रांची/नई दिल्ली : झारखंड में विधानसभा चुनाव के चौथे चरण का प्रचार शनिवार को थम गया. इस चरण में 15 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव होने हैं. धनबाद, देवघर, गिरिडीह और बोकारो में फैली इन सीटों पर भाजपा का दबदबा रहा है. नक्सल प्रभावित बागोदर, जमुआ, गिरिडीह, टुंडी और डुमरी में मतदान 3 बजे ही खत्म हो जाएगा जबकि बाकी जगहों पर 5 बजे तक चलेगा. इस चरण में ओबीसी आरक्षण बड़ा मुद्दा बना हुआ है.
भाजपा की तरफ से गृहमंत्री अमित शाह, स्मृति ईरानी, जेपी नड्डा, नितिन गडकरी, झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस चरण के लिए चुनाव प्रचार किया. दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी और लोकसभा में हारे हुए भाजपा उम्मीदवार दिनेशलाल यादव निरहुआ भी चुनाव प्रचार करने पहुंचे. गौरतलब है कि दोनों ही लोग प्रसिद्ध भोजपुरी गायक हैं. वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 और 17 दिसंबर को झारखंड में रैली करेंगे ताकि 20 दिसंबर को होने वाले आखिरी चरण के मतदान में भाजपा की स्थिति मजबूत बनाई जा सके.
जबकि कांग्रेस, राजद और झामुमो गठबंधन के लिए हेमंत सोरेन हीं मुख्य चेहरा हैं.
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विपक्ष के लिए ओबीसी आरक्षण है मुख्य मुद्दा
चूंकि इस चरण में धनबाद, बोकारो और सिंदरी जैसे औद्योगिक इलाके हैं, लिहाजा यहां कितने लोगों को रोजगार मिला है यह मुद्दा उठता है. साथ ही एजुकेशनल इंस्टीट्यूट और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की बात भी सामने आती है.
विभाजन पूर्व बिहार में ओबीसी आरक्षण 27% था, पर विभाजन के बाद झारखंड में इसे 14% कर दिया गया. बोकारो के आदेश कुमार रिजर्वेशन की बात पर तमतमा उठते हैं- झारखंड के ओबीसी के साथ ये भेदभाव क्यों? उनके साथ खड़े लड़के भी हां में हां मिलाते हैं.
विपक्षी राजद, कांग्रेस और झामुमो गठबंधन ने बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और ओबीसी को 27% रिजर्वेशन को मुद्दा बनाया है. झारखंड में एसटी, एससी और ओबीसी रिजर्वेशन क्रमशः 27, 11 और 14% है.
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इकॉनॉमिक वीकर सेक्शन के लिए घोषित आरक्षण को यहां लागू किया गया है. इस बाबत जनवरी 2019 में विधानसभा में चर्चा के दौरान प्रश्नों का उत्तर देते हुए रघुबर दास ने कहा था कि 67 सालों से जनरल कैटेगरी (सामान्य वर्ग) के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए किसी ने नहीं सोचा था. पीएम ने सोचा है. हालांकि ओबीसी रिजर्वेशन को बढ़ाने का कोई विचार नहीं है. ओबीसी रिजर्वेशन को लेकर झामुमो सबसे ज्यादा आक्रामक है. उनका कहना है कि सत्ता में आए तो एससी, एसटी और ओबीसी के लिए कुल 67% रिजर्वेशन देंगे. वहीं कांग्रेस ने भी ओबीसी रिजर्वेशन को डबल करने का वादा किया है. हेमंत सोरेन ने लगातार ये सुनिश्चित किया है कि ओबीसी रिजर्वेशन मुद्दा बना रहे.
गौरतलब है कि झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने अपने कार्यकाल में ये फैसला लिया था कि एसटी, एससी और ओबीसी को क्रमशः 32, 14 और 27% आरक्षण दिया जाएगा. पर हाईकोर्ट ने इसे 50% से ऊपर मानते हुए खारिज कर दिया. बाबूलाल मरांडी इस बार भी आरक्षण को मुद्दा बना रहे हैं.
भाजपा के लिए निर्णायक फेज
इन 15 सीटों पर भाजपा के 11 विधायक हैं. जबकि झामुमो और आजसू के एक-एक विधायक. इस लिहाज से ये फेज भाजपा का अपना है, चूंकि यहां शहरी इलाके बहुत हैं और ट्राइबल आबादी भी बाकी फेज की तुलना में कम है. वहीं सिंदरी से भाजपा विधायक फूलचंद मंडल को इस बार टिकट नहीं मिला है तो वो झामुमो में शामिल हो गये हैं.
इस फेज में कुल 221 उम्मीदवार हैं. एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से 75 यानी 34% उम्मीदवारों के ऊपर आपराधिक मामले दर्ज हैं. वहीं 48 यानी 22% के ऊपर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. चार उम्मीदवारों पर महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले दर्ज हैं. तीन ऐसे उम्मीदवार हैं जो दोष सिद्ध हो चुके हैं. लगभग एक तिहाई उम्मीदवार करोड़पति हैं. वहीं कुल 10% महिला उम्मीदवार हैं.
देवघर से बहुजन मुक्ति पार्टी के उम्मीदवार बसंत कुमार ने अपने शपथ पत्र में ‘जीरो एसेट’ घोषित किया है यानी उनके पास पैसा-रुपया, जमीन कुछ भी नहीं है.
इस फेज में भी भाजपा के मुख्य मुद्दे यही रहे हैं- पिछले 5 सालों की स्थायी सरकार, 5 सालों की प्रगति, आर्टिकल 370 और राम मंदिर जैसे निर्णायक फैसले, नक्सलियों का खात्मा, भ्रष्टाचार का खात्मा. वहीं अमित शाह लगातार एनआरसी और सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल की बात करते रहे हैं.
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हालांकि भाजपा इस बात को दरकिनार कर रही है कि पूरे पांच साल रघुबर दास पर अहंकारी होने के आरोप लगते रहे. पांच सालों की पार्टनर आजसू नाता तोड़ चुकी है. विपक्ष का कहना है कि झारखंड के आदिवासियों पर 370, राम मंदिर और एनआरसी-सीएबी जैसे मुद्दे थोपना तर्कसंगत नहीं है. पर वहीं भाजपा समर्थकों का मानना है कि पांचवें फेज में मैदानी लोग काफी संख्या में हैं. यहां पर आबादी का एक अच्छा खासा हिस्सा यूपी और बिहार से आए लोगों का है. उन्हें भाजपा के ये मुद्दे भा सकते हैं.
हालांकि नक्सलियों के खात्मे के वादे के बावजूद चुनाव सिर पर आते ही लातेहार में नक्सली हमला हुआ था. इसी चुनाव में सीआरपीएफ के जवानों द्वारा आपस में ही लड़कर हत्याएं कर देने का मामला आया. यही नहीं, चुनाव के दौरान उनकी खराब रहने की स्थिति का भी मामला सामने आया.