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Sunday, 3 November, 2024
होमराजनीतिकोविड संकट का इस्तेमाल कर येदियुरप्पा ने न केवल विपक्ष बल्कि भाजपा के आलोचकों को भी चुप करा दिया

कोविड संकट का इस्तेमाल कर येदियुरप्पा ने न केवल विपक्ष बल्कि भाजपा के आलोचकों को भी चुप करा दिया

सिद्धारमैया ने दिप्रिंट को बताया, 'येदियुरप्पा उन कुछ नेताओं में से हैं जो कर्नाटक को अच्छे से समझते हैं. वो काफी दबाव का सामना कर रहे हैं लेकिन उन्हें इसके लिए ताकत मिले मैं ये आशा करता हूं.'

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बंगलुरु: कोरोनावायरस संकट ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को अपनी पार्टी में उनके विरोधियों को जिनमें दिल्ली के भी लोग हैं, उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया है.

भाजपा आलाकमान राज्य में 78 वर्षीय मुख्यमंत्री के नेतृत्व को बदलने की कोशिश में था जो कि राज्य में पार्टी का सबसे बड़ा नेता है और जो अपने खुले मिजाज के लिए जाना जाता है.

लेकिन कोविड संकट के दौरान उनके प्रबंधन ने भाजपा में कईयों को चौंका दिया. न केवल उनके प्रशासन की स्वास्थ्य संकट पर प्रतिक्रिया ने बल्कि आर्थिक संकट से निकलने के लिए बिजनेस और उद्योगों को साथ लाकर काम करने के प्रयासों ने भी.

राज्य में कोविड के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई के वे अगुआ हैं. वो सीधे तौर पर नौकरशाही के साथ मिलकर इस संकट का प्रबंधन कर रहे हैं.

बुधवार तक कर्नाटक में 1379 मामले आए हैं वहीं 40 की मौत हुई है. ये मामले महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु और दिल्ली जैसे राज्यों के मुकाबले काफी कम हैं.

संकटमोचक

कोविड संकट के आने तक मुख्यमंत्री पिछले कई महीनों से, जब से ‘ऑपरेशन कमल’ के जरिए पिछली कांग्रेस सरकार को गिराया गया और 26 जुलाई को उन्होंने शपथ ली, तब से वो घिरे हुए हैं.

उन्हें भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के नेतृत्व में हो रही आंतरिक कलह का सामना करना पड़ रहा था जिन्हें मंत्री नहीं बनाया गया था. कांग्रेस और जेडीएस के 22 विधायक जो भाजपा में शामिल हुए थे और येदियुरप्पा पर आरोप लग रहे थे के उनका परिवार ही सरकार चला रहा है.


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केंद्रीय नेतृत्व से कैबिनेट विस्तार की मंजूरी भी येदियुरप्पा को जल्दी नहीं मिली. नतीजतन करीब 20 दिनों तक मुख्यमंत्री अकेले ही सरकार चलाते रहे. उस दौरान वो अकेले ही उत्तरी कर्नाटक में आए बाढ़ का सामना कर रहे थे.

लेकिन जब से कोविड संकट आया है तब से मुख्यमंत्री ने कुछ ठोस फैसले लिए हैं जिसने उनकी छवि बदलने में भी मदद की है.

जब देश में कोरोनावायरस से मरने वाले पहले व्यक्ति की रिपोर्ट कलबुर्गी से आई तो येदियुरप्पा ने 15 मार्च को पूरे जिले को बंद करने के आदेश दे दिए और निर्देश दिए कि 76 वर्षीय मरीज के साथ जो भी संपर्क में आया था उसका पता लगाकर जांच की जाए.

कलबुर्गी के डीसी ऑफिस में काम करने वाले डिस्ट्रिक्ट ऑफिशियल ने कहा, ‘पहली चीज जो हमारे प्रशासन को कही गई वो ये थी कि मरीज के संपर्क में जो भी आया था उसका पता लगाकर जांच की जाए. इस तरह की कांटेक्ट ट्रेसिंग ने जिले में वायरस के फैलाव को रोका.’

शुरुआत में कर्फ्यू में लोगों की तरफ से गतिरोध आ रहा था लेकिन बाद में उन्होंने देखा कि ऐसा करने से पॉजिटिव मामलों में कमी आई है.

