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Friday, 22 November, 2024
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पीपीई के भीतर डॉक्टरों का हाल: खाना-पानी तो दूर, 8 घंटे तक वॉशरूम भी नहीं जा पाते

कोविड वॉर्ड में वायरस के ठंड में ज़्यादा फ़ैलने के डर से एसी नहीं चलता. डॉक्टरों को डायपर पहने रहना पड़ता है क्योंकि वो वॉशरूम भी नहीं जा सकते.

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नई दिल्ली: ’12 घंटे की शिफ्ट में जब हम पीपीई के भीतर होते हैं तो सर से पैर तक पसीने में डूब जाते हैं. घुटन महसूस होती है और सांस तक नहीं ली जाती. चेहरे पर जो शील्ड लगा होता है वो हमारी सांसों की भाप से धुंधला जाता है. हम ठीक से देख भी नहीं पाते’, मुंबई के किंग एडवार्ड हॉस्पिटल के जूनियर डॉक्टर दीपक मुंडे ने पीपीई पहनने के बाद का अपना अनुभव साझा करते हुए ये बातें कही.

हालांकि, महाराष्ट्र में कोविड के सबसे ज़्यादा मामले सामने आए हैं लेकिन मुंडे की भावना से वो तमाम स्वास्थ्यकर्मी इत्तेफ़ाक रखते हैं जो भारत में कोविड ड्यूटी कर रहे हैं. देश में कोविड पॉज़िटिव मामलों की संख्या फिलहाल 49,391 हो गई है और स्वास्थ्यकर्मियों को इस दौरान 6-12 घंटे की शिफ्ट करनी पड़ रही है.

ऐसी शिफ्ट के दौरान, कोविड वार्ड में जाने से पहले इन्हें पसर्नल प्रोटेक्टिव इक्वीपमेंट (पीपीई) पहनना पड़ता है. इसे पहनने से पहले मोबाइल फ़ोन और अंगूठी से लेकर पेन तक को अलग रखना पड़ता है. ये किट पहनना आसान नहीं है. स्वास्थ्यकर्मियों की निपुणता पर निर्भर करता है कि वो इसे सावधानी से 10-15 मिनट में पहन पाते हैं या नहीं. कुछ को ज़्यादा समय भी लगता है.


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इसे उतारने में 15-30 मिनट का वक्त लगता है. उतारने के दौरान इसका पूरा ख़्याल रखना पड़ता है कि किसी तरह का इंफेक्शन न फ़ैल जाए. इसे पहनने के बाद की परेशानियां बताते हुए राम मनोहर लोहिया अस्पताल की मेडिकल सुप्रीटेंडेंट मीनाक्षी भारद्वाज ने दिप्रिंट से कहा, ‘इसे पहनकर बात करना मुश्किल होता है क्योंकि दूसरा व्यक्ति आपकी आवाज़ तो दूर आपके होठों के इशारे को भी नहीं समझ सकता.’

उन्होंने कहा कि गॉगल्स और फ़ेस शील्ड की वजह से देखना भी दूभर होता है लेकिन धीर-धीरे आदत बन जाती है. स्वास्थ्यकर्मियों के प्रति अपनी चिंता ज़ाहिर करते हुए उन्होंने कहा, ‘पीपीई पहनकर जब कोई कोविड वार्ड में प्रवेश करता है तो संक्रमित होने का डर उनके दिमाग के साथ खेल करना शुरू करता है. ये ख़ास तौर से शुरू-शुरू में होता है लेकिन इन सबके बीच इन्हें इस बात का ख़्याल रखना होता है कि किसी हाल में पीपीई को कोई नुकसान न पहुंचे.’

इसी तरह के डर पर बात करते हुए रोहतक के पंडित भगवत दयाल शर्मा स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय (पीजीआईएमएस) रोहतक में नर्स रीना मसीह ने कहा, ‘मैं एक बार तीन घंटों के लिए कोविड वार्ड के भीतर गई थी. मुझे किसी तरह का तनाव तो नहीं हुआ लेकिन इसका डर ज़रूर था कि कही संक्रमण न हो जाए.’ उन्होंने ये भी कहा कि इसके भीतर सांस लेना असंभव होता है.

पीपीई का काम स्वास्थ्यकर्मियों के शरीर को पूरी तरह से ढंकना और उसे इस तरह से पैक करना होता है कि अंदर किसी तरह का कोई वायरस न जा सके. हालांकि, पीपीई का बाहरी हिस्सा वायरस से एक्सपोस्ड होता है ऐसे में इस बात को लेकर काफ़ी सावधानी बरतनी पड़ती है ताकि किसी हाल में अंदर के हिस्से को कुछ भी न हो और इंफेक्शन से बचा जा सके.


