नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को अब एक ऐसा चेहरा मिल गया है जिसे दुनिया भर के लोग जानते हैं. संघ की कोशिश है कि वह भारत से लेकर सात समंदर पार तक अपनी विचारधारा के आगे प्रचार-प्रसार के लिए इस चेहरे के इर्द- गिर्द अपना तानाबाना बुनें. ये है नोबेल पुरस्कार विजेता, विश्व प्रसिद्ध लेखक सर विद्याधर सूरजप्रसाद नायपॉल हैं जो (वी एस नायपॉल) के नाम से प्रसिद्ध है.
अभी तक संघ स्वामी विवेकानंद से लेकर वीर सावरकर और केशव बलिराम हेडगेवार से लेकर माधव सदाशिवराव गोलवलकर सभी चेहरों के ज़रिए अपनी सोच का प्रचार करता रहा है. अब उसे एक ऐसा आइकन मिल गया है जिसे दुनियाभर में लोग जानते हैं, जिसकी विदेशों के बुद्धिजीवियों में खासी दखल रही थी और नोबेल पुरस्कार विजेता होने के नाते नाम है. अप्रवासी भारतीय और नोबेल पुरस्कार विजेता वीएस नायपॉल को संघ की विचारधारा का समर्थक बताते हुए उनके नाम से संघ की ब्रांडिंग का नया कैंपेन जल्द ही शुरू हो सकता है.
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम ने छापने के अनुरोध पर दिप्रिंट से कहा ,’नोबेल विजेता नायपॉल हिंदुत्व के विषय पर अपनी बात खुलकर रखते थे. उन्हीं की विचारों और उनके साहित्य को लेकर पिछले दिनों कुछ संस्थाओं ने कार्यक्रम भी आयोजित किया था तथा आगामी दिनों में और भी कार्यक्रम आयोजित योजना है. इस कार्यक्रम में संघ से जुड़ी संस्था के कुछ वरिष्ठ लोग शामिल भी हुए है.’
वीएस नायपॉल अप्रवासी भारतीयों में बेहद लोकप्रिय रहे हैं. बीते समय में बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना को उन्होंने सामाजिक संतुलन बनाने वाला करार दिया था. कहा जाता है कि उनके कुछ और बयान भी इसी तरह के थे. संघ से जुड़ी संस्थाएं इन्हीं बयानों के हवाले से नायपॉल को अपना बताकर प्रचार शुरू करने में जुट गया है. हाल ही में दिल्ली में इसकी शुरुआत भी हो चुकी है. जल्द ही परिचर्चाओं से लेकर सोशल मीडिया के कैंपेन में संघ समर्थक नायपॉल की बयानों का संदर्भ देते नज़र आए तो हैरानी की बात नहीं होगी.
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हाल ही में 6 दिसम्बर को कांस्टीट्यूशन क्लब में संघ प्रेरित एक संस्था इंस्टीट्यूट फॉर नरचरिंग इंडियन इंटलेक्ट के बैनर तले वीएस नायपॉल को लेकर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री जीतेंद्रानंद सरस्वती भी शामिल हुए. वहीं कार्यक्रम में संघ के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार ने अपना संदेश भी भेजा था.
संस्था से जुड़े एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम न छापने के अनुरोध पर दिप्रिंट से कहा ‘वीएस नायपॉल को लेकर यह हमारा एक पहला बड़ा कार्यक्रम था. इस तरह के कार्यक्रम में हम देश में कई जगह करने की तैयारी में है. इन कार्यक्रम में हम नोबेल विजेता नायपॉल के विचार को लोगों के बीच रखेंगे. इसके अलावा हिंदुत्व को लेकर नायपॉल के विचारों को संग्रहित कर रहे है. इस पर एक पुस्तक भी जल्द लाई जाएगी.’
इस संस्था के पीछे राम मंदिर आंदोलन और अखिल भारतीय संत समिति से जुड़े पदाधिकारी शामिल हैं. अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री जीतेंद्रानंद सरस्वती के मार्गदर्शन में इस पूरी संस्था का काम चल रहा है.
कौन हैं वीएस नायपॉल
भारतीय मूल के ब्रिटिश लेखक और नोबेल पुरस्कार विजेता वीएस नायपॉल का पूरा नाम विद्याधर सूरजप्रसाद नायपॉल था. उनका जन्म 17 अगस्त 1932 को दक्षिण अमेरिका के त्रिनिडाड में हुआ था. इसके बाद वे इंग्लैंड में आकर बस गए. उन्होंने आक्सफोर्ड विवि में अपनी पढ़ाई की. उनका पहला उपन्यास ‘दि मिस्टिक मस्योर’ 1951 में प्रकाशित हुआ था. ‘ए बेंड इन द रिवर’ और ‘ अ हाउस फॉर मिस्टर बिस्वास’ उनकी प्रमुख कृतियों में शुमार है. नायपॉल को वर्ष 1971 में बुकर और वर्ष 2001 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. लंदन में 11 अगस्त 2018 को 85 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया.
नायपॉल ने बाबरी विध्वंस का किया था बचाव
वीएस नायपॉल की लेखनी से उनका मुस्लिम विरोध, हिंदुत्व के प्रति प्रेम छलकता रहा है. कई बार नायपॉल के बयानों से विवाद भी पैदा हुए. उनका मानना था कि इस्लाम ने लोगों को गुलाम बनाया और दूसरों की संस्कृतियों को खत्म करने की पुरजोर कोशिश भी की.
उन्होंने यह भी कहा था कि पाकिस्तान की कहानी, असल में आतंक की कहानी है. ये शुरू होती है जब एक कवि को लगा कि मुसलमान इतना विकसित है कि उन्हें भारत में एक विशेष स्थान मिलना चाहिए.
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इसके अलावा आउटलुक पत्रिका में छपे एक साक्षात्कार में नायपॉल ने कहा था कि भारत के धर्मनिर्पेक्ष होने का सवाल ऐतिहासिक रूप से सही नहीं है. आप कह रहे हैं कि हिंदू चरमपंथ खतरनाक है. खतरनाक हो न हो, ये इतिहास की विसंगति को ठीक करने के लिए ज़रूरी है. साक्षात्कार के दौरान एक अन्य सवाल के जवाब में उनका कहना था कि इस्लाम से कोई सुलह सफाई नहीं हो सकती. इस्लाम धर्म में तटस्थ कानून है. और ये आधुनिक भारत के हर भाव के विपरीत है. धर्म परिवर्तन करने वाले की सबसे बड़ी इच्छा अपने मूल को नकारना होता है.
मुंबई में 2012 में एक साहित्य उत्सव में उनको सम्मानित किया गया था. इस दौरान उन्होंने इस्लाम पर टिप्पणी की थी. इसके बाद भी विवाद पैदा हुआ था. नायपॉल और विवाद का चोली दामन का साथ रहा है और वे अक्सर अपनी टिप्पणियों से विवाद में घिरे रहते थे. पर हिंदूवादी सोच और इस्लाम के विरुद्ध उनके बयानो को अब आरएसएस अपनी सोच से जोड़ कर पेश करने की जुगत में है.