंड की पोल खोलते थे. इस वजह से उन्हें कुछ साल ब्रिटेन में निर्वासन में भी बिताने पड़े, जहां उन्हें ब्रिटिश ज्ञान परंपरा को जानने का मौका मिला.
कैथोलिक चर्च की सत्ता के खिलाफ बगावत
वोल्टेयर के समय फ्रांसीसी समाज और धर्म कई बुराइयों से ग्रसित थे. वे कैथोलिक समुदाय में पैदा हुए. किन्तु कैथोलिक धर्म के कर्मकांड और आडंबरों से वे हमेशा नाखुश रहे. उन्होंने इन कर्मकांडो और आडंबरों को दूर करने का बीड़ा उठाया. उसके विचारों ने पूरे फ्रांसीसी समाज को झकझोर डाला था. फ्रांस का शासक वर्ग उनके विचारों से इस तरह डरा हुआ था कि फ्रांस के राजा ने उनकी पुस्तकों पर प्रतिबंध लगा दिया. इसके बाबजूद वे लगातार लिखते रहे.
उस समय फ्रांसीसी समाज तीन वर्गों में बंटा हुआ था – पादरी वर्ग, सामंत वर्ग और साधारण वर्ग. पादरी वर्ग भ्रष्ट और चापलूस था, लेकिन वह समाज के हर अंग पर हावी था. पादरी और सामंत वर्ग को विशेषाधिकार मिले हुए थे, जबकि साधारण वर्ग जिसमे मजदूर, कारोबारी, शिल्पकार आदि सभी आते थे, पादरी वर्ग की कुटिलता और सामंत वर्ग की निष्ठुरता से पीड़ित था.
फ्रांसीसी समाज की सबसे बड़ी समस्या कुछ समूहों को प्राप्त विशेषाधिकार था. यह समाज की बीमारी बन गया था. कैथोलिकों का विश्वास था कि मनुष्य पापी ही पैदा होता है और ईश्वर की कृपा से ही उसे पाप से मुक्ति मिल सकती है. पाप मुक्ति का रास्ता चर्च बताता था. इस प्रकार धर्म के नाम पर चर्च अंधविश्वासों के द्वारा जनता को गुमराह करते थे और उनका शोषण करते थे.
वोल्टेयर का सबसे बड़ा योगदान ये था कि उन्होंने इस सर्वशक्तिशाली पादरी वर्ग की बौद्धिक सत्ता को अपने लेखन से चुनौती दी और तर्क के जरिए उनके विचारों का खंडन किया. वोल्टेयर विचारों की बहुलता के पक्के समर्थक थे. इस बारे मे उनका ये कथन कि – ‘हो सकता है मैं आपके विचारों से सहमत ना हो पाऊं, फिर भी आपके विचार प्रकट करने के अधिकार की रक्षा करूंगा’ आगे चलकर विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सूत्र वाक्य बन गया.
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फ्रांसीसी क्रांति (1789) में वोल्टेयर का योगदान
वोल्टेयर विचार परिवर्तन के द्वारा क्रांति में विश्वास रखते थे. वह तार्किक और वैज्ञानिक सोच पर बल देते थे. इसलिए वे सिकंदर और जूलियस सीज़र से भी ज्यादा महान आदमी आइजक न्यूटन को मानते थे. उस समय फ्रांस में सामंतवाद के बजाय स्वतंत्र व्यापारी वर्ग का उदय हो रहा था, जिसे लेकर वे काफी आशावान थे.
1789 की प्रसिद्ध फ्रांसीसी क्रांति में वोल्टेयर का बहुमूल्य योगदान है. फ्रांसीसी क्रांति ने पादरी वर्ग के अधिपत्य को समाप्त कर दिया और धर्म-सत्ता की नींव हिला दी. फ्रांसीसी क्रांति ने सामंतवाद को कमजोर कर दिया और जनता के गणतंत्र जैसी धारणा की शुरूआत की. इस क्रांति ने आस्था के ऊपर तर्क को वरीयता दी और यही आगे चलकर आधुनिक युग की विशेषता बन गया. यह क्रांति लोकतंत्र के आधार स्तम्भ – स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसी संकल्पनाओं पर आधारित थी. इस क्रांति ने विश्व को सेकुलरिज्म, रिपब्लिक और लोकतंत्र का रास्ता दिखाया.
