नई दिल्ली: जब हम 1971 की क्लासिक फिल्म आनंद के बारे में सोचते हैं तो हमें याद आते हैं राजेश खन्ना और उनके ‘बाबू मोशाय’ को याद करते हैं और साथ ही याद करते हैं वह खूबसूरत गाना. लेकिन एकबार फिर खन्ना के आनंद को याद कीजिए कि कैसे वह आम आदमी को मुरारी लाल बुलाया करते थे. लगभग 50 साल बाद मुरारी लाल ने एकबार फिर से वापसी की है.
कवि, संगीतकार और लेखक गुलज़ार उस टीम का अभिन्न अंग थे जिसने आनंद लिखी. गुलज़ार ने मुरारी लाल के माध्यम से हर व्यक्ति की चिंता को सामने लाने की कोशिश की थी. मुरारी लाल वह व्यक्ति है जो किसी गली नुक्कड़ पर बनी चाय की दुकान पर चाय पीता है, सब्जी विक्रेता से सौदेबाजी करता है, बस से ऑफिस जाता है. गुलजार ने अपनी छोटी-छोटी कविताओं के माध्यम से महाराष्ट्र में खेले जा रहे कपटी राजनीतिक खेलों पर तीखी टिप्पणी की है और जनता के गुस्से को सरकार तक पहुंचाने का काम किया है.
आईए देखें गुलज़ार की कविताएं क्या कहती हैं
मुरारीलाल #1
मुरारीलाल के माथे से बल नहीं जाते!
बड़े मुश्टंडे मुर्ग़े थे गली में,
बचा के रखना मुश्किल हो गया था मुर्ग़ियों को.
कभी सब टोकरी में रखके ऊपर ईंट रख देते,
तो चढ़ के ईंटों पर वो बांग देते थे,
उन्हें दड़बों में बन्द करते,
तो दरवाज़ों पे दस्तक आने लगती थी.
बसों में भर के ले जाते हैं अब,
उन्हें अब होटलों में बन्द रखते हैं.
कोई ’ईगो’ नहीं इन मुर्गियों की,
फ़क़त वोटिंग में आकर अन्डे देती हैं!
मुरारीलाल #2
मुरारीलाल के माथे से बल नहीं जाते!
बड़ी महंगाई है यारो,
कि भाव आस्मां छूने लगे हैं.
लगन बेटी की सर पे आ गयी है,
बड़ी मुश्किल से ’मंगलसूत्र’ बनवाया,
दहेज में और क्या दूं?
प्याज़ रख दूं?
कि भाव सोना छूने लग गया है!
मुरारीलाल #3
मुरारीलाल के माथे से बल नहीं जाते!
उठा कर ‘इंडिया टाईम्ज़’-
मेरे अब्बू दिखाते हैं मुझे,
आसाम और बंगाल और दिल्ली की तस्वीरें
ये मंज़र पहले भी देखे हैं हमने
वो सन 1942 था!
निकाला था जब अंग्रेज़ों को हमने
Quit India की तहरीक थी वो भी!
बहुत गुस्सा था लोगों में-
उतर आये थे सड़कों पर
जलायी जा रही थीं मोटरें, ट्रामें, बसें,
सरकारी सब कुछ
कुछ ऐसे ही-
पोलिस और फ़ौज से टकराओ होता था
बहुत सा खू़न मासूमों का गिरता था
वो Quit India की तहरीक दिखी थी!
मेरे अब्बू-
ये 2019 है अब
ये फिर Quit India किस के लिये है?
मुरारीलाल के माथे से बल नहीं जाते!
मुरारीलाल #4
हाथी मरे को मरने दो___
प्यादों की मत फ़िक्र करो
फ़ीला हटा लो__
घोड़े ख़रीदो, घोड़े,
घोड़ो का व्यापार करो___
ढ़ाई घर चलते हैं ये…
दायें हो या बायें!
वज़ीर बचाओ__
कैसी ये शतरंज चली है महाराष्ट्र में__
मुरारीलाल के माथे से बल जाते नहीं!
खून की ख़ुशबू
खून की ख़ुशबू, बड़ी बदमस्त है,
हमारा हुक्मरां कमबख़्त है.
समय बराबर कर देता है,
समय के हाथ में आरी है.
वक़्त से पंजा मत लेना,
वक्त्त का पंजा भारी है.
सींग हवा के ना पकड़ों,
आंधी है ये ना जकड़ो.
काल की, अरे काल की लाठी बड़ी ही सख़्त है.
खून की ख़ुशबू, बड़ी बदमस्त है,
हमारा हुक्मरां कमबख़्त है.