वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संकेत दे दिए हैं कि वे सारे उपलब्ध विकल्पों का उपयोग वित्त वर्ष के पहले दो महीनों में ही नहीं कर डालेंगी, क्योंकि अभी कई अनिश्चितताएं बनी हुई हैं. उनकी यह रणनीति आलोकप्रिय हो सकती है मगर यह विवेकसम्मत लगती है.
तीन बड़ी अनिश्चितताएं स्पष्ट हैं— लॉकडाउन खत्म किए जाने के बाद कोविड-19 के फैलाव, अर्थव्यवस्था पर इस फैलाव के असर और सरकारी राजस्व पर अर्थव्यवस्था में मंदी के असर को लेकर अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता.
लॉकडाउन के कारण कोविड-19 का फैलाव नियंत्रित था लेकिन संकट अभी खत्म नहीं हुआ है. इसका इलाज अभी नहीं ढूंढा जा सका है. तमाम गंभीर प्रयासों के बावजूद वैक्सीन तैयार करने और उसे सबके लिए उपलब्ध कराने में समय लगेगा. तब तक, जबकि देश को खोला जा रहा है, वायरस पर लगाम लगाने की रणनीति अभी तैयार की जा रही है.
अब तक, हालांकि संक्रमण के मामलों और उससे मौतों की संख्या बढ़ी है, वे उतनी ज्यादा नहीं हैं जितनी लॉकडाउन के बिना बढ़ जाने की आशंका की गई थी. अब जबकि दफ्तर, दुकानें, बसें, विमान सेवाएं, सब शुरू हो जाएंगी तब वायरस फिर फैलने लगेगा. बड़े जोखिम वाले पेशों के कर्मचारियों की टेस्टिंग, 55-60 से ऊपर की उम्र के बुज़ुर्गों तथा दूसरे रोगों से ग्रस्त लोगों को अलग-थलग करना, सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन करना मामलों और मौतों की संख्या को काबू में रखने के लिए बेहद अहम है. इनका जितनी जल्दी पालन किया जाएगा उतना बेहतर होगा.
अर्थव्यवस्था पर असर
अर्थव्यवस्था पर असर का अंदाजा लगाना मुश्किल है. इस तरह का ग्लोबल लॉकडाउन पहली बार हुआ है और अर्थशास्त्री लोग आर्थिक वृद्धि की भविष्यवाणी के लिए मॉडल तैयार करने में जुटे हैं. अधिकतर मॉडल अर्थव्यवस्था की पिछली चालों के आधार पर बनाए जाते हैं लेकिन मौजूदा हालात तो एकदम अभूतपूर्व हैं. लॉकडाउन की पहली घोषणा के समय जो अर्थशास्त्री वृद्धि की पॉज़िटिव रेट की भविष्यवाणी कर रहे थे, वे अब सिकुड़न की बात कर रहे हैं. भविष्यवाणियों को संशोधित करके उलटा जा रहा है.
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सीधी-सी बात है कि करीब दो महीने से उत्पादन बंद रहने के कारण जीडीपी में कमी आएगी. मोटी गणना के लिए आईआईपी पर नज़र डालिए, औद्योगिक उत्पादन में इस साल मार्च में 16 प्रतिशत की कमी आई. लॉकडाउन 24 मार्च को घोषित किया गया यानि कारखाने उस महीने 20 प्रतिशत दिन बंद रहे. पूरा अप्रैल लॉकडाउन रहा. मार्च के आंकड़ों से यही संकेत मिलता है कि हम 70 से 80 प्रतिशत तक की गंभीर सिकुड़न का सामना कर सकते हैं. मई में भी उत्पादन लगभग पूरे महीने बंद रहा.
उत्पादन को लेकर सात चिंताएं
इसके अलावा, उत्पादन को वापस पूरी तरह शुरू होने में सात मुश्किलें हैं.
पहली यह कि सप्लाई चेन टूट गई है. अगर एक पुर्जा भी उपलब्ध नहीं है, या उसका उत्पादन अथवा आयात नहीं हुआ है तो यह मैनुफैक्चरिंग को पूरी तरह शुरू करने में बाधक होगा. घनी आबादी वाले शहरी इलाके रेड ज़ोन रहे हैं और लॉकडाउन के तीसरे चरण में बंद रहे हैं. इसके कारण कई सप्लाई चेन बिखर गए हैं.
