नई दिल्ली: वैज्ञानिक अनुसंधानों और विकास पर ज्यादा से ज्यादा खर्च करने की वकालत करते हुए रसायन शास्त्र में नोबेल पुरस्कार पाने वाले वैज्ञानिक वेंकटरमण रामकृष्णन ने कहा कि भारत का लक्ष्य नोबेल पुरस्कार पाना नहीं बल्कि देश में ‘अव्वल दर्जे की ऐसी वैज्ञानिक संस्कृति’ विकसित करना होना चाहिए जो लोगों की समस्याओं को सुलझााए.
रामकृष्णन ने कहा, ‘नोबेल पुरस्कार अच्छे विज्ञान का फल है. वह अच्छे विज्ञान का लक्ष्य नहीं है. अगर अगले कुछ साल में भारत को एक नोबेल मिल भी जाता है तो इसका मतलब यह नहीं होगा कि अचानक भारत में विज्ञान बेहतर हो गया है. इसका सिर्फ इतना मतलब होगा कि नोबेल पाने वाले सर सी. वी. रमण की तरह किसी एक व्यक्ति ने तमाम अवरोधों को पार कर यह मुकाम हासिल किया है.’
उन्होंले कहा कि अगर भारत को 15-20 नोबेल पुरस्कार मिल जाएं तो अलग बात होगी.
यह पूछने पर कि क्या उन्हें लगता है कि अगले 10 साल में भारत को विज्ञान के क्षेत्र में कोई नोबेल मिल सकता है, स्ट्रक्चरल बायोलॉजी के वैज्ञानिक ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि नोबेल पुरस्कार लक्ष्य होना चाहिए. अगर वैज्ञानिक संस्थाएं प्रगति करती हैं और बेहतर करती हैं तो वह अच्छा रहेगा…. ऐसे में लक्ष्य अव्वल दर्जे की ऐसी वैज्ञानिक संस्कृति विकसित करना होना चाहिए जो लोगों की महत्वपूर्ण समस्याओं का समाधान करे.’
भारतीय मूल के रामकृष्णन अब ब्रिटिश-अमेरिकी नागरिक हैं.
रॉयल सोसायटी के प्रेसिडेंट रामकृष्णन का कहना है कि भारत जिन क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित कर सकता है, वे हैं… एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस (एएमआर), कीटाणु नियंत्रण, जैव विविधता, पर्यावरण और उसमें आ रही समस्याएं, पर्यावरण संरक्षण, गैर-संक्रामक बीमारियां.
राइबोसोम के स्ट्रक्चर और कामकाज पर अनुसंधान को लेकर रामकृष्णन को 2009 में उनके दो अन्य साथियों सहित रसायन विज्ञान के क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार दिया गया था. रामकृष्णन ने अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) के लिए किए गए बजट प्रावधानों की आलोचना करते हुए कहा कि पिछले 10 साल से इसे जीडीपी का बहुत छोटा हिस्सा मिल रहा है.
वैज्ञानिक का कहना है कि भारतीय संविधान वैज्ञानिक विचार की बात करता है, लेकिन बजट और संविधान की बातों में कोई मेल नहीं है.
वैज्ञानिक ने कहा, ‘संविधान में विज्ञान की बात की गई है, लेकिन किसी भी सरकार ने वर्षों से आरएंडडी का बजट जीडीपी का 2.4 प्रतिशत से ज्यादा नहीं रखा है. जब तक भारत चीन और अन्य देशों जितना धन निवेश नहीं करता, वह प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता.’
उन्होंने चेताया कि ऐसा ही चलता रहा तो भविष्य में भारत सिर्फ दूसरे देशों के स्तर तक पहुंचने का प्रयास करता रहेगा.