महेंद्रगढ़: ‘मैं नरेंद्र मोदी का फैन हूं. फसल बोनी है कपास की. इसलिए कैंपेनिंग के लिए नहीं जा पाऊंगा. मेरा बेटा दिल्ली में प्राइवेट नौकरी करता है, वो भी छुट्टी नहीं ले सकता. सिर्फ एक भाई का बेटा गया है. गांव के कुछ लोग गये हैं. फसल कटने–रखने का टाइम है, ऐसे में कोई कहां जा सकता है.’ ये शब्द लोकसभा चुनाव 2019 में वाराणसी लोकसभा सीट से मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ सपा–बसपा–रालोद गठबंधन के उम्मीदवार तेज बहादुर यादव के बड़े भाई के हैं.
तेजबहादुर को अनुशासनहीनता के आरोप में बीएसएफ से बर्खास्त कर दिया गया था. दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने बताया था, ‘ मेरा चुनाव लड़ना बस प्रतीकात्मक है, क्योंकि मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जवानों की ही बात करते हैं.’ नामांकन के आखिरी दिन तेजबहादुर का नाम सपा–बसपा–रालोद गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर आने के बाद सोशल मीडिया पर सरगर्मी बढ़ गई. हालांकि ग्राउंड पर क्या उत्साह है, इसके बारे में अभी अंदाजा लगाना मुश्किल है. क्योंकि तेजबहादुर ने इससे पहले निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पर्चा भरा था. कल चुनाव आयोग ने उन्हें सेना से बर्खास्त करने वाला प्रमाण पत्र मांगा है. आज 11 बजे तक प्रमाण पत्र ना जमा करने पर उनका नामांकन भी रद्द किया जा सकता है.
सेना, सांप्रदायिकता, बर्खास्तगी और नेतागिरी
जनवरी 2017 में तत्कालीन बीएसएफ के जवान तेज बहादुर ने फेसबुक पर चार वीडियो पोस्ट किये थे. जम्मू–कश्मीर में इंडिया–पाकिस्तान के बॉर्डर पर जवानों को दिये जा रहे खाने की क्वालिटी को लेकर आए इन वीडियोज ने काफी सवाल खड़े किये थे. तेज बहादुर ने इनमें कहा था कि ऑफिसर जवानों के लिए दिये जा रहे खाने को बेच भी देते हैं. बर्खास्तगी की वजह से उनकी पेंशन, ग्रेच्युटी इत्यादि भी जब्त कर ली गई थी. सेना से बर्खास्तगी के बाद किसानी कर के इनका गुजारा हो रहा है. इसी साल तेजबहादुर के 21 वर्षीय लड़के ने कथित रूप से गोली लगने से मौत हो गई थी. जिस दिन बेटे की मौत हुई, तेजबहादुर अपने भाई के साथ कुंभ मेले में गये थे.
तेजबहादुर के सपा से नामांकन के बाद सोशल मीडिया पर इनके पुराने फेसबुक पोस्ट तैरने लगे. जिनमें कथित रूप से इन्होंने काफी सांप्रदायिक बातें कर रखी हैं. हालांकि इनके बचाव में इनकी पत्नी शर्मिला यादव आगे आईं और लोगों को सफाई दीं कि ‘तेज बहादुर ने अपने इन वक्तव्यों के लिए माफी मांग ली है और जरूरत पड़ी तो फिर मांग लेंगे. इसमें हवाला दिया गया कि देश में उस वक्त चल रहे सांप्रदायिक बातों की वजह से ये भी बहकावे में आ गये थे.’
क्या कह रहे हैं तेजबहादुर के परिवार के लोग?
दिप्रिंट तेजबहादुर यादव के हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के अटेली तहसील में स्थित राता खुर्द गांव पहुंचा. इस गांव के 50 फीसदी लोग सेना और पुलिस में हैं. बाकी किसानी करते हैं. तेज बहादुर भी पांच भाई हैं. एक पुलिस, दो बीएसएफ और दो खेती में लगे हुए हैं. तेज बहादुर सबसे छोटे हैं. एक भाई का बेटा आर्मी में है. 17 एकड़ जमीन है पूरे परिवार की. तेज बहादुर के परिवारवालों ने बताया– तेजबहादुर के दादा ईश्वर सिंह ‘फ्रीडम फाइटर’ थे, सुभाष चंद्र बोस के साथ रह चुके थे और उनको ताम्र पत्र मिला था. तेजबहादुर ने रेवाड़ी जिले में अपना घर बना लिया है और पत्नी के साथ वहीं रहते हैं. इससे पहले वो यहां एक किराए के मकान पर रह रहे थे. चारों भाइयों ने मिलकर तेज बहादुर का नया मकान बनवाया है. चारों भाइयों ने कहा है, ‘जब पैसे आएं तब लौटा देना.’
