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Friday, 20 December, 2024
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2013 में जिस बात से चली मोदी की आंधी, उसे अपना रहे अब राहुल गांधी

भाजपा के वक्ता झोंपड़ी में खाना खाने, हंसिया लेकर खेत में जाने जैसे प्रतीकात्मक काम कर रहे हैं जिनके लिए कभी राहुल गांधी का मजाक बनता था.

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पिछले कुछ दिनों में भाजपा के कई सांसद कांग्रेस में शामिल हो गये हैं. यही नहीं, नरेंद्र मोदी के भाषणों की इधर खूब आलोचना हो रही है कि वो भाषाई संयम नहीं बरत रहे हैं. जबकि कुछ समय पहले तक भाषणों और वक्तव्यों की वजह से मज़ाक का पात्र बन रहे राहुल गांधी के भाषणों पर अब चर्चा हो रही है. लोगों को अचानक पांच साल पहले के दिन याद आने लगे हैं और चुनाव से पहले अब इनकी चर्चा ज़रूरी है.

2013-14 में चली थी नरेंद्र मोदी की आंधी, जिसमें बह गए थे राहुल गांधी

साल 2013-14 की चुनावी रैलियां कभी ना भूलने वाली थीं. चुनाव की घोषणा से पहले ही एक वाकया हुआ जिसने जनता को नरेंद्र मोदी के रूप में अपने ‘नाईट इन द शाइनिंग आर्मर’ की इमेज दे दी. 2013 के 15 अगस्त को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लाल किले से भाषण दिया. उसके कुछ देर बाद ही गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पीछे लाल किले के प्रतिरूप के सामने खड़े होकर हुंकार भरी थी. ये ऐसी हुंकार थी कि विपक्षी सहम गये क्योंकि इसमें देश से जुड़ी हर समस्या का समाधान बताया जा रहा था. उस दौरान ऐसी मोदी लहर चली थी कि कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता धराशायी हो गए थे.


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एक ‘चायवाले’ की जादू की छड़ी से देश की सभी दिक्कतों की दूर करने का विश्वास पैदा हो गया था. नरेंद्र मोदी के किसी भाषण का कोई काट नहीं था. जिस तरह से मोदी चुनावी रूपी युद्ध के मैदान में हुंकार भर रहे थे आधे योद्धा तो वहीं ढेर हो गए थे. जैसे-जैसे नरेंद्र मोदी की प्रसिद्धि बढ़ती जा रही थी वैसे-वैसे कांग्रेस की घटती जा रही थी. एक तरफ परिवार को छोड़कर देश सेवा करने वाला था तो दूसरी तरफ शहजादों की तरह पला बढ़ा एक राजकुमार. राहुल गांधी जनवरी 2014 में अर्नब गोस्वामी के साथ इंटरव्यू में किसी स्कूली बच्चे सरीखे नजर आए थे. चुनावी रैलियों में नरेंद्र मोदी की एक-एक लाइन तीर के समान थी तो राहुल की एक-एक बात मीम बनाने लायक.

कांग्रेस छोड़कर भाजपा जानेवालों की कतार बन गई थी

2014 में मध्यप्रदेश से रिटायर्ड आइपीएएस भागीरथ प्रसाद ने कांग्रेस से टिकट मिलने के बावजूद पार्टी छोड़ दी थी और भाजपा में शामिल हो गए थे. भाजपा की टिकट पर भिंड से चुनाव जीते भी. इसी सीट से प्रसाद कांग्रेस की टिकट पर 2009 के लोकसभा चुनाव हार गए थे. वहीं गौतमबुद्ध नगर से रमेश चंद्र तोमर भी टिकट मिलने के बाद कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गये. हालांकि उनको टिकट नहीं मिला और उन्होंने अपने ‘पूर्व विरोधी’ महेश शर्मा का प्रचार किया. बाद में रमेश तोमर यूपी विधानसभा में विधायक बनकर पहुंचे. हरियाणा में राव इंदरजीत सिंह, धर्मबीर और चौधरी बीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया. कांग्रेस डूबता हुआ जहाज बन गई.


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2014 में महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनाव में विदर्भ से आने वाले कांग्रेसी नेता दत्ता मेघे भी भाजपा में शामिल हो गए. साल 2015 में जयंती नटराजन ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. द हिंदू अखबार ने जयंती द्वारा सोनिया गांधी को लिखे पत्र को छापा था जिसमें वो पार्टी के काम करने से असंतुष्ट थीं. दिल्ली से कांग्रेस की दलित नेता कृष्णा तीरथ भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गई थीं. तीरथ ने कांग्रेस पार्टी में अनुशासनहीनता का आरोप लगाया.

