नई दिल्लीः हाथ में बेंत लिए, सफेद कुर्ता–पजामे में नब्बे साल के बुजुर्ग खाट पर बैठ जाते हैं. ये ग्रामीण भारत की नहीं, दिल्ली के मुनिरका गांव की तस्वीर है. जहां दिप्रिंट चुनावी कवरेज के लिए पहुंचा है. तंग गलियों से गुजरते हुए जिस घर में ये बूढ़े बाबा बैठे हैं उसके बाहर सूट पहने दुपट्टा सिर पर लिए अधेड़ उम्र की औरतें गुजर रही हैं. रोहतक के किसी जाट बाहुल्य गांव की तरह ही वोट किसे देंगी के सवाल पर वो कांग्रेस के एक कार्यकर्ता की तरफ इशारा करते हुए कहती हैं– जहां ये भाई साहब कहेंगे वहीं वोट दे देंगे. देश की सबसे चर्चित यूनिवर्सिटी जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी भी बगल में है. इस मुनिरका गांव के बबलू कहते हैं, देखो जी यह गांव किसी राजस्थान–हरियाणा के गांव की तरह नहीं कि एक खास जाति के नेता के वोट बंधे होंगे. इस गांव में लोकल और बाहरी लोगों के कुल मिलाकर वोट होंगे 22,000 के करीब, उसमें से गांव वालों के तकरीबन 8,000 वोट हैं.’
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नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में पड़ने वाले इस गांव से पिछली बार के चुनाव पर बात करते हुए स्थानीय लोग कहते हैं, ‘नई दिल्ली लोकसभा सीट से बेशक मीनाक्षी लेखी जीती हों. लेकिन हमारे गांव से तो ज्यादा वोट कांग्रेस को ही पड़े थे. मोदी लहर से यहां लोगों का कोई लेना–देना नहीं है.’
इस बार नई दिल्ली लोकसभा सीट से आम आदमी पार्टी से बृजेश गोयल, भाजपा से मौजूदा सांसद मीनाक्षी लेखी और कांग्रेस के अजय माकन आमने–सामने हैं. 2014 में मीनाक्षी लेखी ने भाजपा के टिकट पर पहली बार चुनाव लड़ा था और जीत गई थीं. उनसे पहले लगातार 2004-2014 तक अजय माकन इस सीट से सांसद रहे हैं. 1951 में अस्तित्व में आई इस सीट से भाजपा के कद्दावर नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी भी चुनाव जीत चुके हैं.
मुनिरका और इसके आस–पास के जाट गांवों का मुख्य पेशा किराएदारी और दुकानदारी है. सतीश बताते हैं, ‘यहां बेरोजगारी मुख्य समस्या है. जाट आंदोलन चलाया था कि हमारे बच्चों को भी केंद्र में नौकरी मिलेगी लेकिन उसका कुछ नहीं हुआ.’ जब मैंने उन्हें बताया कि हरियाणा से शुरू हुए आंदोलन की चर्चा तो अब हरियाणा में भी नहीं हो रही. इसके जवाब में वो कहते हैं, ‘ये ही तो बात है न कि रोजगार की बात कभी न होती. दिल्ली की किसी भी नौकरी में हमारे बच्चों के लिए कुछ नहीं है. दो–चार सीट होती हैं तो ओबीसी वाले ले जाते हैं.’
उनकी बात बीच में ही काटते हुए एक अन्य युवक ने कहा, ‘आप ये देखो न कि जेएनयू में भी यूपी–बिहार के बच्चों को कोटा मिला हुआ है. हमारे लिए बस तीन सीट है, हम कैसे एडमिशन लेंगे.’
वर्तमान में चल रहे राष्ट्रवाद और सेना के मुद्दों पर बात करते हुए गांव वाले कहते हैं, ‘देखो जी धरना तो हमने भी दिया था. हम तो कई साल से कांग्रेसी भी हैं लेकिन देश की बर्बादी की बात करने वालों के खिलाफ आवाज तो उठानी चाहिए. इस कैंपस में क्या–क्या नहीं होता. यहां का प्रशासन ही खराब है.’