तेजबहादुर के से बड़े और पांचों भाइयों में चौथे नंबर के भाई हनुमान यादव नरेंद्र मोदी के फैन हैं, ने बताया, ‘हमारी आपस में मोदी को लेकर कोई बहस नहीं होती. जब उसने चुनाव लड़ने की बात कही, तो कह दिया कि मोदी के खिलाफ मत लड़. वो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे हैं. जब लड़ने ही गया तो तेजबहादुर को मायावती, अखिलेश का समर्थन नहीं लेना चाहिए था. मोदी के खिलाफ नहीं लड़ना चाहिए था.’
घर के बाहर बैठकर ताश खेलते एक रिटायर्ड फौजी ताऊ ने कहा, ‘हम तो नरेंद्र मोदी के ही फैन हैं. परिवार में भी दस दिन में एक दिन खाना खराब बन जाता है. फौज तो इतना बड़ा परिवार है. उसकी एक वीडियो से मोदी की विदेश में किरकिरी हुई है. जहां भी जाते हैं तो लोग पूछते हैं कि थारा फौजी तो खाणा खराब बतावै है. मोदी को कितना बुरा लगता होगा. मगर म्हारे गांव का है तो गर्व तो है ही. पर हम तो वोट मोदी को ही देंगे.’
तेजबहादुर के एक बड़े भाई ने दिप्रिंट से कहा– ‘हमारा पूरा परिवार भाजपा का समर्थक ही रहा है. हमने धर्मबीर को वोट देकर सांसद बनाया, संतोष यादव को विधायक बनवाया है. हमारे दादा को इंदिरा गांधी ने ताम्र पत्र दिया था’.
तेज बहादुर के माता–पिता बूढ़े हैं और जबसे तेज बहादुर के बेटे की मौत हुई है तबसे बीमार रहने लगे हैं. चुनाव खत्म होने के बाद वो तेज बहादुर की पत्नी के साथ रेवाड़ी ही रहने जाएंगे. तेज बहादुर के पिताजी शेर सिंह ने दिप्रिंट को बताया– ‘हमने नरेंद्र मोदी को ही वोट दिया था. पहले हम कांग्रेसी ही हुआ करते थे. लेकिन इनके पास लीडरशिप नहीं रही तो हम भाजपा की तरफ झुकाव हो गया. हमारा कुनबा फ्रीडम फाइटर्स का रहा है. उस वक्त भी देश की आजादी के लिए लड़े थे. आज तेज बहादुर नरेंद्र मोदी की तानाशाही के खिलाफ लड़ रहा है.’
वहीं उनकी मां ने अपने जवान पोते की मौत का जिम्मेदार भी नरेंद्र मोदी को ही बताया. उन्होंने कहा, ‘ उसने जबसे शिकायत की थी तबसे उसकी जिंदगी खत्म करने के पीछे पड़ गए थे ये लोग.’
गांव के लोगों के अलग–अलग हैं विचार
गांव के लोगों ने दिप्रिंट को बताया कि इस गांव में बहुत सारे फौजी हैं. एक और रिटायर्ड फौजी ने कहा– ‘इतनी बड़ी फौज में खाना खराब मिल गया, तो क्या बड़ी बात हो गई. गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय में मामला चला गया, शर्मिंदगी की बात है. इस वजह से हमारा गांव दो साल से चर्चा में है‘.
तेजबहादुर के एक पड़ोसी नीरज ने कहा– ‘ये हार जीत का मामला नहीं, सांकेतिक लड़ाई है. लेकिन मैं तो वोट मोदी को ही दूंगा‘.
गांव के एक बुजुर्ग रामजी ने बताया, ‘तेजबहादुर के साथ गांव से कुछ लोग गये हैं. अच्छी बात है कि वो मोदी के खिलाफ लड़ रहे हैं. यहां धर्मबीर (मौजूदा भाजपा सांसद) और मोदी किसी की लहर नहीं हैं. सांसद तो एक बार पूछने भी नहीं आया. मोदी ने भी क्या ही पूछा. ये तो प्रजातंत्र है, कोई भी किसी को पसंद करे. तेजबहादुर के भाई ना पसंद करें उसे, मोदी को करें. जो उसे करेगा, वो उसे वोट करेगा. उसका नाम बहादुर है और काम भी बहादुरी का किया है. गांव के काफिले की जरूरत नहीं है. वो तो फौजी है, अकेला लड़ लेगा मोदी से.’
