भीलवाड़ा/राजस्थान: राजस्थान के टेक्सटाइल टाउन भीलवाड़ा का डिस्ट्रिक्ट कलेक्टोरेट दफ्तर ही शहर में एक अकेली जगह थी जहां शुक्रवार को काम होता रहा. स्वयंसेवक दफ्तर आने वाले लोगों को मॉस्क पहनने और दूरी बनाकर रखने का निर्देश देते रहे और अधिकारी बैठकें करते रहे. इसी बीच कर्फ्यू पास के लिए लोग कतारों में खड़े इंतजार भी करते रहे.
मीटिंग और ब्रीफिंग रात के बाद भी चलती रहती है. ऐसे में निजी स्टॉफ के लिए कुछ दिनों में दिए गए निर्देशों को याद रख के उसका पालन करना भी मुश्किल हो रहा है.
ये सब तब शुरू हुआ जब जयपुर से 240 किलोमीटर दूर स्थित भीलवाड़ा के निजी अस्पताल में मेडिकल स्टॉफ और छह डॉक्टर कोरोनावायरस से 19 मार्च को संक्रमित पाए गए थे.
इस मामले के बाद शहर में कोविड-19 के 25 और मामले सामने आ चुके हैं और 29 मार्च तक 2 लोगों की मौत भी हो चुकी है. सभी लोगों के बारे में ब्रिजेश बांगर मेमोरियल अस्पताल से पता लगाया जा सकता है.
ये अस्पताल न केवल भीलवाड़ा में बल्कि आसपास के कई जिलों में भी खासा प्रसिद्ध है. यहां तक कि मध्य प्रदेश से भी मरीज इस अस्पताल में आते हैं.
जिला प्रशासन पूरे मसले पर कदम उठा रही है.
प्रशासन ने 20 मार्च को ही लॉकडाउन लागू कर दिया था, सभी सीमाओं को सील भी कर दिया था और पूरे क्षेत्र को बंद कर दिया था. 24 मार्च को लागू हुए संपूर्ण लॉकडाउन से पहले ही ये कदम उठाए गए थे.
प्रशासन ने तब संदिग्ध मामलों को स्क्रीन और अलग करना शुरू कर दिया- उच्च जोखिम वाले संपर्कों, अस्पताल के कर्मचारियों के साथ शुरुआत, फिर अस्पताल में आने वाले मरीजों और आखिरकार, व्यापक समुदाय में कोरोनोवायरस के लक्षणों की तलाश करना शुरू कर दिया.
जिला प्रशासन ने अभी तक छह हज़ार लोगों को क्वारेंटाइन किया है और 1025 सैंप्लस की जांच की है. शहर में रिसॉर्ट्स और होटलों को आइशोलेसन केंद्र बना दिया गया और घर-घर सर्वेक्षण भी किया जा रहा है जिसमें 28 लाख लोगों का सर्वे किया गया है.
यह भी पढ़ें: क्या मजदूरों की परेशानियों के लिए प्रधानमंत्री का माफी मांग लेना काफी है
भीलवाड़ा के डीएम राजेंद्र भट्ट ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारे पास अभी 15 हज़ार लोगों के लिए आइशोलेसन की सुविधा है’.
भट्ट इस मसले पर आगे बढ़कर नेतृत्व कर रहे हैं. वो सोशल मीडिया के जरिए वीडियो जारी कर रहे हैं और खाद्य समस्या से जुड़ी समस्याओं का समाधान भी कर रहे हैं. वो निम्न आय वाले परिवारों को खाने के पैकेट भी दे रहे हैं.
लेकिन ऐसी आशंकाएं हैं कि स्थिति नियंत्रण से बाहर हो सकती है.
अस्पताल जहां से ये सब शुरू हुआ
ब्रिजेश बांगर मेमोरियल अस्पताल जिस जगह स्थित है उसके आसपास 20 और भी अस्पताल है. इस अस्पताल को शहर के सबसे अच्छे स्वास्थ्य सुविधाओं वाले संस्थान के तौर पर माना जाता है.