कर्नाटक ने 25 मार्च को हुए देशव्यापी लॉकडाउन से तीन दिन पहले ही यानि की 22 मार्च को नौ जिलों को बंद कर दिया था. जिनमें बंगलुरु, बंगलुरु ग्रामीण, मैसूर, कोडागू, दक्षिण कन्नडा (मंगलुरु), धारवाड़, कलबुर्गी और चिकबल्लापुर शामिल हैं.

राज्य सरकार ने अपनी सीमाओं को भी सील कर दिया था जिसमें विवादित केरल सीमा भी है, जिसमें बाहर के राज्यों से इलाज कराने वाले लोगों को मना कर दिया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इसे बदला गया जिसमें कहा गया था कि जिसे कोविड नहीं है उन्हें तत्काल मदद दी जाए.

कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री अश्वथ नारायण ने दिप्रिंट को बताया, ‘केरल-कर्नाटक सीमा को एक कारण से सील कर दिया गया था. यह सुनिश्चित करना था कि सामुदायिक स्थानांतरण का कोई अवसर नहीं होगा. सीएम का निर्णय लोगों की भलाई के लिए था. इसे दूसरों ने गलत माना लेकिन इसने हमें कई लोगों की जान बचाने में मदद की है.’

मुख्यमंत्री ने टास्क फोर्स का भी गठन किया, जिसमें नारायण हेल्थ के डॉ देवी शेट्टी और बायोकॉन के डॉ किरण मजूमदार-शॉ शामिल थे, और लॉकडाउन को संभालने के लिए नियमित रूप से उनके साथ बैठकें कीं.

महामारी के बीच में, येदियुरप्पा ने भी एक मजबूत संदेश दिया, यह कहते हुए कि मुस्लिम समुदाय को बीमार बोलने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी और उन्हें तबलीगी जमात मुद्दे के दौरान वायरस के प्रसार से जोड़ा जाएगा.

जबकि उनके बयान की खूब सराहना हुई, यहां तक ​​कि विपक्षी कांग्रेस और जद (एस) से भी. कई परेशान बीजेपी समर्थकों ने #WeLostHopeBSY नामक हैशटैग के साथ उनके खिलाफ सोशल मीडिया अभियान शुरू किया.

लेकिन मुख्यमंत्री ने पीछे हटने से इनकार कर दिया. उन्होंने दिप्रिंट को बताया था, ‘मैं अपने शब्दों के साथ हूं. बहुत सारे लोगों के बजाय, 100 में से 99 लोगों ने इस मुद्दे पर मेरे द्वारा लिए गए स्टैंड को ठीक बताया. कुछ लोगों के मुद्दे हो सकते हैं. यहां तक ​​कि मेरी पार्टी के सदस्यों ने भी खराब बयान दिए. मैंने उन्हें सख्त चेतावनी दी है और उनके खिलाफ भी कार्रवाई शुरू करूंगा.’

आंतरिक उठापटक को संभालना

पूरे संकट के दौरान येदियुरप्पा ने अपनी कैबिनेट के भीतर चल रही उठापटक को भी संभाला है.

उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों स्वास्थ्य मंत्री बी श्रीरामुलु और चिकित्सा शिक्षा मंत्री डॉ के सुधाकर के बीच चल रहे गतिरोध ने आलोचकों को यह बताने के लिए बारूद का काम किया कि यह येदियुरप्पा के नियंत्रण में नहीं था.


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दोनों मंत्री लगातार कोविड-19 के आंकड़ों को सोशल मीडिया पर अपडेट करते रहे और कभी-कभी तो आंकड़े विरोधाभासी थे.

येदियुरप्पा ने तुरंत महसूस कर लिया कि इससे उनकी छवि खराब हो रही है. उन्होंने भाजपा के वफादार और शिक्षा मंत्री सुरेश कुमार को कोविड-19 प्रवक्ता नियुक्त कर दिया.

उन्होंने सुधाकर को बंगलुरु में कोरोनावायरस की गतिविधि को देखने का निर्देश दिया और श्रीरामुलू को राज्य भर की गतिविधियों को देखने का काम सौंपा. भूमिका ऐसी दी गई कि वे कभी आपस में नहीं टकराएंगे.

जब 17 अप्रैल को आईटी उद्योग प्रमुखों के साथ बैठक के बाद उप मुख्यमंत्री अश्वथ नारायण ने घोषणा की कि 50 प्रतिशत कर्मचारी काम पर लौट सकते हैं, तो येदियुरप्पा ने कुछ ही घंटों में आदेश को रद्द कर दिया और घोषणा की कि केवल 33 प्रतिशत ही काम पर लौटेंगे होंगे.

