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Sunday, 24 November, 2024
होममत-विमतपालघर के साधुओं की हत्या पर जितना गुस्सा भाजपा को आया वैसा हर बार नहीं आता, भगवा के भी 50 रंग हैं

पालघर के साधुओं की हत्या पर जितना गुस्सा भाजपा को आया वैसा हर बार नहीं आता, भगवा के भी 50 रंग हैं

कोरोना काल में साफ हुई नदियों का श्रेय भी भगवा पार्टी आसानी ने लूट रही है और कोई सवाल नहीं पूछ रहा.

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बाबा नागनाथ, गोकुलानंद, निगमानंद, स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद. ये उन भगवाधारी साधुओं के नाम हैं, जो गंगा की लड़ाई लड़ते हुए मारे गए या मार डाले गए. आप में से ज्यादातर लोगों ने ये नाम नहीं सुने होंगे, इंडिया वांट्स टू नो कहने वाले पत्रकारों ने भी ये नाम नहीं सुने होंगे, क्योंकि इनका भगवा नागपुर के भगवे से मेल नहीं खाता. गंगा के लिए लड़ने वाले साधुओं का भगवा उस ताकतवर जूना अखाड़े के भगवे से भी मेल नहीं खाता, जिसके दो साधुओं को पिछले दिनों पालघर में मारा डाला गया. जूना अखाड़े की ताकत का बखान चंद लाइनों में नहीं हो सकता, फिर भी यह जानलेना जरूरी है कि भारत के 13 प्रमुख अखाड़ों में सबसे बड़ा और सर्वाधिक अनुयायियों वाला अखाड़ा है जूना.

हाल ही में बना किन्नर अखाड़ा भी जूना अखाड़े का ही एक हिस्सा है. इसकी संपत्ति का अंदाजा इस बात से लगाइए कि आपके शहर में मौजूद प्राचीन मंदिर जिसे आप बचपन से देखते आ रहे है, वह किसी ना किसी अखाड़े की ही संपत्ति होता है. जूना अखाड़ा के महापीठाधीश्वर से चरणों में गिरने के लिए राजनेता लाइन लगाए रहते हैं. वैसे ज्यादातर अखाड़े भगवा पार्टी को ही सपोर्ट करते हैं और हर बार यह सोचकर पार्टी को आशीर्वाद देते हैं कि अबकी बार उनका और हमारा भगवा एक जैसा होगा.

बहरहाल, पालघर के साधुओं की निर्मम हत्या पर देशव्यापी ऑनलाइन आंदोलन सिर्फ इसलिए नहीं हुआ कि जूना एक बेहद ताकतवर अखाड़ा है, वह इसलिए भी हुआ क्योंकि बीजेपी का आईटी सेल ऐसा चाहता था. उसके चाहने की देरी थी कि देश भर के मासूम भक्त वाट्सएप–फेसबुक पर सक्रिय हो, इसे हिंदु- मुसलमान मामला साबित करने में तुल गए. केंद्र की सत्ता को पता है कि महाराष्ट्र की सत्तारूढ़ पार्टी का भगवा रंग कुछ हल्का पड़ गया है. इसके कुछ ही दिन बाद यूपी के बुलंदशहर में दो साधुओं की हत्या हो गई. लेकिन उन दोनों साधुओं का भगवा मामूली था और किसी भी अखाड़े के भगवा से मेल नहीं खाता था, साथ ही यूपी में भगवा पहना शख्स ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान है और यह तय करने में सक्षम हैं कि भगवा की हत्या पर भगवाधारी ही हंगामा ना करें. इसलिए शांति कायम रही.

गंगा पर वापस लौटते हैं. गंगा पर आंदोलन कर रहे साधुओं-संतों के भगवा में भी अच्छा खासा फर्क है. प्रो.जीडी अग्रवाल ने जब संन्यास ग्रहण किया तो उनके गुरू ने उन्हें नाम दिया स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद. सानंद ने जब गंगा के लिए अनशन शुरु किया तो उनके गुरु ने ही आंदोलन को बरगलाने की कोशिश की. उनके गुरु के गुरु स्वरूपानंद कांग्रेस समर्थित शंकराचार्य माने जाते है, जो यूपीए के दूसरे कार्यकाल के दौरान वासुदेवानंद से कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे, वासुदेवानंद बीजेपी समर्थित शंकराचार्य माने जाते हैं, तो सानंद के गुरू लगातार उन पर दवाब बनाते रहे कि गंगा की लड़ाई लड़ें लेकिन सरकार के लिए मुसीबत ना खड़ी करें.


