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Saturday, 23 November, 2024
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मज़दूरों के पलायन के समय सेना का उपयोग नहीं करना एक भूल थी जिसके लिए मोदी सरकार को पछताना पड़ेगा

प्रवासी मज़दूरों की मदद में सेना की तैनाती से बेशक राज्य सरकारों की अक्षमता जाहिर होती लेकिन जब आप इतनी बड़ी त्रासदी से निपट रहे हों तो इस तरह की बातें मायने नहीं रखतीं.

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मुझे आश्चर्य है कि मई 2014 से ही सशस्त्र सेनाओं को अपनी नव-राष्ट्रवादी विचारधारा में उलझाए रखने और उनका अभूतपूर्व राजनीतिक लाभ उठाने वाली नरेंद्र मोदी सरकार ने कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ाई के दौरान जनता का आत्मविश्वास जगाने के लिए उनका इस्तेमाल नहीं किया. इसी तरह मुझे इस बात पर भी आश्चर्य है कि चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत और तीनों सेनाओं के प्रमुखों- हाल के दिनों में ये सभी मीडिया में बहुत मुखर रहे हैं- ने अपनी व्यापक क्षमताओं और कोरोनावायरस जैसी महामारी से लड़ने की तत्परता के बारे में सार्वजनिक रूप से ज़्यादा कुछ नहीं कहा है.

इसका कारण ये है कि मोदी सरकार ने, जैसा कि उससे उम्मीद थी, निर्णय लेने की प्रक्रिया में सशस्त्र सेनाओं को शामिल नहीं किया. यह देश में कोविड-19 रोग के प्रबंधन और नियंत्रण में समन्वय के लिए पिछले रविवार को गठित 11 उच्चस्तरीय समूहों में उनका प्रतिनिधित्व नहीं होने से भी स्पष्ट हो जाता है. ये स्थिति तब है जब सशस्त्र सेनाओं के पास उच्चस्तरीय समूहों के लगभग सभी आयामों को सीधे प्रभावित करने की क्षमता है.

कोविड-19 से लड़ने की भारत की रणनीति और क्षमता के अलावा, महामारी के खिलाफ प्रयासों की सफलता में एक महत्वपूर्ण कारक होगा मोदी सरकार में जनता का भरोसा और सशस्त्र सेनाएं इस भरोसे को सुदृढ़ करने में मदद कर सकती हैं. उदाहरण के लिए हम केवल चार घंटे की नोटिस पर 21 दिन के देशव्यापी लॉकडाउन की सरकार की घोषणा के बाद आजीविका गंवाने वाले प्रवासी मजदूरों की घर वापसी की सैंकड़ों किलोमीटर की पदयात्रा की त्रासदी पर विचार कर सकते हैं.

बिना सोच की रणनीति

असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों और उनके परिवारों के अपेक्षाकृत समृद्ध राज्यों से राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा और झारखंड में अपने गांवों की ओर सामूहिक पलायन जोखिम कारकों पर विचार किए बिना और बिना किसी आकस्मिक योजना के रणनीति लागू किए जाने का एक क्लासिक उदाहरण है. प्रवासी मजदूरों को कोई भरोसा नहीं था कि राज्य सरकारें लॉकडाउन की अवधि में उनके रहने-खाने का इंतजाम करेंगी. स्थिति को संभालने के लिए राज्य सरकारों द्वारा किए गए तात्कालिक उपायों के बीच जो त्रासद दृश्य दिखे वो भारत को लंबे समय तक परेशान करेंगे. पलायन शुरू होने के एक सप्ताह बाद भी समस्याओं का अंत होता नहीं दिख रहा.