ये अब तक साफ नहीं हो सका है कि भीलवाड़ा कैसे इस महामारी का केंद्र बन गया. एक अफवाह है कि सउदी अरब से एक डॉक्टर यहां आए और दूसरी यह है कि अस्पताल कोविड-19 से संक्रमित व्यक्ति का आईसीयू में जांच नहीं कर सका. अभी तक इन दोनों ही बातों का कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है.
हालांकि जो बात सच है वो है कि भीलवाड़ा के सभी पॉजिटिव मामलों की पड़ताल इस अस्पातल तक ले आती है.
यह सब 19 मार्च को शुरू हुआ जब बृजेश बांगर मेमोरियल हॉस्पिटल के एनेस्थेटिस्ट डॉ नियाज खान कोविड-19 से संक्रित पाए गए. उन्हें भीलवाड़ा के महात्मा गांधी (एमजी) अस्पताल और मेडिकल कॉलेज से जयपुर के सवाई मान सिंह अस्पताल भेजा गया था. 433 बेड वाले इस सरकारी अस्पताल में आइशोलेसन की सुविधा मौजूद है.
अगले दिन, निजी अस्पताल में शहर के एक लोकप्रिय चिकित्सक डॉ. आलोक मित्तल पांच अन्य कर्मचारियों के साथ कोविड-19 से संक्रित पाए गए. उन्होंने एमजी अस्पताल में जांच करवाया था और उन्हें अलग रहने को कहा गया था. डॉक्टर ने अपने मरीजों को संबोधित करते हुए एक वीडियो भी डाला था.
जिला प्रशासन ने तेजी से कदम उठाते हुए 20 मार्च को ही कर्फ्यू लागू कर सभी सीमाओं को सील कर दिया था.
इसके बाद प्रशासन ने बांगर अस्पताल को सील कर सभी मरीजों को एमजी अस्पताल में सिफ्ट कर दिया. सभी स्टॉफ्स और उनके परिवारों के सैंपल्स लेकर जांच की गई और सभी को एक रिजॉर्ट में भेज दिया गया जिसे आइशोलेसन केंद्र बनाया गया था. उनमें से करीब 250 लोग अभी भी वहीं हैं.
जिला प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘हम सोचते थे कि कोरोनावायरस के लिए हम बिल्कुल तैयार हैं लेकिन बांगर अस्पताल की खबर एक धमाके की तरह थी.’
यह बाद में सामने आया कि डॉ मित्तल 12 मार्च से सर्दी जैसे लक्षणों से पीड़ित थे, लेकिन वे 20 मार्च तक मरीजों का इलाज करते रहे. अस्पताल के रिकॉर्ड से पता चला है कि उन्होंने ओपीडी में 5,580 मरीजों का इलाज किया जब तक कि उन्हें कोविड-19 पॉजिटिव नहीं पाया गया.
जिले के अधिकारियों ने कहा कि ऐसी खबरों के कारण ही घर-घर जाकर सर्वे किया जा रहा है.
घर-घर सर्वे
सफेद रंग की साड़ी पहने अपने बालों और चेहरे को लाल दुपट्टे से ढके हाथों में एक लंबी सफेद जैकेट में ढंके हुए 30 वर्ष के आस-पास कि हिमत कंवर एक ऐसे वायरस की खोज में है जिसने उसके शहर समेत पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है. वे एक बार में एक घर को चेक करती हैं.
वह जिन घरों का सर्वेक्षण करती हैं वहां वह सावधानी बरतती हैं और कुछ भी नहीं छूने के लिए एक छड़ी का उपयोग करती हैं, जिसे वह अपने हैंडबैग के साथ दरवाजे की घंटी बजाने के लिए ले जाती हैं और एक घर से छह फीट की दूरी से बोलती हैं.
यह भी पढ़ें: कोरोनावायरस से लोगों को बचाना हमारा फर्ज, दिल्ली सरकार पूरी तरह तैयार: सत्येंद्र जैन
उनकी एक विस्तृत सूची है. कंवर कुछ सवाल पूछती हैं कि क्या आपके परिवार में किसी को बुखार है? क्या विदेश का कोई व्यक्ति आपसे मिलने आया था? क्या 22 फरवरी से आपके परिवार के किसी व्यक्ति ने बांगर (स्थानीय रूप से बगद के रूप में जाना जाता है) का दौरा किया है? यही सवाल कंवर और उनकी सहयोगी अपने शिफ्ट के दौरान 80 घरों में पूछती हैं.