दूसरी मुश्किल यह है कि हो सकता है कि सभी कामगार वापस न लौटें. खबरें हैं कि जिन जगहों पर कोई रोक नहीं थी वहां भी लॉकडाउन के दूसरे चरण की समाप्ति के बाद कामगार नहीं लौटे. इसके पीछे कुछ तो डर का हाथ है, और कुछ सफर में दिक्कतों, घरेलू जिम्मेदारियों, घर में वृद्ध माता-पिता का होना भी कारण बना. भारत में 30 प्रतिशत घरों में लोग अपने बुजुर्गों के साथ रहते हैं या परिवार में एक-न-एक सदस्य 65 से ज्यादा उम्र का होता है. लोगों को बार-बार हिदायत दी जाती रही है कि वे बुजुर्गों को अलग रखें, लेकिन छोटे-से घर में यह मुमकिन नहीं हो पाता.
इसके अलावा प्रवासियों की समस्या है. अपने परिवार के साथ न रह पाने के कारण कई कामगार घर लौट रहे हैं. उन्हें काम पर वापस लौटने में समय लगेगा और वे सारे शायद ही लौटें.
तीसरे, उधार का संकट रहेगा. सरकार ने तरलता आसान की है और बैंक अपने ग्राहकों को उधार दे सकते हैं लेकिन छोटी फर्मों का कारोबार बैंकों के नहीं बल्कि उधार के अनौपचारिक स्रोतों पर चलता है. ये स्रोत या तो उनके सप्लायर, या खरीदार होते हैं जो उन्हें कच्चे माल या वेतन भुगतान के लिए कामचलाऊ पूंजी देते हैं. अनुमान है कि भारत में ऐसी 6.4 करोड़ फ़र्में हैं. वित्त मंत्री ने जिस ‘एमएसएमई’ पैकेज की घोषणा की है उससे ऐसी 45 लाख फार्मों को राहत मिलने की उम्मीद है. बाकी करीब 6 करोड़ फार्मों को उत्पादन शुरू करने के लिए पर्याप्त उधार नहीं उपलब्ध हो पाएगा.
चौथी मुश्किल यह है कि यात्राओं पर अभी रोक जारी है और यह काफी महंगा हो जाएगा. कोविड-19 का डर जब तक रहेगा तब तक उड्डयन, पर्यटन, आतिथ्य आदि सेक्टरों पर इसका असर अभी कुछ तिमाहियों तक बना रहेगा.
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पांचवीं मुश्किल यह है कि उपभोग को गति पकड़ने में अभी समय लगेगा. आमदनी बिखर गई है. आगे कमाई को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है. अब तक लोग ख़रीदारी के लिए घर से बाहर नहीं निकल रहे थे इसलिए बिक्री बंद थी. अब घर से बाहर निकलने के बावजूद वे खर्चों को टालेंगे.
छठी बात यह कि अप्रैल में निर्यात में 60.3 प्रतिशत की कमी आ गई. जब तक विश्व अर्थव्यवस्था गति नहीं पकड़ती तब तक ऑर्डर भी ज़ोर नहीं पकड़ेंगे. निर्यात ग्लोबल मांग और विश्व व्यापार पर निर्भर करता है. इस वर्ष इस पर बुरी मार पड़ सकती है.
सातवीं मुश्किल यह है कि निवेश पर तो कोविड-19 संकट के पहले से ही संकट छाया है. इसमें जान डालना भारी मुश्किल का काम है. बढ़ती अनिश्चितता, उधार और श्रम को लेकर संकट तथा पाबंदियों के कारण निवेश का परिदृश्य बुरा ही रहने वाला है. इसके चलते वृद्धि में भी गिरावट आ सकती है.
सरकारी राजस्व पर असर
अंत में, तीसरी बड़ी अनिश्चितता सरकारी राजस्व पर आर्थिक मंदी के प्रभाव को लेकर है. जैसा कि मैं पहले भी कह चुकी हूं, करों से होने वाली आमदनी घटेगी और इसके चलते सरकार के लिए वित्तीय गुंजाइश सिकुड़ जाएगी.
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आर्थिक पैकेज में सरकार ने अब तक लोगों को करों के भुगतान देर से करने की छूट दी है. लेकिन अर्थव्यवस्था गति नहीं पकड़ती तो सरकार को जीएसटी समेत सभी करों की दरों में कटौती करनी पड़ेगी ताकि लोगों के हाथ में पैसे आएं. इससे करों से होने वाली आमदनी पर और ज्यादा असर पड़ेगा.
इतनी सारी अनिश्चितताओं के साथ वित्त मंत्री ने जो आर्थिक पैकेज दिया उससे तरलता को बढ़ाने, सुधारों को प्रोत्साहित करने और कृषि आय में वृद्धि करने की कोशिश की गई है. बेशक, और भी बहुत कुछ किया जाना चाहिए था. लेकिन जब अनिश्चितताओं से भरा एक पूरा साल सामने पड़ा हो तब पहले दो महीने में ही सारे तीर न चला देना ही बुद्धिमानी है.
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