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ऐसी सुरक्षा पाने के लिए स्वास्थ्य कर्मियों को कई तरह की कीमत चुकानी पड़ती है. जैसे-जैसे समय बीतता है वैसे-वैसे इसके अंदर सांस लेना मुश्किल हो जाता है और शरीर के कई हिस्सों में पसीना भरने लगता है. इसे पहनने के बाद अंदर नाम मात्र हवा नहीं होती है और गर्मी बढ़ने लगती है जिसकी वजह से पसीने के अलावा खुजली भी होने लगती है. अगर एक बार किट पहन लिया तो खाने पीने या वॉशरूम जाने का तो कोई सवाल ही नहीं रह जाता.

इन्हीं हालातों के बारे में बताते हुए सफदरजंग आरडीए के अध्यक्ष डॉक्टर मनीष कहते हैं कि कोरोनावायरस संक्रमण तेज़ी से फैल रहा है इसलिए अब स्वास्थ्यकर्मियों को गैर कोविड वाले क्षेत्रों में भी पीपीई पहनकर जाना होता है. उन्होंने कहा, ‘हमें ये आठ घंटों तक पहनना पड़ता है. ठंड में वायरस के ज़्यादा फ़ैलने के डर से अस्पताल में एसी भी नहीं चलता और पंखे की हवा का तो इसे पहनने वाले को पता भी नहीं चलता.’

उन्होंने कहा कि ज़्यादातर डॉक्टरों को डायपर पहने रखना पड़ता है क्योंकि एक बार इसे पहनने के बाद आप वॉशरूम भी नहीं जा सकते. कोविड ड्यूटी की वजह से अपनी हाउसिंग सोसाइटी में पड़ोसी की हिंसा झेलने वाली गुजरात के न्यू सिविल हॉस्पिटल की डॉक्टर संजीवनी पाणीग्रही ने भी कुछ ऐसे ही अनुभव साझा किए.

उन्होंने कहा, ‘पीपीई में प्रलय की गर्मी लगती है जिसकी वजह से हमारे चेहरे से पसीना टपकता रहता है और हम इसे साफ़ भी नहीं कर सकते. कम से कम प्राइवेट हॉस्पिटल में एसी वॉर्ड होते हैं, हमारे यहां पंखे चलते हैं लेकिन पीपीई के अंदर आप हवा को महसूस नहीं कर सकते.’


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पीपीई के भीतर की बाकी की परेशानियों की बात करते हुए एम्स के एक अधिकारी ने कहा कि चेहरे पर लगने वाले शील्ड की वजह से मुश्किल से ही कुछ दिखाई देता है. ऐसे में भी डॉक्टरों को कोविड के टेस्ट के लिए स्वाब लेना पड़ता है. उन्होंने गर्व से कहा, ‘इसके बावजूद हमारे डॉक्टर बिना किसी ख़ामी के टेस्ट को सफ़ल बनाते हैं.’

डॉक्टर राशिद गौरी एम्स के एक सीनियर रेज़िडेंट डॉक्टर हैं. 28 साल के राशिद की सगाई हो चुकी है और अप्रैल में उनकी शादी होने वाली थी लेकिन कोरोना महामारी की वजह से सब रुक गया है. एम्स में कोविड ड्यूटी कर रहे राशिद ने पीपीई उतारते वक्त और इसे उतारने के बाद क्या होता है और कैसा लगताा है, इस बारे में बताया.

उन्होंने कहा इसे उतारने में बेहद सावधानी बरतनी पड़ती है जिसकी वजह से इसमें 30 से 40 मिनट का समय लग जाता है. उन्होंने कहा, ‘हमें इसके अलग-अलग हिस्सों को समेटकर ख़ास तरह के बायोहैज़ार्ड बैग और अलग-अलग डस्टबिन में डालना पड़ता है. हर हिस्से को उतारने के बाद हमें कम से कम 10 बार अपना हाथ धोना पड़ता है.’

उन्होंने कहा कि एक बार इसे उतारने के बाद हमारा सर्जिकल गाउन किसी भीगे तौलिया सा लगता है. चाहे कोई भी समय हो या कैसा भी तापमान हो, इसे उतारने के तुरंत बाद स्वास्थ्यकर्मियों को नहाना पड़ता है और इस टाइट पीपीई को पहनने के निशान चेहरे की सूजन के रूप में दिखता है और इसमें दर्द भी होता है.

देश में पीपीई की कमी और स्वास्थ्यकर्मियों पर दबाव की वजह से डाक्टरों की ड्यूटी लंबी हो रही है और किट पहनने का समय भी बढ़ जाता है. अब तेजी से बढ़ती गर्मी युवा डॉक्टर एक बार सहन भी कर ले, बड़ी उम्र के डॉक्टरों के लिए ये किट पहनकर काम करना और भी मुश्किल होगा पर स्वयं की सुरक्षा के लिए डाक्टरों को ये तकलीफ भी अपनी हिपोक्रेटिक ओथ की खातिर सहना पड़ेगा.

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