वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ाने के उपायों से संबंधित बड़ी अपेक्षाओं के बीच 2020-21 का केंद्रीय बजट पेश किया. अर्थव्यवस्था में सुस्ती और राजकोषीय दबाव के मौजूदा माहौल में ये काम आसान नहीं था.
बजट में भले ही मांग बढ़ाने में मददगार कई उपाय हैं, पर अर्थव्यवस्था को लेकर किसी बड़ी राजकोषीय पहल की उम्मीदों पर बजट खरा नहीं उतरा.
वैसे सच्चाई यही है कि बड़े राजकोषीय पहलकदमियों का स्कोप बहुत कम था. ऐसा लगता है कि वित्त मंत्री ने परिस्थितियों के अनुरूप जो कुछ भी संभव था, करने की कोशिश की है. पर वह संभवत: उन नीतिगत और विधायी बदलावों को लेकर और कदम उठा सकती थीं, जोकि अनिवार्यत: कर, राजस्व और सरकारी व्यय से संबद्ध नहीं हैं. हालांकि ये काम बाद में भी किया जा सकता है क्योंकि ये विषय धन विधेयक से संबद्ध नहीं हैं.
सार्वजनिक ऋण प्रबंधन एजेंसी या वित्तीय निदान प्राधिकरण की स्थापना जैसे वित्तीय विधायी सुधार आगामी महीनों में किए जा सकते हैं. दरअसल अर्थव्यवस्था की भावी दिशा काफी कुछ बजट के बाद किए जाने वाले सुधारों पर निर्भर करेगी.
राजकोषीय घाटे को लेकर बढ़ी पारदर्शिता
बजट में राजकोषीय विस्तारवाद का रुख अपनाया गया है. सीतारमण को श्रेय मिलना चाहिए कि राजकोषीय घाटे के मामले में वह पूर्व के वर्षों के मुकाबले अधिक पारदर्शिता बरतते दिखाई देती हैं.
यह भी पढ़ें : निर्मला सीतारमण के बजट से दो बिरादरी को सबसे ज्यादा फायदा- चार्टर्ड एकाउंटेंट और वित्त सलाहकार
सर्वप्रथम, उन्होंने राजकोषीय जवाबदेही एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम के तहत तय लक्ष्यों से थोड़ा दूर हटने की घोषणा की. राजकोषीय घाटे का अनुमान 2019-20 के लिए (संशोधित अनुमान) 3.8 प्रतिशत, और 2020-21 के लिए (बजट अनुमान) 3.5 प्रतिशत है. जबकि एफआरबीएम लक्ष्य 2019-20 के लिए 3.3 प्रतिशत और 2020-21 के लिए 3 प्रतिशत थे. एफआरबीएम में ये प्रावधान है कि राजकोषीय घाटे के अनुमानित लक्ष्य से विचलन पर स्वत: ही ऐहतियाती कदम उठाए जाने लगते हैं. सीतारमण ने दोनों ही वर्षों के लिए लक्ष्य से 0.5 प्रतिशत के विचलन का फैसला किया है.
दूसरी बात, लक्ष्य से दूर जाने के अलावा सीतारमण ने ये भी कहा कि वह सरकार द्वारा लिए गए उन ऋणों की एक सूची जारी करेंगी जोकि सरकारी उधार के आंकड़ों में दर्ज नहीं हैं. बजट आंकड़ों की विश्वसनीयता बढ़ाने की दिशा में ये एक स्वागतयोग्य कदम है.
कर रियायतें
अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए वित्त मंत्री ने सालाना 15 लाख रुपये से कम आय वाले परिवारों को कुछ कर रियायतें दी हैं. नई टैक्स दरें आयकर स्लैब के समानांतर रखी गई है, और कर रियायत नहीं लेने के इच्छुक करदाता इस विकल्प को चुन सकते हैं. छोड़ी जा सकने वाली कर रियायतों के विवरण सामने आने पर ही इस प्रस्ताव के प्रभाव का आकलन संभव हो सकेगा.