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भारत में वोल्टेयर क्यों नहीं?
इस बारे में मैं अपनी ओर से कोई तर्क रखने की जगह बाबा साहेब के विचारों को ही आपके सामने रखना चाहूंगा. इसके पीछे बाबा साहब ने दो कारण बताए.
1. बाबा साहब लिखते हैं कि ‘ब्राह्मण विद्वान पढ़ा लिखा यानी Learned Man तो हो सकता है लेकिन वह मनीषी यानी Intellectual नहीं होता है. पढ़े-लिखे होने और मनीषी होने में फर्क है. इनमें से पहला व्यक्ति अपने वर्गीय और तबकाई हितों को लेकर सचेत होता है और उस स्वार्थ से बंधा होता है. वहीं मनीषी या इंटेलेक्चुअल एक सजग व्यक्ति होता है और वर्गीय हितों से ऊपर उठकर विचार कर सकता है. चूंकि ब्राह्मण विद्वता का अर्थ सिर्फ पढ़ा-लिखा होना है, इसलिए वे वोल्टेयर पैदा नहीं कर पाए.’
2. इसकी दूसरी वजह बताते हुए बाबा साहब लिखते हैं कि ‘इस सवाल का जवाब कुछ सवाल के जरिए दिया जा सकता है. जैसे- तुर्की के सुल्तान ने दुनिया से इस्लाम की सत्ता को खत्म क्यों नहीं किया? या पोप ने कैथोलिक मत का खंडन क्यों नहीं किया या ब्रिटिश सांसद ने नीली आंखों वाले सभी बच्चों को मारने का हुक्म क्यों नहीं दिया? सुल्तान या पोप या ब्रिटिश संसद ने जिन वजहों से ये काम नहीं किए उन्हीं वजहों से ब्राह्मणों ने अपने बीच में से वोल्टेयर पैदा नहीं होने दिया. ये स्वीकार किया जाना चाहिए कि किसी व्यक्ति का समूह का स्वार्थ उसकी बुद्धि और विचारों को संचालित करता है और उसकी सीमाएं भी तय करता है.
ब्राह्मणों को जो सत्ता और समाज में जो स्थान प्राप्त है, उसका स्रोत हिंदू सभ्यता है, जो उन्हें बाकी लोगों से श्रेष्ठ बताती है और नीचे के समूहों को इतना पंगु बना देती है कि वे ब्राह्मणों की श्रेष्ठता को कभी चुनौती न दे सकें. इसलिए ब्राह्मण चाहे वह परंपरावादी हो या प्रगतिशील, चाहे वह पुजारी हो या गृहस्थ, चाहे वह विद्वान हो या नहीं, वह ब्राह्मणों की श्रेष्ठता को बनाए रखना चाहेगा. ऐसे में ब्राह्मण क्यों चाहेंगे कि उनके बीच से कोई वोल्टेयर पैदा हो. ब्राह्मणों के बीच वोल्टेयर पैदा होने का अर्थ है ब्राह्मण श्रेष्ठता को स्थापित करने वाली सभ्यता को खतरे में डालना.’
इसके बावजूद बाबा साहेब की हमेशा कामना रही है कि ब्राह्मणों में समाज सुधारक पैदा हों, क्योंकि एनिहिलेशन ऑफ कास्ट किताब में वे मानते हैं कि वही समाज को दिशा दिखाने का काम करते हैं और जब तक वे समाज को बदलने के लिए आगे नहीं आएंगे, तब तक हिंदुओं में बदलाव मुमकिन नहीं है. एनिहिलेशन ऑफ कास्ट को लिखने के लगभग दस साल बाद द अनटचेबल्स यानी अछूत कौन थे लिखते हुए बाबा साहेब की निराशा साफ झलकती है क्योंकि अब वे समझ चुके थे कि ब्राह्मणों में वोल्टेयर क्यों पैदा नहीं हो पाएगा.
उनकी कल्पना का वाल्टेयर ब्राह्मण समुदाय आज भी पैदा नहीं कर पाया है.
(लेखक दिल्ली यूनिवर्सिटी में शिक्षक रहे हैं.यह लेखक के निजी विचार हैं.)