पटना: बिहार में 6 अप्रैल को लगभग पिछले 72 घंटों में एक भी कोरोनावायरस का मामला सामने नहीं आया था. उस समय तक 13 जिलों से सिर्फ 32 मामले सामने आये थे. अब 21 दिन बाद यह संख्या 277 हो गई, और वायरस राज्य के 38 में से 22 जिलों में फैल गया है.
सोमवार सुबह तक, 22 नए मामले सामने आए यानि 24 घंटों में 9 प्रतिशत की वृद्धि हुई. मीडिया को दिए एक सरकारी बयान के अनुसार राज्य में रविवार तक 17,042 टेस्ट किये गए. इसका मतलब है कि करीब 12 करोड़ 60 लाख की जनसंख्या वाले राज्य में 7,393 में से एक व्यक्ति या प्रति 10 लाख में से 284 लोगों का टेस्ट किया जा रहा है.
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि प्रवासी मजदूरों की वापसी भी मामले बढ़ने का एक कारण है. बिहार में डॉक्टरों को अंदेशा है कि बीमारी विकराल रूप धारण कर सकती है.
जैसे-जैसे हालात बिगड़ते जा रहे हैं, नीतीश कुमार सरकार कम टेस्टिंग को लेकर विपक्ष के निशाने पर आ रही है.
राजद नेता तेजस्वी यादव ने शनिवार को एक ट्वीट में कहा, ‘हरियाणा जैसे 29 मिलियन आबादी वाले छोटे राज्य ने 18,845 परीक्षण किए हैं जबकि 126 मिलियन जनसंख्या वाले बिहार ने केवल 16,050 परीक्षण किए हैं.’ उन्होंने कहा कि कम टेस्टिंग इस बीमारी को और विनाशकारी बना देगा.
कैसे हुआ इज़ाफा
पिछले हफ्ते बिहार में कोरोनावायरस के मामलों की संख्या 86 से तीन गुना हो गई और आठ नए जिलों भी प्रभावित हुए.
सिवान में इस महीने की शुरुआत में एक ही परिवार के 24 सदस्य पॉजिटिव पाए गए. ये परिवार ओमान से लौटे एक व्यक्ति के संपर्क में आया था. इसी तरह की घटना मुंगेर में हुई जहां 11 लोग पॉजिटिव पाए गए. नालंदा में सात परिवार के सदस्यों का टेस्ट भी पॉजिटिव निकला जिनका एक रिश्तेदार विदेश से लौटा था. पटना में भी ऐसे ही एक सदस्य के कारण छह लोगों का एक का परिवार प्रभावित हुआ.
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68 मामलों के साथ मुंगेर जिले की हालत राज्य में सबसे खराब है. नालंदा में 34 मामले हैं जबकि पटना जहां एक हफ्ते पहले केवल छह मामले थे, अब 33 हैं. बक्सर में 25 मामले हैं और कैमूर में 14 मामले दर्ज किए गए हैं.
बिहार में कुल आठ जिले हैं जिनमें कोरोनावायरस के मरीजों की संख्या दोहरे अंकों में हैं.
अन्य राज्यों से प्रवासी मजदूरों की वापसी इन मामलों में बढ़ोतरी का एक प्रमुख कारक है. इन मजदूरों का अब टेस्ट किया जा रहा है. सरकार ने अपने बयान में प्रवासी मजदूरों की वापसी का आंकड़ा 1.5 लाख से ऊपर बताया है, लेकिन डॉक्टरों और अधिकारियों में यह आशंका है कि ये आंकड़ा कम आंका जा रहा है.
तब्लीगी जमात से जुड़े मरीज, जिन्हें राज्य में संक्रमण का सबसे बड़ा कारण माना जा रहा था, अब स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी के अनुसार कुल मामलों का लगभग 10 प्रतिशत ही हैं. तब्लीगी से जुड़े मामले ज्यादातर मुंगेर, नालंदा, बेगूसराय और बक्सर तक ही सीमित हैं.
प्रवासी मजदूरों की समस्या और सरकार का जवाब
कोविड-19 रोकने को लेकर किये जा रहे सरकारी प्रयासों के बारे में बात करते हुए बिहार के स्वास्थ्य सचिव संजय कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि मामलों की संख्या ज्यादा टेस्ट किये जाने के कारण बढ़ी नज़र आ रही है. उन्होंने कहा कि वो कोरोनावायरस के मरीजों के संपर्क में आये लोगों को चिन्हित कर उनका टेस्ट कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘टेस्ट्स की संख्या तुलनात्मक रूप से कम है क्योंकि बिहार को पहला टेस्ट सेंटर 22 मार्च को मिला’.
