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Friday, 22 November, 2024
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झारखंड में मॉब लिचिंग की इतनी सारी घटनाओं के बावजूद क्यों नहीं है ये चुनावी मुद्दा

जनता और नेताओं के लिए भीड़ द्वारा पीट-पीट कर मार दिए गए लोगों के मामले चुनावी मुद्दे में अपनी जगह नहीं बना सके हैं.

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रामगढ़/रांची: झारखंड चुनाव में बेरोजगारी से लेकर नारी सुरक्षा जैसे मुद्दों की भले ही लंबी फेहरिस्त हो लेकिन यहां की शहरी जनता और नेताओं के लिए भीड़ द्वारा पीट-पीट कर मार दिए गए लोगों के मामले चुनावी मुद्दे में अपनी जगह नहीं बना सके हैं. झारखंड चुनाव से पहले कई अखबारों में ‘झारखंड के चुनावी मुद्दे’ नाम के शीर्षक छपे थे लेकिन अफसोसजनक है कि ये मुद्दा सिर्फ अखबारी कतरनों का हिस्सा ही बनकर रह गया है.

हालांकि राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी पार्टी लाइन के हिसाब से इसे अपने घोषणापत्रों में भी शामिल किया है और तोल-मोलकर बोले गए भाषणों में भी. चाहे कांग्रेस पार्टी ने अपने घोषणापत्र में मॉब लिंचिंग पर कड़े कानून का जिक्र किया हो या फिर झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने झारखंड को इन घटनाओं के बाद ‘लिंचिंग पैड’ कहा हो. मगर साल 2017 में रामगढ़ जिले में भीड़ द्वारा गाड़ी से खींचकर बाहर निकालकर मार दिए गए अलामुद्दीन अंसारी के लिए उसके गांव वाले तक बात नहीं करते. इस मुद्दे पर वोट करना तो दूर की बात.


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संयोग की बात ये भी है कि जिस वक्त झारखंड में गौमांस की अफवाह के चलते ये हत्या हुई उस दौरान पीएम मोदी ने गाय के नाम पर हो रही भीड़ हत्याओं की निंदा करते हुए करते हुए इसे स्वीकार ना करने की बात कही थी. अभी पीएम मोदी की झारखंड की चुनावी सभाओं में इन लिंचिगं की घटनाओं का कोई जिक्र नहीं है. पीएम मोदी यहां चार विशाल जनसभाएं कर चुके हैं. अभी दो रैलियां होनी बाकी हैं.

रांची हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले सादाब ह्यूमन राइट लॉ नेटवर्क से भी जुड़े हैं. झारखंड में हुई लिंचिंग्स मामले में फैक्ट फाइंडिंग का काम भी किया है. दिप्रिंट से हुई बातचीत में वो कहते हैं, ‘पार्टियां इसलिए इस मुद्दे को लेकर हमलावर नहीं हो रही हैं क्योंकि वो हिंदू वोट बैंक को नहीं खोना चाहतीं. ऐसा नहीं है कि मॉब लिंचिंग मुद्दा नहीं है. पुलिसिया कार्रवाई की वजह से लोग बोल नहीं रहे हैं. शहर के मुस्लिमों को डर है कि वे सोशल मीडिया पर लिखेंगे तो पुलिस की नजर में आ जाएंगे’.

अलामुद्दीन की 40 वर्षीय पत्नी मरियम खातून अपने पति की पुरानी तस्वीर दिखाते हुए कहती हैं, ‘तमाम मीडिया वाले मुझसे सवाल पूछकर जाते हैं लेकिन सवाल का जवाब कोई नहीं देता. मैं कब से अपने एक बेटे के लिए नौकरी की मांग कर रही हूं लेकिन मुझे कुछ नहीं मिला. नेता वादे करते हैं और चले जाते हैं. अब मेरी आस टूटने लगी है.’

