नई दिल्ली:15 वर्षीय ज्योति कुमारी जो गुरुग्राम से बिहार के दरभंगा तक अपने पिता को साइकिल से लेकर पहुंची हैं, के परिवारवालों का उस समय आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब कुछ समाचार पत्रों और चैनलों ने यह चला दिया कि उन्होंने साइकलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (सीएफआई) के प्रशिक्षण प्रस्ताव को ठुकरा दिया है.
उनकी बड़ी बहन, 21 वर्षीय पिंकी पासवान ने, दिप्रिंट को बताया कि रिपोर्ट्स में ज्योति के बारे में गलत लिखा गया है. वह तभी से नाराज़ है.
पिंकी ने टेलीफोन पर दिप्रिंट को बताया,’ एक पत्रकार ने गलत सूचना दी कि ज्योति साइकिल रेस में भाग नहीं लेना चाहती है.’ ‘ वह तो हमारी मां से कह रही थी कुछ भी हो जाए, देखना मैं इसमें भाग लूंगीं और जीत भी लूंगी. ‘
पिंकी ने बताया कि ज्योति सीएफआई का ऑफर मिलने के बाद से ही अभ्यास करना शुरू कर दिया है.
‘जिस दिन से उसने सुना है कि कंपीटिशन में भाग ले सकती है, वो रोज रात को नई साइकिल ही चला रही है. लड़की है तो अकेले बाहर नहीं भेज सकते. ऐसे में जीजाजी के साथ मिलकर रात को बाहर जाती है और साइकिल दौड़ाती है. बोलती है कि मैं तूफान की तरह साइकिल को दौड़ाउंगी.’
15 साल की ज्योति गुरुग्राम से लेकर बिहार के दरभंगा का लगभग 1200 किलोमीटर का सफर दिन में तपते हाईवे और रात को लाखों पुरुष मजदूरों के बीच साइकिल चला कर बिहार पहुंची हैं. इस बीच उन्हें ट्रक वालों से भी मदद मिली है.
आपन बिहार के बिटियाँ केहु से कम बाऽड़ी सऽन का? https://t.co/1Y737Yz0RR
— Lalu Prasad Yadav (@laluprasadrjd) May 25, 2020
ज्योति के साइकिलिंग के करतब – उसने अपने घायल पिता को घर लाने के लिए 1,200 किलोमीटर की दूरी तय की -19 तारीख को राष्ट्रीय मीडिया में ज्योति की ये जिंदा दिली की खबर आने के बाद से उनकी चर्चा अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में भी पहुंच गई. बीबीसी, द न्यूयॉर्क टाइम्स और यहां तक कि इवांका ट्रम्प ने भी उसकी सराहना की हालांकि, भारत में, कई लोगों ने संघर्षों का यह प्रतीक पाया कि प्रवासी श्रमिकों और उनके परिवारों को लॉकडाउन के दौरान सामना करना पड़ रहा है.
अमेरिकी राष्ट्रपति की बेटी इंवाका ट्रंप ने ज्योति की कहानी को शेयर करते हुए इसे खूबसूरत लिखा. लेकिन लोगों ने उसकी आलोचना करते हुए लिखा कि ये सरकारी तंत्र के फेल होने का नमूना है.
केंद्रीय खेल मंत्री किरण रिजिजू से लेकर कई नेताओं ने ज्योति को बहादुर बताते हुए उसकी मदद करने की पेशकश की. इसके बाद से ही कई सामाजिक संस्थाएं और राजनैतिक पार्टियां भी ज्योति की पढ़ाई लिखाई से लेकर उनकी शादी और नौकरी तक का खर्च उठाने के लिए तैयार हैं.
दरभंगा के एक अधिकारी नाम ना छापने की शर्त पर बताते हैं, ‘ज्योति ने साइकिल से पूरा रास्ता नापा या नहीं, इस बात का अब फैक्ट चैक तो नहीं कर सकते. लेकिन उसका एक क्षण में ये सोच लेना कि पिताजी को साइकिल पर बैठा कर गांव तक ले जाऊंगी, बहादुरी वाला काम तो है ही. ‘
आंगनवाड़ी में खाना बनाने वाली मां और ई रिक्शा चलाने वाले पिता की बहादुर बेटी
दरभंगा जिले से करीब 20 किलोमीटर दूर बसे सिरौली गांव के मोहन पासवान 1997 के आस-पास दिल्ली जैसे बड़े शहर में कमाने निकल गए थे. पिछले कुछ सालों से वो गुरुग्राम में ई-रिक्शा चलाते थे. उनकी पत्नी फूलो देवी पिछले आठ साल से आंगनवाड़ी में खाना बनाने का काम कर रही हैं. दोनों मिलकर 11-12 हजार रुपए कमा लेते थे. पांच बच्चों का पेट पाल रहे माता-पिता ज्योति को लेकर गर्व महसूस कर रहे हैं.
26 जनवरी को एक एक्सीडेंट में मोहन घायल हो गए थे, जिसके बाद उनकी पत्नी, दामाद और ज्योति तीस जनवरी को ट्रेन से गुरुग्राम पहुंचे. फरवरी महीने में पत्नी और दामाद तो वापस आ गए, लेकिन ज्योति देखभाल के लिए अपने पिता के साथ ही रह गईं. मोहन कहते हैं, ‘पहली बार ज्योति दिल्ली जैसे बड़े शहर में आई थी. लॉकडाउन लग गया और हम वहीं फंसे रह गए. हमने सोचा था कि लॉकडाउन खत्म होगा तब घर जाएंगे लेकिन मकान मालिक ने किराया मांगना शुरू कर दिया.’ ज्योति और उनके पिता बताते हैं कि वो 7 मई को गुरुग्राम से निकले थे और 15 मई को दरभंगा में अपने गांव पहुंचे. साथ ही वो जोड़ते हैं कि रास्ते में एक ट्रक वाले ने उन्हें लिफ्ट दी थी लेकिन बाद में उतार दिया. ज्यादातर ट्रक वाले हमसे तीन चार हजार रुपए मांग रहे थे.