पर 2019 में भाजपा छोड़कर कांग्रेस आनेवालों की कतार बन रही है

इस साल यूपी के बहराइच से भाजपा सांसद सावित्री बाई फुले ने कांग्रेस का दामन थाम लिया. फुले ने भाजपा पर एंटी दलित होने के आरोप लगाए. हाल ही में नरेंद्र मोदी और अमित शाह की लीडरशिप पर सवाल उठाते हुए भाजपा के शत्रुघ्न सिन्हा कांग्रेस में शामिल हो गए. वो समय-समय पर मोदी सरकार की आलोचना करते रहे हैं. शत्रुघ्न सिन्हा ने मीडिया को बताया कि वो एल. के. आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा जैसे सीनियर लीडर्स के साथ हुए बर्ताव से आहत थे.

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की टिकट पर दरभंगा से लोकसभा सांसद चुने गए कीर्ति आजाद भी फरवरी 2019 में कांग्रेस में शामिल हो गए. बता दें की कीर्ति के पिता बिहार के मुख्यमंत्री भी रहे थे. कीर्ति आजाद को भाजपा ने निलंबित कर दिया था.

यूपी के इटावा बीजेपी के सांसद अशोक कुमार दोहरे भी कांग्रेस में शामिल हो गए. कांग्रेस में शामिल होने के कुछ घंटों के बाद ही उन्‍हें इसी सीट से कैंडिडेट भी घोषित कर दिया गया. इससे पूर्व 2017 में भाजपा सांसद सिद्धू भी पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल हो गए.

कांग्रेस के तेलंगाना नेता सुधाकर रेड्डी ने जरूर भाजपा का हाथ थामा है. पर उन्होंने वजह दी- पिछले चुनाव में खराब नेतृत्व के कारण मैं चुनाव हार गया था, इसलिए भाजपा ज्वाइन कर रहा हूं.

नरेंद्र मोदी के भाषण उबाऊ हो गये हैं, राहुल गांधी के भाषणों पर बहस होने लगी है

2013-14 में नरेंद्र मोदी के भाषण समां बांध देते थे. लगता था कि भाषणों में ही सारी समस्याओं का हल मिल जाएगा. पर आज वक्त आ गया है कि इनके हर भाषण पर मीम बनते हैं और लोग बोर हो जाते हैं. 2013-14 में राहुल गांधी के
भाषणों पर मीम बनते थे और अब उनके भाषणों पर चर्चा हो रही है. चाहे वो शिक्षा के क्षेत्र में जीडीपी का 6% खर्च करने की बात हो या फिर 22 लाख नौकरियों की बात हो या यूनिवर्सल बेसिक इनकम के तहत 12 हजार रुपये प्रतिमाह मिनिमम आमदनी पहुंचाने की बात हो. राहुल गांधी समस्याओं का समाधान बता रहे हैं, जो काम मोदी जी 2013 में कर रहे थे. अचानक मोदी जी समस्यायें गिना रहे हैं कि कांग्रेस ने, नेहरू ने काम नहीं करने दिया. यकीन नहीं होता कि ये वही प्रभावशाली व्यक्ति हैं जो हाथ घुमाकर हर समस्या का समाधान कर देते थे.


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नरेंद्र मोदी के भाषणों में ओजस्विता नोटबंदी के समय से ही कम होने लगी थी. मुझे चौराहे पर टांग देना, वो मुझे मार देंगे से लेकर भाषण देते हुए रोने तक की बातें हुईं इनके भाषणों में. हाल फिलहाल में देखें तो स्मिता प्रकाश, प्रसून जोशी और अर्नब गोस्वामी को दिए इंटरव्यूज में उनकी बातों का मजाक ही बना है.

बाकी जगहों पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मंत्रालयों के कामों की बजाय जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस को दोष देते नजर आ रहे हैं. इसके अलावा लगातार ये बातें हो रही हैं कि पूर्व प्रधानमंत्रियों नेहरू और इंदिरा गांधी के बारे में वर्तमान प्रधानमंत्री आदर से नहीं बोल रहे. ना ही किसी समस्या का समाधान बता रहे. 2013-14 में जिन वादों और समस्याओं के हल की झड़ी लगा दी थी, उनमें से ज्यादातर वादे हवा-हवाई हो गये या फिर उन्हें जुमला कहकर पीछा छुड़ा लिया गया.

विधानसभा चुनावों के नतीजे भी बहुत फर्क डाल रहे हैं

2013-14 में हुए विधानसभा चुनावों में मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा ने जबर्दस्त जीत हासिल की थी. पर 2018-19 में हुए चुनावों में कांग्रेस ने वही जीत दुहरा दी है. गुजरात में भी मुकाबला लगभग बराबरी का छूटा था.

इसके बाद से कांग्रेस भाजपा पर काफी हमलावर हो गई है. ये तो नहीं कह सकते कि कांग्रेस 2013 वाली भाजपा बन गई है, पर ये जरूर कह सकते हैं कि कांग्रेस अब 2013 वाली कांग्रेस नहीं है. साथ ही भाजपा भी 2013 वाली भाजपा नहीं है. भाजपा के वक्ता झोंपड़ी में खाना खाने, हंसिया लेकर खेत में जाने जैसे प्रतीकात्मक काम कर रहे हैं जिनके लिए कभी राहुल गांधी का मजाक बनता था.

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