जिन कर रियायतों का सर्वाधिक उपभोग होता है उनमें से एक है आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत मिलने वाली छूट, क्योंकि अधिकांश वेतनभोगी व्यक्ति पेंशन या प्रोविडेंट फंड में पैसे कटाता है, या बीमा खरीदता है. यदि कम आयकर दर का फायदा उठाने के लिए लोग इस रियायत को छोड़ते हैं, तो फिर इसका प्रभाव शायद अस्पष्ट रहे. यदि कर रियायतें नहीं मिलें तो लोग शायद इन माध्यमों के ज़रिए बचत नहीं करना चाहें.
लोगों के बचत कम करने का एक परिणाम मांग में वृद्धि के रूप में दिखेगा क्योंकि लोगों के पास खर्च करने के लिए अतिरिक्त पैसे होंगे. पर दूसरी ओर, इसके कारण निवेश के लिए दीर्घावधि की बचत की मात्रा कम हो सकती है, जोकि भारतीय अर्थव्यवस्था में पहले ही अपर्याप्त है.
बजट के आयकर संबंधी प्रावधानों का कुल मांग पर शायद सीमित असर ही दिखे.
अर्थव्यवस्था को राजकोषीय बढ़ावा
अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने वाले बहुप्रतीक्षित राजकोषी उपाय की संभवत: अवास्तविक अपेक्षा को पूरा नहीं किए जाने पर ऐसा लगता है कि बहुतों को बजट से निराशा हुई है.
यह भी पढ़ें : मोदी ने बजट को साधारण कवायद बना दी है, बड़ी घोषणाएं राजनीतिक ज़रूरत के हिसाब से कभी भी हो सकती हैं
हालांकि, इसका मतलब ये नहीं है कि सरकार अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने वाले उपाय नहीं कर सकती है. वर्तमान संकट के कारणों में से एक है वित्तीय सेक्टर की खराब हालत. इसलिए वित्तीय प्रणाली की स्थिति में सुधार के उपाय भी संकट के समाधान की प्रक्रिया का हिस्सा हैं. इनमें से बहुत से उपायों के लिए राजकोषीय संसाधनों की दरकार नहीं है.
उदाहरण के लिए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को कर रियायतों से कहीं अधिक पूंजी की आसान उपलब्धता की ज़रूरत है. बैंकिंग सेक्टर एमएसएमई की ऋण जरूरतों में बमुश्किल 5 प्रतिशत का योगदान देता है. बैंकिंग सेक्टर मुख्यतया बड़ी कंपनियों को ऋण उपलब्ध कराता है, जो बैंकों से ऋण लेने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं क्योंकि ये ऋण के सबसे सुविधाजनक स्रोत हैं.
यदि सरकार एक विस्तृत और गतिशील बॉन्ड बाज़ार विकसित करने का प्रयास करे तो शायद बैंक कम साख वाले एमएसएमई उद्यमों को कर्ज देने पर ध्यान देना शुरू कर दें, जिनकी बाज़ार में अच्छे साख वाली बड़ी कंपनियों की मौजूदगी के कारण अभी अनदेखी की जाती है.
अपने बजट भाषण में पिछले साल सीतारमण ने एक कहानी सुनाई थी. उन्होंने राजा को दी गई सलाह के रूप में उल्लिखित एक तमिल कविता के हवाले से कहा था: ‘ज़मीन के एक छोटे से टुकड़े पर धान की खेती से प्राप्त चावल के कुछ ढेर एक हाथी के लिए पर्याप्त होंगे. लेकिन यदि हाथी खुद खेत में घुसकर फसल खाने लगे तो? ऐसे में हाथी जितनी फसल को रौंदेगा, उससे कहीं कम खाएगा!’
कर विभाग को वित्त मंत्री सीतारमण की सलाह सुननी चाहिए. शायद इसी संदर्भ में उन्होंने उत्पीड़न रोकने के लिए करदाताओं का एक चार्टर बनाने की घोषणा की है.
यह भी पढ़ें : कहीं भी कर नहीं देने वाले एनआरआई को अब भरना पड़ेगा भारत में टैक्स: निर्मला सीतारमण
ये एक ऐसा कदम है जो निवेशकों के भरोसे को बढ़ाने में, और अर्थव्यवस्था के संकुचन को रोकने में मददगार साबित हो सकेगा.
(लेखिका एक अर्थशास्त्री और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर हैं. व्यक्त विचार उनके निजी हैं)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)