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Friday, 22 November, 2024
होमदेशइंदौर का यह अस्पताल जिसने पहली बार कोविड-19 के गंभीर मामलों में टीसीजेड का इस्तेमाल किया, अच्छे नतीजों का दावा

इंदौर का यह अस्पताल जिसने पहली बार कोविड-19 के गंभीर मामलों में टीसीजेड का इस्तेमाल किया, अच्छे नतीजों का दावा

इंदौर के इस अस्पताल में 100 लोगों की टीम का नेतृत्व करने वाले पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. रवि दोशी ने दिप्रिंट को बताया कि टोसिलिज़ुमैब थेरेपी का उपयोग साइटोकिन स्टॉर्म के खिलाफ किया जाता है जो कई कोविड-19 रोगियों में मृत्यु दर का कारण बनता है.

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इंदौर: इंदौर के श्री अरबिंदो इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसएआईएमएस) के डॉक्टरों ने कोविड -19 रोगियों का इलाज टोसिलिज़ुमैब (TCZ) के साथ शुरू किया है, जो मुख्य रूप से रूमेटाइड अर्थराइटिस (गठिया) का इलाज करने के लिए उपयोगी माना जाता है.

मध्य प्रदेश के 1,156 बिस्तर वाले निजी अस्पताल में डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिकल स्टाफ की 100 सदस्यीय टीम 350 कोविड-19 मरीजों का इलाज कर रही है. दिप्रिंट को दिए साक्षात्कार में इस टीम का नेतृत्व कर रहे पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. रवि दोशी ने बताया कि ये दवा पांच गंभीर रूप से बीमार मरीजों पर इस्तेमाल की गयी थी. इनमें से दो तेज़ी से ठीक हुए हैं.

डॉक्टर दोशी ने बताया कि हमारे पास कुछ मध्यम आयु वर्ग के रोगी हैं जिन पर इसके अच्छे परिणाम मिले हैं. ‘जहां तक मुझे पता है, भारत में किसी भी केंद्र ने ऐसा नहीं किया है. हमारे पास वुहान और राज्यों (अमेरिका) से सबूत हैं’.

उन्होंने बताया कि इस दवा का उपयोग ऐसे मामलों में किया गया जहां अन्य उपचार, जिसमें हाइड्रॉक्साइक्लोरोक्वीन, स्टेरॉयड, ओसैल्टामाइविर, उच्च एंटीबायोटिक्स और वेंटिलेटरी समर्थन की खुराक शामिल हैं, असफल हो गए थे.

इंदौर जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार सोमवार तक कोरोनावायरस के चलते 52 मौतों के साथ मामलों की संख्या 897 तक पहुंच गयी.


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कैसे करती है काम

टोसिलिज़ुमैब थेरेपी का उपयोग साइटोकिन स्टॉर्म के खिलाफ किया जाता है जो कई कोविड-19 रोगियों में मृत्यु दर का कारण बनता है. एक साइटोकिन रोग प्रतिरोधक प्रणाली द्वारा स्रावित प्रोटीन का एक प्रकार है जो संक्रमण को दूर करने में मदद करता है. समस्या तब होती है जब यह अधिक मात्रा में उत्पन्न होता है, जिससे ‘साइटोकिन स्टॉर्म’ पैदा होता है.

‘आपका शरीर वायरस के खिलाफ लड़ाई कर रहा है और ऐसा करते हुए यह अपनी कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देता है. यह वास्तव में कोरोना में मृत्यु दर का कारण बनता है- संक्रमण की प्रतिक्रिया इतनी अनियंत्रित हो जाती है कि हम खुद को खोने लगते हैं’, डॉक्टर दोशी ने बताया.

द लैंसेट में किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि मृत्यु दर को कम करने के लिए साइटोकिन स्टॉर्म के कारण होने वाले हाइपरइन्फ्लेमेशन का इलाज किया जाना चाहिए. टीसीजेड (TCZ) इन साइटोकिन्स से लड़कर गंभीर रूप से बीमार रोगियों का इलाज करता है.

डॉक्टर दोशी ने कहा, ‘यह एंटीबॉडी रोग के उस विशेष चरण में मदद करता है और अगर हम इसे सही तरीके से इस्तेमाल करते हैं तो हम बहुत सारे रोगियों को बचा सकते हैं.’

