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Saturday, 16 November, 2024
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अहीर रेजिमेंट का वादा या सपा से यादव मतदाता छिटकने का डर

अगर समाजवादी पार्टी सचमुच लोहियावाद पर चल रही होती, तो वह किसी जाति के लिए नया रेजिमेंट बनाने का वादा करने की जगह, जाति नाम वाले तमाम रेजिमेंट को भारत रेजिमेंट में बदलने की मांग करती.

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समाजवादी पार्टी (सपा) का 2019 के लोकसभा चुनाव का घोषणा पत्र आया है. इसमें में अहीर बख्तरबंद रेजिमेंट बनाने की घोषणा की गई है. इससे लगता कि परिवारवाद का आरोप झेल रहे पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव को अपनी जाति का वोट भी हाथ से निकल जाने का डर सता रहा है और पार्टी यादवों को लुभाने में लगी है. लेकिन शायद उन्हें अंदाजा नहीं है कि ऐसा करके सपा दूसरी पिछड़ी जातियों की नाराजगी मोल ले रही है.

इस चुनाव में ये सपा की सबसे बड़ी राजनीतिक भूल साबित हो सकती है.

सपा ये भी भूल गई है कि उसके संस्थापक मुलायम सिंह यादव देश के बेहद प्रभावशाली रक्षा मंत्री रह चुके हैं और अगर अहीर रेजिमेंट जैसा कुछ बनना मुमकिन होता, तो वे ऐसा कर चुके होते. देश में अब किसी जाति के नाम पर रेजिमेंट बनाए जाने पर रोक है और अब मांग ये होनी चाहिए कि जातियों के नाम पर अंग्रेजों के समय में बने तमाम रेजिमेंट का विलय करके एक अखिल भारतीय रेजिमेंट बने. आधुनिक समय में जातियों के नाम पर सेनाओं की टुकड़ियों का होना अपने आप में समस्यामूलक है.

पार्टी ने अपने घोषणा पत्र की शुरुआत समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया के इस वक्तव्य से की है, ‘गरीबी के खिलाफ लड़ाई एक धोखा है, जब तक जाति और लिंग के आधार पर भेदभाव के खिलाफ लड़ाई न हो.’ इसकी झलक तीसरे पेज पर हल्की सी मिलती है, जिसमें लिखा गया है, ‘आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि भारत शायद विश्व का सबसे बड़ा गैर बराबरी वाला देश है. अमीर और अमीर बनता जा रहा है. देश के 10 फीसदी समृद्ध (उच्च जाति के लोग) 60 फीसदी राष्ट्रीय संपत्ति पर काबिज हैं.’ हालांकि यह सिर्फ सैद्धांतिक बात है, पार्टी की घोषणा का हिस्सा नहीं है.


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वहीं जब घोषणापत्र के संकल्प शुरू होते हैं तो यह एक छितराया, बिखरा विचारहीन दस्तावेज नजर आता है. पार्टी अपने मतदाताओं से क्या कहना चाहती है, यह बिल्कुल साफ नहीं है. घोषणाओं के पहले पन्ने पर सिर्फ एक लाइन समझ में आती है कि समाजवादी पेंशन योजना के तहत जरूरतमंद परिवार की महिलाओं को 3,000 रुपये मासिक पेंशन देने का वादा किया गया है. ‘बहुमत का विकास’ किसे कहते हैं, शायद हिंदी का कोई विद्वान भी नहीं समझा पाएगा. उस अध्याय में क्या लिखा गया है और पार्टी क्या करना चाहती है, यह समझ से परे है. शिक्षा पर देश की जीडीपी का 6 प्रतिशत खर्च करने का वादा किया गया है. यही कांग्रेस के घोषणापत्र में भी है. ये अच्छी बात है.

सपा ने रोजगार के बारे में भी कुछ घोषणा की है, जिसमें लिखा गया है, ‘हमारी सरकार बनने पर हम केंद्रीय आरक्षण के नवीन आंकड़ों को जारी करेंगे ताकि देश में प्रत्येक जाति की जनसंख्या का सही आकलन किया जा सके.’ यह समझ से परे है कि आरक्षण का नवीन आंकड़ा क्या है और इसे जारी कर पार्टी कैसे जाति की जनसंख्या का आकलन करेगी!

सपा ने हर साल 1,00,000 नौकरियां देने का वादा किया है, जो 2014 में मोदी के एक करोड़ नौकरियां देने के वादे की तुलना में कुछ भी नहीं है. कांग्रेस ने तो सत्ता में आने पर 4 लाख रिक्त पद मार्च 2020 तक ही भर देने का वादा किया है. किसानों और युवाओं के लिए विश्वस्तरीय एक्सप्रेसवे व सड़कों के निर्माण का वादा किया गया है!

