दिल्ली पुलिस का ये दावा कि उसे किसानों के इरादों पर शक तो लेकिन उसने यह भरोसा करके कि ट्रैक्टर रैली की अनुमति दे दी थी कि वे कोई गड़बड़ी नहीं करेंगे. कानून प्रवर्तन एजेंसियां, खासकर राष्ट्रीय राजधानी में गणतंत्र दिवस जैसे मौके पर, सिर्फ भरोसे के आधार पर कोई काम नहीं कर सकतीं और वो भी तब जबकि खुफिया एजेंसियां गड़बड़ी होने की आशंका जता रही हों. यह पुलिस बल के हालिया रिकॉर्ड पर एक और धब्बा है.
कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी को जमानत न देना ज्यादती, लोकतंत्र के नाते हम इसे हंसी में नहीं उड़ा सकते
अगर मजाक हमारे, एक लोकतंत्र के, ऊपर नहीं होता तो हम कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी, जिन पर उस कृत्य का आरोप लगा जो उन्होंने नहीं किया, को जमानत न दिए जाने को ज्यादती बताते, हंसते और उसे भूल जाते. अदालतों का प्राथमिक कार्य है हमारे कानूनी अधिकारों और स्वतंत्रता का संरक्षण करना. लेकिन ऐसा करने में उनकी बढ़ती नाकामी चिंताजनक है.