भारतीय सशस्त्र सेनाओं में 48 घंटे के भीतर स्थिति को नियंत्रित करने की क्षमता थी. पलायन कर रहे प्रवासी मज़दूरों से भरे राजमार्गों के करीब ही सेना की कई छावनियां और सैन्य स्टेशन हैं जहां प्रमुख टुकड़ियां तैनात हैं. सेना ने प्रभावित प्रवासी मज़दूरों को आश्रय और भोजन देने तथा अलग-थलग रखे जाने वालों के लिए शीघ्रता से टेन्टों में या निर्दिष्ट भवनों में शौचालय, पानी और रोशनी की व्यवस्था से पूर्ण सुविधाएं स्थापित कर दी होती. बेशक, इससे राज्य सरकारों की अक्षमता उजागर होती, लेकिन जब आप इतनी बड़ी त्रासदी से निपट रहे हों तो इस तरह की बातें मायने नहीं रखतीं.


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संभव है कि इस अप्रत्याशित पलायन से हमने लॉकडाउन निर्णय के आरंभिक लाभ को गंवा दिया हो. सेना को तैनात नहीं करने का फैसला एक ऐसी भूल है जिसके लिए मोदी सरकार को आने वाले महीनों में पछताना पड़ेगा.

सशस्त्र सेनाओं की असाधारण क्षमता

मोदी सरकार और भारतीय जनता को कोरोनावायरस महामारी जैसे संकट से लड़ने में सशस्त्र सेनाओं की अभूतपूर्व क्षमता का भान होना चाहिए. उनके पास पूरे भारत के राज्यों में तैनात कुल 15 लाख सैनिक/एयरमैन/नाविक हैं. सेना की ताकत उसका संगठन, प्रशिक्षण और गति है. भारत का ऐसा कोई कोना नहीं है जहां सेना छह घंटे के भीतर नहीं पहुंच सकती हो. सशस्त्र सेनाओं में 13,200 डॉक्टर/विशेषज्ञ/नर्स और उनकी मदद के लिए 1,00,00 प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी तैनात हैं. भारतीय सेना आवागमन तथा लॉजिस्टिक्स आदि की दृष्टि से आत्मनिर्भर है तथा विमानों और हेलीकॉप्टरों के उपयोग से इस क्षमता का और विस्तार किया जा सकता है.

आवश्यक चिकित्सा उपकरणों और अन्य साजो-सामान समेत अपने संसाधनों, जिसे रिज़र्व सैनिकों और स्वयंसेवकों के सहारे दोगुना किया जा सकता है, के साथ सशस्त्र सेनाएं निम्नांकित काम कर सकती हैं:

• वो अपने 130 सैन्य अस्पतालों की दो-तिहाई क्षमता कोविड महामारी के लिए उपलब्ध करा सकती हैं, साथ ही 100 फील्ड अस्पताल भी निर्मित कर सकती हैं, जिन्हें 24 घंटे के नोटिस पर भारत में कहीं भी स्थापित किया जा सकता है. फील्ड अस्पतालों को कोरोनावायरस के ‘हॉटस्पॉट’ वाले क्षेत्रों में स्थापित करने के लिए मोबाइल रिजर्व के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.

• सेना के इंजीनियर पूर्वनिर्मित शेल्टरों के सहारे देश के 720 जिला अस्पतालों की क्षमता को तीन गुना तक बढ़ा सकते हैं. साथ ही, सैन्य चिकित्सा दल इन अस्पतालों की दक्षता को भी बढ़ा सकते हैं.

• सेना के चिकित्सा दल बड़े पैमाने पर रोग परीक्षण एवं टीकाकरण के काम को संभाल सकते हैं.

• जैसा कि ब्रिटेन में किया गया है, हमारी सेना के इंजीनियर भी पूर्वनिर्मित निर्माण वस्तुओं के सहारे किसी भी भवन को कोविड-19 मामलों के उपचार के लिए अस्पताल में तब्दील कर सकते हैं.

• महामारी के सामुदायिक संचरण की स्थिति के लिए सेना पहले से ही कार्यरत 15 क्वारेंटाइन केंद्रों जैसे कई और केंद्र स्थापित कर सकती है.

