scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतहिंदू और मुसलमान दोनों विकास चाहते हैं, पर उनके बीच समानता बस इतना भर ही है

हिंदू और मुसलमान दोनों विकास चाहते हैं, पर उनके बीच समानता बस इतना भर ही है

2014 के बाद से ही मतदाता उत्तरोत्तर धार्मिक आधार पर ध्रुवीकृत होते रहे हैं. हाल का दिल्ली चुनाव रणनीतिक वोटिंग का नवीनतम उदाहरण है.

Text Size:

वर्षों तक, मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट समूह के रूप में देखा जाता था. उन पर अपने मजहबी नेताओं के कहे अनुसार वोटिंग करने और ‘वोट बैंक’ होने की तोहमत लगाई जाती थी. आगे चलकर राजनीतिक विश्लेषक उन्हें आम वोटरों जैसा ही मानने लगे, जो वही सारी चीजें चाहते हैं जो कि हिंदुओं को चाहिए.

पर दोनों ही कथानक दोषपूर्ण और अपूर्ण हैं, जो हाल में दिल्ली में हुए चुनावों में भी दिखा. जाहिर है मुसलमान भी बाकियों की तरह ही अपनी जिंदगी में खुशहाली चाहते हैं, पर वे उस भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ गठबंधन बनाने के लिए तैयार रहते हैं, जिसे कि वे अपना सबसे बड़ा शत्रु मानते हैं.

निश्चित रूप से, चुनावी सर्वेक्षणों में मुसलमान भी आमतौर पर वही जवाब देते हैं, जो कि हिंदुओं के होते हैं. ऐसे जवाब जो वोट तय करने की जटिल निर्णय प्रक्रिया के संकेतों को छुपा सकते हैं. लोकनीति-सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़ (सीएसडीएस) के चुनावी सर्वेक्षणों के 15 वर्षों के आंकड़ों की पड़ताल में बर्कले विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के राजनीति विज्ञानी राहुल वर्मा और लोकनीति-सीएसडीएस के प्रणव गुप्ता ने पाया कि उत्तर प्रदेश में मुसलमानों द्वारा बताई गई प्राथमिकताएं राज्य के किसी भी अन्य प्रमुख समुदाय से अलग नहीं थीं. उनकी ये रिपोर्ट इकॉनोमिक एंड पॉलिटिकल वीकली के दिसंबर 2016 के एक अंक मे प्रकाशित हुई थी.

चित्रण : अरिंदम मुख़र्जी/ दिप्रिंट

दिल्ली में भी लगता है ऐसा ही हुआ है क्योंकि हिंदू और मुस्लिम दोनों ही वर्गों के मतदाताओं का कहना था कि उनके लिए एक ही जैसी चीजें मायने रखती हैं.

चित्रण : अरिंदम मुख़र्जी/ दिप्रिंट

फिर भी, हम जानते हैं कि दिल्ली के मतदाताओं को शाहीन बाग विरोध प्रदर्शन के बारे में पता था (लोकनीति-सीएसडीएस के चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण में 80 प्रतिशत मतदाताओं ने कहा था कि उन्हें इस बात की जानकारी थी) तथा भारत के मुसलमानों ने आमतौर पर सीएए का विरोध किया, जबकि हिंदुओं ने इसका समर्थन किया है(सीवोटर का दिसंबर 2019 का सर्वे).

चित्रण : अरिंदम मुख़र्जी/ दिप्रिंट

यह भी पढ़ें : भारतीय मुसलमानों का प्रतिनिधित्व कौन करता है? सीएए विरोधी प्रदर्शनों से हमें इसका जवाब मिल गया है


और फिर, एक सबूत इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया के एग्जिट पोल में भी दिखा, जब खुद एक्सिस के विश्लेषकों ने स्वीकार किया कि ‘आम आदमी पार्टी (आप) के पक्ष में मतदान करने की वजह पूछे जाने पर मुस्लिम मतदाताओं का कहना था कि ऐसा उन्होंने भाजपा के खिलाफ उसकी जीत की संभावनाओं के कारण किया. दूसरे शब्दों में, दिल्ली के मुस्लिम मतदाताओं ने आप को इसलिए वोट दिया क्योंकि उन्हें लगा कि भाजपा को हराने के लिए वह कांग्रेस के मुकाबले कहीं बेहतर स्थिति में है.’

वर्मा और गुप्ता ने अपने 2016 की रिपोर्ट में लिखा था, ‘राजस्थान, गुजरात, और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में जहां कांग्रेस और भाजपा ही प्रमुख राजनीतिक किरदार हैं, मुसलमानों के पास कोई वास्तविक विकल्प नहीं है. वे कांग्रेस के पक्ष में जमकर मतदान करते हैं. वहीं, आंध्र प्रदेश और असम जैसे राज्यों में कांग्रेस के लिए मुस्लिम समर्थन कम हो जाता है, क्योंकि वहां उनके पास तीसरा विकल्प भी होता है. यही स्थिति केरल और पश्चिम बंगाल में भी है, जहां कि भाजपा या उसके सहयोगी असल मुकाबले में नहीं हैं. इस प्रकार, मुस्लिम वोटों का एकीकरण या बिखराव राजनीतिक प्रतिस्पर्धा की प्रकृति और राज्य विशेष के भीतर उपलब्ध विकल्पों पर निर्भर करता है.’

2014 के बाद से ही मतदाता उत्तरोत्तर धार्मिक आधार पर ध्रुवीकृत होते रहे हैं और लोकनीति-सीएसडीएस के शोधकर्ताओं श्रेयस सरदेसाई और विभा अत्री ने 2019 के चुनावी नतीजों के बाद प्रकाशित अपने लेख में 2019 के लोकसभा चुनावों को सांप्रदायिक रूप से सर्वाधिक ध्रुवीकृत चुनाव करार दिया था.

चित्रण : अरिंदम मुख़र्जी/ दिप्रिंट

यह भी पढ़ें : हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए महात्मा गांधी का अंतिम उपवास कैसे हुआ खत्म


अब ऐसा प्रतीत होता है कि दिल्ली इस रणनीतिक मतदान की श्रृंखला में नवीनतम कड़ी है. राज्य के मुस्लिम-बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान का प्रतिशत सर्वाधिक था, जिससे बड़े स्तर पर राजनीतिकरण और लामबंदी का संकेत मिलता है.

जब हिंदू मतदाता, खास कर उच्च जाति वाले, विकास के नाम पर वोट देने की बात करते हों, तो इसका मतलब ये नहीं है कि हिंदुत्व के मुद्दों और इस तरह भाजपा पर उनका दृढ़ विश्वास नहीं है. इसी तरह, विकास पर ज़ोर देने वाले मुस्लिम मतदाता भी भाजपा को सत्ता से दूर रखने में सर्वाधिक सक्षम दिखती पार्टी के लिए वोट कर सकते हैं.

(लेखिका चेन्नई स्थित डेटा पत्रकार हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

share & View comments