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सानंद, भगवा के डिफरेंट शेड्स समझ नहीं पाए थे लेकिन जिद के पक्के थे. बाद में वे गंगा की लड़ाई लड़ने के लिए अपने गुरु को छोड़कर मातृ सदन आकर रहने लगे. इस दौरान गंगा की लड़ाई में कई भगवाधारी संगठन कूदे, लेकिन गंगा महासभा और गंगा एक्शन परिवार जैसे बड़े नाम सरकार की गोद में बैठकर ही गंगा की लड़ाई लड़ना चाहते थे. फिर बाबा रामदेव की तरह ही इन भगवा संगठनों का भी बीजेपी में अप्रत्यक्ष विलय हो गया. आज ये लोग गंगा की लड़ाई में कहीं नजर नहीं आते. लेकिन अपने कार्यक्रमों में जीडी अग्रवाल की फोटो जरूर लगा लेते हैं. उमा भारती ने भी भगवा पहन कर ही गंगा की लड़ाई की शुरुआत की और सरकार बनते ही उनका भगवा अपने असली रंग में आ गया नतीजतन वे सत्ता और आंदोलन दोनों से ही गायब हो गई.

रोचक तथ्य यह है कि सत्ता इन सभी भगवा शेड्स को पहचानती है और अपने हिसाब से इसका उपयोग करती है. यही कारण है कि कोरोना काल में साफ हुई नदियों का श्रेय भी भगवा पार्टी आसानी ने लूट रही है और कोई सवाल नहीं पूछ रहा. श्रेय लूटने की हड़बड़ी में वे यह भी नहीं सोच पा रहे है कि लॉकडाउन के बाद जब नदियां दोबारा प्रदूषित होने लगेंगी तो इसका जवाब क्या होगा. आईसीएमआर को गंगा पर शोध के लिए आदेश देने के पीछे भी यही मंतव्य है.

सबको पता है ताली, थाली की तरह ही गंगा की कोरोना से लड़ाई की कहानी हमें गर्व महसूस कराती है. मासूम भगवा नौजवान खुश है तो सभी खुश हैं. इससे क्या फर्क पड़ता है कि यदि गंगा बहेगी ही नहीं तो उसके जल से कभी भी सही परिणाम प्राप्त नहीं होगा. अविरल प्रवाह मांगकर सत्ता को नाराज कोई नहीं करना चाहता. लोग व्हाट्सएप पर आ रहे साफ नदी के विडियो देखकर ही वाह-वाह कर रहे हैं.

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने दो साल पहले एक आदेश जारी कर हरिद्वार के आस-पास खनन गतिविधियों पर रोक लगाई थी. लॉकडाउन का फायदा उठाते हुए हरिद्वार प्रशासन ने खनन पट्टों और स्टोन क्रेशर को खोलने की अनुमति दे दी.


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खनन और क्रेशर के इस व्यापार में भी कुछ भगवाधारी शामिल है. स्वाभाविक रूप से गंगा के लिए जान देने वाले भगवा और व्यापारी भगवा फिर आमने-सामने है और एनएमसीजी में इतनी भी हिम्मत नहीं की अपने ही आदेश की अवहेलना रोक सके.

क्या एनएमसीजी हाइड्रो पावर कंपनियों को अतिरिक्त पानी छोड़ने को नहीं कह सकता जबकि अभी देश में बिजली की खपत काफी कम हुई है. ताकि, नदियां खुद स्वउपचारित मोड में ले आए और नदी पर्यावरण लंबे समय के लिए सुधर सके.

देश में ऐसे लोगों की अच्छी खासी तादात है जो दो ही रंग पहचानते हैं. पहला भगवा और दूसरा हरा. आप भी उनमें से एक है तो अब वक्त है ‘अपना वाला भगवा’ पहचाने का.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह लेख उनके निजी विचार हैं)

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