मरियम ने घटना वाले दिन की सारी तस्वीरों का एक एल्बम बनवा लिया है जिसमें अलामुद्दीन के जख्मी होने से लेकर उन्हें दफनाने तक की यात्रा है. इस एल्बम में अलामुद्दीन को पीटने वाले आरोपियों की तस्वीरें भी हैं. कुछ तस्वीरें तो फेसबुक से डाउनलोड कर बनवाई हैं. वो अपने घर में बंधी गायों को सहलाते हुए उस मनहूस दिन को याद करते हुए बताती हैं, ‘उस दिन वो गाड़ी लेकर बाहर गए थे. ड्राइवर का काम करते थे. 10-11 बजे के बीच यहां लड़के वीडियो देख रहे थे. कोई रो रहा था तो मैंने पूछा कि क्या बात है. वो लोग छुपाने लगे. जब मैंने वीडियो देखा तो मैं बेहोश हो गई. उसके बाद जहां-जहां जाना पड़ा मैं गई.’

वो झारखंड की सत्ताधारी पार्टी पर निशाना साधते हुए कहती हैं, ‘जब दूसरी सरकारें भीड़ द्वारा मारे गए व्यक्तियों को 25 लाख दे सकती है तो झारखंड सरकार ने हमें सिर्फ 2 लाख ही क्यों दिए? मेरे परिवार का पेट पालने वाला चला गया. छोटे बच्चों की पढ़ाई कैसे कराऊं?

झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रवक्ता तनुज खत्री का मानना है, ‘ऐसा मुद्दा भाजपा को ही फुटेज देता. इसलिए पीड़ितों के परिवार भी इस मुद्दे पर बोलने से बच रहे हैं. वो भी जानते हैं कि हिंदू-मुस्लिम की राजनीति असली मुद्दों से दूर ले जाती है.’

गौतरतलब है कि अलामुद्दीन अंसारी की हत्या के आरोप में 11 लोगों को उम्रकैद की सजा हुई थी, जिसमें से 8 आरोपी 2018 में जमानत पर बाहर आए थे. जेल से छूटने के बाद हजारीबाग से भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने फूलों की माला पहनाकर स्वागत किया था. भाजपा नेताओं की मॉब लिंचिंग पर असंवेदनशील बयानबाजी पर विपक्षी पार्टियों ने जमकर आलोचना भी की थी लेकिन चुनाव के दौरान विपक्षी पार्टियां इसे एक मुद्दा बनाने में उतने कामयाब होते नहीं दिखतीं.


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अभी हाल ही में चोरी के शक में तबरेज अंसारी की भीड़ हत्या के आरोपियों को भी जमानत मिली है. रांची के शहरी लोगों से बात करने पर बहुत सारे लोग इन घटनाओं से अनजान दिखे.

मॉब लिंचिंग पर कई सामाजिक संगठनों ने अपने स्तर पर कुछ आंकड़े इकट्ठे किए हैं. इनके मुताबिक 2016 से अब तक झारखंड में 11 से ज्यादा मॉब लिंचिंग की घटनाएं हो चुकी हैं. ये हत्याएं गौमांस और बच्चा चोरी या फिर चोरी की अफवाहों की वजहों से हुई हैं. गौर करने वाली बात है कि गौहत्या के मामलों में सिर्फ मुसलमानों की ही भीड़ हत्या हुई है. इससे हिंदू-मुस्लिमों के बीच खाई और गहरी होती नजर आ रही है. इस पर मरियम कहती हैं, ‘पता नहीं लोग क्यों नहीं समझते. हिंदू-मुसलमान का मामला पहले कभी नहीं था. लोग आपस में बंटते जा रहे हैं. सब राजनीति के लिए हो रहा है.’

सामाजिक कार्यकर्ता अफ़ज़ल अनीस बताते हैं कि भले ही शुरुआत में विपक्षी पार्टियां सत्ताधारी पार्टी पर हमलावर रहीं हैं लेकिन चुनाव में वो इस पर मुखर होने से बच रही हैं क्योंकि ये उनके हिंदू वोट काट सकता है.

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