महंगे एक्सप्रेसवे पर किसानों के ट्रैक्टर ट्रॉली या बैलगाड़ी को घुसने की इजाजत भी नहीं होती, जिनके माध्यम से सपा किसानों का विकास करना चाहती है. किसानों के लिए स्वर्णिम क्रांति की बात की गई है. यह साफ नहीं है कि यह क्रांति क्या है और कैसे आएगी. हां, किसानों के 100 फीसदी कर्जमाफी का वादा जरूर किया गया है. लेकिन इसकी हिंदी से एक लाइन भी समझ पाना मुश्किल है कि सपा करना क्या चाहती है. ‘स्वच्छ ऊर्जा अभियान और जातीय भेदभाव से मुक्ति’ भी समझ से परे है. स्वच्छ ऊर्जा अभियान से जातीय भेदभाव का क्या तालमेल है, यह सपा ही बता सकती है.

इस समय नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग के लोग डरे सहमे हैं. पिछले 5 साल के दौरान ऐसी तमाम घटनाएं हुईं, जिसमें सरकार तमाशबीन बनी रही और वंचित तबका सहमा रहा.

गुजरात में दलितों की सरेआम पिटाई से लेकर रोहित वेमुला केस सहित उत्तर प्रदेश में दलितों के घर जलाए जाने की घटनाएं हुईं. आरक्षित वर्ग को नौकरियों में आरक्षण देने के मसले से लेकर तरह तरह उत्पीड़ित किया जाता रहा. रोस्टर प्रणाली को लेकर सरकार संसद में कोरे आश्वासन देती रही. डीओपीटी ने सैकड़ों उत्तीर्ण ओबीसी अभ्यर्थियों को आईएएस बनने से रोक रखा है और उन्हें हाईकोर्ट और वहां हारने के बाद सुप्रीम कोर्ट में मुकदमे लड़ा रही है. सरकार की लापरवाही से देश के 18 लाख आदिवासियों की बेदखली का आदेश आ गया. सपा का घोषणा पत्र इन सब मसलों पर पूरी तरह से खामोश नजर आता है.


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डॉ बीआर अंबेडकर और लोहिया ने जातीय भेदभाव खत्म करने, जाति व्यवस्था के उन्मूलन की बात कही, वहीं लोहिया का उल्लेख करने वाली सपा अहीर बख्तरबंद रेजिमेंट बनाने की बात अपने चुनाव घोषणापत्र में लेकर आई है. सपा के ऊपर यादव का दल होने के आरोप लगते रहे हैं, ऐसे में कौन सी ऐसी राजनीतिक मजबूरी है कि अखिलेश को अहीर रेजिमेंट की बात करनी पड़ी है.

पिछड़े समाज को जोड़ने के लिए जरूरी तो यह था कि देश भर में जातीय गर्व के जितने साधन हैं, उन्हें खत्म करने की बात की जाए. सेनाओं के राजपूताना राइफल्स या इस तरह के जो भी जातीय नाम हैं, उन्हें खत्म करने की बात कही जाए. सपा अपने घोषणापत्र में अहीर रेजिमेंट की बात कर रही है तो विपक्ष या जनता की ओर से यह सवाल उठना लाजिम है कि यादव के अलावा कुर्मी, गूजर, लोध, सोनार, बरई, कोहार, कहांर, बढ़ई, लोहार, भर, केवट, मल्लाह सहित उत्तर प्रदेश की अन्य 75 पिछड़ी जातियों को सपा के साथ क्यों आना चाहिए.

हिंदी में जारी सपा का घोषणापत्र पढ़ने पर वह मूर्खताओं का ढेर नजर आता है. भाषा, वाक्यविन्यास से लेकर उसमें लिखी सामग्री बेहद निम्नस्तरीय है. उसे पढ़कर यह समझ पाना भी मुश्किल है कि पार्टी क्या करना चाहती है. वंचित तबके के उल्लेख के नाम पर एक बार अहीर रेजिमेंट बनाने की बात कही गई है. और एक बार यह बताया गया है कि देश के 10 फीसदी उच्च जाति के लोग 60 फीसदी राष्ट्रीय संपत्ति पर काबिज हैं. कुल मिलाकर सपा का घोषणापत्र 5 साल के कार्यों का कोई खाका खींच पाने में नाकाम रहा है.

संभवतः अहीर रेजिमेंट गठित कर राज्य के यादव मतदाताओं को साधने की कोशिश की गई है, जिससे परिवारवाद के आरोप झेल रही पार्टी से बिदककर वे अन्य दलों में न छिटकने पाएं. वहीं यह घोषणापत्र ओबीसी की अन्य जातियों को डराता है कि सपा ने सिर्फ अहिरों की बात की है, उनके दुख तकलीफों को कहीं से भी शामिल नहीं किया गया है.

(लेखिका राजनीतिक विश्लेषक हैं.)

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