नई दिल्ली: भारत और अफ्रीकी देशों में लगभग 25 साल बाद टिड्डी दलों के फसलों पर प्रकोप के लिये मौसम विशेषज्ञों ने जलवायु परिवर्तन को संभावित वजह बताते हुये भविष्य में भारत सहित पूर्वी अफ्रीका और पश्चिम एशिया के कुछ देशों के लिये टिड्डी के प्रकोप का खतरा बढ़ने की आशंका जताई है.
विशेषज्ञों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप मौसम की चरम गतिविधियां बढ़ी हैं . और इसका असर यह हुआ कि हिंद महासागर एवं अरब सागर का तापमान पिछले दो साल में बढ़ा जो कि टिड्डियों के पनपने की वजह हो सकती है.
उल्लेखनीय है कि कृषि मंत्रालय ने भी पिछले दिनों संसद को भारत में गुजरात और राजस्थान के पांच जिलों में फसलों को पिछले महीने टिड्डी दल से हुये नुकसान की जानकारी से अवगत कराया है. कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने राज्यसभा में बताया कि टिड्डी के प्रकोप की वजह और इसके प्रभाव का अध्ययन जारी है.
चौधरी ने बताया कि टिड्डियों से फसल को हुये नुकसान का आंकलन करने के लिये केन्द्र सरकार का दल भेजा गया है. गुजरात सरकार से मिले प्रतिवेदन में 18,727 हेक्टेयर और राजस्थान सरकार के प्रतिवेदन में 1,49,821 हेक्टेयर क्षेत्र में फसल प्रभावित हुयी है.
इस बीच संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की हाल ही में जारी रिपोर्ट में मौसम की चरम और असामान्य गतिविधियों को टिड्डियों के पनपने की वजह बताया गया है. रिपोर्ट में मौसम की चरम गतिविधियों के लिये हिंद महासागर क्षेत्र में चक्रवात की असामान्य गतिविधियां भी प्रमुख वजह मानी जा रही हैं . रिपोर्ट में मौसम विज्ञानियों के हवाले से आगाह किया गया है कि अगर कार्बन उत्सर्जन में वैश्विक स्तर पर कमी नहीं आयी तो भविष्य में इस तरह के खतरे बढ़ेंगे.
रिपोर्ट में टिड्डियों के प्रकोप से जुड़े एफएओ के विशेषज्ञ कीथ क्रेसमेन के हवाले से कहा गया है कि टिड्डियों का पनपना पूरी तरह से प्राकृति से जुड़ी घटना है. रोचक पहलू यह है कि इनकी संख्या और प्रकोप का क्षेत्र, मौसम और पर्यावरणीय परिस्थितियों पर निर्भर करता है.
क्रेसमेन के मुताबिक हिंद महासागर और अरब सागर में चक्रवातीय गतिविधियों के कारण बारिश के इजाफे से, तटीय क्षेत्रों में नमी के बढ़ने से महासागरों के तापमान में इजाफा होना स्वभाविक है. उनकी दलील है कि पश्चिमी हिंद महासागर और अरब सागर क्षेत्र में पिछले कुछ सालों में ग्रीष्म ऋतु से पहले और बाद में चक्रवात की घटनायें तेजी बढ़ीं.
रिपोर्ट में पुणे स्थित भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान के महासागरीय जलवायु विशेषज्ञ डा. रॉक्सी कोल मैथ्यू के हवाले से कहा गया है कि पिछले दो सालों के दौरान अरब सागर और पश्चिम हिंद महासागर, सामान्य से अधिक गर्म थे. मैथ्यू ने वैश्विक ताप वृद्धि को समुद्र के बढ़ते तापमान का कारण बताया है. उन्होंने दलील दी कि मानसून के उत्तरार्ध में भारत के पश्चिमी तट (राजस्थान सहित) पर लंबे समय तक भारी बारिश होना और मानसून के बाद चक्रवात पश्चिम हिंद महासागर के तापमान में बढ़ोतरी की संभावित वजह हो सकती है.
वर्ष 1993 में राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा और पंजाब ही नहीं, उत्तर प्रदेश के भी कुछ हिस्सों में इन टिड्डी दलों ने नुकसान पहुंचाया था. टिड्डी चेतावनी संगठन कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के तहत आता है. संगठन कृषि और खाद्य संगठन के साथ अन्य देशों से भी जुड़ा है और टिड्डी दलों की स्थिति की अद्यतन जानकारी रखता है. कृषि मंत्रालय ने टिड्डी दलों से बचाव के लिए राजस्थान में आठ और गुजरात में दो टिड्डी परिमंडल कार्यालय बनाए हुए हैं जिनका नियंत्रण जोधपुर में टिड्डी चेतावनी संगठन के पास है.
भारत में टिड्डी चेतावनी संगठन की स्थापना 1946 में की गई. उसके पहले 1926 से 1931 के दौरान टिड्डियों से करीब दस करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था.
टिड्डी के प्रकोप से हुये नुकसान के आंकलन के बारे में एफएओ की रिपोर्ट में बताया गया है कि केन्या में 2400 वर्ग किमी क्षेत्र में हुये टिड्डियों के प्रकोप से फसलों को जो नुकसान हुआ उससे लगभग 8.5 करोड़ लोगों के खाद्यान्न की आपूर्ति हो सकती थी. रिपोर्ट में यह संकट आने वाले महीनों में दक्षिणी सूडान, युगांडा, ओमान, पाकिस्तान, भारत, सऊदी अरब और दक्षिणी ईरान में बढ़ने की आशंका जतायी है.