खेतों से लौटती एक औरत सुशीला ने कहा– ‘ये तो खुशी की बात है. जीतेगा तो हमारे गांव का कुछ करेगा‘.
गांव के कुछ और लोगों ने दिप्रिंट को बताया, ‘ज्यादातर लोग खेतों में व्यस्त हैं. फसल कट रही है, रखना भी है. चुनाव की कोई चर्चा नहीं है. अभी अपना काम ज्यादा जरूरी है. लोग तो चुनाव प्रचार कर निकल जायेंगे, हमारी फसल ही हमारे काम आएगी. कौन पूछता है चुनाव के बाद.’
तेज बहादुर के बारे में फैलाए जा रहे हैं ये झूठ
तेज बहादुर को शराबी कहने पर पत्नी शर्मिला परेशान हैं उन्होंने उनके बारे में फैलाए जा रहे झूठों का खंडन किया. उन्होंने बताया, ‘ ये शराब नहीं पीते हैं. शराब वाली बात दो साल पहले एक टीवी डिबेट से निकली थी. उस वक्त मैं भी थी उस डिबेट में. किसी रिटार्यड अफसर ने कही थी ये बात. मैंने उस वक्त भी खंडन किया था.’
‘लोग लिख रहे हैं कि इसे राजनीति में आना था इसलिए वीडियो बनाया. हमारे बच्चे की मौत ने हमें भीतर से तोड़ दिया. ये तो उसे डांटते तक नहीं थे. हमारा एक ही बेटा था जिसपर हमने अपनी बीस साल की कमाई लगा थी. उसे रिवॉल्वर्स के बारे में ज्यादा दिलचस्पी थी. अपनी फेसबुक पर भी रिवॉलर की फोटो लगा लेता था. वो बेड के अंदर छुपाकर ही कुंभ गए थे. बेटे को कभी कोई चीज नहीं मिलती थी. पता नहीं उस दिन उसे क्या ढूंढते–ढूंढते उसे वो दिख गई. पहले तो उसने सारी गोलियां निकालकर साइड में रख दी. फिर उसका मुआयना किया. एक गोली रह गई थी. वो तकिया के नीचे रखकर सो गया. पुलिस ने जांच में बताया था कि गोली तकिये में से होकर निकली है. ये आत्महत्या नहीं, हादसा है.’
तेजबहादुर के चुनाव लड़ने की कहानी बताते हुए कहती हैं, ‘एक दिन जब मैं कंपनी से आई तो ये उसी कमरे में लेट रहे थे जिसमें बेटा मरा था. मेरा दिल दहल गया. उठाया तो जोर–जोर से रोने लगे. मैंने अपनी बहन और जेठ को बुला लिया. वो रातभर बैठे रहे. ये रातभर रोते रहे. कहते रहे कि वो मेरी मौत थी, बेटा चला गया. हम दोनो पति–पत्नी भी अपनी जिंदगी खत्म कर लेते हैं.’
‘ उस दिन मैंने इन्हें चुनाव लड़ने की बात कही. मैं अपने बेटे की तरह इन्हें खोना नहीं चाहती थी. कम से कम चुनाव के बहाने ही सही ध्यान कहीं और तो लगेगा. हारने–जीतने से कोई सरोकार नहीं है. नामांकन भी रद्द कर दें तो भी कोई दिक्कत नहीं है. मैं चाहती थी कि इनका ध्यान कहीं और लगे.’
‘बेटे की मौत और शराबी होने की सारी अफवाहें मैं पढ़ती रहती हूं. सब झूठ फैलाया जा रहा है.’
24 तारीख को शर्मिला भी बनारस चुनावी कैंपेन में गई थीं. तबीयत सही ना होने की वजह से उनका मन नहीं करता. लेकिन वो फोन पर लगातार तेज बहादुर के साथ बनी हुई हैं. अब तो सोशल मीडिया पर कमान भी संभाल ली है. बनारस जाने की बात पर कहती हैं, ‘अगर उन्हें जरूरत हुई और वो बुलाएंगे तो जरूर जाउंगी.’