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Monday, 25 November, 2024
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प्रदीप – ऐसा देशभक्त कवि जिनके गीतों ने नेहरू की आंखों में आंसू ला दिए

आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं और ऐ मेरे वतन के लोगों जैसे गीतों को लिखने वाले कवि प्रदीप उन कवि और गीतकारों में से हैं जिनके गीतों ने ब्रिटिश सरकार के लिए मुश्किलें पैदा की.

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देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान…
कितना बदल गया इंसान कितना बदल गया इंसान
सूरज ना बदला चांद ना बदला ना बदला रे इंसान
कितना बदल गया इंसान कितना बदल गया इंसान

आया समय बड़ा बेढंगा
आज आदमी बना लफंगा
कहीं पे झगड़ा कहीं पे दंगा
नाच रहा नर हो कर नंगा
छल और कपट के हाथों अपना
बेच रहा इमान,
कितना बदल गया इंसान कितना बदल गया इंसान

ये कड़े संदेश देने वाले शब्द 1954 में कवि प्रदीप ने नास्तिक फिल्म के लिए लिखे थे. इस गीत में एक व्यक्ति अजित को दिखाया गया है जो स्वतंत्रता के बाद के भारत के बारे में सोच रहा है.

आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं से लेकर ऐ मेरे वतन के लोगों तक कवि प्रदीप के गीतों की फेहरिस्त में कई देशभक्ति वाले गीत हैं. उनकी 21वीं पुण्यतिथि पर दिप्रिंट उनकी जिंदगी और विरासत पर ध्यान दिला रहे हैं.

मध्य प्रदेश के बड़नगर में 6 फरवरी 1915 को जन्मे रामचंद्र द्विवेदी ने अपनी प्रारंभिक जीवन से ही कविता लेखन और उसका पाठ करना शुरू कर दिया था. उन्होंने कहा था, ‘उस समय कई लोग लिखते थे. मैं इसलिए उत्साहित था क्योंकि मैं जो कहता था उसे सुनने वाले पसंद करते थे.’

लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद प्रदीप राष्ट्रवादी आंदोलन से जुड़ गए. वो कवि सम्मेलन में जाया करते थे जहां प्रदीप ने अपना उपनाम का इस्तेमाल करना शुरू किया.

कवि प्रदीप की बेटी मितुल प्रदीप ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘अपने कॉलेज के दिनों में मेरे पिता आनंद भवन के काफी नज़दीक रहे हैं (नेहरू का घर), जहां वो कई राजनीतिक बैठकों में शामिल हुए. इन सब से वो काफी प्रभावित हुए और उन्हें महसूस हुआ कि वो भी देश के लिए कुछ करें.’

प्रदीप ने एक बार कहा था, ‘मैंने अपना स्नातक पूरा करने के बाद अध्यापन का कोर्स करने के बारे में विचार किया था लेकिन भाग्य ने मेरे लिए कुछ और हीं सोचा हुआ था. मुझे बंबई में एक कवि सम्मेलन में बुलाया गया. बंबई टॉकीज के मालिक हिमांशु राय ने प्रदीप को कंगन  फिल्म के लिए साइन किया और उन्हें 200 रुपए का ऑफर दिया था. बाकी सब तो अब इतिहास है.


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1700 गीतों को लिखने वाले कवि प्रदीप को राष्ट्रवादी कवि माना जाता है जिसने आज़ादी के संघर्ष के दौरान काफी लिखा.

भारत के साथ प्रेम

प्रदीप का प्रेम का विचार केवल दो प्रेमियों के बीच का प्यार नहीं है. उन्होंने ऐसे गीतों को लिखने का प्रयास किया है जो प्रेम के पार है. प्रदीप ने कहा था, “मैं अपने जीवन को सेक्स, लस्ट, प्रेम, रोमांस पर लिखने तक ही सीमित नहीं रखना चाहता. प्यार जीवन का एक हिस्सा है लेकिन आज जो प्रेम पर लिखा जा रहा है वो सेक्स तक सीमित है. दो लोगों पर छोड़ दें कि उन्हें प्रेम किस तरह करना है वो उनका अधिकार है. क्या मां और बेटे के बीच, पिता और बच्चों, भगवान और अनुयायी, देश और लोगों के बीच प्यार, प्रेम नहीं है.’

प्रदीप उन कुछ गीत लिखने वालों में से थे जिसने बॉलीवुड के संगीत के साथ राष्ट्रवादी प्रेम को रचा. वास्तव में उन्होंने कहा था, ‘मैं अलग-अलग तरह के प्रेम पर लिखना चाहता हूं. मीराबाई ने कृष्ण से शादी नहीं की थी लेकिन वो उनसे प्रेम करती थी, उन्होंने कृष्ण के बारे में गाते-गाते अपना जीवन बिता दिया. शायद एक वातावरण होता है जहां हमें देशभक्ति वाला माहौल महसूस होता है. उस समय हमारी परवरिश और भाषा पर अच्छी पकड़ थी. इसलिए हमारा काम भी अच्छा होता था.’

उनके विचार सिर्फ देशभक्ति तक ही सीमित नहीं थे. साल 1959 में पैगाम फिल्म के लिए उन्होंने लिखा था, ‘ओ अमीरों के परमेश्वर’. इस गीत के माध्यम से उन्होंने अमीरों की दुनिया में गरीबों की परेशानियों के दृष्टिकोण को रचा.

ऐसा लगता गरीबों के जग में
आज रखवाला कोई नहीं
ऐसा लगता के दुखियों के आंसू
पोछने वाला कोई नहीं
ओ अमीरों के परमेश्वर

मितुल प्रदीप याद करती हैं, ‘वो काफी उत्साहपूर्ण और मजाकिया व्यक्ति थे.’