ये दवा 10 अप्रैल को एक 40 की आयु के आस पास वाले मरीज़ को दी गयी थी. उनकी स्थिति में एक हफ्ते में सुधार हुआ, जिस दौरान उन्हें हर दो दिनों के अंतराल में टीसीजेड की खुराक दी गई थी. दूसरे मरीज़ जिनकी हालत में सुधार हुआ है, एक 50 वर्षीय मधुमेह पीड़ित रोगी हैं.

तीन अन्य रोगियों पर टीसीजेड के प्रभावों का अध्ययन अभी भी किया जा रहा है क्योंकि उन्हें हाल ही में दवा दी गयी है, डॉक्टर ने कहा.

दोशी ने कहा कि राज्य के वरिष्ठ नेताओं की 11 सदस्यीय टास्क फोर्स नियमित रूप से उपचार प्रोटोकॉल पर चर्चा करती है. गौरतलब है कि राज्य में अभी कोई स्वास्थ्य मंत्री नहीं है और इसिलये इसे ‘वन-मैन कैबिनेट’ कहा जा रहा है.

इलाज का चुनाव

टास्क फोर्स द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, टीसीजेड ट्रीटमेंट को ग्रेड 3 श्रेणी में में ‘तेजी से बिगड़ती श्वसन स्थिति’ वाले रोगियों को देना चाहिए. रोगियों की उम्र और वजन के आधार पर अलग-अलग खुराक का भी ज़िक्र किया गया है.

यहां के मेरे सहकर्मी और प्रोफेसर भी इलाज के प्रोटोकॉल पर चर्चा करने के लिए सुबह और शाम बैठते हैं. हम दैनिक आधार पर अपने अनुभव के अनुसार उपचार रणनीति को संशोधित कर रहे हैं, डॉक्टर दोशी ने बताया.

टीसीजेड उपचार का उपयोग चीन में भी किया गया जो कोरोनावायरस संक्रमण का प्रारंभिक केंद्र माना जाता है. 15 कोविड-19 रोगियों पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि गंभीर रूप से बीमार रोगियों के इलाज में टीसीजेड की कई खुराक प्रभावी थीं. अमेरिका में दुनिया के सबसे बड़े बॉयोटेक कंपनी में से एक रोश फार्मा में इसका परीक्षण भी चल रहा है.


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कोविड-19 की जटिलताएं

डॉक्टर दोशी के अनुसार कोवि-19 के उपचार में मुख्य समस्या मरीजों की स्थिति में तेजी से गिरावट है. ‘मैं अपने मरीजों में से एक का उदाहरण देता हूं. उनके एक भाई बीमार हो गए और चौथे दिन बीमारी के कारण दम तोड़ दिया.’

डॉक्टरों के सामने एक दूसरी परेशानी एक साथ कई बीमारियों से जूझ रहे मरीजों का इलाज करने में है. अस्पताल में डॉक्टर अपने पुराने रोगियों पर कड़ी नजर रखते हैं, जिनमें हृदय संबंधी बीमारियों की स्थिति होती है. एसएआईएम (SAIM) के आईसीयू में वर्तमान में 50 ऐसे रोगी हैं.

‘अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली द्वारा निर्धारित कोविड-19 निमोनिया (लक्षणों) के लिए मानक प्रोटोकॉल के अलावा, हम उच्च रक्तचाप, मधुमेह जैसी अन्य बीमारियों की देखभाल कर रहे हैं, और उनके हृदय की निगरानी करके सख्त मधुमेह नियंत्रण पर भी ध्यान दे रहे हैं. एनेस्थेटिस्ट, पल्मोनोलॉजिस्ट की एक पूरी टीम है, जो 24 घंटे इन गंभीर रोगियों की निगरानी कर रही है.

अभी के लिए ये टीम कुछ रोगियों में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) की निगरानी कर रही है. दवा निर्धारित होने से पहले इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम या ईसीजी परीक्षण किए जाते हैं.

हालांकि, डॉक्टर दोशी ने एचसीक्यू को केवल ‘उम्मीद की झलक’ बताया. ‘यह एक पूर्ण चिकित्सीय दवा नहीं है, क्योंकि यह वायरस के उस हिस्से में प्रवेश को बढ़ाता है जहां यह नष्ट हो जाता है. इसकी आदत भी पड़ जाती है और यह डॉक्टर्स की पसंद नहीं है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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