यहां सुबह–शाम भाजपा, आप और कांग्रेस के कार्यकर्ता प्रचार करते हैं. कांग्रेस के कार्यकर्ता से पूछा कि जिस तरह सोशल मीडिया पर गाली–गलौज का माहौल बन गया है, क्या वह जमीनी लेवल पर भी वैसा ही है? इसके जवाब में कांग्रेस के कार्यकर्ता भरतू राठी कहते हैं, ‘ऐसा न है. शाम को कैंपेन करते समय भाजपा वाले भी मिल जाते हैं और आप वाले भी. हम राम–राम कहके आगे बढ़ जाते हैं.’
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गली में मिले एक 18-19 साल के युवक से जब पूछा कि क्या इस बार भी मोदी लहर कायम है तो वो कहता है, ‘हर घर में कोई न कोई मोदी का फैन मिल ही जाता है. ज्यादातर मेरी उम्र के लोग ही हैं.’
शाहपुर जाट, नई दिल्ली लोकसभा सीट
नई दिल्ली लोकसभा का ही एक और गांव है शाहपुर जाट. इस गांव में जाटों के बराबर ही एससी–एसटी वोट हैं. यहां बंगाल और बिहार के लोगों का पलायन ज्यादा हुआ है. बाहरी लोगों के आने से भले ही इस गांव का सामाजिक माहौल बदल गया है लेकिन यहां आज भी जातिगत पहचान बरकरार है. गांव की चौपाल की तरह एक सामूहिक घर में सुबह–शाम ताश खेला जाता है. मुद्दे हैं-सड़क और पिछले सात–आठ सालों से निर्माणानाधीन पड़ी नई चौपाल.
सड़कों का हाल बुरा है. गांव वालों ने आपसी पूंजी जमा करके पुरानी चौपाल की दोमंजिला इमारत बना ली है लेकिन वो नई चौपाल का मुद्दा बार–बार उठा रहे हैं.
पुरानी चौपाल के पास कांग्रेस के प्रचार से जुड़े 16 साल के मन्नत कहते हैं, ‘मैं तो बचपन से ही कांग्रेस से जुड़ा हुआ हूं. शाम को हम बच्चे मिलकर घर–घर जाकर प्रचार करते हैं. पार्क में एक्टिविटी भी कराते हैं. मैं सोनिया मैडम के दफ्तर में काम करता हूं.’
मन्नत का चुनाव प्रचार देखने के बाद दिप्रिंट ने यहां के स्थानीय और बाहर से आकर बसे वोटर्स से बातचीत की. रमेश पंवार बताते हैं, मीनाक्षी लेखी में घंमड बहुत ज्यादा है. अगर उनकी जगह किसी और कैंडिडेट को खड़ा करते तो निश्चित तौर पर जीत जाते.’
इस इलाके के लोग मीनाक्षी लेखी को लेकर एक बात एक स्वर में कह रहे हैं, ‘लेखी, कभी न देखी.’
यहां के कुछ युवक इस इलाके में बाहर से आए लोगों की खोली हुई दुकानों में काम पर लग गए हैं. बाकी किसी का काम किराएदारों से निकल रहा है तो किसी का खुद की दुकानदारी से.
शाहपुर जाट में घुसने से पहले हौज खास विलेज की तरह बड़ी–बड़ी शीशे की दुकानें दिखेंगी. जहां चमकीले चप्पलों से लेकर चमकीले परिधान ही नजर आते हैं. लेकिन जैसे–जैसे गांव के भीतर आते जाएंगे. वैसे–वैसे तंग गलियां और टूटी हुई सड़कें दिखाई देती हैं. यहां की सोशियोलॉजिकल और इकोनॉमिकल स्थिति के बारे में बात करते हुए दिलीप बताते हैं, ‘इकोनॉमी तो किराए से चल रही है. ज्यादातर परिवार ठीक–ठाक हैं और गुजारा चल रहा है. यूथ के पास कुछ करने को नहीं है तो राजनीति ही करते हैं. राजनीति में प्रतिनिधित्व किस इलाके के लोगों को नहीं चाहिए. बस उसी कोशिश में लगे हुए हैं. इस गांव के चौधरी दिलीप सिंह सांसद रह चुके हैं.’
कांग्रेस का प्रचार कर रहे मन्नत यहां के यूथ पर कहते हैं, ‘पहले के लड़के 12वीं पढ़कर ही पढ़ाई–लिखाई छोड़ देते थे. अभी वाले थोड़ा आगे जा रहे हैं. डीयू की राजनीति में सक्रिय होंगे. वहां से आगे की राजनीति का रास्ता देखेंगे.’
