नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी (आप) से जुड़े प्रचार मेट्रो स्टेशन से लेकर अख़बारों तक में छाए हुए हैं. पार्टी द्वारा शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक के क्षेत्र में लाए गए ‘व्यापक बदलाव’ से जुड़े ये प्रचार और इससे जुड़े पोस्टर दिल्ली के 11 ज़िलों को बधाई देते नज़र आ रहे हैं. इन 11 ज़िलों को उनके द्वारा सड़क और गली से जुड़े काम शुरू करने के लिए ऐसे प्रचारों के जरिए बधाई दी गई है. पिछले महीने आचार संहिता के लागू होने से पहले देश की राजधानी दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की तस्वीर लगभग सर्वव्यापी थी.
हालांकि, चुनाव के पहले आख़िरी क्षण तक प्रचार पर कितना ख़र्च हुआ इसकी गणना अभी भी की जा रही है. लेकिन 2015 की फरवरी में दिल्ली में चुने जाने के बाद से केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार ने बाहरी प्रचार के लिए 274 करोड़ रुपए का ख़र्च किया है.
बाहरी प्रचार में शहर भर में लगे होर्डिंग्स के अलावा मेट्रो नेटवर्क और अख़बार में किया गया प्रचार भी आता है. दिप्रिंट ने दिल्ली सूचना और प्रचार निदेशालय से आरटीआई सवालों के जरिए ये जानकारी हासिल की है. इसी जानकारी के तहत पता चलता है कि सालाना ये ख़र्च 68.5 करोड़ के करीब बैठता है.
दिल्ली की पूर्व सीएम रहीं शीला दीक्षित की सरकार की तुलना केजरीवाल सरकार ने चार गुणा ज़्यादा ख़र्च किया है. 2008 से 2013 के बीच शीला दीक्षित की नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने सालाना 17.4 करोड़ ख़र्च किया था.
मुख्यमंत्री केजरीवाल के मीडिया सलाहकार नागेंद्र शर्मा से जब ये सवाल किया गया कि दिल्ली सरकार का प्रचार पर ख़र्च चार गुणा ज़्यादा क्यों हो गया तो उन्होंने इस पर कोई जवाब देने से मना कर दिया. शर्मा ने दिप्रिंट से कहा, “जब तक मैं सारे काग़ज़ात नहीं देख लेता, मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता.”
हालांकि, दीक्षित ने कहा कि केजरीवाल प्रचार पर जो ख़र्चा कर रहे हैं उस पर सबकी नज़र है. दिल्ली कांग्रेस इकाई की प्रमुख और तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं दीक्षित ने दिप्रिंट को बताया, ‘इस पर सबकी नज़र है कि वो (केजरीवाल) हमसे ज़्यादा पैसा ख़र्च कर रहे हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘वो कुछ ऐसा कर रहे हैं जो वो करना चाहते हैं. वो ये पैसे ख़ुद पर और अपने व्यक्तित्व पर ख़र्च कर रहे हैं. मुख्यमंत्री सिर्फ अपने आप को प्रचारित कर रहे हैं.’ बिना किसी शक के प्रचार के ख़र्च में आए उछाल के पीछे की एक वजह तो प्रचार की कीमतों में आया उछाल है.
2008 में दीक्षित जब अपने तीसरे कार्यकाल के लिए कार्यलय में लौटीं तो बड़े राष्ट्रीय अख़बार में एक पूरे पन्ने के प्रचार की कीमत लगभग 33 लाख़ रुपए थी. 2019 में ये कीमत 80 लाख़ हो गई है. पहले पन्ने के पहले भी एक पूरे पन्ने का प्रचार आता है जिसे ‘फ्रंट जैकेट’ कहते हैं और इसकी कीमत 80 लाख़ रुपए हैं.
हालांकि, मीडिया के एक अंदरूनी व्यक्ति का कहना है कि अख़बारों में प्रचार के बढ़े दाम अक्सर राजनीतिक पार्टियों पर लागू नहीं होते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि राजनीतिक पार्टियां जमकर मोलभाव करती हैं और सबसे कम कीमत पर प्रचार करवाते हैं.
बढ़ता ख़र्च
2015-16 में दिल्ली सरकार ने शुरुआत में सूचना और प्रचार निदेशालय को 522 करोड़ की राशि आवंटित की थी. लेकिन आरटीआई के जवाब के मुताबिक बाद में इस बजट को घटाकर 100 करोड़ कर दिया गया. इसमें से सरकार ने 59 करोड़ का ख़र्च किया.
2016-17 में निदेशालय के आवंटन को बढ़ाकर 175 करोड़ कर दिया गया, जिसमें से 66 कोरड़ ख़र्च किए गए. 2017-18 में ये ख़र्च लगभग दोगुना हो गया. इस दौरान सरकार ने 190 करोड़ में से 117 कोरड़ ख़र्च किए.
2018-2019 की 28 फरवरी तक की जानकारी के मुताबिक 100 करोड़ के आवंटन में सरकार ने 30 करोड़ प्रचार पर ख़र्च किया है. एक सरकारी सूत्र ने कहा कि ऐसा संभव है कि वित्त वर्ष से जुड़े साभी प्रचार से जुड़ी राशि को अभी तक जारी नहीं किया गया हो और इस वजह से इसे तालिक में शामिल नहीं किया गया हो.
ऐसा पहली बार नहीं हुआ
पिछले चार सालों में प्रचार पर आप के भारी ख़र्च से जुड़ी चर्चा अक्सर आम रही है. मार्च 2017 में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने ये बात बताई थी कि केजरीवाल सरकार ने 2015 में सार्वजनिक धन में से 29 करोड़ रुपए दिल्ली के बाहर ख़र्च किए थे.
रिपोर्ट में आप द्वारा सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के उल्लंघन की वजह से पार्टी की खिंचाई भी की गई थी. सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है कि सरकारी प्रचार को राजनीतिक रूप से निष्पक्ष होना चाहिए और नेताओं का महिमामंडन नहीं करना चाहिए.
लगभग तीन हफ्ते बाद, दिल्ली के उप-राज्यपाल अनिल बैजल ने केजरीवाल की पार्टी को फटकार लगाई. उनका भी आरोप था कि पार्टी जिस तरह से प्रचार कर रही है उससे सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन हो रहा है. उन्होंने आप से 97 करोड़ रुपए वापस करने को भी कहा था.
आप से पैसे वापस लिए जाने की ये सिफारिश सराकारी प्रचार से जुड़ी उस तीन सदस्यीय समिति ने दी थी जिसे सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद केंद्र सरकार ने गठित किया था. समिति का ध्यान इस ओर उस शिकायत के बाद गया था जो कांग्रेस नेता अजय माकन ने दायर की थी.
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