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Sunday, 22 December, 2024
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नेताओं के ‘चुनावी एजेंडे’ से बाहर बुंदेलखंड, न है पीने का पानी, न रोज़गार और न ही लहर

अगले चरण में बुंदेलखंड के जालौन, झांसी, हमीरपुर में चुनाव हैं लेकिन आमजीवन में तमाम समस्याओं के कारण वोटर्स में कोई उत्साह नहीं दिख रहा.

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झांसी: यूपी में इन दिनों हर चौक-चौराहे, गली मोहल्लों में आपको चुनावी चर्चा जोर-शोर से होती दिखेगी. कोई अपने नेता को महान बता रहा होगा तो कोई अपने पसंदीदा दल की जीत का दावा कर रहा होगा. लेकिन बुंदेलखंड का हाल इससे अलग है. यहां लोगों में किसी दल या नेता को लेकर विशेष उत्साह दिखाई नहीं दे रहा है. यहां आज भी गांव की चौपालों पर चर्चा का विषय रोज़ाना के आमजीवन की समस्याएं हैं.

झांसी शहर से कुछ किलोमीटर दूर आते ही आपको बुंदेलखंड की असली तस्वीर दिख जाएगी. बेरोज़गारी, पानी की कमी, सूखे से भुखमरी यहां के लिए ये नए मुद्दे नहीं बल्कि नियति बन गए हैं.

बदनसीबी और राजनीतिक अनदेखी के कारण बुंदेलखंड आज भी बेहाल है. इस बार के चुनाव में सभी राजनीतिक दलों के मुख्य एजेंडा से भी गायब दिख रहा है.

पानी आज भी सबसे बड़ी समस्या

झांसी के रक्सा गांव में लोगों को पीने के पानी के लिए दो-दो किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. यहां की निवासी देववती बताती हैं कि पानी के टैंकर वाले सुबह व शाम आते हैं तो पैसे देकर लोग पानी खरीदते हैं. गांव का कुंआ सूख चुका है. वहीं ज़्यादातर हैंडपंप में पानी नहीं आता. जिन हैंडपंप से पानी आता है वो इतना गंदा होता है कि पिया नहीं जा सकता. इसी गांव की सीता कुमारी बताती हैं कि यहां के स्वास्थ्य केंद्र में पानी पीने की व्यवस्था तक नहीं है. गंदगी भी खूब है. मरीज का कैसे इलाज होगा जब कर्मचारियों का हाल ही बेहाल है. टैंकर वाला 5 रुपए के 2 डिब्बे दे जाता है लेकिन जिसके पास पैसा न हो वो कहां से पानी पीएगा.

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पानी लेने दो किमी. दूर जाते रक्सा गांव के गनपत | प्रशांत श्रीवास्तव

पानी की मांग सिर्फ रक्सा गांव की नहीं बल्कि आसपास के एक दर्जन ज्यादा गांव पानी की एक बूंद के लिए तरस रहे हैं. वहीं किसी गांव का प्रमुख मुद्दा बेरोज़गारी है तो दूसरे पास के गांव का पीने का पानी- बेरोजगारी .पुनावली कला गांव के निवासी रामअवतार बताते हैं कि बेरोज़गारी के कारण गांव के कई परिवारों ने पलायन कर लिया है. कई घरों में सिर्फ बुज़ुर्ग बचे हैं बच्चे रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों में और शहर भेज दिए गए हैं या चले गए हैं. पानी की समस्या का आलम तो इस गांव में ऐसा है टैंकर वाला पानी भी रोज़ाना नसीब नहीं होता. कई बार हैंड पंप का गंदा पानी पीना पड़ता है.


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इन गांव में पानी की ज़्यादा कमी

सखा, खजराहा, किल्चवारा, बैदोरा, चमरुआ, मथुरापुरा, दुर्गापुर, कोटी, मुरारी, अमरपुर, बरुआपुरा, मह, गुढ़ा, बाजना, रक्सा, बमेर, छतपुर, परासई बछौनी, खैरा, इमिलिया, भागौनी, गजगांव, बदनपुर, बसाई, पुनावली, खुर्द, डगरवाहा, नया खेड़ा, डोमागोर, कोरा, ढिकौली, पलींदा, मवई, शिवगढ़ और काशीनगर.