राजनीतिक विश्लेषक संदीप शास्त्री ने दिप्रिंट को बताया कि कोविड-19 ने येदियुरप्पा की पकड़ को मजबूत किया है.

शास्त्री ने कहा, ‘कर्नाटक में ये संदेश गया है कि संकट को ठीक से संभाला गया है. येदियुरप्पा ने नौकरशाही को स्वतंत्र होकर काम करने की इजाजत दी. समग्रता से देखें तो कर्नाटक ऐसे राज्य के रुप में सामने आया है जिसने इस संकट को किसी भी दूसरे राज्य के मुकाबले सबसे सही ढंग से संभाला है और इसका श्रेय येदियुरप्पा को जाता है.’

शास्त्री का यह भी मानना ​​है कि कोविड-19 संकट ने मुख्यमंत्री को राजनीतिक रूप से मदद की है.

उन्होंने कहा, ‘कोविड संकट ने विरोधियों और असंतुष्ट लोगों को कोई मौका ही नहीं दिया कि वो सीएम के लिए मुसीबत खड़ी कर पाएं. इससे उन्हें मदद मिली. तबलीगी जमात पर उनके फैसले ने विपक्षियों को भी सकते में डाल दिया.’

महामारी में अर्थशास्त्र

येदियुरप्पा महामारी के दौरान राज्य की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के अपने प्रयासों में जुट गए. राज्य भारी मात्रा में नकदी से भरा है और मुख्यमंत्री ने केंद्र से कई बार अपील की थी कि वे ग्रीन जोन में आर्थिक गतिविधियों की अनुमति दें.

येदियुरप्पा उन पहले कुछ मुख्यमंत्रियों में से थे जिन्होंने आर्थिक गतिविधियों जैसे कि निर्माण कार्य और उद्योगों को खोलने की अनुमति मांगी थी. उन्हों राज्य में शराब की दुकानें भी खोलीं क्योंकि राजस्व का सबसे बड़ा स्त्रोत एक्सायज ड्यूटी है.

मुख्यमंत्री ने जापान, कोरिया, फ्रांस, जर्मनी अमेरिका और ताइवान जैसे देशों के प्रतिनिधियों से मिलकर एक टास्क फोर्स का गठन किया, जो विशेष रूप से कर्नाटक में निवेश करने के लिए आकर्षित कर रहा है वो भी उस समय जब कई कंपनियों चीन से बाहर निकलने पर विचार कर रही है.


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लेकिन उनके द्वार संकट को संभालना आलोचना से नहीं बच पाया. 6 मई को प्रवासी मजदूरों के लिए चल रही ट्रेनों को रोकने पर उनकी खूब आलोचना हुई थी. इससे एक दिन पहले ही उन्होंने सीआरईडीएआई के प्रतिनिधियों से मुलाकात की थी जो कि एक रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन है.

मामले को बढ़ता देख मुख्यमंत्री ने अपने फैसलों को वापस ले लिया और प्रवासी मजदूरों के लिए चलने वाली ट्रेनों को मंजूरी दे दी.

आलोचक और भी कई चीजों को लेकर येदियुरप्पा की आलोचना कर रहे हैं.

लेकिन मुख्यमंत्री ने संकेत दिया कि फ्लिप-फ्लॉप उनकी शासन शैली का एक हिस्सा है. उन्होंने दिप्रिंट को बताया था, ‘मैं यहां लोगों की सेवा करने के लिए हूं. यदि मैं एक निर्णय लेता हूं जो उन्हें चोट पहुंचाती है तो एक नेता के रूप में मुझे उनके जीवन को आसान बनाने के लिए उसे वापस लेना चाहिए.’

मोटे तौर पर देखें तो मुख्यमंत्री की सराहना हो रही है जिसमें विपक्षी नेता और पूर्व कांग्रेस सीएम सिद्धारमैया भी शामिल हैं.

सिद्धारमैया ने दिप्रिंट को बताया, ‘येदियुरप्पा उन कुछ नेताओं में से हैं जो कर्नाटक को अच्छे से समझते हैं. वो काफी दबाव का सामना कर रहे हैं लेकिन उन्हें इसके लिए ताकत मिले मैं ये आशा करता हूं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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