‘केरल में जनवरी में पहला कोरोनावायरस का मामला दर्ज किया गया था और फिर परीक्षण शुरू हुआ. हमें अपना पहला मामला 22 मार्च के बाद मिला था’ लेकिन उन्होंने साथ ही ये जोर देकर कहा कि अधिक परीक्षण का मतलब यह नहीं है कि राज्य में मामले भी अधिक हैं.
हालांकि, उन्होंने माना कि आंशिक रूप से इस बढ़े हुए मामलों का कारण ये था कि जो प्रवासी मजदूर दिल्ली और मुंबई से लौटे थे, उनका अब टेस्ट किया जा रहा है.
शनिवार को, मुख्य सचिव दीपक कुमार ने जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षकों के साथ एक बैठक आयोजित की जिसमें बताया गया कि गुजरात, दिल्ली, मुंबई, कानपुर और अन्य स्थानों से लौटे लोगों के कई मामले हैं जो पॉजिटिव पाए गए हैं.
कुमार ने कहा, ‘विभिन्न जिलों के डीएम द्वारा रिपोर्ट किए गए कम से कम आठ मामले ऐसे हैं. मैंने डीएम को इन मामलों में संपर्क ट्रैकिंग को आगे बढ़ाने और यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं कि वे जिन लोगों से मिले हैं, उनकी जांच की जाए और उन्हें क्वारेंटाइन में रखा जाये.’
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उन्होंने कहा कि सीमावर्ती जिलों में लगभग 1,450 लोगों के बिहार में प्रवेश करने की खबर है. उन्हें निकटतम राहत शिविरों में रखा जायेगा और जांच की जाएगी. उन्होंने बताया की डीएम को राज्य में वापस आने वाले लोगों पर ध्यान केंद्रित करने के आदेश जारी किए गए हैं.
ज्ञात हो कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पहले ही प्रवासी मजदूरों और छात्रों को लॉकडाउन के दौरान वापस आने की अनुमति नहीं दी है. विपक्ष तो इस नीति की आलोचना कर ही रहा है, सत्ताधारी गठबंधन दल भाजपा ने भी मांग की है कि प्रवासियों को वापस आने दिया जाये.
शनिवार को राज्य के भाजपा अध्यक्ष और पश्चिम चंपारण के सांसद संजय जायसवाल ने कहा कि उनकी पार्टी का मानना है कि पूरे भारत में छात्रों को वापस लाया जाना चाहिए. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘उम्मीद है, 3 मई तक समस्या का समाधान हो जाएगा.’
संजय कुमार ने कहा, ‘बिहार सरकार द्वारा शुरू की गई पल्स पोलियो उन्मूलन जैसी ड्राइव से हालांकि मामलों की संख्या में वृद्धि नहीं हुई है. हमने लगभग 4 करोड़ लोगों की जांच की है और केवल 1,758 मामलों में ही टेस्टिंग के लिए सिफारिश की गई थी. यह एक अच्छा संकेत है कि कोविड-19 अभी समुदायों में फैला नहीं है.’
हालात और बिगड़ने का खतरा
राज्य में डॉक्टरों को डर है कि 3 मई को देशव्यापी लॉकडाउन खत्म होते ही स्थिति और खराब हो जाएगी.
पटना में एक निजी अस्पताल चलाने वाले हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ अजीत प्रधान ने कहा, ‘लॉकडाउन हटा लिए जाने के बाद होने वाली अव्यवस्था की कल्पना कीजिए. मुझे लगता है कि अधिकांश मरीज अभी भी खुद को जांचने के लिए अनिच्छुक हैं. जमीनी स्तर पर पूर्ण भय है’.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व सचिव डॉ ब्रजनंदन यादव ने कहा, ‘आंकड़े वास्तविक से कम हो सकते हैं क्योंकि टेस्टिंग अभी भी कम है. आने वाले दिनों में हजारों प्रवासी मजदूरों और छात्रों के प्रभाव को महसूस किया जा सकता है. मामले बढ़ने का मुख्य कारण वे लोग हैं जो घर वापस आ गए हैं. केवल भगवान ही जानता है कि कितने और लोग समाज से मिल चुके हैं’.
डॉ अजीत प्रधान ने चिकित्सा बिरादरी में व्याप्त भय की ओर इशारा करते हुए कहा कि सरकार ने निजी क्लीनिक और नर्सिंग होम को 20 अप्रैल को खोलने की अनुमति दी थी. एक हफ्ते के बाद भी 50 प्रतिशत से अधिक अभी भी खुलने बाकी हैं.
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