• सैन्य रसद प्रणालियों का उपयोग नागरिक आपूर्ति व्यवस्था के पूरक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है जिससे लॉकडाउन के दौरान या पूरे इलाके को क्वारेंटाइन किए जाने की परिस्थितियों में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है. यदि सरकार कहे तो सेना बड़े पैमाने पर मुफ्त रसोई भी चला सकती है.

• सेना कानून-व्यवस्था संभालने और संपूर्ण या निर्धारित इलाकों में लॉकडाउन सुनिश्चित करने में नागरिक प्रशासन का हाथ बटा सकती है.

सशस्त्र सेनाओं का कब और कैसे इस्तेमाल करें

सवाल यह है कि अगर केंद्र और राज्य सरकारों के पास ज़रूरी बुनियादी ढांचा और संसाधन हैं, और वे अब तक कोविड-19 संकट का अच्छे से प्रबंधन कर रहे हैं तो अपार क्षमता के बावजूद सशस्त्र सेनाओं को क्यों तैनात किया जाए?

इसमें कोई संदेह नहीं है कि वर्तमान स्थिति- स्थानीय संचरण की अवस्था- का राज्य सरकारों द्वारा अच्छी तरह से प्रबंधन किया जा रहा है. इसे देखते हुए, यदि सशस्त्र सेनाओं के संसाधनों के इस्तेमाल की ज़रूरत पड़ेगी भी तो वायरस के सामुदायिक संचरण की अवस्था में ही. हालांकि सामुदायिक संचरण का दौर अपरिहार्य है, और संक्रमण परीक्षण की कम दर को देखते हुए संक्रमण का प्रसार बहुत तेजी से होगा और जिसका मौजूदा संसाधनों के बल पर सामना करना संभव नहीं होगा, जैसाकि विकसित देशों समेत दुनिया में कई जगहों पर देखा जा चुका है. सामुदायिक संचरण का दौर शुरू होने के बाद तैनाती किए जाने पर सशस्त्र सेनाओं की क्षमताओं का अधिकतम इस्तेमाल नहीं हो पाएगा क्योंकि वो आकस्मिक आपदा प्रबंधन में लग जाएंगी.


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मोदी सरकार के लिए अधिक विवेकपूर्ण ये होगा कि वह बिना देर किए निर्णय प्रक्रिया में सशस्त्र सेनाओं को शामिल करे और उनकी क्षमताओं के इस्तेमाल की रूपरेखा निर्धारित करे. उसके बाद सशस्त्र सेनाओं को तुरंत प्रभाव से तैयारियों में और निर्धारित भूमिका के अनुकूल ढलने के अभ्यास में जुट जाना होगा. जब तक हम पूर्ण विकसित सामुदायिक संचरण अवस्था में प्रवेश करेंगे, उससे पहले सेना को नागरिक प्रशासन के साथ सुचारू रूप से काम करना शुरू कर देना चाहिए. यहां ये कहने की आवश्यकता नहीं है कि अप्रत्याशित घटनाओं के लिए हमेशा सैन्य क्षमता का एक हिस्सा आरक्षित रखना होगा.

भारतीय सेना को जनता अत्यधिक सम्मान देती है. इसकी उपस्थिति मात्र से ही आत्मविश्वास पैदा होता है. मेरा आग्रह है कि मोदी सरकार को राज्य के संसाधनों के पूरक के तौर पर अविलंब सेना को कोरोनावायरस के खिलाफ इस लड़ाई में शामिल करना चाहिए.

(ले. जनरल एच.एस. पनाग पीवीएसएम, एवीएसएम (रिट.) ने भारतीय सेना की 40 साल तक सेवा की. वे उत्तरी कमान और सेंट्रल कमान के जीओसी-इन-सी रहे. सेवानिवृत्ति के बाद वे आर्म्ड फोर्सेज ट्रिबुनल के सदस्य रहे. ये उनके निजी विचार हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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