चंद्रावल, चांदनी चौक लोकसभा सीट
‘दिल्ली यूनिवर्सिटी में चंद्रावल गांव के लोगों की अच्छी पैठ है. पहले ये गांव मजनू के टीला के पास था. वहां एक बोर्ड पर अब भी चंद्रावल लिखा हुआ है. 1908 के आस–पास अंग्रेजों ने वहां से हटवा दिया तो इधर आ गए. उस वक्त गुर्जरों के तीन गांव पुराने चंद्रावल से निकले थे. वजीरपुर–चंद्रावल–रामपुरा’ – यादवों के घर में बैठे हुए नितिन खारी कहते हैं.
चंद्रावल गांव चांदनी चौक लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है. इस सीट पर भाजपा के डॉक्टर हर्षवर्धन, कांग्रेस से जेपी अग्रवाल और आम आदमी पार्टी से पंकज गुप्ता चुनाव लड़ रहे हैं. गाय–भैंसों के मल-मूत्र की दुर्गंध, तंग गलियों से होते हुए हम चंद्रावल की चौपाल के पास पहुंचे. चौपाल सिर्फ नाम की चौपाल रह गई है अब यह घरों में लगने लगी है. राजनीतिक बहसे अब ट्विटर और फेसबुक के अलावा घर–परिवार में होने लगी है. यादव परिवार के एक घर में गए तो वहां छात्र नेता से लेकर पार्षद लेवल तक के लोग बैठे मिले. बगल में एक हुक्का रखा हुआ है. यहां कोई कांग्रेसी है तो कोई मोदी समर्थक. इस गांव की मुख्य आमदनी किराया ही है. पहले गाय–भैंसे ज्यादा हुआ करती थीं. अब वो भी कम हो गई हैं.
गौरव बताते हैं, ‘यहां 8500-9000 के आस–पास लोकल हैं. उसमें से वोट होंगे 2500 के आस–पास. इसलिए किसी बड़े कद के नेता के इधर आने की संभावना भी नहीं है और न ही लोग आस लगाकर बैठे हैं. ज्यादातर नौजवान घर पर ही बैठे हैं. किराए से ही काम चल रहा है कोई नौकरी तो करता नहीं है.’
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उनकी बात को आगे बढ़ाते हुए विपिन कहते हैं, ‘अब हम डीयू की राजनीति में अपना प्रतिनिधित्व बढ़ाएंगे. जब हमारे समुदाय का कोई नेता होगा तो जाहिर है वोट भी उसी हिसाब से निर्धारित होंगे. अभी को कोई खास नेता नहीं है जिसके प्रति कोई झुकाव हो. इसलिए जो कांग्रेसी हैं वो कांग्रेस को ही वोट देंगे. जो मोदी समर्थक बन गए हैं वो मोदी को.’
इस ग्रुप में बैठे भाजपा समर्थक से पूछा कि आपको क्या खासियत लगती है नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की तो वो कहते हैं, ‘सेना के लिए कितना कुछ कर दिया है.’ लेकिन आपके गांव से तो न कोई सेना में है और न ही ऐसा कोई राष्ट्रवाद का माहौल, ऐसे में आप किस तरह इन मुद्दों से जुड़ाव महसूस करते हैं? इस पर युवक ने कहा, ‘नरेंद्र मोदी के अलावा कोई है भी नहीं जो सेना को लेकर गर्व महसूस करा सके.’
आम आदमी पार्टी को लेकर ये गांव लोकसभा चुनाव में उत्साहित नहीं दिखा लेकिन कुछ लोगों का मत है कि वो विधानसभा में आम आदमी पार्टी के बारे में सोचेंगे. 2014 में इस लोकसभा सीट से भाजपा के डॉक्टर हर्षवर्धन ने जीत हासिल की थी. उन्होंने आम आदमी पार्टी से आशुतोष, कांग्रेस से कपिल सिब्बल और बसपा के नरेंद्र कुमार पांडे को पछाड़ा था.
‘आप वालों को अगर गलती से एक–दो सीट मिल भी गई तो केंद्र की सरकार में कुछ नहीं होना–जाना. इसलिए क्यों वोट खराब करना. हम विधानसभा में उन्हें देखेंगे.’विपिन ने अपनी बात खत्म करते हुए कहा.