कंवर स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की 3,135 टीमों का हिस्सा हैं जिसे जिला प्रशासन ने वायरस के लिए स्क्रीन करने के लिए गठित किया है. इनमें से 1,135 टीमों ने पहले ही जिलों में लगभग 4 लाख शहरी निवासियों की स्क्रीनिंग की है, जबकि 2,000 टीमों ने लगभग 24 लाख ग्रामीण निवासियों को स्क्रीन किया है.
पिछले दो हफ्तों में उनके प्रयासों ने 6,445 लोगों को घर में क्वारेंटाइन करने में मदद की है और शहरी क्षेत्रों में 2,900 लोगों और शहरी भीलवाड़ा में 11,000 लोगों को संभावित फ्लू या इन्फ्लूएंजा जैसे लक्षणों के साथ पाया है.
भीलवाड़ा के जिला मजिस्ट्रेट भट ने कहा, ‘हम अब स्क्रीनिंग के दूसरे चक्र में हैं, जिसमें इन्फ्लूएंजा जैसे लक्षण पाए गए थे, उन्हें फिर से जांचा जाएगा. यदि वे री-कवर नहीं करेंगे तो उनका परीक्षण और उन्हें क्वारेंटाइन किया जाएगा.’
प्रशासन का मानना है कि कर्फ्यू शुरू होने से पहले कोरोनोवायरस के सभी मामलों का पता लगाने के लिए डोर-टू-डोर स्क्रीनिंग के दो और चक्र लगेंगे. भट ने कहा, ‘हमें यह पता लगाने में 28 दिन लगेंगे कि क्या यह समुदाय लेवल पर फैला हुआ है.’
डॉक्टरों को उम्मीद है कि तेजी से हुई कार्रवाई से यह रुक सकता है.
एमजी अस्पताल के अतिरिक्त निदेशक एएन माथुर ने कहा, ‘चूंकि प्रशासन उन विषम रोगियों का परीक्षण कर रहा है जो बांगर अस्पताल में थे, और जो फ्लू जैसे लक्षणों से पीड़ित थे. अन्य उच्च जोखिम वाले रोगियों को क्वारेंटाइन किया जा रहा है, वे बीमारी के प्रसार को नियंत्रित करने में सक्षम रहे हैं.’
एमजी अस्पताल के मुख्य स्वास्थ्य और चिकित्सा अधिकारी मुश्ताक अहमद ने भी कहा कि दो कोविड-19 सकारात्मक मामलों एक 73 वर्षीय और एक 60 वर्षीय की मृत्यु कोरोनोवायरस से जुड़े नहीं थे.
अहमद ने कहा, ‘एक पहले ही कोमा में था जब उसे बांगर अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जबकि एक की किडनी खराब थी जिसके कारण उसकी मौत हो गई थी.’
हालांकि, चिंता की बात यह है कि यदि मामलों में बढ़ोतरी आती है तो भीलवाड़ा का स्वास्थ्य ढांचा इसे संभाल नहीं सकता है.
शहर में पहले से ही कोरोनावायरस के 25 सकारात्मक मामले हैं, लेकिन सरकारी अस्पतालों में केवल नौ वेंटिलेटर हैं और निजी क्षेत्र में लगभग 60 हैं.
‘राजस्थान स्वास्थ्य सेवा के परियोजना निदेशक (बाल स्वास्थ्य) रोमेल सिंह जिन्हें जिले में कोरोनोवायरस प्रतिक्रिया का प्रभारी रखा गया है उन्होंने कहा, ‘सभी 19 रोगियों (29 मार्च तक भर्ती) जो सकारात्मक थे, वे अच्छा कर रहे हैं. उन्हें वेंटिलेटर समर्थन की आवश्यकता नहीं है.’