रोज़गार का बुरा हाल

बुंदेलखंड में रोज़गार का भी हाल खराब है. इस कारण लोग यहां से पलायन करने लगे हैं. पिछले बारह साल से बुंदेलखंड में पत्रकारिता कर रहे लक्ष्मी नारायण बताते हैं कि यहां झांसी के रानीपुर में टेरी काॅटन उद्योग काफी बड़े स्तर पर था लेकिन अब हाल बेहाल है. इसका कारण बिजली की समस्या और सरकार की अनदेखी है. वहीं महोबा पान की खेती के लिए मशहूर है लेकिन बड़े स्तर पर इसको ले जाने के लिए किसी सरकार ने प्रयास नहीं किए. ग्रेजुएशन के बाद काॅम्पिटिशन की तैयारी कर रहे सर्वेष बताते हैं कि उनके साथ के ज़्यादातर छात्र पढ़ाई पूरी करने के बाद लखनऊ या कानपुर चले गए. रोज़गार की समस्या के कारण कोई यहां रुकना नहीं चाहता.

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बेरोजगारी का हाल बताते पनावली गांव के नंदराम | प्रशांत श्रीवास्तव

बेसहारा जानवरों ने बढ़ाया सिरदर्द

इन दिनों यूपी में आवारा पशुओं का मुद्दा काफी बड़ा बन चुका है. बुंदेलखंड के बांदा-चित्रकूट, हमीरपुर-महोबा और जालौन, ललितपुर, झांसी में भी यही हाल है.पानी की किल्लत पहले से ही थी. पिछले दो दशकों में जंगलों की अधाधुंध कटाई की गई. बेसहारा जानवरों की संख्या ने किसानों का मर्ज़ और बढ़ा दिया. झांसी लखनऊ हाईवे से लेकर यहां के खेतों में आवारा पशु हर वक्त दिख जाएंगे.


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किस्मत भी रूठी बुंदेलियों से

ललितपुर के रहने वाले किसान सोमपाल कहते हैं कि प्रकृति भी बुंदेलों से रूठी हुई है. यहां की ज़मीन भी उपजाऊ नहीं है. सारी समस्याओं का असल कारण यही है. सरकार की ओर से पशुपालन को लेकर भी कोई रणनीति तैयार नहीं की गई. चुनावी घोषणाएं तो बहुत हुईं लेकिन ज़मीन पर नहीं उतरीं. पहली बार वर्ष 2002 में क्षेत्र को सूखाग्रस्त घोषित किया गया था. 21वीं सदी के 19 सालों में यहां 17 बार सूखा पड़ चुका है. क्षेत्र में सूखे से निपटने के लिए जहां बांध बनाए गए उनमें पानी का प्रबंध आज तक नहीं हो पाया.

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रक्सा गांव में पानी का इंतजार करती महिलाएं | प्रशांत श्रीवास्तव

सरकारी मदद जो पहुंची वो काफी नहीं

ऐसा नहीं है कि सरकार की ओर से कोशिशें नहीं हुईं. हर सरकार ने तमाम योजनाओं की घोषणा की है. उदाहरण के तौर पर केंद्र सरकार ने किसानों की हालत सुधारने के लिए फसल बीमा योजना की शुरुआत की. लेकिन यह भी यहां के किसानों की चोट पर मरहम नहीं लगा सकी. यहां के किसानों का कहना है कि बैंक प्रबंधन ज़्यादातर फसलों का बीमा तभी करते हैं जब फसल लगभग कटने की कगार पर पहुंच जाती है. बुंदेलखंड में किसान सालभर में एक ही फसल बो पाता है. ऐसी स्थिति में इस योजना का लाभ बहुत किसानों को नहीं मिल पाता हैे. यहां किसानों की ज़मीन, मवेशी और चारा बचाने को अब तक सार्थक पहल ही नहीं हुई. न बीज उन तक पहुंचे और न खाद या तकनीक. ऐसे में किसानों को काफी निराशा है.

चुनाव को लेकर कोई खास उत्साह नहीं

पुनावली कला गांव के श्याम किशोर बताते कि यहां किसी भी दल ने कोई विशेष कार्य नहीं कराया है. इस कारण वोट डालने को लेकर यहां लोगों में कोई विशेष उत्साह नहीं. इसी गांव के राजवीर कहते हैं कि जब सभी वोट डालने जाएंगे तो वह भी चले जाएंगे. कोई पसंदीदा दल नहीं. सबने निराश किया है. इसी कारण यहां किसी की कोई ‘लहर’ भी नहीं. दुर्गापुर गांव के राजनारायण कहते हैं जब नेताओं को उनकी  फिक्र नहीं तो हम उनकी फिक्र क्यों करें. कोई भी सरकार बना ले. यहां के लिए तो केवल वादे ही करेगा. हालात तो ये हैं कि अब यहां के लिए नेता वोट मांगते वक्त वादे करने से भी डरने लगे हैं. उन्हें पता है कि वह पूरे नहीं कर पाएंगे.

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