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Thursday, 21 November, 2024
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मध्यप्रदेश: चुनाव में छाया अफीम का डोडा चूरा, राजस्थान-पंजाब के युवा हो रहे नशे के शिकार

मंदसौर से निकला डोडा हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के युवाओं को नशे की गिरफ्त में ले रहा है. चूंकि यह सस्ता नशा है इसलिए युवाओं में काफी पॉपुलर है.

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मंदसौर: मध्यप्रदेश के मंदसौर में अफीम की खेती के साथ पैदा हो रहा डोडा चूरा क्षेत्र की समस्या और मुद्दा के रूप उभरा है, बीते दो वर्ष से राज्य सरकार ने डोडे की खरीदी बंद कर दी है. शुरुआत में तो किसानों ने डोडे को तस्करों को बेचकर मोटी कमाई की. अब यह डोडा क्षेत्र के युवाओं में नशाखोरी की बड़ी समस्या बनकर उभरा है. मंदसौर से निकला डोडा सीमावर्ती प्रदेश राजस्थान, पंजाब और हरियाणा के युवाओं को भी अपनी गिरफ्त में ले रहा है तेज़ी से नशे के शिकार हो रहे हैं.

मंदसौर क्षेत्र में वर्षों से चली आ रही अफीम की खेती और उसका डोडा चूरा के चुनावी मुद्दा बनने के कई और कारण भी सामने आए हैं. यहां के लोगों की मांग है कि हमें ऐसा सांसद चाहिए जो कि इसकी तस्करी और अवैध व्यापार रोकने के लिए काम करे. ताकि क्षेत्र के लोगों में सस्ते नशे की लत न लगे साथ ही सांसद सरकारों से बात कर फिर से इसके ठेके शुरू करवाए. बता दें कि सरकार ने नशे के व्यापार पर लगाम लगाने के लिए इसके ठेकों को बंद करवा दिया जिसकी वजह से इसकी कालाबाज़ारी भी तेज़ी से बढ़ी है. चूंकि यह नशा सस्ता होता है इसकी वजह से लोगों में खूब पॉपुलर है.

क्या है डोडा

मंदसौर क्षेत्र देश के प्रमुख अफीम उत्पादक के रूप में जाना जाता है. यहां किसानों की संख्या छह लाख है. इनमें से 35 हजार किसान अफीम की खेती करते है. केंद्र सरकार मप्र के अलावा राजस्थान व उप्र में भी किसानों को लाइसेंस देकर उनसे अफीम की खेती करवाती है. इसकी खेती पूरी तरह से सरकार की निगरानी में की जाती है. इसके चिकित्सकीय और वैज्ञानिक महत्व को देखते हुए सरकार इसकी खेती कराती आ रही है.

अफीम की फसल के डोडों पर चीरा लगाकर इसमें से सबसे पहले अफीम और फिर पोस्ता दाना (खसखस) निकाला जाता है. इनके निकल जाने के बाद जो सूखा भाग बचता है उसे डोडा कहते है. इसमें बेहद कम मात्रा में मॉरफीन पाया जाता है. मॉरफीन में कई तरह के रसायन पाए जाते हैं जो दर्द निवारक और गहरी नींद के लिए उपयोग किया जाता है.

अन्य राज्यों में फैल रहा सस्ता नशा

मध्य प्रदेश में बीते दो साल से डोडा चूरा को लेकर कोई सरकार नीति लागू नहीं की है. इसके चलते अफीम उत्पादक किसानों के लिए इस डोडा चूरा का भंडारण भी एक बड़ी समस्या बन पड़ा है. वहीं आए दिन अन्य राज्यों में इसकी तस्करी के मामले भी सामने आ रहे है.


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मध्यप्रदेश सरकार द्वारा पहले शराब की तरह डोडा चूरा के दुकानों के ठेके पूरे प्रदेश में दिए जाते थे. क्षेत्र के ठेकेदार किसानों से डोडा चूरा खरीदकर इन दुकानों पर बेचा जाता था. जब से मंदसौर सहित अन्य क्षेत्रों में अफीम की खेती के बाद डोडा चूरा की बिक्री पर रोक लगाई है. इसके बाद से इसका चूरा किसानों के लिए बड़ी समस्या बन गया है कि वह इसके इस भंडार का क्या करें.

इसके अलावा मादक पदार्थों के माफिया और तस्करों ने इन क्षेत्रों में अपनी गतिविधियों को बढ़ावा दे दिया है. मंदसौर समेत अन्य क्षेत्रों से डोडा चूरा को अवैध तरीके से दूसरे राज्य जैसे राजस्थान, पंजाब और हरियाणा में नशे के लिए सस्ते दामों पर बेचने का धंधा तेज़ी से बढ़ गया है.

