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Thursday, 21 November, 2024
होमदेशपद के दुरुपयोग मामले में छत्तीसगढ़ के पूर्व डीजीपी के खिलाफ दर्ज हुई एफआईआर, फोन टैपिंग मामले में हैं निलंबित

पद के दुरुपयोग मामले में छत्तीसगढ़ के पूर्व डीजीपी के खिलाफ दर्ज हुई एफआईआर, फोन टैपिंग मामले में हैं निलंबित

एफआईआर में कहा गया है कि गुप्ता ने सरकारी सेवा में रहते हुए अपने पद का दुरुपयोग कर मिकी मेमोरियल ट्रस्ट को फायदा पहुंचाने का काम किया है.

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रायपुर: छत्तीसगढ़ राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण (ईओडब्ल्यू) ने निलंबित पूर्व डीजीपी मुकेश गुप्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. उन पर रायपुर स्थित मिकी मेमोरियल ट्रस्ट के माध्यम से पद के दुरुपयोग और सरकारी फंड का निजी इस्तेमाल करने के आरोप में यह एफआईआर दर्ज की गई है. गुप्ता के अलावा उनके पिता और ट्रस्ट के प्रधान ट्रस्टी जयदेव गुप्ता, एक अन्य ट्रस्टी दीपशिखा अग्रवाल के खिलाफ भी अपराध दर्ज किया गया है.

गुप्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी), 406 (विश्वास का आपराधिक हनन), 120(बी) (आपराधिक षडयंत्र में शामिल होना) एवं भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 7(ग) के तहत किए गए एफआईआर दर्ज की गई हैं, जिसमें  उनपर सरकारी सेवा में रहते हुए अपने पद का दुरुपयोग कर मिकी मेमोरियल ट्रस्ट को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया गया है.

ईओडब्ल्यू के अनुसार, ‘गुप्ता की भूमिका विधानसभा रोड, रायपुर में ट्रस्ट के पैसे से भूमि खरीदकर एमजीएमआई हॉस्पिटल निर्माण में रही. इस भवन निर्माण में विभिन्न नियमों व नगरपालिका अधिनियम की धज्जियां उड़ायी गईं.’

ब्यूरो ने यह भी आरोप लगाया है, ‘एमजीएमआई इंस्टीट्यूट के भवन निर्माण में प्रधान ट्रस्टी द्वारा रायपुर नगर निगम के समक्ष झूठे शपथ पत्र और दस्तावेज जमा किये गये और शासन से तथ्य छुपाकर अनुशंसा ली गई. साथ ही भवन के पूर्ण निर्माण से पहले ही ट्रस्ट द्वारा 2004 में इंस्टीट्यूट का संचालन कर दिया गया.’

ब्यूरों ने गुप्ता पर आरोप लगाते हुए आगे यह भी कहा है कि इसके अलावा एमजीएम नेत्र संस्था को एसबीआई बैरन बाजार रायपुर में मोर्टगेज कर चिकित्सा उपकरण खरीदने के लिये ट्रस्ट द्वारा 3 करोड़ रुपए का टर्म लोन तथा 10 लाख रुपये का शोडिट लोन लिया गया.


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लेकिन, 2005 में ट्रस्ट का लोन अकाउंट अनियमित हो गया.

ब्यूरो के अधिकारियों का कहना है कि लोन की प्रक्रिया में गुप्ता द्वारा बिना किसी अधिकार के बैंक में हस्तक्षेप किया गया और वे एमजीएम के संचालन में भी मुख्य कर्ता-धर्ता के रूप में शामिल रहे.

ईओडब्ल्यू ने अपने आरोप में यह भी कहा है कि मुकेश गुप्ता द्वारा, ट्रस्ट का लोन अकाउंट अनियमित और एनपीए होने पर कई बार बैंक के अधिकारियों को आश्वस्त किया गया कि ट्रस्ट की आर्थिक स्थिति शीघ्र सुधर जाएगी और बैंक का कर्ज चुका दिया जायेगा लेकिन बैंक को समय पर न तो लोन का ब्याज मिला और न ही उसकी किश्त.

2005-06 में जब ट्रस्ट एनपीए के दौर से गुजर रहा था तब प्रधान ट्रस्टी जयदेव गुप्ता, एमजीएमआई की डायरेक्टर दीपशिखा अग्रवाल के साथ मुकेश गुप्ता ने एक योजना के तहत राज्य सरकार से रियायत दर पर चिकित्सीय सेवा के नाम पर 3 करोड़ रुपये का अनुदान लिया था.  ब्यूरो के अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया, ‘जयदेव गुप्ता, अग्रवाल और मुकेश गुप्ता ने अपनी योजना के अनुसार जनता के 3 करोड़ रुपये का उपयोग बैंक का कर्ज पाटने के लिये किया.’


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ईओडब्ल्यू ने एफआईआर में गुप्ता पर बैंक के अधिकारियों को पद का प्रभाव दिखाकर ट्रस्ट की कुर्की की कार्यवाही को भी रुकवाने का आरोप लगाया गया है. इसके अलावा मुकेश गुप्ता पर यह भी आरोप है कि पूर्व डीजीपी अपने पद के प्रभाव से ट्रस्ट का कर्ज सेटलमेंट प्रकरण 2007 में अस्वीकृत होने पर भी बैंक के अधिकारियों पर दबाव बनाते रहे. और समझौता प्रकरण प्रक्रिया को बहाल कराया साथ ही उसे विशेष लोन सेटलमेंट की श्रेणी में रखकर दोबारा समझौता कराया. इससे पूरी प्रक्रिया से बैंक को 24 लाख रुपए का नुकसान हुआ.

ईओडब्ल्यू के अधिकारियों का कहना है, ‘ट्रस्ट में जयदेव गुप्ता प्रधान ट्रस्टी के रूप में औपचारिकता मात्र के लिये थे, वास्तविक संचालन का काम मुकेश गुप्ता ही देखते थे.’

ईओडब्ल्यू के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया, ‘गुप्ता के खिलाफ कार्यवाई दिल्ली के रहने वाले मानिक मेहता की शिकायत पर की गई थी, जांच के बाद आरोपों को सही पाए जाने पर उनपर एफआईआर दर्ज की गई है.

गौरतलब है की गुप्ता छत्तीसगढ़ नान घोटाले में फ़ोन टैपिंग के मामले में सेवा से निलंबित चल रहें हैं.

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