भीलवाड़ा के चार सकारात्मक मरीज जयपुर के अस्पताल में भर्ती हैं जबकि दो की मौत हो गई है. लेकिन यह जानते हुए कि हर रोज कोरोनोवायरस के 2-3 मामले बढ़ रहे हैं और वैश्विक सबूत दिखाते हैं कि 5 प्रतिशत रोगियों को वेंटिलेटर की आवश्यकता होती है, वेंटिलेटर की संख्या जिले में अपर्याप्त लगती है.
राशन की होम डिलीवरी
वॉर रूम में श्यामलाल पटेल भीलवाड़ा के एक इलाके में फलों और सब्जियों की अनियमित आपूर्ति की शिकायतों के बारे में रजिस्टर में नोट कर रहे हैं. जबकि वह एक सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल हैं, वह जिला कलेक्ट्रेट में कंट्रोल रूम में कॉल का जवाब देने में भी व्यस्त हैं. एक अन्य टेलीफोन लाइन में स्वास्थ्य विभाग का एक अन्य अधिकारी बुखार की शिकायत करने वाले व्यक्ति की बात सुनता है और उसे कोरोनावायरस के लक्षण बताता है. वह अपने संपर्क विवरणों को सूचीबद्ध करता है और क्षेत्र के कर्मचारियों को सभी जानकारी देता है.
भारत के अन्य शहरों जैसे ही, भीलवाड़ा में भी किराने की दुकानें बंद हो गई हैं.
यह भी पढ़ें: रेलवे ने मजदूरों और गरीबों के लिए खोला किचन, रोज लाख लोगों का बन रहा खाना
भीलवाड़ा के जनसंपर्क अधिकारी पावनेश शर्मा ने कहा, ‘डिज़ाइन किए गए बूथ किराने का सामान वितरित करते हैं ,जबकि फलों और सब्जियों के साथ ट्रक इलाकों में जाते हैं. शहर के चारों ओर जाने वाली सरकारी अधिकृत किराना वैन भी हैं. हम गरीबों के लिए चावल, दाल और तेल जैसे आवश्यक किराने के सामान के साथ 15,000 मुफ्त राशन पैकेट भी भेज रहे हैं.’
हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि लॉकडाउन का सही तरीके से पालन किया जा रहा है. मुख्य सड़कें सुनसान हैं, दोपहिया वाहनों पर आस-पास रहने वाले पड़ोसी एक-दूसरे से बातचीत करते हैं.
सील किए गए बांगर अस्पताल के बाहर इलाके में रहने वाली मधु काबरा ने कहा कि ‘यह घर है, हम कहीं नहीं जा सकते’. उन्होंने कहा कि अस्पताल बहुत पॉपुलर है. लोग डॉ मित्तल के लिए आते हैं. काबरा ने कहा कि उनकी लेन पहले ही दो बार सैनेटाइज हो चुकी है और वे नहीं डरती हैं.
इसके विपरीत लेन में पारंपरिक कपड़े पहने महिलाएं बरामदे के बाहर इकट्ठा होती हैं और कर्फ्यू के आदेशों का पालन नहीं कर रही हैं और न ही उन्होंने चेहरे पर मास्क लगाया हुआ था. वे महिलाएं राजस्थान और मध्य प्रदेश में शिव और पार्वती की शादी का जश्न मनाते हुए गणगौर पूजा करती हैं. महिलाओं ने कहा, ‘हम एक दूसरे को जानते हैं, हम कोरोनोवायरस से डरते नहीं हैं.’
लेकिन एमजी अस्पताल के कर्मचारी, जहां मरीज आइसोलेट हैं वे डरते हैं. एक नर्स से पूछा, ‘जैसा कि आप जानते हैं, अस्पताल ज्यादा जोखिम में हैं. हमें कैसे पता चलेगा कि कौन सा मरीज कोविड-पॉजिटिव है? उसने आरोप लगाया कि सभी वार्डों में पर्याप्त मास्क और सैनिटाइजर नहीं हैं और नमूने को व्यवस्थित रूप से एकत्र नहीं किया गया है, जिससे आगे चलकर जोखिम हो सकता है.
उसने कहा, ‘यह दुख की बात है कि एक अस्पताल की लापरवाही ने पूरे शहर को भय में रहने का कारण दे दिया है.’
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)