नई दिल्ली : नरेंद्र मोदी सरकार महीनों से किसानों की आय दोगुनी करने के साधन के रूप में ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को बढ़ावा दे रही है. लेकिन, सार्वजनिक समर्थन के बावजूद इसको बढ़ावा देने के लिए बजट का आवंटन बहुत कम है.
जुलाई के बजट के बाद से प्राकृतिक खेती करने पर जोर दिया, जिसमें रसायनों का उपयोग वर्जित है. जिसमें शून्य क्रेडिट को शामिल किया था, तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अक्सर इसका उल्लेख किया है कि मूल बातों को ध्यान में रखकर ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग से किसानों की आय को दोगुना कैसे किया जाये. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन ऑफ पार्टीज के 14वें सम्मेलन को कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन के दौरान संबोधित करते हुए इसके बारे में भी बात की थी.
कृषि मंत्रालय के अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कृषि पद्धति को बढ़ावा देने के लिए बजटीय आवंटन केवल 325 करोड़ रुपये है.
एक वरिष्ठ मंत्रालय के अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा देश में ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग के प्रचार के बाद, परम्परागत कृषि विकास योजना, राष्ट्रीय कृषि मिशन के तहत मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन योजना का एक उप-घटक के पास केवल 325 करोड़ का परिव्यय (प्रारूप) है.
अधिकारी ने कहा कि इसमें से 120 करोड़ रुपये कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग को आवंटित किए गए हैं, ताकि कई स्थानों पर प्रयोग किए जा सकें और ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग की व्यवहार्यता स्थापित करने के लिए निष्कर्ष निकाला जा सके.
जैविक खेती और अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजनाओं पर नेटवर्क प्रोजेक्ट के तहत, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद मोदीपुरम (उत्तर प्रदेश), लुधियाना (पंजाब), पंतनगर (उत्तराखंड) और कुरुक्षेत्र (हरियाणा) में इन प्रयोगों की देखरेख कर रहा है.
अधिकारी ने कहा, ‘हालांकि छोटे और मध्यम किसानों के लिए ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग की व्यवहार्यता का आकलन करने और इसका परिणाम आने में कम से कम दो से तीन साल लगेंगे. शेष बजट आवंटन का उपयोग जैविक खेती करने वाले गांवों में अभ्यास को बढ़ावा देने के लिए किया जाना है.’
अधिकारी ने कहा, ‘2018-20 के बजट में रासायनिक उर्वरक पर सब्सिडी लगभग 10,000 करोड़ रुपये बढ़ाकर 79,996 करोड़ रुपये कर दी गई. इसमें से 53,629 करोड़ रुपये यूरिया सब्सिडी के लिए और 26,367 करोड़ रुपये पोषक तत्वों पर आधारित सब्सिडी पर है.’
लेकिन ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को बढ़ावा देने की कमी के लिए कृषि मंत्रालय और नीति आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों से विरोध का सामना करने के बावजूद कुछ राज्य और मोदी सरकार बड़े पैमाने पर इसी विधि को देख रहे हैं.
राज्य का समर्थन
कृषि मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, महाराष्ट्र और केरल जैसे राज्यों ने ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग में रुचि दिखाई है. लेकिन केवल आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश ने इसके लिए राज्य के बजट से पूंजी आवंटित की है.
कृषि मंत्रालय के एक दूसरे अधिकारी ने कहा, ‘आंध्र प्रदेश ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को अपनाने में अग्रणी राज्य है. कर्नाटक ने ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को अपनाने के लिए 50 करोड़ रुपये का आवंटन किया है, जबकि हिमाचल प्रदेश ने इसके लिए केवल 25 करोड़ रुपये रखे हैं.’
हालांकि, आंध्र प्रदेश ने पहले ही किसानों के बीच ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिए इस वित्तीय वर्ष में लगभग 300 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. क्योंकि सरकार 2024 तक ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग के तहत 9 मिलियन हेक्टेयर, राज्य में पूरी खेती योग्य भूमि लाने के लिए देखती है.
दूसरे अधिकारी ने कहा, ‘इसकी अनुमानित लागत लगभग 15,000-17,000 करोड़ रुपये है.’
आंध्र मॉडल
ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को बढ़ावा देने और इसे लागू करने के लिए आंध्र प्रदेश सरकार ने 2022 तक राज्य में कम से कम 691 ग्राम पंचायतों तक पहुंचने का लक्ष्य रखते हुए एक लाभकारी संगठन रायथू साधिक संस्था (आरवाईएसएस) की स्थापना की है, जिसमें 35 लाख किसान हैं.
आरयूएसएस में एक वरिष्ठ सलाहकार और खेत संरक्षक मुरली धर ने कहा, ‘पिछले तीन वर्षों में, हमने 6.25 लाख किसानों को शामिल किया है. जिनमें से लगभग 4 लाख रसायनिक मुक्त कृषि का अभ्यास करते हैं और बाकी वे हैं जो विशुद्ध रूप से ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग का पालन करते हैं. राज्य में पांच लाख एकड़ जमीन अब ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग के तहत आती है.
धार ने कहा कि हम आंध्र प्रदेश में ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिए केएफडब्लू (एक जर्मन बैंक) से कम लागत वाले ब्याज ऋण प्राप्त करने के अंतिम चरण में हैं.
मंत्रालय के अधिकारी ने कहा कि अजीम प्रेमजी फिलांथ्रोफिक पहल ने आंध्र में ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग के समर्थन के लिए 100 करोड़ रुपये दिए, खाद्य और कृषि संगठन ने भी 1 करोड़ रुपये दिए.
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