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Wednesday, 6 November, 2024
होममत-विमतहर पार्टी अपने राजनीतिक फायदे-नुकसान के हिसाब से नागरिकता संशोधन कानून को भुना रही है

हर पार्टी अपने राजनीतिक फायदे-नुकसान के हिसाब से नागरिकता संशोधन कानून को भुना रही है

हर पार्टी अपने राजनीकित फायदे-नुकसान के हिसाब से इस नागरिकता संशोधन कानून का इस्तेमाल कर रही है. सरकार की जिम्मेदारी है कि इस कानून से जुड़े भ्रम दूर करे और अपना स्टैंड साफ करे.

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नागरिकता संशोधन कानून लागू हो गया है. इस पर अभी देशभर में बहस छिड़ी है. कई जगह विरोध प्रदर्शन भी हो रहे हैं. पिछले दिनों कई शहरों में हिंसा भी हुई. सरकार झुकने को तैयार नहीं और विपक्षी दल मानने को. चूंकि अब ये कानून बन गया है ऐसे में इस कानून को लेकर जागरुकता बेहद जरूरी है. सोशल मीडिया व वाॅट्सऐप पर इससे जुड़ी तमाम अफवाएं फैलाई जा रही हैं जिससे हम सबको बचना चाहिए और मुद्दे को गहराई से समझकर दूसरों को भी जागरुक करना चाहिए.

सीएए के खिलाफ याचिकाएं दायर की गई हैं, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा कि वह उन याचिकाओं के खिलाफ अपना जवाब दाखिल करे जिसमे यह दावा किया गया है कि यह संविधान का उल्लंघन है. याचिकाओं में बिल को मुसलमानों के खिलाफ भेदभावपूर्ण बताया गया है और संविधान में सन्निहित समानता के अधिकार का उल्लंघन घोषित किया गया है. यह कानून उन लोगों पर लागू होता है जो धर्म के आधार पर उत्पीड़न के कारण भारत में शरण लेने के लिए मजबूर हैं या मजबूर थे. इसका उद्देश्य ऐसे लोगों को अवैध प्रवास की कानूनी कार्यवाही से बचाना है कट-ऑफ की तारीख 31 दिसंबर 2014 रखी गई है.

यह अधिनियम पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू, सिख, पारसी, बौद्ध और ईसाई के अवैध प्रवासियों की परिभाषा को परिष्कृत करने के लिए निर्धारित किया गया है, जो बिना दस्तावेज के भारत में रहते हैं.


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बिल के पीछे केंद्र सरकार का तर्क यह है कि जो अल्पसंख्यक समूह मुस्लिम बहुसंख्यक देशों में उत्पीड़न से बचने हेतु भारत में आये है वो हमारी जिम्मेदारी हैं. हालांकि यह तर्क स्वयं ही विवादपूर्ण है – विधेयक सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा नहीं करता है और न ही इसमें सभी पड़ोसी देशों के उत्पीड़ित अल्पसंख्यंकों को शामिल किया गया है. अहमदिया मुस्लिम संप्रदाय और शियाओं को पाकिस्तान में भेदभाव का सामना करना पड़ता है, रोहिंग्या मुसलमानों और पड़ोसी बर्मा में हिंदुओं को पीड़ित किया जाता है, जिसमें पड़ोसी श्रीलंका में ईसाई तमिल भी शामिल हैं.

गृहमंत्री अमित शाह का कहना है कि अगर कांग्रेस धर्म के आधार पर देश के विभाजन के लिए सहमत नहीं होती तो यह बिल ज़रूरी नहीं होता. किसी भी तरह, देश के सभी संस्थापक एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के लिए प्रतिबद्ध थे, जहां सभी नागरिक नागरिकता का आनंद लेते थे, चाहे वे किसी भी धर्म के हों.

पूरे भारत में नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ विरोध तेज हो गया है, जिससे आम जनमानस भीषणता, क्रूरता और विभिन्न विचारधाराओं के बीच जूझ रहा है. हालांकि इंटरनेट प्रतिबंध व विभिन्न शहरों में भय और अशांति को कानून और व्यवस्था की कमज़ोरी के रूप में लिया जा सकता है लेकिन पूरी तरह से सरकार और पुलिस बल को दोष देने से विशेष रूप से कुछ स्पष्ट नहीं होता है. सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस कार्रवाई में यूपी में 20 लोगों की कथित रूप से मौत हो गई है. यूपी के ही एक पुलिस अधिकारी का वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें उन्हें स्थानीय मुसलमानों को यह कहते हुए देखा जा सकता है कि विरोध करने वालों को पाकिस्तान जाना चाहिए. ऐसे शब्दों की उम्मीद पुलिस अधिकारियों से नहीं की जाती.

मैंगलोर में जहां पुलिस ने 6 एफआईआर दर्ज की हैं, जिसमें शहरों में हिंसा के लिए अज्ञात मुस्लिम व्यक्तियों को दोषी ठहराया गया है. यह आश्चर्यपूर्ण है की पुलिस कैसे ‘अज्ञात लोगों’ की धार्मिक मान्यताओं का पता लगाती है और किसी भ्रामक अनुमान से जो पक्षपाती धारणाओं को भी उकसाता है ऐसे मामलों में काफी संवेंदनशील होना जरूरी है . यहां हमें ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है कि सीएए शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए है न की किसी की नागरिकता छीनने के बारे में है. लोगों को सीएए से संबंधित पहलुओं के समझ से परे स्पष्टीकरणों को सुनने और निहित स्वार्थ समूहों द्वारा गलत सूचना से बचाव की आवश्यकता है. जबकि पुलिस को हिंसा और व्यवधान के लिए दोषी ठहराया जा रहा है, मुज़्ज़फरनगर जहां हाल ही में 48 लोगों को गिरफ्तार किया गया था और हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बजाय 67 दुकानों को सील कर दिया गया था, इस दौरान एक दर्जन पुलिसकर्मी घायल हो गए थे और वाहनों को तोड़ दिया गया था.


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देश के विभिन्न हिस्सों में सीएए के समर्थन में रैलियां हुई हैं और उनमें भी भीड़ जुटी बीजेपी इन रैलियों के माध्यम से इससे जुड़े भ्रम दूर करने का प्रयास कर रही है तो वहीं कांग्रेस-सपा हिंसा में मारे गए युवकों के घर जाकर उनका दर्द बांट रही है. हर पार्टी अपने राजनीतिक फायदे-नुकसान के हिसाब से इस मुद्दे का इस्तेमाल कर रही है. एक धर्मनिरपेक्ष राज्य का नागरिक होने के नाते यह हमारा दायित्व है कि आधारहीन भय न फैलाने, सार्वजनिक संपत्तियों को जलाने, पुलिस कर्मियों को मारने और एक नकारात्मक प्रभाव का हिस्सा बनने से बचें. वहीं सरकार की भी जिम्मेदारी है कि इस कानून से जुड़े भ्रम दूर करे और साथ ही एनआरसी को लेकर भी अपना स्टैंड साफ करे और सबको भरोसे में लेकर चले ताकि देश में शांति का माहौल पैदा हो. इन अहम मुद्दों पर जागरुकता ही असली समाधान है.

(अनु बजाज उत्तर प्रदेश की समाजिक कार्यकर्ता हैं और ये उनके निजी विचार हैॆ )

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