तीन राज्य सरकारे लिख चुकी है पत्र

डोडा चूरा के कारण इन तीनों राज्यों के युवाओं में नशे का कारोबार तेज़ी से बढ़ा है और वो बहुत तेज़ी से इसके शिकार हो रहे हैं. सस्ते नशे के मामले को देखते हुए पंजाब, राजस्थान और हरियाणा सरकार मध्यप्रदेश सरकार को कई बार इसके अवैध करोबार को लेकर पत्र भी लिख चुकी है. राज्यों की सरकारों का कहना है कि इनसे उनके राज्यों में युवा नशे के शिकार हो रहे है. मध्यप्रदेश के तस्कर इसे सीमावर्ती राज्यों में 10 से 12 हज़ार रुपए किलो में बेचते है.

तीनों राज्य सरकार कई बार इस संदर्भ में केंद्र सरकार को भी इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए भी पत्र लिख चुकी है.

यहीं से कांग्रेस ने की थी किसान राजनीति की शुरुआत

भारतीय जनता पार्टी के शासन में दो साल पहले किसान आंदोलन के दौरान पुलिस गोलीबारी में मंदसौर में छह किसानों की मौत हो गई थी. इसके बाद से पूरे देश में कई जगह किसानों को लेकर आंदोलन भी हुए थे. वहीं कांग्रेस पार्टी ने इसी आंदोलन को लेकर पूरे देश में आंदोलन किया था. मध्यप्रदेश शिवराज सरकार के खिलाफ महौल बनाने में कामयाब हुई थी. वहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी पिछले साल जून में इस क्षेत्र में रैली कर किसानों के लिए आवाज़ उठाने के अभियान की शुरुआत भी यहीं से की थी.

विरोध के बावजूद भाजपा रही आगे

2017 में हुए किसान आंदोलन के बाद राज्य में 2018 में विधानासभा के चुनाव भी हुए. इनमें भाजपा का पलड़ा भारी रहा. मंदसौर—नीमच संसदीय क्षेत्र में भाजपा ने मंदसौर, गरोठ, मल्हारगढ़, नीमच, मनासा, जावद और जावरा सीट पर कब्ज़ी किया. वहीं कांग्रेस पार्टी को केवल सुवासरा सीट पर जीत हासिल हुई. इस सीट पर पार्टी बहुत ही कम अंतर से जीती थी. इन चुनावों के परिणाम के बाद से ही कांग्रेस पार्टी का असर इन क्षेत्रों में बहुत कम हो गया.

भाजपा कांग्रेस दोनों के उम्मीदवारों अंदरूनी विरोध

विधानसभा चुनावों में दोनों पार्टियों का केंद्र रहा मंदसौर अब लोकसभा चुनाव में शांत नज़र आ रहा है. भाजपा की ओर से वर्तमान सांसद सुधीर गुप्ता दोबारा मैदान में है. वहीं कांग्रेस की ओर से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की करीबी माने जाने वाली मीनाक्षी नटराजन को प्रत्याशी बनाया है. वे पहले इसी क्षेत्र से सांसद रह चुकी है. गुप्ता के लिए पार्टी के भीतर ही विरोध के स्वर उठ रहे हैं. इसके अलावा उन पर भ्रष्टाचार के आरोप भी विरोधी लगाते है. वहीं नटराजन का व्यवहार कार्यकर्ताओं के लिए नापसंदगी बना हुआ है.


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मंदसौर संसदीय क्षेत्र में करीब 17 लाख वोटर है. क्षेत्र की राजनीति पर नज़र रखने वाले जानकार बताते है कि इस चुनाव में एक लाख नए वोटर भी जुड़े हैं. वहीं 21 से 25 आयु वर्ग वाले तीन लाख वोटर भी है. यह दोनों वर्गों के वोटर्स इस बार जीत तय करने में अहम किरदार अदा करेंगे. स्थानीय निवासी रामशरण शर्मा बताते है कि किसान आंदोलन के समय से लेकर विधानसभा चुनाव तक क्षेत्र में इतनी राजनीति हुई की अब क्षेत्र की राजनीति पर चर्चा करने का मन ही करता है.

मंदसौर की राजनीति अफीम की खेती के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है. जिन लोगों ने इन किसानों के समर्थन में अपनी बातें रखीं वह राजनीति में आगे बढ़ता रहा. जिन प्रतिनिधियों ने उनको दरकिनार किया किसान उनके विरोध में खड़े हुए उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा है. लेकिन अफीम की खेती ने नई तरह की बहस को जन्म दिया है. इससे निकलने वाले डोडा चूरे से नशे का कारोबार चरम पर है जिससे एमपी सहित तीन राज्य पंजाब, हरियाणा और राजस्थान सरकार परेशान है. अब मतदाताओं की नज़र इस समस्या के समाधान पर भी टिकी है.

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