वो कहते हैं, ‘ज्योति ने जन-धन खाते में आए हजार रुपयों में से पांच सौ से एक पुरानी साइकिल खरीद ली थी. रास्ते में हमने देखा कि हजारों लोग पैदल जा रहे हैं. हमारे पास कम से कम एक साइकिल तो है. हरियाणा से आ रहे लोगों ने बताया कि अब तो पुरानी साइकिल भी कहीं से नहीं मिल रही.”
साइकिल से दरभंगा आने के ज्योति के फैसले को लेकर पिंकी कहती हैं, ‘जब उसने कहा कि वो ऐसे आएगी तो हमने मना किया कि लड़की है और जमाना भी खराब है. रात बेरात आदमियों के बीच से कैसे आएगी. लेकिन वो नहीं मानी. हड़बड़ी में गुरुग्राम से निकल पड़ी. चलने से पहले एक बार फोन किया था.’
आठ दिनों तक बैचेन रहे परिवार को लेकर पिंकी बताती हैं, ‘वो रास्ते में मिलने वाले लोगों के फोन से हमें इत्तला कर देती थी लेकिन जिस दिन उसका फोन नहीं आता था उस दिन हम रातभर टेंशन में रहते थे.’
दरभंगा के डीएम त्यागराजन एस एम इस पूरे मामले को लेकर दिप्रिंट को बताते हैं, ‘ज्योति का नौवीं कक्षा में दाख़िला दिला दिया गया है. जब हमने ज्योति से पूछा था, तो उन्होंने सबसे पहले आगे पढ़ाई करने और दूसरा साइकिल रेस में हिस्सा लेने की इच्छा जाहिर की थी. उनकी दोनों इच्छाओं को प्रशासन पूरा करवाएगा.’ ज्योति के मुताबिक साइकिल उसी साल चलानी सीख ली थी.
मोहन के परिवार से हुई बातचीत में वो बताते हैं कि उनके पास केंद्र सरकार की कई योजनाएं पहुंच रही हैं. जैसे मोदी सरकार की आवास और उज्जवला योजना व जन-धन योजना.
बहन की साइकिल से सीखा था चलाना
मोहन पासवान गांव के ही सरकारी स्कूल में आठ दिन क्वांरटाइन में रखे गए थे. कल शाम को वो अपने घर लौटे हैं. ज्योति के होम क्वारंटाइन की बात कही जा रही है. हालांकि, सोशल मीडिया पर फैली नेताओं द्वारा ज्योति को इनामी राशि बांटने की तस्वीरें होम क्वारंटाइन के मसले पर सवाल खड़े कर रही हैं.
पिंकी बताती हैं कि उनके घर पर आने वाले लोगों की संख्या कम ही नहीं हो रही. ‘हम लोगों ने जिन लोगों से मिलने के कभी सपने देखे होंगे, वो लोग आज हमारे घर आ रहे है. पहले हमारे पास टीवी नहीं था. लेकिन कुछ साल पहले मां ने लोन से छोटा टीवी खरीदा. भाई-बहन टीवी पर ज्योति की कहानी देखकर भावुक होते रहते हैं.’
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पिंकी और ज्योति दोनों ही मैट्रिक की पढ़ाई पूरी नहीं कर सकी थीं. नीतीश सरकार की अति महत्वाकांक्षी योजना ‘मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना’ के तहत मिली धनराशि से पिंकी को एक साइकिल मिली थी. उसी साइकिल से ज्योति ने चलाना सीखा था. आज उनके घर में चार नई और एक दिल्ली वाली पुरानी साइकिल रखी है.
#Bihar daughter #jyotikumari has set an example by paddling all the way from #Delhi carrying her father on a bicycle, covering an unimaginable 1200 kms. Yesterday, my brother @Pranavsuper30 met her. If she would like to prepare for #IIT in future she is welcome to the #super30 pic.twitter.com/PMhsMvhDwn
— Anand Kumar (@teacheranand) May 25, 2020
ज्योति साइकिल से अपने बीमार पिता को घर ले आएगी, इस बात का यकीन उनकी मां को भी नहीं हो रहा. दिप्रिंट से हुए बातचीत में वो कहती हैं, ‘सोचा था नहीं था कि घर तक ले आएगी. मगर जब आई तो गांव का गांव उसे देखने के लिए इकट्ठा हो गया था. वो रात के नौ बजे गांव पहुंची थी.’
ज्योति को ना अब पानी पीने की फुर्सत है और ना ही खाना खाने की. कल रात देर खाना खाते वक्त वो अपनी मां से शिकायत करती हैं, ‘कम खाना खाऊंगी तो रेस कैसे जीतूंगी. अब तो रेस जीतनी ही है.’
चारों ओर से मिल रहे सहयोग को लेकर वो कहती हैं, ‘मैंने काम ही ऐसा किया है तो तारीफ तो होनी ही थी.’ ज्योति की पढ़ाई पिताजी के बीमार पड़ने की वजह से छूट गई थी लेकिन नौवीं कक्षा में दाखिले के बाद वो खुश हैं कि वो आगे की पढ़ाई जारी रख सकेंगी.