मितुल कहती हैं, ‘उनकी लेखनी बिखरी रहती थी. लिखते समय उन्होंने कई कागज़ के टुकड़ों का इस्तेमाल किया. जह उनकी रचनात्मकता को कहीं भेजना होता था तो वह भ्रमित रहते थे कि किस पन्ने पर उन्होंने अपनी पसंदीदा लाइनें लिखीं थी. बच्चों के रुप में हम भी भ्रमित रहते थे.’

गीत के साथ वापस लड़ना

1940 के दशक के शुरुआत में भारत छोड़ो आंदोलन हुआ. प्रदीप ने किस्मत फिल्म के लिए एक गीत लिखा दूर हटो ऐ दुनियावालों हिंदुस्तान हमारा है.

आज हिमालय की चोटी से फिर हम ने ललकारा है
दूर हटो
दूर हटो
दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है

इस गीत ने देश को झकझोर दिया. भारत छोड़ों आंदोलन में ये गीत सत्याग्रहियों के लिए नारा बन गया था. ब्रिटिश सरकार ने इस गीत को राष्ट्रद्रोही माना और कवि प्रदीप और संगीतकार अनिल बिस्वास के खिलाफ गिरफ्तार करने का वारंट जारी किया था.

मितुल प्रदीप याद करती हैं, मेरे पिता को गिरफ्तारी से बचने के लिए भूमिगत होना पड़ा.

उन्होंने कहा, ‘वह तब बाहर आने को सक्षम हुए जब धर्मेंद्र गौड़ नाम के एक भारतीय पुलिसकर्मी ने ब्रिटिश सरकार को ध्यान दिलाया कि गीत तुम ना किसिके झुकना जर्मन हो या जापानी जर्मनी और जापान के खिलाफ निर्देशित किया गया था. यह उनकी चालाकी थी जिसने मेरे पिता को अंग्रेजों से बचाया था.’


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इसने कवि प्रदीप को एक महीने के लिए कम झूठ बोलने और चीजों के ठंडा होने तक भूमिगत रहने के लिए मजबूर किया.

अनिल बिस्वास की बेटी शिखा बिस्वास याद करती हैं, ‘मेरे पिता और पंडित प्रदीप को गिरफ्तारी से बचने के लिए भूमिगत होना पड़ा था. वो इससे बाहर तब आए जब सरकार को ये भरोसा दिलाया गया कि तुम न किसिके आगे झुकना जर्मन हो या जापानी को जर्मन और जापान के खिलाफ निर्देषित किया गया था. इसने कवि को भूमिगत रहने के लिए मजबूर किया जब तक कि स्थिति सामान्य नहीं हो गई.’

एक गीत जिसने सबकुछ बदल डाला

ऐ मेरे वतन के लोगों
ज़रा आंख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो कुर्बानी

स्वतंत्रता दिवस से लेकर गणतंत्र दिवस तक ये गीत देशभक्ति के मौके पर गाया जाता है. इस गीत को सी रामचंद्र ने कंपोज किया था. कवि प्रदीप ने 1962 में भारत को चीन से मिली हार के बाद इस गीत को लिखा था. जब हार से भारत निराश था तब इस गीत ने लोगों को एकजुट किया था. प्रदीप के गाने ने लोगों को जवानों के बलिदान और देश के प्रति गौरव करने को लेकर प्रेरित किया था.

27 जनवरी 1963 को लता मंगेशकर ने पहली बार तब के राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णण और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सामने दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में गाया था. इस कार्यक्रम को वॉर वीडोज के लिए फंड इकट्ठा करने के लिए फिल्म उद्योग द्वारा कराया गया था. कहा जाता है कि इस गीत को सुनने के बाद नेहरू के आंखों में आंसू आ गए थे.

प्रदीप की बेटी मितुल प्रदीप ने बताया, ‘दुर्भाग्यवश प्रदीप को आमंत्रित नहीं किया गया था. जब नेहरू मुंबई आए थे तो मेरे पिता ने इस गीत को उनके लिए गाया था जो कार्यक्रम में आर एम हाई स्कूल में गाया था. इस कार्यक्रम में उन्होंने इस कविता की हाथ से लिखी कॉपी उन्हें भेंट की थी.’

मितुल याद करते हुए कहती है, ‘कैसे प्रदीप ने इस गीत को गाने के लिए लता मंगेशकर के नाम का जिक्र किया था. रामचंद्र और लता दीदी के बीच कुछ आपसी समझ की कमी के कारण ये गीत आशा भोंसले गाने वाली थी. हालांकि मेरे पिता को लगता था कि लता दीदी के अलावा इस गीत के साथ कोई न्याय नहीं कर सकता. उन्होंने इसे गाने के लिए उनसे व्यक्तिगत अनुरोध किया और वो इसे गाने के लिए तैयार हो गई. प्रदीप इस गीत की तैयारियों के समय खुद उपस्थित रहते थे.’

कहा जाता है कि ये गीत प्रदीप के मन में तब आया जब वो महीम बीच पर चहलकदमी कर रहे थे. जैसे हीं शब्द आए, उन्होंने राहगीर से पैन लिया और गाने के शुरुआती छंदों को सिगरेट पैकेट पर लिख डाला.


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अपने कैरिअर के दौरान प्रदीप को कई सम्मान मिले. 1961 में उन्हें नाटक अकेदमी अवार्ड मिला और 1997 में दादा साहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया.

11 दिसंबर 1998 में मुबंई में उनकी मृत्यु हुई. उनकी मौत की खबर सुनने के बाद लता मंगेशकर ने कहा था, ‘मैं बहुत दुखी हूं. मैं उन्हें 1948 से जानती थी और मैं अपने नाम और शोहरत के लिए काफी हद तक उनके प्रति एहसानमंद हूं.’

(इसे अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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